रविवार, 27 सितंबर 2009

दिविक रमेश पुरस्कृत


भारतीय अनुवाद परिषद द्वारा ७ सितम्बर, २००९ को सुविख्यात वरिष्ठ कवि, बाल साहित्यकार एवं विशेष रूप से कोरियाई ऒर अफ़्रीकी साहित्य के अनुवादक दिविक रमेश को राष्ट्रिय ’द्विवागीश' पुरस्कार प्रदान किया गया। (दाहिनी ओर के चित्र में) इसके साथ ही उन्हें श्रीमती रतन शर्मा स्मृति बाल-साहित्य पुरस्कार (२००९) के लिए भी चुना गया है। यह पुरस्कार उन्हें ’१०१ बाल कविताएं’ के लिए दिया जाएगा। इस राष्ट्रीय पुरस्कार में ३१०००/- रु., प्रशस्ति-पत्र एवं प्रतीक चिह्न प्रदान किया जाता है। समारोह के लिए ६ अक्टूबर, २००९ का दिन निश्चित किया गया है। सायं ५.०० बजे त्रिवेणी कला संगम, मंडी हाऊस, नई दिल्ली में यह समारोह आयोजित किया जाएगा। यह पुरस्कार हर वर्ष डा० रत्न लाल शर्मा स्मृति न्यास के द्वारा बाल साहित्य की किसी श्रेष्ठ पुस्तक के लिए दिया जाता है।

हाल ही में उनके कविता संग्रह गेहूँ घर आया का विमोचन भी हुआ है। किताबघर प्रकाशन से सद्य प्रकाशित इस कृति का लोकार्पण प्रोफेसर नामवर सिंह, प्रोफेसर केदारनाथ सिंह और प्रोफेसर निर्मला जैन ने समवेत रूप से किया। इस अवसर पर डॉ. केदारनाथ सिंह ने कहा कि दिविक रमेश ऐसा कवि है जिसका एक पृथक चेहरा है। यह चेहरा-विहीन कवि नहीं है बल्कि भीड़ में भी पहचाना जाने वाला कवि है। यह संकलन परिपक्व कवि का परिपक्व संकलन है और इसमें कम से कम १५-२० ऐसी कविताएँ हैं जिनसे हिंदी कविता समृद्ध होती है। इनकी कविताओं का हरियाणवी रंग एकदम अपना और विशिष्ट है। शमशेर और त्रिलोचन पर लिखी कविताएँ विलक्षण हैं। उन्होंने अपनी बहुत ही प्रिय कविताओं 'पंख' और 'पुण्य के काम आए' का पाठ भी किया। कविताओं की भाषा को महत्वपूर्ण मानते हुए उन्होंने कहा कि दिविक ने कितने ही ऐसे शब्द हिंदी को दिए हैं जो हिंदी में पहली बार प्रयोग हुए हैं। प्रो. निर्मला जैन को यह संग्रह विविधता से भरपूर लगा और स्थानीयता के सहज पुट के कारण विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण भी। दिविक रमेश के पास एक सार्थक और सकारात्मक दृष्टि है साथ ही वे सहज मानुष से जुड़े हैं। सभी कविताएँ एक प्रौढ़ कवि की सक्षम कविताएँ हैं।


प्रोफेसर गोपेश्वर ने इन कविताओं को बहुत ही प्रभावशाली मानते हुए कहा कि ये कविताएँ खुलती हुई और संबोधित करती हुई हैं। अकेलेपन या एकान्त की नहीं हैं। विशेष रूप से उन्होंने 'गप ठोकना' जैसे शब्दों की ओर ध्यान दिलाते हुए दिविक रमेश की काव्य-भाषा को हिंदी काव्य-भाषा को समृद्ध करने वाली माना। उन्होंने अपनी अत्यंत प्रिय कविताओं में से एक 'पंख से लिखा खत' का पाठ भी किया। प्रताप सहगल के अनुसार दिविक रमेश कभी पिछलग्गू कवि नहीं रहा और उनके काव्य ने निरंतर विकास किया है। प्रणव कुमार बंद्योपाध्याय के अनुसार इन कविताओं में समय के संक्रमण का विस्तार मिलता है। संग्रह को उन्होंने हिन्दी कविता की उपलब्धि माना। प्रोफ़ेसर नामवर सिंह ने कहा कि वे किसी बात को दोहराना नहीं चाहते और उन्हें कवि केदरानाथ सिंह के विचार सर्वाधिक महत्वपूर्ण लगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे केदरनाथ सिंह के मत पर हस्ताक्षर करते हैं। संग्रह की 'तीसरा हाथ' कविता का पाठ करने के बाद उन्होंने कहा कि दिविक की ऐसी कविताएँ उसकी और हिन्दी कविता की ताक़त है और यही दिविक रमेश है। मैं इन्हें बधाई देता हूँ। सभा के प्रारंभ में संग्रह पर दिनेश मिश्र ने अपना आलेख पढ़ा। उन्होंने कहा कि ये कविताएँ जगाती हैं। गोष्ठी का संचालन प्रेम जनमेजय ने किया और यह आयोजन भारतीय सांस्कृति संबंध परिषद और व्यंग्यात्रा के संयुक्त तत्वावधान में आज़ाद भवन के हॉल में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर अनेक सुप्रसिद्ध साहित्यकार और गणमान्य पाठक उपस्थित थे। प्रारंभ में भारतीय सांस्कृति संबंध परिषद के श्री अजय गुप्ता ने सबका स्वागत किया।

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