गुरुवार, 2 मई 2013

येल विश्वविद्यालय में कथा गोष्ठी का आयोजन


अप्रैल २०१३ में, येल विश्वविद्यालय में वहीं के दक्षिण एशियाई अध्ययन परिषद् और सीमा खुराना जी के सहयोग एवं सुषम जी के निर्देशन में कथा-गोष्ठी (कहानी-वर्कशॉप) का आयोजन किया गया जिसमें कई सम्मानित, स्थापित एवं नए कथाकारों ने भाग लिया। सुषम जी येल विश्वविद्यालय में ‘राइटर इन रेज़िडेंस’ के तौर पर आमंत्रित थीं इसलिए इस बार वहीँ पर कथा गोष्ठी हुई और गोष्ठी का विषय था ‘डायस्पोरा से सम्बंधित कहानियां!’

इस कहानी-वर्कशॉप में सभी कथाकारों ने क्रम से अपनी लिखी हुई कहानी पढ़ी और हर कहानी सुनने के बाद श्रोताओं ने उस कहानी विशेष के बारे में अपना विचार व्यक्त किया और सुषम जी ने कहानी के विभिन्न पक्षों को ध्यान में रखते हुए टिपण्णी दी। कथा-गोष्ठी में येल विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में पढ़ाने वालों एवं कई हिंदी प्रेमिओं ने भाग लिया। इनमें सुषम बेदी और सीमा खुराना के साथ-साथ वरिष्ठ लेक्चरर गीतांजलि चंदा, स्वप्ना शर्मा, स्वदेश राणा, आस्था नवल, राधा गुप्ता, चारु अग्रवाल, राहुल बेदी, सुनील खुराना, संगीता जग्गी, विशाखा ठाकर, सविता नायक इत्यादि ने भाग लिया। इसके साथ ही येल विश्वविद्यालय के हिंदी पढ़ने वाले कुछ विद्यार्थियों, अखिल सूद, शौनक बक्शी, शांतनु गंगवार, आनंद खरे, स्मिता शुक्ला ने भी भाग लिया। कुछ कथाकार एवं भाग लेने वाले लोग काफी दूर से या दूसरे राज्यों से भी आये थे। पहले से कुछ अलग और विशेष यह था कि इस बार विद्यार्थिओं ने भी इस वर्कशॉप में हिस्सा लिया, सबकी कहानियां सुनीं और हर कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया दी।

कथा गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए सुषम जी ने कहानी वर्कशॉप के विषय में कुछ शब्द कहे और फिर एक-एक करके सभी कथाकारों को अपनी कहानी पढ़ने के लिए आमंत्रित किया।

सर्प्रथम सविता नायक ने अपनी कहानी ‘वीकेंड’ पढ़ी। कहानी पर अपना विचार व्यक्त करते हुए सुषम जी ने कहा कि इस कहानी में यह बात उठाई गई है कि हर किसी में संवेदनशीलता तो रहती है पर कैसे सरोकार बदल जाते हैं।

तत्पश्चात आस्था नवल ने अपनी कहानी ‘एमी’ पढ़ी जो एक तलाकशुदा लड़की के बारे में है और पूछा कि वह इसको लेख कहें या कहानी कहें, क्या यह कहानी होगी? इस पर स्वदेश राणा जी ने कहा कि इस कहानी में संवेदनशीलता है और साथ में यह भी कहा कि अगर संवेदनशीलता हो तथा कलम उठाने की ताकत हो तो कहानी अपने आप बन जाती है।

सुषम जी ने कहानी पर अपना विचार अभिव्यक्त करते हुए कहा कि नए प्रवासी कहानीकार ‘ऑन लुकर’ की तरह होते हैं। उनकी भागीदारी जितनी अपनी संस्कृति में होती है उतनी भागीदारी यहाँ की ज़िंदगी में नहीं होती है इसलिए उनको कहानी ‘एमी’ ‘ऑन लुकर’ की दृष्टि से लिखी गई कहानी की तरह लगती है। आगे कहानी विषय पर चर्चा और अपने विचार व्यक्त करते हुए सुषम जी ने कहा कि कहानी पर अपनी ज़िंदगी की बातों का, पृष्ठभूमि का प्रभाव होता है। कोई भी कलाकार हो, उसकी कलाकृति या कहानी में उसकी पृष्ठभूमि रहती है।

तत्पश्चात स्वदेश राणा जी ने अपनी कहानी ‘निष्कलंकिनी’ की पृष्ठभूमि बताई। उन्होंने कथा गोष्ठी में अपनी कहानी के मुख्य पात्रों ‘अम्बुजम’, ‘फिलिप’ इत्यादि का परिचय दिया और कहानी के कुछ अंश पढ़े। सुषम जी ने कहा कि स्वदेश जी का ‘अंदाज़े बयान’ काबिले तारीफ़ होता है। अखिल सूद ने ‘निष्कलंकिनी’ कहानी के बारे में कहा कि वह इस कहानी से बहुत आनंदित हुए और जिस तरह से कहानी शुरू हुई, मुख्य पात्रों का परिचय इत्यादि जिस ढंग से बताया गया वह सब कुछ इतना समृद्ध लगा कि इस कहानी के कुछ अंश सुनना निसंदेह सम्मोहित कर देने वाला अनुभव था। सविता नायक ने कहा कि स्वदेश जी की कहानी की भाषा बहुत समृद्ध और विवरण शैली अद्भुत है। एक और प्रश्न के उत्तर में सुषम जी ने कहा कि लेखक ‘क्रिएट(सृजन) करता है। अतः लेखक अपने पात्रों को बनाता है पर वह पात्र स्वयं को खुद ही जीते हैं।’

कथा गोष्ठी के दूसरे भाग की शुरुआत में सर्वप्रथम विशाखा ठाकर ने अपनी कथांतर में प्रकाशित कहानी ‘गलीचा’ पढ़ी। सीमा खुराना ने अपनी कहानी ‘बूढ़ा शेर’ पढ़ी। सुषम बेदी ने अपनी कहानी ‘चेरी फूलों वाले दिन’ पढ़ी। विद्यार्थिओं ने तीनों कहानिओं पर एक साथ अपनी प्रतिक्रिया देते हुए ‘गलीचा’ कहानी को रोमांचक, ‘बूढ़ा शेर’ कहानी को ‘संबंधों पर केंद्रित’ तथा ‘चेरी फूलों वाले दिन’ को भावपूर्ण और नाना-नानी एवं दादा-दादी की याद दिला देने वाली कहानी बताया। अखिल सूद ने ‘गलीचा’ कहानी के बारे में कहा कि यह एक सुखद कथा थी जिसकी कि शुरुआत ने ही सुन्दर ढंग से पूरी कहानी को स्वर प्रदान किया और सुनने वालों को सचेत रखा और कहा कि सुषम जी और सीमा जी की कहानियां अच्छी और भावपूर्ण थीं और कथा गोष्ठी में सभी लेखकों को सुनना निश्चय ही अच्छा अनुभव रहा।
 
कथा गोष्ठी में कहानी के विभिन्न भागों, लेखन प्रक्रिया इत्यादि पर हो रही चर्चा को सुनकर स्मिता शुक्ला ने कहा कि ‘कभी सोचा नहीं था कि कहानी के किरदारों के लिए इतना सोचना पड़ता है!’ और डायस्पोरा से सम्बंधित कहानिओं को सुनकर उन्होंने यह भी कहा कि ‘डायस्पोरा हमारी कहानी का हिस्सा है और वह कथा गोष्ठी में ऐसी कहानिओं को सुनकर स्वयं को उनसे ‘रीलेट’ (जुड़ा हुआ महसूस) कर पायीं।’

डायस्पोरा की बात पर गीतांजलि चंदा ने विद्यार्थिओं से उनका मत जानने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रश्न किया कि उन्होंने कहानी सुनने के बाद किस बात से जाना कि कहानी डायस्पोरा से सम्बंधित थी या नहीं? कुछ और लोगों ने भी ‘डायस्पोरा से जुड़ी कहानी’ को अधिक स्पष्ट भाव से जानना चाहा। इस विषय पर चर्चा हुई और स्पष्ट किया गया कि ‘डायस्पोरा’ वह स्थिति है जिसमें जब किसी एक संस्कृति के लोग दूसरी संस्कृति के लोगों से मिलते हैं तो जिस तरह से उस स्थिति को देखते, समझते और निभाते हैं, उन्हीं को दर्शाती/बताती हुई बातों/कहानिओं को हम ‘डायस्पोरा से सम्बंधित’ कहते हैं।

सीमा खुराना ने विद्यार्थिओं से उनका मत जानने के लिए प्रश्न किया कि क्या (उनके द्वारा) कहानी को पसंद करने के लिए उस कहानी का डायस्पोरा से सम्बंधित होना ज़रूरी है? इस प्रश्न के उत्तर में सभी छात्रों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की जिसका संक्षेप में निष्कर्ष यह रहा कि उनको प्रवासी जीवन के बारे में पढ़ना अच्छा लगता है मगर उनके द्वारा कहानी को पसंद करने के लिए हर कहानी का प्रवासी जीवन से जुड़ा होना आवश्यक नहीं है। अतः उनको ऐसी कहानी पढ़ना अच्छा लगता है जो रोचक हो और उनकी उत्सुकता को बनाए रखे।

सुषम जी ने कथा गोष्ठी के विषय में कहा कि कहानी वर्कशॉप शुरू करने का मुख्य उद्देश्य यही था कि लिखने वाले आपस में मिल कर चर्चा कर सकें। उन्होंने कहा कि जब लिखने और सुनने वाले मिलते हैं तो कई बार कहानीकार जो कुछ भी लिख रहा था उससे हटकर कुछ और लिखने का प्रयास भी करने लगता है और कहा कि यह बात उन्होंने स्वयं पर भी लागू होती पाई और इसीलिए इस बार उन्होंने पहले जैसे विषयों पर कहानी लिखने से हटकर एक अलग विषय पर कहानी लिखने की कोशिश की।

हर बार की तरह इस बार भी कथा गोष्ठी बहुत सफल रही। विस्तृत विचार-विमर्श एवं विद्यार्थिओं की सह-भागिता ने इसको अद्वितीय बना दिया। ‘कनेटिकट’ दूर होने की वजह से हिंदी, पंजाबी और उर्दू के कई रचनाकार एवं न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के बहुत से साहित्य प्रेमी इस बार की कथा गोष्ठी में भाग नहीं ले सके और आशा करते हैं कि शीघ्र ही कथा गोष्ठी का आयोजन न्यू यॉर्क या किसी निकट स्थान पर भी होगा।

- सविता नायक

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