सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

सिंधी साहित्य में उत्तर आधुनिकता

दिल्ली विश्वविद्यालय के आधुनिक भारतीय भाषा और साहित्यिक अध्ययन विभाग ने राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद के सहयोग से एक संगोष्ठी का आयोजन किया। विषय था- ''सिंधी साहित्य में उत्तर आधुनिकता''। पहली बार इतने महत्वपूर्ण विषय पर सिंधी और अन्य भाषाओं के लेखक एकत्र हुए। संगोष्ठी के समन्वयक थे- डॉ. रवि प्रकाश टेकचंदानी। डॉ. रवि स्वयं सिंधी के जाने-माने रचनाकार और अध्येता हैं।

राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद के निदेशक डॉ. मनोहर मतलानी, प्रो. पी.सी.पटनायक ने जहाँ अपने विचारों से आमंत्रित साहित्यकारों को अवगत कराया वहीं सिंधी साहित्य में उत्तर आधुनिकता पर समीक्षक आनंद खेमानी, मोहन गेहानी, वसदेव मोही, डॉ. हसो दादलानी, भगवान अटलानी, डॉ. कमला गोकलानी, डॉ. सतीष रोहिरा और डॉ. मुरलीधर जेटली ने विभिन्न सत्रों में शोधपत्र पढ़े। डॉ. टी.एस. सत्यनाथ, डॉ. के.प्रेमनाथन, डॉ. राजेंद्र मेहता, डॉ. अमितवा चक्रवर्ती, प्रो. एन.डी. मिरजकर, हीरो ठाकुर, प्रो. सी.जे. दसवानी और सिंधू भगिया मिश्रा ने साहित्यिक विमर्श में हिस्सा लिया।

संगोष्ठी का सार यह था कि सिंधी साहित्य में अभी उत्तर आधुनिकता का समुचित विकास नहीं हुआ है। इस दिशा में कार्य की ज़रूरत है। इस संगोष्ठी के आयोजन से न सिर्फ़ सिंधी और भारत की अन्य भाषाओं के मध्य संपर्क गहरा होगा बल्कि परस्पर आदान-प्रदान और अनुवाद कार्य करने वाले लेखक भी प्रोत्साहित होंगे। सिंध से आए इंस्टीट्यूट ऑफ सिंधोलॉजी के पूर्व डायरेक्टर प्रो. शौकत शोरो ने सिंधी कहानी की पड़ताल की। राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद के उपाध्यक्ष श्रीकांत भाटिया ने भी संगोष्ठी को संबोधित किया। दैनिक जागरण इस संगोष्ठी का मिडिया सहयोगी था।

विवरण- अशोक मनवानी

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