विगत 14-15 अगस्त की शाम वॉशिंग्टन में भारत तथा पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर असगर वजाहत के नाटक जिस लाहौर नइ देख्या के मंचन किया गया। अभी तक इन दोनों देशों के लोग अपने-अपने दूतावासों में ध्वजवंदन के साथ अपना राष्ट्रगीत गाते हुए अपने अपने स्वतंत्रता दिवस अलग अलग मनाते आए हैं। लेकिन इस बार यह समारोह सामूहिक रूप से केनेडी सेंटर में 'जिसने लाहोर नहीं देखा' का आयोजन द्वारा मनाया गया। मध्यांतर में दोनों देशों के लोगों का मिलना हुआ। केनेडी सेंटर में मंचित होने वाला यह हिंदी का पहला नाटक है। नाटक की कथावस्तु दर्शकों को १९४७ में ले जाती है जब अखंड भारत का विभाजन होकर भारत और पाकिस्तान नामक देश बने। दुनिया का सबसे बड़ा स्थलांतरण हुआ। खाली हाथ लोग सीमा रेखा से इधर या उधर हो गए, इस सोच में कि जिधर भी जा रहे हैं, उन्हें निवाला मिलेगा।
यह कहानी एक ऐसे मु्स्लिम परिवार की है जो विभाजन के दौरान भारत के लखनऊ से पाकिस्तान के लाहोर पहुँच जाता है। जहाँ एक हिंदू महिला अपने परिवार से बिछड़कर पाकिस्तान में रह जाती है जबकि उसका परिवार भारत पहुँच जाता है। इस महिला की मृत्यु पर मुस्लिम लोगों के अथक प्रयास से हिंदू रीतिरिवाजों के अनुसार एक मौलवी के हाथों उसकी अंतिम क्रिया करवायी जाती है। पर इस कृत्य की परिणति दंगे फसाद का रूप ले लेती है और मौलवी की हत्या कर दी जाती है। नाटक का निर्देशन वॉशिंग्टन के जाने माने हिंदी साहित्यकार व रंगकर्मी उमेश अग्निहोत्री ने किया। प्रस्तुति पाकिस्तान के प्रसिद्ध रंगकर्मी नूर नग़मी द्वारा स्थापित फिनिक्स मिडिया ग्रूप की थी। पाकिस्तानी और भारतीय दोनो देशों के कलाकारों ने इसमें हिस्सा लेकर नाटक को सफल बनाया।
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