रविवार, 24 अप्रैल 2011

शमशेर शताब्दी समारोह संपन्न


हैदराबाद, 2 अप्रैल, 2011। ‘‘शमशेर बहादुर सिंह हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं के बड़े कवि थे। गद्यकार भी वे उतने ही बड़े थे। वे इकलौते ऐसे आलोचक हैं जिन्होंने हाली की उर्दू रचना ‘मुसद्दस’ और मैथिलीशरण गुप्त की हिंदी रचना ‘भारत भारती’ की गहराई से तुलना करते हुए दोनों के रिश्ते की पहचान की। इक़बाल पर भी हिंदी में उन्होंने ही सबसे पहले लिखा। वे हिंदी और उर्दू के बीच किसी भी प्रकार के भेदभाव और टकराव के विरोधी थे।

ये विचार प्रो. नामवर सिंह ने 30-31मार्च, 2011 को हैदराबाद में आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘शमशेर शताब्दी समारोह’ के उद्घाटन सत्र में बुधवार को बीज व्याख्यान देते हुए व्यक्त किए। यह समारोह उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा और मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ। समारोह का उद्घाटन डॉ. गंगा प्रसाद विमल ने किया। इस सत्र के संयोजक प्रो. दिलीप सिंह थे। विशिष्ट अतिथि प्रो. आमिना किशोर रहीं और अध्यक्षता मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मोहम्मद मियाँ ने की।

उद्घाटन के बाद ‘शमशेर की स्मृति’ पर केंद्रित सत्र में प्रो. दिलीप सिंह ने 'शमशेर : व्यक्ति और रचनाकार’ शीर्षक आलेख प्रस्तुत किया, प्रो. तेजस्वी कट्टीमनी ने ‘लोगों की स्मृतियों में बसे हुए शमशेर' पर प्रकाश डाला और डॉ. गंगा प्रसाद विमल ने शमशेर बहादुर सिंह से जुड़े कई रोचक प्रसंग सुनाए। मुंबई से पधारे भाषावैज्ञानिक डॉ. अब्दुस्सत्तार दलवी ने स्मृति सत्र की अध्यक्षता की, संयोजन प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने किया तथा डॉ. मृत्युंजय सिंह ने वक्ताओं के प्रति आभार प्रकट किया।

‘शमशेर की कविता’ पर केंद्रित विचार सत्र की अध्यक्षता इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से पधारे प्रो.सत्यकाम ने की। अलीगढ़ विश्वविद्यालय से आए डॉ. अब्दुल अलीम ने 'शमशेर : काव्यानुभूति के आयाम’ विषय पर अपना आलेख पढ़ा।
‘शमशेर की काव्यभाषा’ पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कुलसचिव प्रो. दिलीप सिंह ने आलेख प्रस्तुत किया। काव्यभाषा विषयक चर्चा को आगे बढ़ाया उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, हैदराबाद के डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने।


जोधपुर से पधारे डॉ. श्रवण कुमार मीणा ने शमशेर की गज़लों का विश्लेषण किया। दिल्ली से पधारे कविवर डॉ. हीरालाल बाछोतिया के आलेख का विषय था ‘शमशेर : शोक गीतों के आईने में’। अध्यक्ष मंडल के सदस्य प्रो. टी. मोहन सिंह ने शमशेर की जनपक्षधरता और प्रयोगधर्मिता को तेलुगु साहित्यकार श्रीश्री से तुलनीय बताया जो शमशेर के समकालीन थे। इस सत्र का संयोजन डॉ. जी.वी. रत्नाकर ने किया तथा डॉ. जी. नीरजा ने वक्ताओं और श्रोताओं का धन्यवाद प्रकट किया।

३१ मार्च, 2011 (गुरुवार) को आयोजित विशेष सत्र में प्रो. नामवर सिंह ने शमशेर से संबंधित संस्मरण सुनाकर श्रोताओं को भावविगलित तो किया ही, वैचारिक रूप से समृद्ध भी बनाया। दूसरे दिन के दो विचार सत्र शमशेर के गद्य को समर्पित रहे। इन सत्रों की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी संस्थान के प्रो. हेमराज मीणा और ‘स्वतंत्र वार्ता’ के संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने की तथा संयोजन डॉ. करनसिंह ऊटवाल और डॉ. शेषुबाबु ने किया। डॉ. हेमराज मीणा ने अपने पीएच.डी. शोध कार्य के दौरान तीन वर्ष शमशेर के साथ रहने के मार्मिक संस्मरण सुनाए। डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने शमशेर बहादुर सिंह को हिंदी और उर्दू की गंगा जमुनी तहज़ीब का कवि बताया। एरणाकुलम (केरल) से आई प्रो. सुनीता मंजनबैल ने शमषेर के डायरी लेखन पर केंद्रित आलेख पढ़ा, डॉ. मृत्युंजय सिंह ने ‘घनत्व और प्रसार का गद्य’ शीर्षक लेख और डॉ.जी. नीरजा ने ‘शमशेर की कहानियाँ’ विषयक आलेख का वाचन किया। गद्य संबंधी इस सत्र के अंत में डॉ. बलविंदर कौर ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

संगोष्ठी के अंतिम विचार सत्र में प्रो. अमर ज्योति (धारवाड) ने ‘शमशेर की आलोचना दृष्टि’ पर आलेख पढ़ा और अलीगढ़ विश्वविद्यालय से आए डॉ. राजीव लोचन नाथ शुक्ल ने ‘शमशेर की भाषादृष्टि’ पर। कृतज्ञताज्ञापन डॉ. गोरख नाथ तिवारी ने किया। मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. टी.वी. कट्टीमनी ने समाकलन भाषण दिया। श्रीवेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, तिरुपति के डॉ. आई.एन. चंद्रशेखर रेड्डी तथा दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की डॉ. साहिरा बानू ने अपनी टिप्पणियों में कार्यक्रम की भूरि भूरि प्रशंसा की और कहा कि शमशेर को समझने में इस संगोष्ठी से बड़ी सहायता मिली। कार्यक्रम के परिकल्पक प्रो. दिलीप सिंह ने संतोष जताया कि पूरा आयोजन योजना के अनुरूप चला और शमशेर के व्यक्तित्व और कृतित्व से संबंधित कई गुत्थियाँ खुलीं। उन्होंने हर्ष व्यक्त किया कि सभी शोध पत्रों में वादनिरपेक्ष और पाठकेंद्रित आलोचनादृष्टि देखने को मिली।

समापन समारोह के मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए डॉ. नामवर सिंह ने बताया, ‘‘पिछले दिनों दिल्ली तथा अन्य स्थानों पर शमशेर पर कई गोष्ठियाँ हुईं परंतु उनमें पुनरावृत्ति ही अधिक दिखाई दी तथा कविता पर ही अधिक ज़ोर रहा। इसके विपरीत हैदराबाद के इस समारोह की यह उपलब्धि रही कि यहाँ नई बातें हुईं, अलग अलग दृष्टि से बातें हुईं, सब विधाओं की बातें हुईं और नई रचनाएँ उद्धृत की गईं। डॉ. नामवर सिंह ने इस तुलना को आगे बढ़ाते हुए कहा कि लोग आधा चाँद लिए नाच रहे थे, यहाँ पूरा चाँद देखने को मिला - शमशेर की शमशेरियत का पूरा चाँद। समापन सत्र की अध्यक्षता डॉ. गंगा प्रसाद विमल ने की। समापन समारोह का संयोजन शमशेर की उक्तियों के माध्यम से प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने इतनी रोचक शैली में किया कि स्वयं प्रो. नामवर सिंह ने उनकी संयोजन शैली की मंच से मुक्तकंठ से प्रशंसा की।

इस समारोह में राष्ट्रीय संगोष्ठी के अतिरिक्त तीन अन्य कार्यक्रम भी संपन्न हुए।
1- डॉ. नामवर सिंह के हाथों डॉ. टी.वी. कट्टीमनी द्वारा संपादित समीक्षाकृति ‘दक्खिनी भाषा और साहित्य’ तथा हैदराबाद के प्रतिष्ठित क्रांतिकारी कवि शशि नारायण ‘स्वाधीन’ की काव्यकृति ‘भूख, धान और चिड़िया’ का लोकार्पण किया। पहले दिन की साँझ अभिनेता विनय वर्मा द्वारा एकपात्री नाटक ‘मैं राही मासूम’ का मंचन किया गया और समापन सत्र के उपरांत ‘अलिफ’ के तत्वावधान में प्रो. खालिद सईद ने ‘बहुभाषा कवि सम्मेलन’ आयोजित किया जिसमें हिंदी, उर्दू और तेलुगु के कवियों ने डॉ. नामवर सिंह, डॉ. गंगा प्रसाद विमल, डॉ. अब्दुस्सत्तार दलवी और डॉ. हीरालाल बाछोतिया के सान्निध्य में काव्यपाठ किया।

(रिपोर्टर :संगोष्ठी स्थल से डॉ.मृत्युंजय सिंह,डॉ जी.नीरजा,डॉ.बलविंदर कौर एवं डॉ.गोरखनाथ तिवारी)
[चित्र : डॉ. जी. नीरजा, डॉ. बी. बालाजी एवं राधाकृष्ण मिरियाला]

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

शमशेर हिंदी और उर्दू के कवि थे तो फिर जैसा हम फ़ैज़ की जन्मशति मना रहे हैं, वैसे उर्दू साहित्यकार शमशेर की शति क्यों नहीं मना रहे। मूल प्रश्न तो यह है कि क्या उर्दू के साहित्यकारों में शमशेर का नाम दर्ज है????!!