शनिवार, 31 अगस्त 2013

'अभियंता बंधु' के वार्षिक अंक के लिये हिंदी लेख आमंत्रित

इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स भारत के अभियंताओं की प्रतिनिधि संस्था है जिसके लगभग १०४ केंद्र भारत में तथा ६ केंद्र भारत के बाहर विदेशों में कार्यरत हैं। हिंदी में तकनीकी लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए इंस्टीट्यूशन प्रतिवर्ष एक पत्रिका 'अभियंता बन्धु' का वार्षिकांक प्रकाशित करता है। अभियांत्रिकी शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने के कारण तकनीकी विषयों में कुशलता से अभियंता कम ही लिख पाते हैं. निर्माण के क्षेत्र में कार्यरत ठेकेदार, सुपरवाइजर, निरीक्षक, मिस्त्री, तकनीशियन, मैकेनिक आदि अंग्रेजी कम और हिंदी अधिक समझते हैं। तकनीकी जानकारियाँ और मानक संहिता आदि हिंदी में सुलभ हों तो यह वर्ग निर्माण कार्यों को अधिक कुशलता से कर सकता है। प्रस्तावित पत्रिका को अभियंताओं की सर्वोच्च संस्था द्वारा अभियंताओं के मार्गदर्शन हेतु प्रकाशित की जाना है, अतः लेखों का तकनीकी जानकारी (मानकों, प्रविधियों, रूपांकन आदि) से समृद्ध होना आवश्यक है।

आपसे 'अभियंता बन्धु' हेतु किसी तकनीकी विषय पर हिंदी में आलेख (ए 4 आकार में, कृति देव या यूनीकोड फॉण्ट में ) अपने चित्र व संक्षिप्त परिचय (नाम, शिक्षा, कार्य, प्रकाशित पुस्तकें, उपलब्धियाँ, डाक का पता, ई मेल, ब्लॉग/वेब साईट,दूरभाष / चलभाष ) सहित १५ सितंबर के पूर्व उक्त पते पर भेजने का अनुरोध है। आशा ही नहीं विश्वास है कि आप अपनी व्यस्तता के बाद भी इस सारस्वत अनुष्ठान में समिधा-सहयोग कर सहायक होंगे। एक विषय सूची संलग्न है। आप अपनी विधा तथा पसंद का विषय चुनना चाहें तो तुरंत ३ विषय सूचित करें ताकि एक को विषय को जोड़ लिया जाए। महत्वपूर्ण अभियांत्रिकी परियोजनाओं से जुड़े अभियंता उन पर भी लेख दे सकते हैं। स्काई स्क्रैपर्स, मेट्रो रेल, स्पेस क्राफ्ट, कृषि-यांत्रिकी, बायो इन्जीनियरिन्ग, जेनेटिक इंजीनियरिंग, बायो मेडिकल इंजीनियरिंग आदि विविध क्षेत्रों से लेख आमंत्रित हैं। अन्य देशों के अभियांत्रिकी मानकों / संहिताओं (कोड्स), योजनाओं, शिक्षा ढाँचे आदि पर भी लेख उपयोगी होंगे। भाषा साहित्यिक हिंदी होना आवश्यक नहीं है। बोलचाल की सामान्य हिंदी उपयोगी होगी। तकनीकी शब्दों को यथावत देवनागरी में लिखा जा सकता है।

विषय निम्न या अपनी सुविधानुसार अन्य ले सकते हैं:
१. परमाणु बिजली उत्पादन की प्रविधि, परियोजनाएं और भावी आवश्यकताएं
२. ऊर्जा के वैकल्पिक स्तोत्र, भावी आवश्यकता और परियोजनाएं
३. स्वर्ण चतुर्भुज परियोजना और राष्ट्रीय यातायात
४. नदी श्रंखला योजना : एक विवेचन
४. गगनचुम्बी भवन, नगर विकास और पर्यावरण
५. भू स्थायीकरण: समस्या और समाधान
६. बाढ़ नियंत्रण नीति : एक समीक्षा
७. बायो मेडिकल इंजीनियरिंग
८. सैन्य अभियांत्रिकी: भावी चुनौतियाँ और तैयारी
९. अन्तरिक्ष अभियांत्रिकी : संभावनाएं
१०. हिंदी की तकनीकी शब्द सामर्थ्य
११. निर्माण सामग्री उपलब्धता, आवश्यकता और अनुसन्धान
१२. विश्व परिदृश्य में भारतीय अभियांत्रिकी प्रौद्योगिकी
१३. अगले दशक में जल समस्या और निदान
१४. प्रबंधन यांत्रिकी शिक्षा और हिंदी
१५. वैश्विक अभियांत्रिकी शिक्षा और हिंदी
१६ . तकनीकी शब्द सामर्थ्य की कसौटी पर हिंदी
१७. अंतरजालीय भाषा के रूप में हिंदी
१८ . संगणक और हिन्दी कुंजीपटल
१९ . विश्व भाषा के रूप में हिंदी का भविष्य
२० . तकनीकी शिक्षा माध्यम के रूप में हिंदी
२१ . हिंदी की तकनीकी शब्दावली
२२ . प्रबंधन कला और हिंदी
२३ . हिंदी की अभिव्यक्ति क्षमता
२४ . वैश्वीकरण के दौर में हिंदी की प्रासंगिकता
२५ . संगणक-भाषा के रूप में हिंदी
२६ . शहरी मल निकासी प्रबंधन
२७ . जल प्रदूषण और शुद्धिकरण
२८ . वर्षा जल प्रबंधन
२९ . हरित भवन तकनीक
३० . बांधों का पर्यावरण पर प्रभाव
३१ . अपारंपरिक निर्माण तकनीक
३२ . बायोमास ऊर्जा
३३ . जीव-चिकित्सकीय कचरे (बायोमेडिकल वेस्ट )का निस्तारण
३४ . हायड्रोपॉवर तकनीक
३५ . भू जल में फ्लोराइड : दुष्प्रभाव और निवारण
३६ . औद्योगिक वेस्ट वाटर का पुनरुपयोग
३७ . रेडी मिक्स कोंक्रीट में वेस्ट वाटर प्रबंधन
३८ . भवन निर्माण संहिता: प्रासंगिकता, प्रभाव और पुनरीक्षण
३९ . अभियांत्रिकी शब्दकोष क्यों और कैसे
४० . विद्युत् संयत्रों में सुरक्षा प्रावधान
४१ . विद्युत् ग्रहों में दुर्घटनाएं और सुरक्षा प्रावधान
४२ . रेल पथ : प्रबंधन और सुरक्षा
४३ . ऊष्मीय विद्युत् संयंत्रों (थर्मल पावर प्लांट्स) में सुरक्षा प्रावधान
४४ . भू स्खलन (लैंड स्लाइड ) : कारण और निवारण
४५ . भू वस्त्रीकरण (जिओटैक्सटाइल्स) से मृदा क्षरण (साइल इरोजन) निषेध
४६ . गुणवत्ता नियंत्रण : पदार्थ परीक्षण यंत्रोपकरण
४७ . स्वर्ण चतुर्भुज योजना
४८ . नदी-श्रंखला योजना
४९ . परमाण्विक बिजली घर : क्यों?, कहाँ?, कैसे?
५० . निर्माण कार्य और फ्लाई ऐश : आवश्यकता, दुष्प्रभाव और निवारण
५१ . स्व उपचारित (सेल्फ हीलिंग) कोंक्रीट
५२ . पूरक जुड़ाई सामग्री तथा अधिमिश्रक(सप्लीमेंट्री सीमेंटिंग मटीरियल  एंड एड्मिक्स्चर्स)
५३ . कोंक्रीट संरचनाओं का स्थायित्व
५४ . फाइबर रिएन्फोर्स्ड कोंक्रीट
५५ . कोंक्रीट कार्यों में गुणवत्ता नियंत्रण
५६ . जिओपोलीमर कोंक्रीट
५७ . कोंक्रीट का पुनर्चक्रीकरण (रिसाइकलिंग)
५८ . जिओपोलीमर कोंक्रीट : क्षारीय जल का प्रभाव
५९ . सेल्फ कोम्पैक्टिंग कोंक्रीट: क्यों?, कब और कैसे
६० . मानक कोंक्रीट और सुपर प्लास्टीसाइजर
६१ . चांवल भूसा-भस्म (राइस हस्क ऐश ) मिश्रित कोंक्रीट : स्थायित्व और सुदृढ़ता
६२ . कोंक्रीट : खनिज तथा रासायनिक अधिमिश्रकों (एड्मिक्स्चर्स)का प्रभाव
६३ . कोंक्रीट पर कॉपर स्लैग का प्रभाव
६४ . कोंक्रीट में जलरोधी पदार्थ
६५ . ईंट-रोड़ों से कम वजनी कोंक्रीट
६६ . कोंक्रीट में दरारें: कारण और निवारण
६७ . भूकंपरोधी संरचना : क्यों और कैसे?
६८ . परमाण्विक कचरे का निस्तारण
६९ . परमाण्विक बिजली घर : औचित्य, खतरे और सुरक्षा
७० . भूकंप विज्ञान के तत्व और अपरिहार्यता
७१ . भूकंपीय आवृत्ति और तीव्रता : पूर्वानुमान और बचाव
७२ . भूकंप का कोंक्रीट संरचना पर दुष्प्रभाव
७३ . प्रबलित संरचन का भूकंपीय व्यवहार
७४ , ईंट-जुडाई निर्मित भवनों पर भूकंप का प्रभाव
७५ . विद्युत् उपकरण युक्त संरचनाओं का भूकंपीय रूपांकन
७६ . भूकंपीय हलचल: मानक और मापन
७७ . बाँध संरचना पर भूकंपीय प्रभाव और सुरक्षा
७८ . खदानों पर भूकंपीय प्रभाव और सुरक्षा
७९ . गगनचुम्बी भवनों की भूकंपीय सुरक्षा
८० . प्री कास्ट कोंक्रीट भवनों पर भूकंपीय प्रभाव और सुरक्षा
८१ . भूकम्परोधी नींव
८२ . भवनों का भूकंपीय प्रबलीकरण
८३ . विद्युत् उपकेन्द्र, उपकरणों और खम्बों पर भूकंपीय प्रभाव
८४ . नगरों में आपदा प्रबंधन
८५ . ग्रामों में आपदा प्रबंधन
८६ . मूल्यांकन यांत्रिकी
८७ . श्रमिक उत्पादकता
८८ . सामग्री प्रबंधन
८९ . निर्माण उपकरण और संयंत्र
९० . लागत तथा मूल्यानुमान
९१ . निर्माण आयोजन और प्रबंधन
९२ . अल्प मोली भवन संरचना
९३ . परियोजना प्रबंधन
९४ . विकास नियोजन हेतु सूक्ष्म तथा वृहद् क्षेत्रांकन
९५ . ठोस अपशिष्ट (सॉलिड वेस्ट) प्रबंधन
९६ . पर्यावरणीय विकास
९७ . सडक दुर्घटना कारण और निवारण
९८ . नगरीय यातायात : धूम्र तथा ध्वनि प्रदूषण
९९ . विकासशील शहरों का यातायात विश्लेषण और प्रबंधन
१०० . सार्वजनिक यातायात : पूर्वानुमान, प्रबंधन और नियंत्रण
१०१ . यातायात दुर्घटनाओं पर मादक पदार्थ सेवन का प्रभाव और नियंत्रण
१०२ . सडक यातायात और वाहन हेड लाइट्स
१०३ . सड़क सुरक्षा प्रबंधन और उपाय
१०४ . सडक यातायात और सुदूर नियंत्रण
१०५ . रेल पथ यातायात प्रबंधन
१०६ . रेल पथ और भूकंप
१०७ . भूकंप और सेतु सुरक्षा
१०८ . यातायात प्रबंधन और सूचना तकनीक
१०९ . यातायात और वायु प्रदूषण
११० . यातायात दुर्घटनाएं और चलभाष
१११ . सडक दुर्घटनाएं : मानवीय और यांत्रिक चूकें
११२ . सडक दुर्घटनाओं के मनोवैज्ञानिक कारण
११३ . यातायात प्रबंधन और अनुज्ञप्ति प्रणाली
११४ . मार्ग दुर्घटनाएं और जन व्यवहार
११५ . सडक विकास और सडक सुरक्षा
११६ . महामार्ग और पर्यावरण प्रदूषण
११७ . महामार्ग निर्माण और जूट टेक्सटाइल
११८ . रेलपथ सुरक्षा और जूट टेक्सटाइल
११९ . जिओटेक्सटाइल और भूस्खलन
१२० . भूस्खलन-भूक्षरण और वानिकीकरण
१२१ . मृदा भारवहन क्षमता: पूर्वानुमान और सीमायें
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इस वर्ष प्रकाशन का दायित्व जबलपुर केंद्र को तथा इसके संपादन की जिम्मेदारी इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल' को दी गयी है। सभी लेख भेजने तथा संपर्क करने के लिये इन संपर्कों का उपयोग करें-
ई मेल: salil.sanjiv@gmail.com,
चलभाष: 9425183244
दूरभाष 0761 2411131

विज्ञापन देने के इच्छुक लोग संपादक से संपर्क कर सकते हैं।

संजीव वर्मा, संपादक 
बलवंत सिंह बघेल, अध्यक्ष
वीरेन्द्र कुमार साहू, मानद सचिव
इंस्टीटयूशन ऑफ़ इंजीनियर्स (इंडिया) लोकल सेंटर जबलपुर

यूरोप में आधुनिक हिन्दी शिविर

गत वर्षों में आयोजित संस्कृत और ब्रजभाषा शिविरों की तरह रोमेनिया के ऐतिहासिक नगर चीकसैरैदॉ के सपिएंत्सियाँ विश्वविद्यालय में आधुनिक हिन्दी शिविर का आयोजन किया गया है।

यह शिविर विश्वविद्यालय के परिसर में १९-३० अगस्त के बीच आयेजित किया जा रहा है। शिविर के अंतरगत सुषम वेदी की कहानी अवसान, उपन्यास हवन और मैंने नाता तोड़ा के अंश, असगर वजाहत के नाटक जिस लाहौर नइ देख्या जो जम्याइ नइ, गीतांजली श्री के उपन्यास खाली जगह के कुछ अंश, कुणाल सिंह की कहानी प्रेमकथा में मोजे की भूमिका और राहुल सांकृत्यायण की कहानी सुदास का विश्लेषण और अनुवाद किया जाएगा।



स्विट्सरलैंड के लोजन विश्वविद्यालय के डॉ निकोला पोजा गीतांजली श्री का अनुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं, इटली के तोरीनों (टचुरिन) विश्वविद्यालय की डॉ आलेस्संद्रा कोनसोलारो कुणाल सिंह की कहानी प्रेमकथा में मोजे की भूमिका पर काम कर रही हैं।
 
हंगेरी के बुदापैशत (ब्युडापेस्ट) विश्वविद्यालय की प्रोफेसर मारिया नेज्यैशि जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ का हंगेरियन अनुवाद कर रही हैं। उन्होंने नाटक की हिन्दी-अँग्रजी शब्दावली बना भेजी है।

इस आयोजन में हिन्दी के दो वरिष्ठ लेखक सुषम वेदी और असगर वजाहत अपनी रचनाओं के अनुवाद की प्रक्रिया में सक्रिया रूप में भाग ले रहे हैं। इसके कारण अनुवाद की चुनौतियों और मूल पाठ की बहुस्तरीय व्याख्या को समझने और अनुवाद करने में मदद मिल रही है।

इस आयोजन के संयोजक डॉ इमरै बंघॉ के अनुसार शिविर का उद्देश्य हिन्दी के छात्रों और युवा विद्वानों को प्रतिष्ठित लेखकों की रचनाओं को पढ़ने और लेखकों से उनकी चर्चा करने का औपचारिक और अनौपचारिक मौका देना है। कार्यक्रम में रोमेनिया, भारत, इटली, पोलैंड, स्विट्सरलैंड, अमरीका और हंगेरी के दस लोग भाग ले रहे हैं।

कार्यक्रम की एक विशेषता यह है कि इसके कुछ सत्र कक्षा की सीमाओं से मुक्त भी होते हैं जिनका आयोजन रवींद्रनाथ ठाकुर के शांतिनिकेतन की तरह क्लासरूम से बाहर, प्राकृतिक स्थलों पर किया जाता है। इन स्थलों में करपेश्ज्ञियन पहाड़ों पहाड़ों के अंतरगत शोम्यो पहाड़, हरगितॉ की तरह, सेंट ऐन्न झील आदि सुंदर स्थल आते हैं।


डॉ जोल्तान मको
डीन
मानविकीय एवम् अर्थशास्त्र
सपिएंत्सियॉ हंगेरयन विश्वविद्यालय
चीकसैरैदॉ, रोमेनिया

शनिवार, 29 जून 2013

महुआ घटवारिन को १९वां कथा यू.के. सम्मान

कथा (यू के) के अध्यक्ष एवं प्रतिष्ठित मीडिया हस्ती श्री कैलाश बुधवार ने लंदन से सूचित किया है कि वर्ष २०१३ के लिए अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान कथाकार श्री पंकज सुबीर को उनके सामयिक प्रकाशन से २०१२ में प्रकाशित कहानी संग्रह महुआ घटवारिन और अन्य कहानियाँ पर देने का निर्णय लिया गया है। श्री कैलाश बुधवार ने बताया कि इस वर्ष सम्मान के लिए केवल कहानी विधा पर ही ध्यान केन्द्रित किया गया क्योंकि पिछले दो वर्षों में बहुत से स्तरीय कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं। पंकज सुबीर के अतिरिक्त अजय नावरिया, मनीषा कुलश्रेष्ठ, प्रेम भारद्वाज एवं विवेकानन्द के कहानी संग्रह अंतिम पाँच की दौड़ तक पहुंचे। विजेता का चुनाव करने में निर्णायकों को ख़ासी कठिनाई का सामना करना पड़ा।

इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना संभावनाशील कथा लेखिका एवं कवयित्री इंदु शर्मा की स्मृति में की गयी थी। इंदु शर्मा का कैंसर से लड़ते हुए अल्प आयु में ही निधन हो गया था। अब तक यह प्रतिष्ठित सम्मान चित्रा मुद्गल, संजीव, ज्ञान चतुर्वेदी, एस आर हरनोट, विभूति नारायण राय, प्रमोद कुमार तिवारी, असग़र वजाहत, महुआ माजी, नासिरा शर्मा, भगवान दास मोरवाल, हृषिकेश सुलभ, विकास कुमार झा एवं प्रदीप सौरभ को प्रदान किया जा चुका है।

इस सम्मान के अन्तर्गत दिल्ली - लंदन - दिल्ली का आने जाने का हवाई यात्रा का टिकट (एअर इंडिया द्वारा प्रायोजित), एअरपोर्ट टैक्स़, इंगलैंड के लिए वीसा शुल्क, एक शील्ड, शॉल, लंदन में एक सप्ताह तक रहने की सुविधा तथा लंदन के खास खास दर्शनीय स्थलों का भ्रमण आदि शामिल होंगे। यह सम्मान श्री पंकज सुबीर को लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में एक भव्य आयोजन में प्रदान किया जायेगा।

पंकज सुबीर का जन्म ११ अक्टूबर १९७५ को मध्यप्रदेश के होशँगाबाद जिले के सीवनी मालवा कस्बे में हुआ । पिता के शासकीय सेवा में चिकित्सक होने के कारण मध्यप्रदेश के विभिन्न शहरों में शिक्षा दीक्षा हुई। बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल के अंतर्गत आने वाले शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय (अब चंद्रशेखर आज़ाद शासकीय स्नातकोत्तर अग्रणी महाविद्यालय) से जीव विज्ञान विषयों में स्नातक उपाधि तथा उसके बाद वहीं से रसायन शास्त्र (अकार्बनिक रसायन शास्त्र) में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की । अब तक सौ से ज्यादा साहित्यिक रचनाएँ जिनमें कहानियाँ, कविताएँ, ग़ज़लें, लेख तथा व्यंग्य लेख शामिल हैं देश भर की शीर्ष साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्मानित कृति के अतिरिक्त पंकज का एक कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी और एक उपन्यास ये वो सहर तो नहीं प्रकाशित हो चुके हैं। ३८ वर्षीय पंकज सुबीर को बहुत से पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं जिनमें उपन्यास ये वो सहर तो नहीं के लिए भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, इंडिपेंडेंट मीडिया सोसायटी (पाखी पत्रिका) द्वारा शब्द साधक जनप्रिय सम्मान, गोरखपुर उत्तर प्रदेश की संस्था नवोन्मेष द्वारा साहित्य का नवोन्मेष सम्मान शामिल हैं। वर्तमान में फ्रीलांस पत्रकारिता के साथ साथ कम्प्यूटर हार्डवेयर, नेटवर्किंग तथा ग्राफिक्स प्रशिक्षक के रूप में कार्यरत हैं । जब से सम्मान को अन्तर्राष्ट्रीय किया गया है तब से अब तक पंकज सुबीर सबसे छोटी आयु के साहित्यकार हैं जिनको सम्मानित किया जा रहा है।

वर्ष २०१३ के लिए पद्मानन्द साहित्य सम्मान बर्मिंघम के डा. कृष्ण कन्हैया को उनके कविता संग्रह किताब ज़िन्दगी की (२०१२ – वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली) के लिए दिया जा रहा है। डा. कृष्ण कन्हैया का जन्म पटना, बिहार में हुआ था और उन्होंने रांची विश्वविद्यालय से एम.बी.बी.एस. की शिक्षा प्राप्त की जबकि पटना विश्वविद्यालय से सर्जरी में मास्टर्स पूरी की। इसके अतिरिक्त उन्होंने एडिनबरा से मेडिकल की अन्य डिग्रियाँ हासिल की हैं। उनकी प्रकाशित रचनाओं में सूरज की सोलह किरणें, कविता-२००७ (कविता संग्रह),शामिल हैं। उनका एक कविता संग्रह किताब संवेदना की प्रकाशनाधीन है। डॉ. कृष्ण कन्हैया का कहना है कि विदेश आने के बाद अपनी संस्कृति का गर्व, अपने संस्कारों की गरिमा, अपने गांव की शुद्ध सौंधी ख़ुशबू और अपनी मातृभूमि से अनवरत लगाव मेरी अनतरात्मा को ज़्यादा उद्वेलित करता था जिसकी झलक अब मैं अपनी कविताओं में महसूसता हूँ।

इससे पूर्व इंगलैण्ड के प्रतिष्ठित हिन्दी लेखकों क्रमश: डॉ सत्येन्द श्रीवास्तव, सुश्री दिव्या माथुर, श्री नरेश भारतीय, भारतेन्दु विमल, डा.अचला शर्मा, उषा राजे सक्सेबना, गोविंद शर्मा, डा. गौतम सचदेव, उषा वर्मा, मोहन राणा, महेन्द्र दवेसर, कादम्बरी मेहरा, नीना पॉल एवं सोहन राही को पद्मानन्द साहित्य सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।
कथा यू.के. परिवार विशेष तौर पर श्रीमती चित्रा मुद्गल, श्री भारत भारद्वाज, श्रीमती उर्मिला शिरीष, श्रीमती सुधा ओम ढींगरा, श्री सुशील सिद्धार्थ, श्रीमती साधना अग्रवाल एवं श्री आलोक मेहता का हार्दिक आभार मानते हुए उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करता है जिन्होंने इस वर्ष के पुरस्कार चयन के लिए लेखकों के नाम सुझा कर हमारा मार्गदर्शन किया।

- तेजेन्द्र शर्मा

गुरुवार, 2 मई 2013

येल विश्वविद्यालय में कथा गोष्ठी का आयोजन


अप्रैल २०१३ में, येल विश्वविद्यालय में वहीं के दक्षिण एशियाई अध्ययन परिषद् और सीमा खुराना जी के सहयोग एवं सुषम जी के निर्देशन में कथा-गोष्ठी (कहानी-वर्कशॉप) का आयोजन किया गया जिसमें कई सम्मानित, स्थापित एवं नए कथाकारों ने भाग लिया। सुषम जी येल विश्वविद्यालय में ‘राइटर इन रेज़िडेंस’ के तौर पर आमंत्रित थीं इसलिए इस बार वहीँ पर कथा गोष्ठी हुई और गोष्ठी का विषय था ‘डायस्पोरा से सम्बंधित कहानियां!’

इस कहानी-वर्कशॉप में सभी कथाकारों ने क्रम से अपनी लिखी हुई कहानी पढ़ी और हर कहानी सुनने के बाद श्रोताओं ने उस कहानी विशेष के बारे में अपना विचार व्यक्त किया और सुषम जी ने कहानी के विभिन्न पक्षों को ध्यान में रखते हुए टिपण्णी दी। कथा-गोष्ठी में येल विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में पढ़ाने वालों एवं कई हिंदी प्रेमिओं ने भाग लिया। इनमें सुषम बेदी और सीमा खुराना के साथ-साथ वरिष्ठ लेक्चरर गीतांजलि चंदा, स्वप्ना शर्मा, स्वदेश राणा, आस्था नवल, राधा गुप्ता, चारु अग्रवाल, राहुल बेदी, सुनील खुराना, संगीता जग्गी, विशाखा ठाकर, सविता नायक इत्यादि ने भाग लिया। इसके साथ ही येल विश्वविद्यालय के हिंदी पढ़ने वाले कुछ विद्यार्थियों, अखिल सूद, शौनक बक्शी, शांतनु गंगवार, आनंद खरे, स्मिता शुक्ला ने भी भाग लिया। कुछ कथाकार एवं भाग लेने वाले लोग काफी दूर से या दूसरे राज्यों से भी आये थे। पहले से कुछ अलग और विशेष यह था कि इस बार विद्यार्थिओं ने भी इस वर्कशॉप में हिस्सा लिया, सबकी कहानियां सुनीं और हर कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया दी।

कथा गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए सुषम जी ने कहानी वर्कशॉप के विषय में कुछ शब्द कहे और फिर एक-एक करके सभी कथाकारों को अपनी कहानी पढ़ने के लिए आमंत्रित किया।

सर्प्रथम सविता नायक ने अपनी कहानी ‘वीकेंड’ पढ़ी। कहानी पर अपना विचार व्यक्त करते हुए सुषम जी ने कहा कि इस कहानी में यह बात उठाई गई है कि हर किसी में संवेदनशीलता तो रहती है पर कैसे सरोकार बदल जाते हैं।

तत्पश्चात आस्था नवल ने अपनी कहानी ‘एमी’ पढ़ी जो एक तलाकशुदा लड़की के बारे में है और पूछा कि वह इसको लेख कहें या कहानी कहें, क्या यह कहानी होगी? इस पर स्वदेश राणा जी ने कहा कि इस कहानी में संवेदनशीलता है और साथ में यह भी कहा कि अगर संवेदनशीलता हो तथा कलम उठाने की ताकत हो तो कहानी अपने आप बन जाती है।

सुषम जी ने कहानी पर अपना विचार अभिव्यक्त करते हुए कहा कि नए प्रवासी कहानीकार ‘ऑन लुकर’ की तरह होते हैं। उनकी भागीदारी जितनी अपनी संस्कृति में होती है उतनी भागीदारी यहाँ की ज़िंदगी में नहीं होती है इसलिए उनको कहानी ‘एमी’ ‘ऑन लुकर’ की दृष्टि से लिखी गई कहानी की तरह लगती है। आगे कहानी विषय पर चर्चा और अपने विचार व्यक्त करते हुए सुषम जी ने कहा कि कहानी पर अपनी ज़िंदगी की बातों का, पृष्ठभूमि का प्रभाव होता है। कोई भी कलाकार हो, उसकी कलाकृति या कहानी में उसकी पृष्ठभूमि रहती है।

तत्पश्चात स्वदेश राणा जी ने अपनी कहानी ‘निष्कलंकिनी’ की पृष्ठभूमि बताई। उन्होंने कथा गोष्ठी में अपनी कहानी के मुख्य पात्रों ‘अम्बुजम’, ‘फिलिप’ इत्यादि का परिचय दिया और कहानी के कुछ अंश पढ़े। सुषम जी ने कहा कि स्वदेश जी का ‘अंदाज़े बयान’ काबिले तारीफ़ होता है। अखिल सूद ने ‘निष्कलंकिनी’ कहानी के बारे में कहा कि वह इस कहानी से बहुत आनंदित हुए और जिस तरह से कहानी शुरू हुई, मुख्य पात्रों का परिचय इत्यादि जिस ढंग से बताया गया वह सब कुछ इतना समृद्ध लगा कि इस कहानी के कुछ अंश सुनना निसंदेह सम्मोहित कर देने वाला अनुभव था। सविता नायक ने कहा कि स्वदेश जी की कहानी की भाषा बहुत समृद्ध और विवरण शैली अद्भुत है। एक और प्रश्न के उत्तर में सुषम जी ने कहा कि लेखक ‘क्रिएट(सृजन) करता है। अतः लेखक अपने पात्रों को बनाता है पर वह पात्र स्वयं को खुद ही जीते हैं।’

कथा गोष्ठी के दूसरे भाग की शुरुआत में सर्वप्रथम विशाखा ठाकर ने अपनी कथांतर में प्रकाशित कहानी ‘गलीचा’ पढ़ी। सीमा खुराना ने अपनी कहानी ‘बूढ़ा शेर’ पढ़ी। सुषम बेदी ने अपनी कहानी ‘चेरी फूलों वाले दिन’ पढ़ी। विद्यार्थिओं ने तीनों कहानिओं पर एक साथ अपनी प्रतिक्रिया देते हुए ‘गलीचा’ कहानी को रोमांचक, ‘बूढ़ा शेर’ कहानी को ‘संबंधों पर केंद्रित’ तथा ‘चेरी फूलों वाले दिन’ को भावपूर्ण और नाना-नानी एवं दादा-दादी की याद दिला देने वाली कहानी बताया। अखिल सूद ने ‘गलीचा’ कहानी के बारे में कहा कि यह एक सुखद कथा थी जिसकी कि शुरुआत ने ही सुन्दर ढंग से पूरी कहानी को स्वर प्रदान किया और सुनने वालों को सचेत रखा और कहा कि सुषम जी और सीमा जी की कहानियां अच्छी और भावपूर्ण थीं और कथा गोष्ठी में सभी लेखकों को सुनना निश्चय ही अच्छा अनुभव रहा।
 
कथा गोष्ठी में कहानी के विभिन्न भागों, लेखन प्रक्रिया इत्यादि पर हो रही चर्चा को सुनकर स्मिता शुक्ला ने कहा कि ‘कभी सोचा नहीं था कि कहानी के किरदारों के लिए इतना सोचना पड़ता है!’ और डायस्पोरा से सम्बंधित कहानिओं को सुनकर उन्होंने यह भी कहा कि ‘डायस्पोरा हमारी कहानी का हिस्सा है और वह कथा गोष्ठी में ऐसी कहानिओं को सुनकर स्वयं को उनसे ‘रीलेट’ (जुड़ा हुआ महसूस) कर पायीं।’

डायस्पोरा की बात पर गीतांजलि चंदा ने विद्यार्थिओं से उनका मत जानने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रश्न किया कि उन्होंने कहानी सुनने के बाद किस बात से जाना कि कहानी डायस्पोरा से सम्बंधित थी या नहीं? कुछ और लोगों ने भी ‘डायस्पोरा से जुड़ी कहानी’ को अधिक स्पष्ट भाव से जानना चाहा। इस विषय पर चर्चा हुई और स्पष्ट किया गया कि ‘डायस्पोरा’ वह स्थिति है जिसमें जब किसी एक संस्कृति के लोग दूसरी संस्कृति के लोगों से मिलते हैं तो जिस तरह से उस स्थिति को देखते, समझते और निभाते हैं, उन्हीं को दर्शाती/बताती हुई बातों/कहानिओं को हम ‘डायस्पोरा से सम्बंधित’ कहते हैं।

सीमा खुराना ने विद्यार्थिओं से उनका मत जानने के लिए प्रश्न किया कि क्या (उनके द्वारा) कहानी को पसंद करने के लिए उस कहानी का डायस्पोरा से सम्बंधित होना ज़रूरी है? इस प्रश्न के उत्तर में सभी छात्रों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की जिसका संक्षेप में निष्कर्ष यह रहा कि उनको प्रवासी जीवन के बारे में पढ़ना अच्छा लगता है मगर उनके द्वारा कहानी को पसंद करने के लिए हर कहानी का प्रवासी जीवन से जुड़ा होना आवश्यक नहीं है। अतः उनको ऐसी कहानी पढ़ना अच्छा लगता है जो रोचक हो और उनकी उत्सुकता को बनाए रखे।

सुषम जी ने कथा गोष्ठी के विषय में कहा कि कहानी वर्कशॉप शुरू करने का मुख्य उद्देश्य यही था कि लिखने वाले आपस में मिल कर चर्चा कर सकें। उन्होंने कहा कि जब लिखने और सुनने वाले मिलते हैं तो कई बार कहानीकार जो कुछ भी लिख रहा था उससे हटकर कुछ और लिखने का प्रयास भी करने लगता है और कहा कि यह बात उन्होंने स्वयं पर भी लागू होती पाई और इसीलिए इस बार उन्होंने पहले जैसे विषयों पर कहानी लिखने से हटकर एक अलग विषय पर कहानी लिखने की कोशिश की।

हर बार की तरह इस बार भी कथा गोष्ठी बहुत सफल रही। विस्तृत विचार-विमर्श एवं विद्यार्थिओं की सह-भागिता ने इसको अद्वितीय बना दिया। ‘कनेटिकट’ दूर होने की वजह से हिंदी, पंजाबी और उर्दू के कई रचनाकार एवं न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के बहुत से साहित्य प्रेमी इस बार की कथा गोष्ठी में भाग नहीं ले सके और आशा करते हैं कि शीघ्र ही कथा गोष्ठी का आयोजन न्यू यॉर्क या किसी निकट स्थान पर भी होगा।

- सविता नायक

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

कृष्ण बिहारी को सृजनगाथा सम्मान

१४ फरवरी २०१३, दुबई के इंपीरियल होटल स्यूइट्स में आयोजित एक भव्य समारोह में भारतीय दूतावास के डेप्युटी काउंसलर (कामर्स एवं आर टी आई) पी.के. अशोक बाबू के हाथों यूएई निवासी कथाकार श्री कृष्णबिहारी को सम्म्मानित किया गया। यह सम्मान सृजनगाथा द्वारा उनकी लम्बी एवं उत्कृष्ट साहित्य सेवा के लिए प्रदान किया गया। इस अवसर पर १०० से अधिक भारतीय एवं युएई निवासी साहित्यकार, कलाकार एवं विशिष्ट नागरिक उपस्थित थे।

कृष्ण बिहारी हिन्दी के ऐसे पहले एवं एकमात्र लेखक हैं जिन्होंने अपनी सौ से अधिक कहानियों में संयुक्त अरब इमारात के जीवन को गहनता और विस्तार के साथ चित्रित किया है। अध्यापन एवं पत्रकारिता से जुड़े कृष्ण बिहारी की ख्याति उनकी कहानियों कि लिये हैं लेकिन उन्होंने कहानियों के अतिरिक्त कविता, एकांकी, उपन्यास और संस्मरण भी बखूबी लिखे हैं। वे संयुक्त अरब इमारात से निकलने वाली एक मात्र साहित्यिक पत्रिका 'निकट' के प्रकाशक व संपादक भी हैं।