शनिवार, 26 दिसंबर 2009

'सृजन' के तत्वाचवधान में साहि‍त्यय चर्चा कार्यक्रम का सफल आयोजन

वि‍शाखापटनम की हि‍न्दी साहि‍त्य, संस्कृति‍ और रंगमंच के प्रति‍ प्रति‍बद्ध संस्था सृजन ने साहि‍त्य चर्चा कार्यक्रम का आयोजन ११ दिसंबर २००९ को सफलतापूर्वक कि‍या गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता संतोष अलेक्स, संयुक्त सचि‍व, सृजन ने की जबकि‍ साहि‍त्य चर्चा का संचालन सृजन के सचि‍व डॉ. टी महादेव राव ने कि‍या। संतोष अलेक्स ने संस्था की ओर से उपस्थि‍तों का स्वागत कि‍या जबकि‍ डॉ. राव ने सृजन की गति‍वि‍धयों का ब्यौरा प्रस्तुत कि‍या और इस साहि‍त्‍य चर्चा के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि‍ जो नए लेखक, कवि‍ और व्यंग्यकार हि‍न्दी में रचनायें लि‍ख रहे हैं, उन्हें एक सार्थक मंच देना और उनकी रचनाधर्मि‍ता को नि‍खारना और प्रोत्साहि‍त करना इस कार्यक्रम के उद्देश्य है।

साहि‍त्य चर्चा का आरंभ श्री रजनीश ति‍वारी की कवि‍ता 'यह आग कि‍सने लगाई' से हुआ। इस कवि‍ता में वर्तमान समय में प्रांतों को अलग करने के लि‍ए जो आंदोलन और गति‍वि‍धियाँ हो रही हैं, उस पर चोट कि‍या गया और बताया बया कि‍ एकता में ही शक्ति ‍है। बंद की वजह से आम आदमी की जो दुर्दशा होती है उसके बारे में भी कवि‍ता में प्रभावी बातें प्रस्तुत की गई। श्री बी.एस. मूर्ति‍ ने अपनी सामयि‍क कहानी 'आज का भारत' में वर्तमान युवा पीढ़ी की शि‍क्षा, रोज़गार और बदलती स्थिति‍यों का खुलासा था। आज का युवा काफी पढ लि‍खकर भी घर घर सामान बेचते सेल्‍समेन का जो जीवन बि‍ता रहे हैं, उसका लेखा जोखा था।

श्रीमती सीमा शेखर ने दो कवि‍ताओं का पाठ कि‍या। 'टेसू के फूल' कवि‍ता में लुप्त होते वन-सौदर्य के साथ-साथ गुम होते टेसू के फूलों को लेकर कवि‍ की व्यथा थी। 'सृजन' कवि‍ता में व्यक्ति ‍के सर्जनात्म‍कता को गति‍ देती परि‍स्थि‍ति‍याँ और परि‍वेश को रेखांकि‍त कि‍या गया था। आदि‍वासी इलाकों में बेरोज़गारी और प्रकृति‍ के प्रकोपों को उसके साथ बिंब बनाकर 'घाटी में पतन' कहानी में श्री बी वेंकट राव ने पेश कि‍या। आदि‍वासी क्षेत्रों में प्रगति‍ के नाम पर हो रहे शोषण का भी वर्णन था। कवि‍ श्री जी अप्पाराव 'राज' ने राजनीति‍क व्यंग्य कवि‍तायें सुनाई जि‍नमें वर्तमान समय के राजनीति‍ज्ञों की सोच पर करारा व्यं ग्य कि‍या गया। श्री ईश्वर वर्मा ने 'डरना' और 'आकांक्षा' शीर्षक से दो कवि‍ताओं का पाठ कि‍या, जि‍नमें मानवीय दुर्बलताओं और उससे उठने की बात बताई गई। श्रीमति‍ प्रभात भारती ने 'यात्रा संस्मरण' प्रस्तुत कि‍या जो कि‍ काफी वि‍स्तारि‍त होने के बावजूद काफी सराही गई क्योंकि‍ मर्मस्पर्शी वर्णन संस्मरण को जीवंत बना रहा था। उन्होंने वर्तमान स्थिति‍यों पर 'मैं एक माँ हूँ' कवि‍ता भी पढ़ी। श्री संतोष अलेक्सा ने दो छोटी कवि‍तायें 'प्रकृति' और 'प्रेम गीत' पढ़ा, जि‍नमें क्रमश: प्रकृति‍ के बदलावों के साथ मानव के संबंध तथा भौति‍कवादी समाज में प्रेम के अस्ति ‍त्वे का समावेश था। डॉ टी. महादेव राव ने समुद्र को मानवीयता के साथ जोड़कर चार कवि‍तायें 'समुद्र – चार कवि‍तायें' शीर्षक से सुनाईं। समुद्र के खारेपन को वि‍द्रोह का कवच, उसके लगातार तट पर आने को आगे बढ़ने की प्रेरणा, समुद्र का सबकुछ लौटाने के गुण को त्याग के रूप में प्रस्तुत कि‍या गया। श्री वि‍जयकुमार राजगोपाल और श्री के ईश्वर राव ने भी इस कार्यक्रम में सक्रि‍य रूप में हि‍स्सा लि‍या।

सभी रचनाओं पर उपस्थि‍त कवि‍यों और लेखकों ने अपनी अपनी प्रति‍क्रि‍या दी। सभी को लगा कि‍ इस तरह के सार्थक हि‍न्दी‍ कार्यक्रम अहि‍न्दी क्षेत्र में लगातार करते हुए सृजन संस्थाएँ अच्छा: काम कर रही हैं।

संतोष अलेक्स ने धन्यवाद ज्ञापन कि‍या और डॉ. टी. महादेव राव ने प्रति‍भागी रचनाकारों को स्मृति‍ चि‍ह्न प्रदान कि‍ए। ‍

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