५ फरवरी २०११, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ में नार्वे से पधारे साहित्यकार सुरेशचन्द्र शुक्ल `शरद आलोक' का अभिनन्दन और सम्मान किया गया। श्री सुरेशचन्द्र शुक्ल `शरद आलोक' के वैश्विक स्तर पर हिन्दी के योगदान की चर्चा करते हुए हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो प्रेम शंकर तिवारी ने कहा कि प्रवासी साहित्यकारों की हिन्दी सेवा से ही हिन्दी की वास्तविक अभिवृद्धि होगी।
सुरेशचन्द्र शुक्ल `शरद आलोक' विश्व के अनेक देशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए जाने जाते हैं, कई विश्व हिन्दी सम्मेलनों में प्रतिभाग किया है। हिन्दी की सम्वर्द्धना के लिए स्पाइल-दर्पण पत्रिका पर तथा सुरेशचन्द्र शुक्ल के काव्य पर हिन्दी विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय ने शोध कार्य कराया है। गोष्ठी में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की पूर्व निदेशक विद्या बिन्दु सिंह ने लन्दन में हिन्दी की दशा पर प्रकाश डाला और अपने वकतव्य में कहा, कि इक्कीसवीं सदी हिन्दी की सदी है, इसमें गद्य की वे विधायें विकसित हो रही हैं जिनका अभी तक इतिहास में उल्लेख अत्यल्प रहा है, यथा यात्रा डायरी, अभिनन्दन, आत्मकथा, आदि कहानी, फीचर लेखन, फिल्म निर्माण आदि पर प्रकाश डाला। सुरेशचन्द्र शुक्ल `शरद आलोक' ने कहा कि उनका सम्मान विदेशों में किये जा रहे हिन्दी के प्रचार-प्रसार की तरफ ध्यान दिया जाना और उसे प्रोत्साहित किया जाना है। उन्होंने आगे कहा कि हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए ब्लाग लेखन, ट्रेवलाग लेखन, फेसबुक, आरकुट, यू ट्यूब और मोबाइल तेलीफोन के माध्यम से सन्देश, पत्र और सूचनायें हिन्दी में दिया जाना और उसका प्रयोग देवनागरी के माध्यम से जुड़ना होगा। साथ ही हिन्दी के साथ माध्यम भाषा को लेकर चलना होगा। वह दिन दूर नहीं जब संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिन्दी स्वीकृत हो जायेगी, तब हिन्दी के प्रति अधिक आकषित होंगे। डा क़ृष्णाजी श्रीवास्तव ने आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में सुरेशचन्द्र शुक्ल `शरद आलोक' के साहित्यिक योगदान की चर्चा की। गोष्ठी में प्रसिद्ध साहित्यकार डा प़्रताप नारायण टण्डन, फिल्माचार्य आनन्द शर्मा, डा अ़लका पाण्डेय, डा प़रशुराम पाल, डा रामाश्रय सविता, प्रमिला भारतीय, शिव भजन सिंह कमलेश और अन्य ने अपने विचार रखे।
उ प्र विधानसभा में राज्यकर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा सम्मानित राज्यकर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा उत्तर प्रदेश सचिवालय परिसर के मुख्य भवन में एक समारोह का आयोजन, उत्तर प्रदेश सचिवालय परिसर के मुख्य भवन में किया गया जिसमें मात्रभूमि और मात्रभाषा के देशभक्त, हिन्दी भाषा एवं नार्वेजीय भाषा के श्रेष्ठ साहित्यकार सुरेशचन्द्र शुक्ल `शरद आलोक' को अंगवस्त्र और प्रतीक चिन्ह देकर पत्रपुष्पों से सम्मानित किया गया। उक्त कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध साहित्यकार और संस्थान के उपाध्यक्ष विनोदचन्द्र पाण्डेय जी ने की। उक्त कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुरेशचन्द्र शुक्ल `शरद आलोक' जी थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री उमेश चन्द्र वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्वमन्त्री, पूर्व अधिवक्ता की पत्नी सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती आशा श्रीवास्तव एवं डा य़ोगेन्द्र प्रताप सिंह रीडर हिन्दी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय थे। कार्यक्रम का संचालन, संयोजक श्री दिनेश चन्द्र अवस्थी जी ने किया।
सभाध्यक्ष जी ने कहा कि सुरेशचन्द्र शुक्ल `शरद आलोक' जी प्रवासी भारतीय होते हुए भी हिन्दी की पताका पूरे विश्व में फहरा रहे हैं। वे हिन्दी नार्वेजीय और डेनिश भाषा के विद्वान हैं, मैं इनको इस अवसर पर बधाई और शुभकामनायें देता हूँ। विशिष्ट अतिथि श्रीमती आशा श्रीवास्तव ने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि नार्वेजीय और डेनमार्क की भाषा डेनिश से पुस्तकों का अनुवाद हिन्दी भाषा में करके हिन्दी भाषा के साहित्य के भण्डार को भरा है। वे एक अच्छे पत्रकार भी हैं। समारोह के दूसरे विशिष्ट अतिथि श्री योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि सुरेशचन्द्र शुक्ल `शरद आलोक' जी ने विश्व में हिन्दी की पताका फहराई है। विश्व में हिन्दी की अनेक संस्थाओं से जुडे हैं। उन्होंने भारत और नार्वे के बीच आपसी सौहाद्र बढ़ाने का भी कार्य किया है। संस्थान के मन्त्री श्री विजय प्रसाद त्रिपाठी जी ने कहा कि उन्हें अपने देश की मिट्टी से प्यार है अत: वे हम सभी को अत्यन्त प्रिय हैं। सम्मानित साहित्यकार शरद आलोक जी ने सम्मान करने के लिए राज्यकर्मचारी साहित्य संस्थान के प्रति कृतज्ञता प्रगट की तथा यह अश्वस्थ किया कि वे संस्थान तथा संस्थान के सदस्यों का सहयोग करते रहेंगे। संयोजक डा दिनेश चन्द्र अवस्थी जी ने श्री सुरेशचन्द्र शुक्ल `शरद आलोक' को एक श्रेष्ठ साहित्यकार और अच्छा पत्रकार बताया तथा उनके हिन्दी और नार्वेजीय भाषा में उनके साहित्य सृजन की सराहना की।
उक्त सम्मान समारोह के पाश्चात संस्थान की साहित्य गोष्ठी सम्पन्न हुई जिसमें श्री प्रशान्त शुक्ल, श्री शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान, श्री विजय प्रसाद त्रिपाठी, श्री दिनेश चन्द्र अवस्थी, श्री सुनील कुमार बाजपेई, श्रीमती शोभा दीक्षित 'भावना', श्री विनोदचन्द्र पाण्डेय 'विनोद', श्री मानस मुकुल त्रिपाठी, श्री सुरेश चन्द्र पाडेय, श्री राविशंकर पाण्डेय, श्री शिव शंकर द्विवेदी, श्री वीरेन्द्र बहादुर सिंह 'कुसुमाकर', श्री घनानन्द पाण्डेय 'मेघ' एवं श्री हरी प्रकाश `हरि' ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया।
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