फोटो में बाएँ से- हरि भटनागर, कृष्णा सोबती, डा. नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, तेजेन्द्र शर्मा
“तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों से गुज़रते हुए हम यह शिद्दत से महसूस करते हैं कि लेखक अपने वजूद का टेक्स्ट होता है। तेजेन्द्र के पात्र ज़िन्दगी की मुश्किलों से गुज़रते हैं और अपने लिये नया रास्ता तलाशते हैं। वह नया रास्ता जहां उम्मीद है। तेजेन्द्र की कहानियों के ज़रिये हिन्दी के मुख्यधारा के साहित्य को प्रवासी साहित्य से साझेपन का रिश्ता विकसित करना चाहिये। हम उनकी जटिलताएं, उनके नज़िरये और उनके माहौल के हिसाब से समझें।” ये बातें मूर्धन्य उपन्यासकार एवं कथाकार कृष्णा सोबती ने आज चर्चित कथाकार तेजेन्द्र शर्मा के लेखन और जीवन पर केन्द्रित पुस्तक ‘तेजेन्द्र शर्माः वक़्त के आइने में’ के राजेन्द्र भवन सभागार में आयोजित लोकार्पण समारोह में कहीं।
इस अवसर पर प्रख्यात आलोचक प्रो. नामवर सिंह ने कहा कि “मुर्दाफ़रोश लोग हर जमात में होते हैं। और पूँजीवाद में तो ऐसे शख़्सों की इंतेहा है। वे मज़हब बेच सकते हैं, रस्मो-रिवाज़ बेच सकते हैं। तेजेन्द्र शर्मा ने अपनी लाजवाब कहानी ‘क़ब्र का मुनाफ़ा’ में वैश्विक परिदृश्य में पूंजीवाद की इस प्रवृत्ति को यादगार कलात्मक अभिव्यक्ति दी है।” उन्होंने इस आयोजन के आत्मीय रुझान की चर्चा भी की। इससे पूर्व नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव और कृष्णा सोबती ने इस पुस्तक का लोकार्पण किया। राजेन्द्र यादव ने तेजेन्द्र शर्मा की कथावाचन शैली की सराहना करते हुए कहा कि तेजेन्द्र को आर्ट ऑफ़ नैरेशन की गहरी समझ है। हरि भटनागर ने पुस्तक में लिखी अपनी भूमिका का पाठ करते हुए बताया कि तेजेन्द्र की कहानियां दो संस्कृतियों के संगम की कहानियां हैं। वरिष्ठ कथाकार नूर ज़हीर ने पुस्तक में शामिल अमरीका की सुधा ओम ढींगरा का एक ख़त पढ़ते हुए कहा कि तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों का असर एक प्रबुद्ध पाठक पर कैसा हो सकता है, इस ख़त से साफ़ पता चलता है। इससे पूर्व बीज वक्तव्य देते हुए अजय नावरिया ने कहा कि यह पुस्तक अभिनंदन ग्रन्थ नहीं है क्योंकि यहाँ अन्धी प्रशंसा की जगह तार्किकता है। मोहाविष्ट स्थिति की जगह मूल्यांकन है। अजय ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों के बहाने हिन्दी कथा साहित्य पर चर्चा करते हुए कहा कि इन कहानियों के मूल्यांकन के लिये हमे नई आलोचना प्रविधि की दरकार है।”
कार्यक्रम का संचालन अजित राय ने किया। समारोह में राजेन्द्र प्रसाद अकादमी के निदेशक बिमल प्रसाद, मैथिली भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष अनिल मिश्र, असग़र वजाहत, कन्हैया लाल नन्दन, गंगा प्रसाद विमल, लीलाधर मण्डलोई, प्रेम जनमेजय, प्रताप सहगल, मुंबई से सूरज प्रकाश, सुधीर मिश्रा, राकेश तिवारी, रूप सिंह चन्देल, सुभाष नीरव, अविनाश वाचस्पति, अजन्ता शर्मा, अनिल जोशी, अल्का सिन्हा, मरिया नगेशी (हंगरी), चंचल जैन (यू.के.), रंगकर्मी अनूप लाथर (कुरुक्षेत्र), शंभु गुप्त (अलवर), विजय शर्मा (जमशेदपुर), तेजेन्द्र शर्मा के परिवार के सदस्यों सहित भारी संख्या में साहित्य-रसिक श्रोता मौजूद थे।
6 टिप्पणियां:
Asha hai aap isi tarah sahityik gativishiyon se rubaroo hone ka mauka pradan karti raheingi.
Navnit Nirav
जानकारी बाँटने के लिए आभार। सुखद साहित्यिक माहौल रहा होगा।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
appriciable job. let it be continued.
अच्छा प्रयास
मेरे ब्लोग पर स्वागत है
सुन्दर रचना
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