इंटरनेट तथा ब्लाग जगत के चर्चित नाम श्री समीर लाल समीर की लघु उपन्याटसिका ’देख लूँ तो चलूँ’ का विमोचन जबलुपर में देश के शीर्ष कहानीकार श्री ज्ञानरंजन ने किया इस अवसर पर वरिष्ठर साहित्यलकार श्री हरिशंकर दुबे भी उपस्थित थे। ब्लाअग जगत में उड़नतश्तलरी के नाम से अपना बहुचर्चित ब्लानग चलाने वाले श्री समीर लाल की ये पुस्तमक शिवना प्रकाशन से प्रकाशित होकर आई है।
यात्रा वृतांत की शैली में लिखी गई इस उपन्यारसिका में कई रोचक संस्मारण श्री समीर ने जोड़े हैं। जबलपुर के सत्य अशोका होटल के सभागार में आयोजित विमोचन समारोह में मुख्यब अतिथि के रूप में पहल के संपादक तथा देश के शीर्ष कथाकार श्री ज्ञानरंजन उपस्थित थे जबकि कार्यक्रम की अध्यवक्षता वरिष्ठं साहित्यतकार श्री हरिशंकर दुबे ने की। पुस्तरक विमोचन के पश्चाात बोलते हुए श्री ज्ञानरंजन ने कहा कि छोटे उपन्यासों की एक जबरदस्त दुनिया है। समीर लाल ने इसी उपन्यास का प्रथम स्पर्श किया है, उनकी यात्रा को देखना दिलचस्प होगा। किताब में अमूर्तता नहीं है, उसका कागज बोलता है, फड़फड़ाता है, उसमें चित्रकार का आमुख है, उसमें मशीन है, स्याही है, लेखक का ऐसा श्रम है जो यांत्रिक नहीं है।
पुस्तक की चर्चा करते हुए श्री ज्ञानरंजन ने कहा कि देख लूँ तो चलूँ में हमें आधुनिक संसार की कदम कदम पर झलक मिलती है। समीर लाल ने अपनी यात्रा में एक जगह लिखा है- हमसफरों का रिश्ता! भारत में भी अब रिश्ता हमसफरों के रिश्ते में बदल रहा है। फर्क इतना ही है कि कोई आगे है कोई पीछे। श्री ज्ञानरंजन ने समीर लाल के बारे में कहा कि समीर लाल का स्वागत होना चाहिए। उन्होंने मुख्य बिंदु पकड़ लिया है। उनके नैरेशन में एक बेचैनी है जो कला की जरुरी शर्त है। समीर लाल का उपन्यास पठनीय है, उसमें गंभीर बिंदु हैं और वास्तविक बिंदु हैं। मैं उन्हें अच्छा शैलीकार मानता हूँ। यह शैली भविष्य में बड़ी रचना को जन्म देगी। उन्हें मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामना। अपने अध्यक्षीय उदबोधन में शिक्षाविद मनीषी एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य डॉ हरि शंकर दुबे ने कहा कि ये पुस्तक इस बात का प्रमाण है कि कितनी सच्चाई के साथ और कितनी जीवंतता के साथ और कितनी आत्मीयता के साथ समीर लाल ने अपने समय को, अपने समाज को, अपनी जड़ों को, जिगरा के साथ देखने का साहस संजोया है। कवि-लेखक एवम ब्लागर डा० विजय तिवारी ’किसलय’ ने पुस्त क पर बोलते हुए कहा कि कार ड्राईव करते वक्त हाईवे पर घटित घटनाओं, कल्पनाओं एवं चिन्तन श्रृंखला ही ’देख लूँ तो चलूँ’ है। यह महज यात्रा वृतांत न होकर समीर जी के अन्दर की उथल पुथल, समाज के प्रति एक साहित्यकार के उत्तरदायित्व का भी सबूत है। अवमूल्यित समाज के प्रति चिन्ता भाव हैं। इस अवसर पर युवा विचारक एवम सृजन धर्मी श्री पंकज स्वामी ’गुलुश’ समीक्षक इंजिनियर ब्लागर श्री विवेकरंजन श्रीवास्तव, लेखक समीर लाल के पिता श्रीयुत पी०के०लाल ने भी अपने विचार रखे।
लेखक श्री समीर लाल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि किसी रचना कार के लिये उसकी कृति का विमोचन रोमांचित कर देने वाला अवसर होता है जब श्री ज्ञानरंजन जी, डा० हरिशंकर दुबे सहित विद्वजन उपस्थित हों तब वे क्या कहें और कैसे कहें और कितना कहें? ” कार्यक्रम के अंत में श्रीमति साधना लाल ने आभार प्रदर्शन कर सभी के प्रति कृतज्ञता अंत:करण से व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन गिरीश बिल्लोनरे मुकुल ने किया। -गिरीश बिल्लोरे ’मुकुल’
यात्रा वृतांत की शैली में लिखी गई इस उपन्यारसिका में कई रोचक संस्मारण श्री समीर ने जोड़े हैं। जबलपुर के सत्य अशोका होटल के सभागार में आयोजित विमोचन समारोह में मुख्यब अतिथि के रूप में पहल के संपादक तथा देश के शीर्ष कथाकार श्री ज्ञानरंजन उपस्थित थे जबकि कार्यक्रम की अध्यवक्षता वरिष्ठं साहित्यतकार श्री हरिशंकर दुबे ने की। पुस्तरक विमोचन के पश्चाात बोलते हुए श्री ज्ञानरंजन ने कहा कि छोटे उपन्यासों की एक जबरदस्त दुनिया है। समीर लाल ने इसी उपन्यास का प्रथम स्पर्श किया है, उनकी यात्रा को देखना दिलचस्प होगा। किताब में अमूर्तता नहीं है, उसका कागज बोलता है, फड़फड़ाता है, उसमें चित्रकार का आमुख है, उसमें मशीन है, स्याही है, लेखक का ऐसा श्रम है जो यांत्रिक नहीं है।
पुस्तक की चर्चा करते हुए श्री ज्ञानरंजन ने कहा कि देख लूँ तो चलूँ में हमें आधुनिक संसार की कदम कदम पर झलक मिलती है। समीर लाल ने अपनी यात्रा में एक जगह लिखा है- हमसफरों का रिश्ता! भारत में भी अब रिश्ता हमसफरों के रिश्ते में बदल रहा है। फर्क इतना ही है कि कोई आगे है कोई पीछे। श्री ज्ञानरंजन ने समीर लाल के बारे में कहा कि समीर लाल का स्वागत होना चाहिए। उन्होंने मुख्य बिंदु पकड़ लिया है। उनके नैरेशन में एक बेचैनी है जो कला की जरुरी शर्त है। समीर लाल का उपन्यास पठनीय है, उसमें गंभीर बिंदु हैं और वास्तविक बिंदु हैं। मैं उन्हें अच्छा शैलीकार मानता हूँ। यह शैली भविष्य में बड़ी रचना को जन्म देगी। उन्हें मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामना। अपने अध्यक्षीय उदबोधन में शिक्षाविद मनीषी एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य डॉ हरि शंकर दुबे ने कहा कि ये पुस्तक इस बात का प्रमाण है कि कितनी सच्चाई के साथ और कितनी जीवंतता के साथ और कितनी आत्मीयता के साथ समीर लाल ने अपने समय को, अपने समाज को, अपनी जड़ों को, जिगरा के साथ देखने का साहस संजोया है। कवि-लेखक एवम ब्लागर डा० विजय तिवारी ’किसलय’ ने पुस्त क पर बोलते हुए कहा कि कार ड्राईव करते वक्त हाईवे पर घटित घटनाओं, कल्पनाओं एवं चिन्तन श्रृंखला ही ’देख लूँ तो चलूँ’ है। यह महज यात्रा वृतांत न होकर समीर जी के अन्दर की उथल पुथल, समाज के प्रति एक साहित्यकार के उत्तरदायित्व का भी सबूत है। अवमूल्यित समाज के प्रति चिन्ता भाव हैं। इस अवसर पर युवा विचारक एवम सृजन धर्मी श्री पंकज स्वामी ’गुलुश’ समीक्षक इंजिनियर ब्लागर श्री विवेकरंजन श्रीवास्तव, लेखक समीर लाल के पिता श्रीयुत पी०के०लाल ने भी अपने विचार रखे।
लेखक श्री समीर लाल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि किसी रचना कार के लिये उसकी कृति का विमोचन रोमांचित कर देने वाला अवसर होता है जब श्री ज्ञानरंजन जी, डा० हरिशंकर दुबे सहित विद्वजन उपस्थित हों तब वे क्या कहें और कैसे कहें और कितना कहें? ” कार्यक्रम के अंत में श्रीमति साधना लाल ने आभार प्रदर्शन कर सभी के प्रति कृतज्ञता अंत:करण से व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन गिरीश बिल्लोनरे मुकुल ने किया। -गिरीश बिल्लोरे ’मुकुल’
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