शनिवार, 26 दिसंबर 2009

नारी के अन्तर्मन में झाँकती तस्वीरें


किसी भी कला के अंकुर व्यक्ति में दो तरह से विकसित होते हैं। एक तो जन्मजात ईश्वरीय वरदान के रूप में। दूसरे पारंपारिक रूप से सीख कर या प्रशिक्षण लेकर। सुनीता कोमल के अन्दर कला के अंकुर जन्मजात ईश्वरीय वरदान के रूप में ही प्रस्फ़ुटित हुए हैं। सुनीता कोमल खुद स्वीकार करती हैं कि, ''कला मेरी ज़िन्दगी में उसी तरह आई है जैसे पेड़ पर पत्ते आते हैं।'' यानि कि एकदम प्राकृतिक रूप से। महिला एवं बाल विकास विभाग मध्य प्रदेश में मास्टर ट्रेनर के रूप में नौकरी कर रही सुनीता के चित्रों की एकल प्रदर्शनी १६ नवंबर ०९ से २२ नवंबर ०९ तक ललित कला अकादमी लखनऊ में आयोजित हुई। इस प्रदर्शनी का उद्घाटन हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार श्री कामतानाथ ने किया। सुनीता के चित्रों को देख कर कामतानाथ जी ने उनकी कमेण्ट बुक में लिखा, ''पारंपरिक रूप से स्त्री का बाह्य सौन्दर्य ही चर्चा का विषय रहा है। किन्तु सुनीता के चित्रों में परिलक्षित नारी के सौन्दर्य में एक गहन अन्तरदृष्टि है,जिसके पीछे दुनिया को और बेहतर देखने की उत्कृष्ट आकांक्षा निहित है।'' सचमुच सुनीता कोमल के चित्र व्यक्ति के ऊपर एक अलग प्रभाव डालते हैं। इनके चित्र फ़िगरेटिव ऐब्स्ट्रैक्ट हैं। अपने चित्रों में काले रंग का इस्तेमाल अभिव्यक्ति के एक सशक्त माध्यम के रूप में किया है। इनके ब्लैक इंक और पेंसिल से किए गए स्केच में नारी का एक अगठित लेकिन ज़बर्दस्त प्रभाव डालने वाला रुप उभर कर आया है। इन चित्रों में नारी अपनी सम्पूर्ण विशेषताओं के साथ होते हुए भी एक अलग रूप में सामने आती है। इनकी पेण्टिंग्स में पीला, भूरा, नीला, नारंगी रंग बड़ी खूबसूरती से इनकी अध्यात्मिक रुझान को हमारे सामने लाता है। इन्होंने अपने चित्रों में कमल, मछली, चट्टान जैसे प्रकृति से उठाए गए प्रतीकों का इस्तेमाल पवित्रता, शुचिता, संवेदनशीलता, संघर्ष जैसे जीवन मूल्यों की स्थापना के लिए किया है।

नारी तो इनके स्केच और पेण्टिंग्स दोनों में ही मुख्य विषय वस्तु के रूप में उपस्थित है। सुनीता खुद स्वीकार करती हैं किनारी प्रकृति एवं ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है। नारी ही त्याग की पराकाष्ठा को पार कर सकती है, और सृजन करने में सक्षम हैं। नारी अपनी सम्पूर्ण कोमल भावनाओं प्रेम, दया, करुणा, ममत्व, सहिष्णुता, समर्पण एवं आन्तरिक सौन्दर्य के साथ इनकी पेण्टिंग्स के मुख्य केन्द्र बिन्दु के रूप में मौजूद है। चूँकि सुनीता ने खुद एक लंबा संघर्ष किया है इस मुकाम तक पहुँचने के लिए, इसीलिए नारी संघर्ष का सन्देश भी वे अपनी पेण्टिंग्स के माध्यम से देना चाहती हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि वनस्पति विज्ञान एवम समाजशास्त्र से पोस्टग्रेजुएट सुनीता ने कला का कोई व्यावसायिक या पारम्परिक प्रशिक्षण नहीं लिया है। फिर भी अपनी पेण्टिंग्स, चित्रों के माध्यम से कला की दुनिया में अपनी उपस्थिति इन्होंने ज़बर्दस्त ढंग से करायी है। इनकी पेण्टिंग्स की कई एकल एवं समूह प्रदर्शनियाँ दिल्ली, मुम्बई, चण्डीगढ़, भोपाल में भी आयोजित हो चुकी हैं। कला के क्षेत्र में कई सम्मान एवम पुरस्कार भी इनके खाते में आ चुके हैं। प्रदर्शनी के अन्तिम दिन ललित कला अकादमी में ही ''स्त्री, सृजन संवाद'' विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया। इस संगोष्ठी में प्रसिद्ध बाल साहित्यकार एवम कवि डॉ. हेमन्त कुमार ख्याति प्राप्त चित्रकार राजीव मिश्र, कवि श्री राम शुक्ल, श्री संजय जायसवाल, नन्द कुमार मनोचा, चौगवां टाइम्स के सम्पादक श्री सुशील अवस्थी ने अपने विचार व्यक्त किए। इनके साथ ही अन्य कई साहित्यकार, कलाकार, मीडियाकर्मी एवं बुद्धिजीवी उपस्थित थे।

हेमन्त कुमार

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