गुरुवार, 10 जनवरी 2013

सृजन द्वारा ‘डॉ हरि‍वंश राय बच्चन का रचना संसार ’ संगोष्ठी आयोजित

विशाखापटनम। ७ जनवरी २०१३ साहि‍त्य, संस्कृति‍ एवं रंगकर्म के प्रति‍ प्रति‍बद्ध स्थानीय संस्था ‘सृजन’ ने टोयो इंजीनीयरिंग कंपनी लिमिटेड के सौजन्य से द्वारकानगर पब्लिक लाइब्रेरी में ‘‘डॉ हरि‍वंश राय बच्चन का रचना संसार‘ पर संगोष्ठी का आयोजन कि‍या। स्वागत भाषण करते हुए डॉ. संतोष अलेक्स, संयुक्त सचि‍व, सृजन ने ‘सृजन’ की गति‍वि‍धि‍यों का वि‍वरण देते हुए इस संगोष्ठी. के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा - स्व. बच्चन जी की ग्यारहवीं पुण्य ति‍थि‍ के अवसर पर यह संगोष्ठीस आयोजि‍त की जा रही है, बच्चन जी के साहित्य पर उतना काम नहीं हुआ जितना होना चाहिए, अभी भी काफी काम किया जाना शेष है।
 
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध कवि, अनुवादक एवं सेवानिवृत्त वरिष्ठ हिन्दी आचार्य प्रो. पी आदेश्वर राव ने हिन्दी साहित्य के इतिहास में बच्चन की अमिट और अमर साहित्य की महत्ता को रेखांकित करते हुये उनके साथ अपनी एक मुलाक़ात का विवरण देते हुये उनकी लोकप्रियता से संबंधित बातें बतायीं। उन्होने कहा ‘’मधुशाला’’ जैसी अजर और अमर कृति‍ के सर्जक बच्चान ने अपनी काव्यतमयी प्रति‍भा का परि‍चय बखूबी दि‍या है साथ ही हि‍न्दीम साहि‍त्यक का अब तक की श्रेष्ठ आत्म्कथा लि‍खकर सि‍द्ध कर दि‍या हे कि‍ गद्य में भी उनका कोई सानी नहीं है। अपनी कवि‍ताओं में, गीतों में, लेखों में और अनुवादों में अपनी वि‍शि‍ष्ट ता का परि‍चय हरि‍वंश राय बच्चमन ने दि‍या है।

कार्यक्रम की अध्येक्षता कर रहे सृजन के अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने बच्चन के साहित्य संसार को अद्भुत और अमर धरोहर बताते हुये उनके अनुवादों के विषय में बताया की अंग्रेजी, अरबी और उर्दू से हिन्दी में किया गया अनुवाद मौलिकता का आभास देता है और ऐसे सहज लगते हैं जैसे हम शेक्सपियर और उमर खयाम की मूल रचनाएँ पढ़ रहे हैं। संगोष्ठी का संचालन कर रहे सृजन के सचिव डॉ. टी. महादेव राव ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि बच्चन अपनी सारी रचनाओं में चाहे वह गद्य हो या पद्य हो मानवीयता के प्रति असीम विश्वास रखते थे। उन्होने हालावाद का कभी समर्थन नहीं किया बल्कि वे मधुशाला को प्रतीक के रूप में लेकर मानव जीवन के संघर्ष, नैतिक मूल्य, समसमाज के कल्याण चाहने वाले मानवतावादी रचनाकार रहे। वादों से दूर हटकर उन्होंने साहित्य रचा जो की हर पाठक के हृदय को अब भी छूता है। ऐसे कवि, गद्यकार, अनुवादक जैसे बहुआयामी रचनाकार के प्रति हर हिन्दी प्रेमी नतमस्तक है।

संगोष्ठीज में राघवेंद्र प्रताप अस्थाना ( मधुशाला की रुबाइयाँ), श्रीमती सीमा वर्मा (बच्चन-कविता ने जिन्हें लिखा), श्रीमती सीमा शेखर (बच्चन के गीतों में प्रेमाभिव्यक्ति), रामप्रसाद यादव (बच्चन की रचना प्रक्रिया), डॉ. संतोष एलेक्स (छायावादोत्तर काल और बच्चन), नीरव वर्मा (बच्चन के साहित्य पर बचपन की नारियों का प्रभाव), कपिल कुमार शर्मा (बच्चन और प्रकृति का संबंध), जी अप्पाराव “राज” ( मधुशाला पर कविता), देवनाथ सिंह (बच्चन का रचना संसार), डॉ टी महादेव राव (बच्चन की दर्शनिकता का प्रतीक – मधुशाला) ने अपने अपने पत्र प्रस्तुत किए जिनमें डॉ हरिवंश राय बच्चन जी के साहित्य के विविध पहलुओं पर विश्लेषण थे। योगेंद्र सिंह यादव (मॉर्निंग वॉक), डॉ एम सूर्यकुमारी (माँ की तड़प), के विश्वनाथाचारी (खास और कुछ नहीं) ने भी अपनी बात संगोष्ठी में रखी।

इस कार्यक्रम में डॉ बी वेंकट राव, राजेश कुमार गुप्ता, बी एस मूर्ति, एन शेखर, सीएच ईश्वार राव सहि‍त अन्यव लोगों ने भी सक्रि‍य प्रति‍भागि‍ता की। प्रतिभागियों को स्मृतिचिह्न प्रो. पी. आदेश्वर राव ने वितरित किए। डॉ संतोष एलेक्स के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।


डॉ. टी. महादेव राव
सचिव – सृजन

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