रविवार, 30 अगस्त 2009
"हिन्दी चेतना" का फ़ादर कामिल बुल्के विशेषांक
हिन्दी प्रचारिणी सभा कैनेडा की त्रैमासिक पत्रिका "हिन्दी चेतना" का जुलाई विशेषांक हिन्दी भाषा एवं साहित्य के महान साधक फ़ादर कामिल बुल्के जैसे विशिष्ट साहित्यकार को उनकी जन्मशती के अवसर पर समर्पित किया गया है। बेल्जियम मूल के फ़ादर बुल्के ने विदेशी धरती पर हिन्दी भाषा तथा साहित्य के उत्थान एवं प्रचार-प्रसार के लिए एक कर्मठ योद्धा की तरह जो अविस्मरणीय योग दान किया, वह अतुलनीय है। "हिन्दी चेतना" के इस विशेषांक में डॉ. बुल्के के जन्म, जीवन, कार्यक्षेत्र, धर्मक्षेत्र, जीवन दर्शन तथा उनके द्वारा रचे विविध साहित्य से जुड़े आलेखों को समाहित करके उनके व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए सामग्री को न केवल पठनीय अपितु संग्रहणीय भी बनाया गया है। डॉ. दिनेश्वर प्रसाद के आलेख "डॉ. कामिल बुल्के-जीवन रेखाएँ" के साथ संलग्न चित्रों के द्वारा इस महान संत के जन्म, परिवार, परिवेष, अध्ययन एवं धर्म की ओर उन्मुख होने की परिस्थितियों का बहुत ही रोचक वर्णन मिलता है। डॉ. पूर्णिमा केडिया के संस्मरण "बीसवीं शताब्दि का ऋषि" में फ़ादर बुल्के के द्वारा समय-समय पर अपने शिष्यों का मार्गदर्शन कराते हुए उनके अनमोल विचार समाहित हैं। संत तुलसी दास के अनन्य भक्त फ़ादर बुल्के के विषय में अपने आलेख में श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी लिखते हैं, "बाबा बुल्के के रोम-रोम में राम और साँस-साँस में तुलसी बस गए और यह कहा जाए कि वे तुलसीमय हो गए तो कोई अतिरेक नहीं।"
इस विशेषांक में फ़ादर बुल्के के प्रिय कवि ग़ज़ेले की कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी है, जिससे पाठक उनके कवि हृदय से परिचित होते हैं। प्रो० हरिशंकर आदेश के लेख "एक महान हिन्दी प्रेमी" में फ़ादर के साथ उनकी भेंट के संस्मरणों का समावेश एक आधुनिक युग के महाकवि के द्वारा बाबा के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि है। श्री आत्मा राम तथा श्री महेन्द्र पाल जैन के आलेखों में हमें बाबा के व्यक्तित्व एवं प्रतिभा के दर्शन होते हैं। हिन्दी भाषा के उत्थान एवं प्रचार-प्रसार के विषय में बाबा के विचार उनके स्वयं के लिखे लेख में मिलते हैं। एक सम्मेलन में अपने भाषण में उन्होंने कहा, "हमें प्राचीन एवं नवीन का समावेश करना चाहिए। मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि हमारे साहित्यकार अपने पाठकों को देश की कीर्त्ति एवं गौरव पूर्ण अतीत का स्मरण दिला कर उनमें आत्म सम्मान का भाव संचारित करें।" उनके ये शब्द देश और विदेश में रहने वाले हिन्दी भाषा एवं संस्कृति प्रेमियों के लिए सदैव मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे। "हिन्दी चेतना" के मुख्य सम्पादक श्री श्याम त्रिपाठी ने अपने सम्पादकीय में लिखा है, "फ़ादर बुल्के के सम्मान में यह अंक विश्व के लिए एक अदभुत उपहार होगा, विशेषकर उन हिन्दी साहित्यकारों के लिए जो सुदूर विदेशी धरती पर बसे हुए हैं।" ऐसे अनमोल उपहार को ग्रहण करते हुए हम सभी हिन्दी प्रेमी सम्पादक मंडल की मुख्य सदस्य डॉ. सुधा ओम ढींगरा तथा डॉ. इला प्रसाद को कोटिश: धन्यवाद देना चाहते हैं, जिन्होंने इतनी विविध सामग्री के द्वारा एक महान विभूति के बहु आयामिक व्यक्तित्व से परिचित करवा कर हम पाठकों को भी इस संत की जन्मशती पर श्रद्धा सुमन चढ़ाने का अवसर दिया।
--शशि पाधा
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें