
नेशनल बुक ट्रस्ट इण्डिया के सम्पादक श्री मानस रंजन महापात्र कई महीने से विचार गोष्ठी के माध्यम से वैचारिक जाग्रति का अभ्यान चलाए हुए हैं। आपने विषय का प्रवर्तन करते हुए कहा कि बच्चों के लिए कुछ करें। वक्ताओं का आह्वान करने से पूर्व आज की विचार गोष्ठी के संचालक श्री पंकज चतुर्वेदी ने कहा, 'बच्चों का वर्ग बहुत बड़ा है, जो किताबों का पाठक है। लेखक, चित्रकार, प्रकाशक सब इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हैं। बचपन को याद करना बहुत सुखद होता है। सुकून देने के लिए बच्चों की एक अहम भूमिका होती है। आज जो नीतियाँ समय के साथ नहीं चल पा रही हैं, उन्हें बदलना पड़ रहा है। श्रीमती अलका पाठक ने अपने बचपन को याद करते हुए कहा कि हमने माता-पिता से किताबें ख़रीदने की ज़िद की।
लेखक के दायित्वबोध पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि बाल साहित्य-लेखन अपने बीते हुए कल का आने हुए कल संवाद करना है। हमारे बचपन में न दैत्य थे न राजा-रानी।

डॉ मधु पन्त ने कहा, 'मेरी नज़र में वह आम बच्चा रहा है जो पुस्तक पढ़ने से वंचित रह जाता है। आज का दुखद सच यह है कि बच्चे का बचपन छीनकर, उसके सपनों को तोड़कर, उसे बोंज़ाई बनाकर छोड़ देते हैं। उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास की बात कहीं दूर खो जाती है। अभिभावक या शिक्षक, आज सबके लिए चुनौतियाँ हैं। लेखक बनने के लिए बच्चों के मन में सेंध लगानी होगी, तभी वह बच्चों के लिए लिख सकेगा। लेखक को बच्चा बनना पड़ेगा जो बहुत कठिन है; क्योंकि हमने बच्चे को असमय बूढ़ा बना दिया है। चित्रकार को शब्दों का पूरक होना चाहिए। अच्छा चित्रकार वह है जो अपनी संकल्पना से बच्चों को किताबों की दुनिया की सैर करा दे। किताब इतनी आकर्षक हो कि बच्चे का हाथ खुद-बखुद किताब की तरफ़ बढ़े। चित्रों की चमक, अक्षरों का आकार, उपयुक्त दाम बच्चों को किताब ख़रीदने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। तालों मे बन्द किताबें कितनी बेचैन हैं, इसको महसूस करें। बच्चों की पहुँच किताबों तक बेरोकटोक होने दें।'

अध्यक्षीय भाषण में श्री देवेन्द्र मेवाड़ी ने कहा, 'हमने चिड़ियाँ, कलियाँ, बादल, नदियाँ झरने, हवाएँ, देखे हैं। चीड़ के बीज गिरते देखे हैं। लेखकीय दायित्व पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि बच्चे से पूरी आत्मीयता महसूस करके लेखक को एक प्रकार से परकाया -प्रवेश करना पड़ता है। लेखक अपने में बच्चे को जीवित करेगा, तभी वह सार्थक सर्जन कर पाएगा। इस लेखन में चित्रकार भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। वह लेखक की कल्पना के बिम्बों को आकार ही नही देता वरन चित्र के रूप में अनुवाद करता है। माँ-बाप अपनी दमित इच्छाएँ बच्चे पर न लादें। बच्चे में सहजभाव से बढ़ने की अपार सम्भावनाएँ होती हैं। हमारी भाषाओं में हैरी पॉटर से भी अधिक उत्कृष्ट साहित्य है, उसे सामने लाया जाए।

दूसरे सत्र में पुस्तक-लोकार्पण का अभिनव प्रयोग किया गया। सभी पुस्तकों का लोकार्पण विभिन्न विद्यालयों के विद्यार्थियों द्वारा कराया गया। अन्तर्राष्ट्रीय खगोल वर्ष २००९ के अवसर पर 'सौर मण्डल की सैर' के लेखक और चित्रकार तथा 'अंजाम' के चित्रकार भी इस वसर पर मौजूद थे। इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी उपलब्धि थी इन पुस्तकों पर पढ़ी गई समीक्षा। 'अंजाम' (उर्दू पुस्तक) पर अमीना ने 'सौर मण्डल की सैर' पर -खुशबू, अनीता सपना चौधरी, पूर्णिमा यादव राक्या परवीन ने; 'हमारे जल-पक्षी' पर सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती विमला सचदेव की प्रेरणा से कमल, हसीना, नाज़,राधा, रेणु ने समीक्षाएँ प्रस्तुत की। श्री मानस रंजन महापात्र जी ने सबके प्रति आभार व्यक्त किया। इस प्रकार के सार्थक कार्यक्रम की प्रस्तुति के लिए 'नेशनल बुक ट्रस्ट' और इसकी कर्मठ टीम बधाई की पात्र है।
-प्रस्तुति- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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