
भावों के आदान प्रदान के पश्चात् काव्य गोष्टी प्रारंभ हुई पहली रचना का पाठ किया डा. दाऊजी गुप्त ने, जो लखनऊ से पधारे थे। यू. के. से डा. कृष्ण कुमार जी ने अपनी रचना का पाठ के बाद अपने साथी साहित्यकार और कविगणों को आवाज़ दी जिनमें वहाँ उपस्थित थे डॉ.कृष्ण कन्हैया, श्रीमती जय वर्मा, श्री नरेन्द्र ग्रोवर और श्रीमती स्वर्ण तलवाड़। उनके पश्चात अनूप और रजनी भार्गव ने अपनी नन्हीं नन्हीं कविताओं की कोपलों से ज़िन्दगी के अंकुरित नए रंग माहौल में भर दिए। टोरंटो से श्री गोपाल बघेल जी ने सस्वर अपनी रचना का पाठ किया। फिर मंच को थामा न्यू यार्क तथा न्यू जर्सी के कवियों ने जिसमें जिनमें शामिल रहे श्री अशोक व्यास, श्री ललित अल्लुवालिया, मंजू राइ, बिन्देश्वरी अग्रवाल, अंजना संधीर, पूर्णिमा देसाई, गौतमजी, पुष्पा मल्होत्रा, नीना वाही, अनुराधा चंदर, डा. अनिल प्रभा, गिरीश वैद्य, देवी नागरानी, लखनऊ से आई श्रीमती शशि तिवारी और उनकी सुपुत्री शिवरंजनी। श्रोताओं में रहे श्री कथूरिया जी, परवीन शाहीन, रेनू नंदा और अनेकों साहित्यप्रेमी। यहाँ मैं डॉ. सरिता मेहता का ज़िक्र ज़रूर करना चाहूंगी, जो खुद विध्याधाम संस्था की निर्देशिका है और अच्छी कवयित्री भी। इस काव्य सुधा की शाम में उनका पूरी तरह से सहकार रहा। समाप्ति की ओर कदम बढाते हुए पूर्णिमा जी ने अंजना जी का सन्मान " साहित्य मणि' की उपाधि से श्री दाऊजी गुप्त के हाथों से करवाया, और सभी कविजनों का धन्यवाद किया। कार्यक्रम की समाप्ति भोजन के साथ हुई। -- देवी नागरानी
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