मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ का शोक प्रस्ताव- इन्दौर, २५ मार्च २०११। कमलाप्रसादजी ने पूरे देश के प्रगतिशील और जनपक्षधरता वाले रचनाकारों को उस वक्त देश में इकट्ठा करने का बीड़ा उठाया जब प्रतिक्रियावादी, अवसरवादी और दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता, यश और पुरस्कारों का चारा डालकर लेखकों को बरगलाने का काम कर रहीं हैं।
उनके इस काम को देश की विभिन्न भाषाओं और विभिन्न संगठनों के तरक्कीपसंद रचनाकारों का मुक्त सहयोग मिला और एक संगठन के तौर पर प्रगतिशील लेखक संघ देश में लेखकों का सबसे बड़ा संगठन बना। इसके पीछे दोस्तों, साथियो और वरिष्ठों द्वारा भी कमांडर कहे जाने वाले कमलाप्रसादजी के सांगठनिक प्रयास प्रमुख रहे। उन्होंने जम्मू-कश्मीर से लेकर, पंजाब, असम, मेघालय, प. बंगाल और केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में संगठन की इकाइयों का पुनर्गठन किया, नये लेखकों को उत्प्रेरित किया और पुराने लेखकों को पुन: सक्रिय किया। उनकी कोशिशें अनथक थीं और उनकी चिंताएँ भी यही कि सांस्कृतिक रूप से किस तरह साम्राज्यवाद, साम्प्रदायिकता और संकीर्णतावाद को चुनौती और शिकस्त दी जा सकती है और किस तरह एक समाजवादी समाज का स्वप्न साकार किया जा सकता है। 'वसुधा` के संपादन के जरिये उन्होंने रचनाकारों के बीच पुल बनाया और उसे लोकतांत्रिक सम्पादन की भी एक मिसाल बनाया। कमलाप्रसादजी रीवा विश्वविद्यालय में हिन्दी के विभागाध्यक्षरहे, मध्य प्रदेश कला परिषद के सचिव रहे, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के अध्यक्ष रहे और तमाम अकादमिक-सांस्कृतिक समितियों के अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे, अनेक किताबें लिखीं, हिन्दी के प्रमुख आलोचकों में उनका स्थान है, लेकिन हर जगह उनकी सबसे पहली प्राथमिकता प्रगतिशील चेतना के निर्माण की रही। उनके न रहने से न केवल प्रगतिशील लेखक संघ को, बल्कि वंचितों के पक्ष में खड़े होने और सत्ता को चुनौती देने वाले लेखकों के पूरे आंदोलन को आघात पहुँचा है। मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संगठन तो खासतौर पर उन जैसे शुरुआती कुछ साथियों की मेहनत का नतीजा है। उनके निधन से पूरे देश के लेखक, रचनाकार, पाठक, साहित्य व कलाओं का वृहद समुदाय स्तब्ध और शोक में है। कमलाप्रसादजी ने जिन मूल्यों को जिया, जिन वामपंथी प्रतिबद्धताओं को निभाया और जो सांगठनिक ढाँचा देश में खड़ा किया, वो उनके दिखाये रास्ते पर आगे बढ़ने वाले लोग सामने लाएगा। और प्रेमचंद, सज्जाद जहीर, फैज, भीष्म साहनी, कैफी आजमी, परसाई जैसे लेखकों के जिन कामों को कमलाप्रसादजी ने आगे बढ़ाया था, उन्हें और आगे बढ़ाया जाएगा। मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की राज्य कार्यकारिणी उन्हें अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करती है।
ध्यातव्य है कि हाल ही में उन्हें रायपुर के प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ‘प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान’ द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना के लिए दिए जानेवाले महत्वपूर्ण सम्मान प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान की घोषणा की गई थी। यह सम्मान उन्हें आगामी १४-१५ मई को भिलाई में फ़ैज़ अहमद फ़ैज और केदारनाथ अग्रवाल पर होनेवाले राष्ट्रीय विमर्श के अवसर पर प्रदान किया जाने वाला था। ज्ञातव्य हो कि वरिष्ठ वर्ग में यह सम्मान अब तक श्रीभगवान सिंह, भागलपुर और श्री मधुरेश, बरेली तथा युवा वर्ग में यह सम्मान श्री कृष्णमोहन, वाराणासी तथा ज्योतिष जोशी, दिल्ली को प्राप्त हो चुका है । इस सम्मान के तहत 21 हज़ार की नगद राशि, प्रतीक चिन्ह, शाल, श्रीफल तथा प्रमोद वर्मा समग्र भेंट किया जाता है। 14/02/1938, सतना (म.प्र.) में जन्मे श्री कमला प्रसाद एम.ए., पीएच. डी.व सागर विश्वविद्यालय से डी. लिट थे । उनकी अन्य प्रकाशित कृतियाँ हैं - साक्षात्का र- वार्तालाप, बच्चों की पुस्तक- जंगल बाबा, विनिबंध- यशपाल, अवधेश प्रताप सिंह । उन्हें इसके पूर्व म. प्र. साहित्य अकादमी का नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है । वे भोपाल, म. प्र. में रहकर सृजनरत थे।
--पुन्नीसिंह (अध्यक्ष) विनीत तिवारी (महासचिव)शैलेन्द्र शैली (कार्यकारी महासचिव) सम्पर्क: विनीत तिवारी-९८९३१९२७४०, शैलेन्द्र शैली-९४२५०२३६६९
1 टिप्पणी:
hindi k ek aur mahan kriti purus ka aant hua ..........bahut dukhh ki baat hai....inki prer na se kaafi kuchh sikhney ko milegaaa...
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