रविवार, 21 फ़रवरी 2010

महासमर (नौ खंड) रजत संस्करण तथा वाणी प्रकाशन का बेस्ट सेलर पुरस्कार की घोषणा

चित्र में बाएँ से दाएँ- प्रभाकर श्रोत्रिय, श्रीमती मधुरिमा कोहली, श्री नरेन्द्र कोहली, श्रीमती मीरा सीकरी, श्री देवेन्द्र राज अंकुर व वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अरुण कोहली
नई दिल्ली। श्री नरेंद्र कोहली द्वारा लिखे गए उपन्यास आठ खंडों के महासमर के आज पुस्तक मेले में रजत संस्करण का लोकार्पण किया गया। इस कार्यक्रम में श्री प्रभाकर श्रोत्रिय, श्री देवेंद्र राज अंकुर, श्री अरुण माहेश्वरी व श्री नरेंद्र कोहली ने भाग लिया।

'महासमर' महाभारत कथा पर आधारित रजत संस्करण अब नौ खंडों में नई साज सज्जा के साथ प्रकाशित किया गया है। यह ऐसी कथा है जिसे पाठकों ने लगातार पिछले २५ वर्षों से सराहा और पढ़ा है। आज भी इसकी लोकप्रियता इस तरह से ही बरकरार है जैसे की २५ वर्ष पहले इस के शुरुआती प्रकाशन वर्ष में थी। इस संदर्भ में अपना वक्तव्य देते हुए श्री प्रभाकर श्रोत्रिय ने पुस्तक के भीतर के सौंदर्य को सराहते हुए कहा कि प्रकाशन वर्षों की कल्पना करने से बेहतर है कि हम कथा की सौंदर्यता को देखें और जो कथा सफल हो और लोकप्रिय हो कथा का वही अंति सौंदर्य है और वही रजत संस्करण कहलाने की योग्यता रखता है।

श्री देवेंद्र राज अंकुर ने पुस्तक की प्रशंसा में कहा कि महाभारत और राम कथाएँ तो हमारे भारतीय जनमानस में और हमारे रक्त में रची बसी है परंतु यह रामकथा और महाभारत कथा आधुनिक रूप, जो नरेंद्र कोहली ने हमें दिया है, वह आधुनिक समय, समाज और सभ्यता को जानने और समझने के लिए पूरा स्पेस देता है। उन्होंने भी महासमर के आरंभिक दिनों से इसे पढ़ा है। उनका मानना है कि भाषाओं की आधुनिकता उसके विकास और संप्रेषण में छिपी है जबकि पौराणिक कथाओं को समाज में उपस्थित रखने के लिए उनके संदर्भ हमारे समय के साथ बने रहने चाहिए।

नरेंद्र कोहली ने अपने गुरु डॉ. नगेंद्र को याद करते हुए कहा कि उनका एक स्वप्न था कि हिंदी पुस्तकों का विषय विश्व स्तर का हो परंतु उसकी प्रस्तुति और लेखक प्रकाशक का संबंध श्रेष्ठ होना चाहिए। महासमर को वाणी प्रकाशन ने उनके स्वप्न के अनुरूप प्रकाशित कर आज यह साबित किया है कि भारतीय पुस्तकें अब आपके घर अथवा पुस्तकालय की शोभा उसी तरह बढ़ा सकती है जिस तरह से आपके ही बाग के सुंदर खिले हुए फूल। आज तक हम हिंदी लेखक प्रशंसा करने में और तुलना करने में चुप्पी साधकर ही अपने आप को बचाते हैं। परंतु अपने आप को साबित करने के लिए भारतीय तथा विश्व साहित्य में चुप्पी साधने से काम नहीं चलेगा। यह पुस्तक सुंदर प्रकाशित हुई है। महंगी ज़रूर है परंतु हम संकोच छोडें और समकालीन समय से हाथ मिलाए। भारतीय भाषाओं और हिंदी साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए सुंदर की चर्चा करनी चाहिए। साथ ही उन्होंने लेखक-प्रकाशक और रॉयल्टी जैसे मुद्दों पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि महासमर पर उन्हें सर्वाधिक रॉयल्टी आज भी प्राप्त होती है। हालाँकि हिसाब कितना सही है वह नहीं जानते फिर भी जो उन्हें प्राप्त होता है वह ठीक है और वे प्रसन्न है। इस पर श्री देवेंद्र राज अंकुर की टिप्पणी थी कि वे भी अपने प्रकाशकों से खुश हैं। इस पर प्रकाशक अरुण माहेश्वरी की टिप्पणी थी कि अब हमें लेखक-प्रकाशक के संबंध मज़बूत डोर से बँधे होते हैं। बीच-बीच में जो हल्की-फुल्की टिप्पणी सुनने में आती है परंतु विवाद कहाँ नहीं होते। सौहार्द्रपूर्ण वातावरण ही लेखक-प्रकाशक और पाठक का स्वास्तिक है।

श्री माहेश्वरी ने वाणी प्रकाशन में प्रकाशित बेस्ट सेलर पुस्तकों को प्रत्येक वर्ष सम्मानित करने की घोषणा की। और कहा कि क्लासिक और बेस्ट सेलर के बीच में दूरियाँ यह उपन्यास खत्म करता है। यह उपन्यास क्लासिक भी है और बेस्ट सेलर भी। क्योंकि बहुत से बेस्ट सेलर चंद दिनों के बाद लुप्त हो जाते हैं लेकिन क्लासिक पीढ़ी दर पीढ़ी पाठकों के ह्रदय में जगह बनाए रहता है।

प्रसार व्यवस्थापक
वाणी प्रकाशन

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