
एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स की अध्यक्षा काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने ईद के कारण कार्यक्रम में शामिल न होने पर खेद प्रकट करते हुए श्रोताओं के लिये संदेश भेजा कि जो श्रोता आज ईद मना रहे हैं उनको गणेश चतुर्थी की बधाई और जो गणेश चतुर्थी मना रहे हैं उन्हें ईद की मुबारक़बाद। इस तरह ज़कीया जी ने कार्यक्रम की शुरूआत में ही एक सेक्युलर भावना से दर्शकों के दिलों को सराबोर कर दिया।
अपनी प्रस्तुति में तेजेन्द्र शर्मा ने साहिर की एक संपूर्ण रोमांटिक कवि की छवि से लेकर उनके क्रांतिकारी रूप तक की यात्रा को प्रस्तुत करते हुए अनेक फ़िल्मी गीत और ग़ज़लों को पर्दे पर दिखाया। तेजेन्द्र शर्मा ने आगे बताया कि साहिर ने फ़िल्मों में जो भी लिखा वो अन्य फ़िल्मी गीतकारों के लिये एक चुनौती बन कर खड़ा हो गया। उनका लिखा हर गीत जैसे मानक बन गये। उनकी कव्वाली न तो कारवां की तलाश है (बरसात की रात), हास्य गीत सर जो तेरा चकराए (प्यासा), देशप्रेम गीत ये देश है वीर जवानों का (नया दौर), सूफ़ी गीत लागा चुनरी में दाग़ छिपाऊं कैसे (दिल ही तो है) और शम्मी कपूर के तुमसा नहीं देखा के लिये लिखा गया गीत- यूं तो हमने लाख हसीं देखे हैं.. आदि गीतों की याद ताज़ा की। साहिर की भाषा पर टिप्पणी करते हुए तेजेन्द्र का कहना था कि किसी भी बड़े कवि या शायर की लिखी वही शायरी ज़िन्दा रही है जो आम आदमी तक प्रेषित हो पाई है। उन्होंने कहा कि साहिर, शैलेन्द्र और शकील अपने समय के फ़िल्मी गीतों की ऐसी त्रिमूर्ति थे जिन्होंने फ़िल्मी मुहावरे में उत्कृष्ठ साहित्य की रचना की।
कार्यक्रम की शुरूआत में नेहरू केन्द्र की निदेशक मोनिका मोहता ने अतिथियों का स्वागत किया। तेजेन्द्र शर्मा ने कथाकार महेन्द्र दवेसर, ग़ज़लकार प्राण शर्मा एवं जमशेदपुर की विजय शर्मा को धन्यवाद दिया जिन्होंने इस कार्यक्रम की तैयारी में कुछ सामग्री भेजी। कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त नसरीन मुन्नी कबीर, प्रो. अमीन मुग़ल, ग़ज़ल गायक सुरेन्द्र कुमार, शिक्षाविद अरुणा अजितसरी, दिव्या माथुर एवं उच्चायोग के श्री जितेन्द्र कुमार भी शामिल थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें