सोमवार, 26 जुलाई 2010

उर्मिल सत्यभूषण के कहानी संग्रह ‘सृजन समग्र – खंड 1’ पर समीक्षा गोष्ठी का आयोजन

23 जुलाई 2010 को नई दिल्ली के फेरोज़शाह रोड स्थित ‘रशियन कल्चर सेण्टर’ में ‘परिचय साहित्य परिषद’ की स्थाई अध्यक्ष व सुपरिचित साहित्यकार उर्मिल सत्यभूषण के सद्य:प्रकाशित कहानी संग्रह ‘सृजन समग्र – खंड 1’ पर एक समीक्षा गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार बालस्वरूप राही थे व श्री राजेंद्र गौतम, श्री महेश दर्पण, श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेई व श्री प्रेमचंद सहजवाला गोष्ठी के विशिष्ट वक्ता रहे। श्री सहजवाला ने उर्मिल सत्यभूषण के कहानी संग्रह पर एक समीक्षा पत्र पढ़ते हुए कहा कि उर्मिल सत्यभूषण के पास बेहद विस्तृत अनुभव संसार है तथा उन के इस संग्रह की 27 में से अधिकाँश कहानियों में नारी जीवन की बेहद यथार्थ झलकियाँ हैं। उर्मिल सत्यभूषण के पास एक सिद्धहस्त कलम है जिस के माध्यम से वे नारी के सामाजिक जीवन की सशक्त तस्वीर प्रस्तुत करती हैं। नारी किन किन परिवेशगत दबावों में जीती है तथा किन किन मोर्चों पर वह इस पुरुष प्रधान समाज में हारती है, इस का बेहद सशक्त लेखा-जोखा उर्मिल जी के कथा संसार में मिलता है। कुछ कहानियों की विशेष प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि इन कहानियों की विशिष्टता यह है कि इन में अन्याय अनाचार के विरुद्ध नारी की विद्रोही तेवरों से साक्षात्कार होते हैं, जैसे कहानी ‘अब और नहीं’, ‘आखिर कब तक’ वगैरह। श्री राजेंद्र गौतम ने कहा कि उर्मिल सत्यभूषण की कहानियों में नारी-पुरुष प्रेम को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया गया है। पर कहानी ‘रौशनी की जीत’ जो कि सन् 84 की निर्मम सिख हत्याओं पर आधारित है, की उन्होंने विशेष प्रशंसा करते हुए कहा कि जैसे ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ मानव सभ्यता की एक अविस्मरणीय त्रासदी है जिस पर निरंतर आज भी बहुत से उपन्यास लिखे जा रहे हैं, वैसे ही हमारे देश में सन् 84 का कलंक कभी नहीं मिटेगा और उस पर लगातार साहित्य लिखा जाता रहेगा। श्री लक्ष्मीशंकर बाजपेयी ने कहा कि ‘शाबास कुडिये’ जैसी व इस संग्रह की अन्य कई कहानियों जैसी नारी पात्र हमारे पूरे समाज में लगभग घर घर में हैं, जो अपनी स्वतंत्रता के लिए छटपटाती न जाने किन किन पारिवारिक सामजिक दबावों में जीती हैं।


इस सब को रेखांकित करने में पूर्ण सफलता पर उन्होंने उर्मिल सत्यभूषण को हार्दिक बधाई दी। श्री महेश दर्पण ने कहा कि लेखिका के सरोकार बेहद ‘जेनुइन’ रहे और इस संग्रह को पढ़ कर किसी शिल्पगत गठन या अन्य तत्वों की ओर ध्यान न जा कर सीधे उन नारी पात्रों के जीवन पर जाता है, जिन्हें लेखिका ने अपने करीब पाया है। श्रोतागण में से लेखिकाओं तूलिका व शोभना समर्थ आदि ने भी संग्रह की कुछ कहानियों की विशेष प्रशंसा की। अंत में मुख्य अतिथि बाल स्वरुप राही ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि जो लेखन अपने अनुभव को पाठक की अनुभूति में बदल सकता है, वही लेखन सही लेखन है और उर्मिल सत्यभूषण इस कसौटी पर पूर्णतः खरी उतरी हैं। उन्होंने संग्रह में नारी के विस्तृत रूपों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि भारत में पहली नारी शतरूपा थी और उर्मिल के कथा संसार में भी नारी के अनेकों रूपों से साक्षात्कार होता है। गोष्ठी का संचालन भी प्रेमचंद सहजवाला ने किया।

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