शनिवार, 31 अगस्त 2013

यूरोप में आधुनिक हिन्दी शिविर

गत वर्षों में आयोजित संस्कृत और ब्रजभाषा शिविरों की तरह रोमेनिया के ऐतिहासिक नगर चीकसैरैदॉ के सपिएंत्सियाँ विश्वविद्यालय में आधुनिक हिन्दी शिविर का आयोजन किया गया है।

यह शिविर विश्वविद्यालय के परिसर में १९-३० अगस्त के बीच आयेजित किया जा रहा है। शिविर के अंतरगत सुषम वेदी की कहानी अवसान, उपन्यास हवन और मैंने नाता तोड़ा के अंश, असगर वजाहत के नाटक जिस लाहौर नइ देख्या जो जम्याइ नइ, गीतांजली श्री के उपन्यास खाली जगह के कुछ अंश, कुणाल सिंह की कहानी प्रेमकथा में मोजे की भूमिका और राहुल सांकृत्यायण की कहानी सुदास का विश्लेषण और अनुवाद किया जाएगा।



स्विट्सरलैंड के लोजन विश्वविद्यालय के डॉ निकोला पोजा गीतांजली श्री का अनुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं, इटली के तोरीनों (टचुरिन) विश्वविद्यालय की डॉ आलेस्संद्रा कोनसोलारो कुणाल सिंह की कहानी प्रेमकथा में मोजे की भूमिका पर काम कर रही हैं।
 
हंगेरी के बुदापैशत (ब्युडापेस्ट) विश्वविद्यालय की प्रोफेसर मारिया नेज्यैशि जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ का हंगेरियन अनुवाद कर रही हैं। उन्होंने नाटक की हिन्दी-अँग्रजी शब्दावली बना भेजी है।

इस आयोजन में हिन्दी के दो वरिष्ठ लेखक सुषम वेदी और असगर वजाहत अपनी रचनाओं के अनुवाद की प्रक्रिया में सक्रिया रूप में भाग ले रहे हैं। इसके कारण अनुवाद की चुनौतियों और मूल पाठ की बहुस्तरीय व्याख्या को समझने और अनुवाद करने में मदद मिल रही है।

इस आयोजन के संयोजक डॉ इमरै बंघॉ के अनुसार शिविर का उद्देश्य हिन्दी के छात्रों और युवा विद्वानों को प्रतिष्ठित लेखकों की रचनाओं को पढ़ने और लेखकों से उनकी चर्चा करने का औपचारिक और अनौपचारिक मौका देना है। कार्यक्रम में रोमेनिया, भारत, इटली, पोलैंड, स्विट्सरलैंड, अमरीका और हंगेरी के दस लोग भाग ले रहे हैं।

कार्यक्रम की एक विशेषता यह है कि इसके कुछ सत्र कक्षा की सीमाओं से मुक्त भी होते हैं जिनका आयोजन रवींद्रनाथ ठाकुर के शांतिनिकेतन की तरह क्लासरूम से बाहर, प्राकृतिक स्थलों पर किया जाता है। इन स्थलों में करपेश्ज्ञियन पहाड़ों पहाड़ों के अंतरगत शोम्यो पहाड़, हरगितॉ की तरह, सेंट ऐन्न झील आदि सुंदर स्थल आते हैं।


डॉ जोल्तान मको
डीन
मानविकीय एवम् अर्थशास्त्र
सपिएंत्सियॉ हंगेरयन विश्वविद्यालय
चीकसैरैदॉ, रोमेनिया

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