रविवार, 30 अक्तूबर 2011

हिंदी-मराठी त्रैमासिक पत्रिका शब्दसृष्टि के `हिंदी-मराठी आदान-प्रदान विशेषांक' का प्रकाशन समारोह

हिंदी-मराठी द्विभाषिक त्रैमासिक पत्रिका शब्दसृष्टि के `हिंदी-मराठी आदान-प्रदान विशेषांक' का प्रकाशन समारोह हिंदी के वरिष्ठ समीक्षक व `शब्दसृष्टि' के परामर्शदाता श्रद्धेय डॉ. रामजी तिवारी जी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इस अवसर पर महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष तथा हिंदी के सुप्रसिद्ध कहानीकार व अनुवादक डॉ. दामोदर खडसे जी भी उपस्थित थे। यह समाहोह मुंबई मराठी ग्रंथसंग्रहालय, मुंबई के `प्रा. सुरेंद्र गावस्कर सभागृह' में संपन्न हुआ। समारोह में सिद्धार्थ पारधे लिखित मराठी आत्मकथा `कॉलनी' के हिंदी अनुवाद विमोचन भी किया गया।

समारोह की प्रारंभ में, `शब्दसृष्टि' के संस्थापक व पत्रिका के संपादक प्रा. मनोहर ने अपने स्वागत भाषण में, शब्दसृष्टि की साहित्य-कला व वैचारिक-भाषिक-सांस्कृतिक भूमिका को स्पष्ट करते हुए सिद्धार्थ पारधे की आत्मकथा `कॉलनी' तथा पत्रिका के `हिंदी-मराठी आदान-प्रदान विशेषांक' के बारे में अपने विचार रखे। उन्होंने `कॉलनी' इस आत्मकथा की दो प्रमुख विशेषताएँ बताईं पहली तो यह कि `कॉलनी' में लेखक की प्रामाणिकता और पारदर्शिता बहुत ही सहज रूप से व्यक्त हुई है, जिसका आज के साहित्य में अभाव दिखाई देता है और दूसरी यह कि यह आत्मकथा दलित और दलितेतर समाज में समन्वय का, समझदारी तथा सेतु का काम करती है। उन्होंने `शब्दसृष्टि' पत्रिका के आगामी विशेषांक `कविश्रेष्ठ कुसुमाग्रज व अज्ञेय विशेषांक', `कोंकणी भाषा, साहित्य व संस्कृति विशेषांक', `भारतीय संस्कृति व कला विशेषांक' और `गुजराती भाषा, साहित्य व संस्कृति विशेषांक' प्रकाशित होने की जानकारी भी दी। `कॉलनी' लिखने का कारण स्पष्ट करते हुए आत्मकथाकार श्री. सिद्धार्थ पारधे ने कहा कि वे अपने अनुभवों को विश्व से साझा करना चाहते थे। हिंदी `कॉलनी' की प्रस्तावनाकार तथा `शब्दसृष्टि' की संस्थापक व पत्रिका की संपादक डॉ. विजया ने `कॉलनी' व `हिंदी-मराठी आदान-प्रदान विशेषांक' पर बोलते हुए कहा कि यह कृति इतनी संवेदनशील है कि कई दिनों तक उससे बाहर निकला नहीं जा सकता।  पुस्तक पर अपना वक्तव्य देते हुए हिंदी के वरिष्ठ आलोचक व चिंतक डॉ. त्रिभुवन राय जी ने कहा कि उन्हें सिद्धार्थ का रचनाकार भीतर तक प्रभावित कर गया था। उनके अनुसार, `कॉलनी' संवेदना के धरातल पर पाठक को ले जाती है और सत्यम् शिवम् सुंदरम् का दर्शन कराती है। पुस्तक पर टिप्पणी करते हुए प्रमुख वक्ता हिंदी-मराठी के अभ्यासक व अनुवादक डॉ. गजानन चव्हाण जी ने कहा, `` मुझे मराठी व हिंदी `कॉलनी' को पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ, कृति से बहुत प्रभावित हुआ, पाँच दिन तक भीतर ही भीतर रोता रहा। अनुभूति नूतन है।'' मराठी साहित्य में १९६० के बाद `दलित साहित्य' का उदय हुआ और `दलित साहित्य' का मर्म है- संघर्ष, नकार व विद्रोह, पर `कॉलनी' इन सबसे अलग है। दलित साहित्य ने कुछ लोगों को जोड़ा और कुछ लोगों को दूर रखा, पर `कॉलनी' ने अपनी आस्था के बल पर समाज को जोड़ने का काम किया है। `कॉलनी' में नकार या विद्रोह नहीं है; यह दूसरे ही किस्म की रचना है।

प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ. दामोदर खडसे जी ने अपने वक्तव्य में `शब्दसृष्टि' के `हिंदी-मराठी आदान-प्रदान विशेषांक' को `महाविशेषांक' बताते हुए, प्रा. मनोहर व डॉ. विजया को उनके अथक परीश्रम के लिये बधाई दी। और कहा कि भाषाओं के बीच सेतु बनाने जैसा संदेश यह विशेषांक देना चाहता है, वह साफ-साफ नज़र आता है। `कॉलनी' के संदर्भ में उन्होंने कहा कि प्रादेशिक सीमाओं को तोड़ते हुए अनुवाद ही रचना को भारतीय स्तर पर ले जाता है। ऐसी रचनाएँ और आयें तथा पाठक को यश और संघर्ष का सुंदर चित्र देखने को मिले। समारोह के अध्यक्ष डॉ. रामजी तिवारी जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि रचना स्वयमेव बन जाती है, प्रसूत होती है। जो सही जीवन जीता है, वह मनोभावों को अभिव्यक्त कर सकता है। श्री. पारधे अपने सारे गुणों को सिद्ध करते हुए सिद्धार्थ नाम भविष्य में भी सार्थक करेंगे, ऐसी मनोकामना है। उन्होंने कहा कि साहित्य को भारतीय धरातल पर पहुँचना चाहिए, भारतीय संदर्भ होंगे तो दो भाषाओं में सेतु निर्माण होगा।

समारोह के प्रारंभ में `सरस्वती वंदना' का प्रस्तुतिकरण एवं अंत में आभार-ज्ञापन का महत्त्वपूर्ण कार्य समारोह की संयोजक डॉ. मुक्ता नायडू तथा संपूर्ण कार्यक्रम का सूत्र-संचालन व संयोजन डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय द्वारा कुशलतापूर्वक किया गया। `शब्दसृष्टि' के परामर्शदाता मा. प्रा. कमलाकर सोनटक्के व डॉ. सूर्यबाला तथा महाराष्ट्र राज्य के पूर्व भाषा संचालक डॉ. न. ब. पाटील, डॉ. राजम नटराजन पिल्ले, सुश्री भारती पारधे, श्री. रमेश पारधे, आदि मान्यवर एवं शोधछात्र-छात्राओं ने उपस्थित रहकर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई, जो सुधी पाठक पत्रिका का `हिंदी-मराठी आदान-प्रदान विशेषांक' तथा सिद्धार्थ पारधे लिखित मराठी आत्मकथा का हिंदी अनुवाद `कॉलनी' पुस्तक खरीदना चाहते हैं, वे प्रमुख वितरक `अरू पब्लिकेशन्स प्रा. लि.' से फोन न. ०२२-२८३४३०२२(मुंबई) व ०११-४३५५६६००(दिल्ली) तथा ई-मेल : shpl.mumbai@gmail.com पर और अधिक जानकारी के लिए फोन न. ९७७३०५८६८० (`शब्दसृष्टि कार्यालय) ९८२१५४५२८८(प्रा. मनोहर) एवं ९८२१९०२२७६(डॉ. विजया) तथा ईमेल shabdasrishti@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।

- प्रस्तुति : प्रा. मनोहर

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