रविवार, 28 मार्च 2010

लंदन में रमा पाण्डेय की डी.वी.डी. का लोकार्पण

हाल ही में लंदन के नेहरू सेंटर में निर्माता, निर्देशिका व लेखिका रमा पाण्डेय की भारतीय मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी पर लिखे नाटक संकलन फ़ैसले एवं उन नाटकों पर बने डी.वी.डी. का लोकार्पण समारोह कथा यूके द्वारा आयोजित किया गया। इस अवसर पर बोलते हुए काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने कहा, “रमा पाण्डेय की नायिकाएं दबी कुचली नारियां नहीं हैं। वे सब अपने अपने परिवेश में विद्रोह का बिगुल बजाने की क्षमता रखती हैं। ज़कीया ज़ुबैरी ने आगे कहा, “रमा पाण्डेय केवल ग़रीब तबक़े की महिलाओं के बारे में बात नहीं करती हैं। वे पूरी शिद्दत से महसूस करती हैं कि मुसलमानों के पढ़े लिखे वर्ग में भी औरत की हैसियत दोयम दर्जे की ही है। एक तरफ़ सुलताना, हाजरा और शाइस्ता ग़रीब और पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं तो वहीं सियासत, रेड और परवीन की नायिकाएं मुस्लिम समाज के पढ़े लिखे तबक़े से आती हैं।... रमा पाण्डेय का हर नाटक समाज को सच्चा आइना दिखाता है।”

कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रतिष्ठठित पत्रकार, साहित्यकार एवं कथा यू.के. की उपध्यक्षा डा. अचला शर्मा ने रमा पाण्डेय के नाटकों एवं टेलिफ़िल्म पर सारगर्भित टिप्पणी करते हुए कहा, “हीरो बनने के लिए कोई बहुत बड़ा काम करने की ज़रूरत नहीं होती. छोटे छोटे क़दम, छोटी छोटी कोशिशें, छोटे छोटे फ़ैसले भी एक आम व्यक्ति को, अपनी नज़र में और कुछ लोगों की नज़र में हीरो बना सकते हैं. ऐसी ही कुछ हीरोइनें रमा पांडे की किताब फ़ैसले और उस पर आधारित फिल्म श्रृंखला की नायिकाएँ हैं. फ़ैसलों तक पहुँचने का सफ़र एक परंपरावादी परिवार में जन्मी, पली-बढ़ी किसी भी लड़की के लिए आसान नहीं होता. इसके लिए बड़ी हिम्मत जुटानी पड़ती है, कुछ बग़ावत भी करनी पड़ती है. और फिर लड़की अगर ग़रीब, अपढ़, मुस्लिम परिवार की हो तो उसे दुगुनी-चौगुनी हिम्मत की ज़रूरत होती है. रमा पांडेय ने ऐसी ही कुछ आम मुस्लिम लड़कियों के साहसी फ़ैसलों को किताब और फ़िल्म की शक्ल दी है. और इस नाते वे ख़ुद किसी हीरोईन से कम नहीं हैं.”
कथा यू.के. के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा ने रमा पाण्डेय की फ़िल्म सुल्ताना पर टिप्पणी करते हुए कहा, “रमा जी की फ़िल्म मुस्लिम औरत की दो स्थितियों का चित्रण करती है। पहली स्थिति जिसके विरुद्ध वे टिप्पणी करना चाहती हैं और दूसरी स्थिति जिसमें वे अपनी नायिका को देखना चाहती हैं। उनके सभी नाटक सकारात्मक अंत लिये हैं।” पश्तो की लेखिका सोफ़िया हलीमी का कहना था कि इस किताब के पृष्ठों का अनुवाद जरूरी है, ताकि यह बात उन सभी लोगों तक पहुंचे जिनके बारे में यह सीरियल बना है.

प्रश्न काल के दौरान रमा पाण्डेय ने दर्शकों को बताया कि उनके सभी नाटकों की नायिकाएं हाड़-मांस की जीती जागती नारियां हैं। अपने नाटकों में मुस्लिम चरित्रों के बारे में उन्होंने बताया कि वे चाहती थीं कि दुनियां को दिखा सकें कि मुस्लिम औरतें भी विद्रोह करना जानती हैं। अपने 26 एपिसोड के सीरियल के बारे में उन्होंने आर्थिक समस्याओं का भी ज़िक्र किया। अपनी रंगरेज़ नायिका सुल्ताना द्वारा बनाए हुए दुपट्टे एवं अन्य सामग्री दर्शकों के ख़रीदने के लिये उपलब्ध करवाई गईँ थीं। पूरे सभागार को जयपुर के रंगरेजों द्वारा बनाये गए रंगीन दुपट्टों से सजाया गया था।

कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त जाने-माने अग्रेज़ी उपन्यासकार लारेंस नारफ़ॉक, कैलाश बुधवार, यावर अब्बास, प्रो. मुग़ल अमीन, मधुप मोहता, रज़ा अली आबिदी, ममता गुप्ता, विजय राणा, ललित मोहन जोशी, मीरा कौशिक, के.सी. मोहन, विभाकर बख़्शी, हिना बख़्शी, दिव्या माथुर, सोहन राही, महेन्द्र दवेसर, रमेश पटेल, मंजी पटेल, क्लासिकल गायक सुरेन्द्र कुमार (सभी लंदन से), डा. कृष्ण कुमार, चित्रा कुमार, शैल अग्रवाल, डा. नरेन्द्र अग्रवाल, स्वर्ण तलवाड़, अनुराधा शर्मा (सभी बरमिंघम से), नीना पॉल (लेस्टर), जय वर्मा, डा. महिपाल वर्मा (नॉटिंघम), महेन्द्र वर्मा, उषा वर्मा (यॉर्क), एवं शमील चौहान (मेडनहेड) शामिल थे।

बाएं से तेजेन्द्र शर्मा, रमा पाण्डेय, काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी, मोनिका मोहता, यावर अब्बास, कैलाश बुधवार, अचला शर्मा)

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