रविवार, 25 जनवरी 2009

राष्ट्रकवि दिनकर की जन्म शताब्दी पर कानपुर में संगोष्ठी का आयोजन


राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' के जन्म शताब्दी वर्ष पर मेधाश्रम संस्था के तत्वाधान में ''राष्ट्रकवि दिनकर की रचनाधर्मिता के विविध आयाम'' पर २६ दिसम्बर २००८ को कानपुर में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम को बतौर मुख्य वक्ता सम्बोधित करते हुए उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. बद्री नारायण तिवारी ने कहा कि दिनकर जी की कविताएँ सुनने और पढ़ने- दोनों स्तरों पर प्रभावित करती हैं। वे स्वतंत्रता पूर्व विद्रोही कवि तो स्वतंत्रता पश्चात राष्ट्रकवि रूप में प्रतिष्ठित हुए। दिनकर जी की कविताओं में राष्ट्रवादी, क्रान्तिकारी, माक्र्सवादी, प्रगतिवादी और रोमांटिक सभी भावनाओं की अनुपम अभिव्यक्ति है। जहाँ ‘रेणुका‘ में साम्यवादी स्वर है, वहीं 'कुरुक्षेत्र' में उन्होंने चरित्र को ऊपर रखा। 'रश्मिरथी' में मार्क्सवादी प्रभाव से निकलकर दिनकर गांधीवादी मूल्यों के हिमायती बने तो 'नीलकुसुम' में रोमांटिक कल्पना के दर्शन हुए।

बतौर मुख्य अतिथि संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए भारतीय डाक सेवा के अधिकारी एवं साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि दिनकर जी हिन्दी के उत्तर छायावादी कवियों में पहले ऐसे कवि हैं जिनकी काव्यभाषा में सहजता व संप्रेषणीयता होने के कारण वे लोगों की जुबान पर खूब चढ़ीं। दिनकर जी की कविताओं में अगर राष्ट्र का स्वाभिमान था तो गरीब जनता का हाहाकार भी शामिल था। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दिनकर जी की कविताओं के सम्बन्ध में श्री यादव ने कहा कि दिनकर जी की कविताएँ आज भी नव-औपनिवेशिक शक्तियों के विरोध में वैचारिक प्रतिरोध की व्यापक भावभूमि तैयार करती हैं। युवा कवयित्री एवं लेखिका श्रीमती आकांक्षा यादव ने संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए कहा कि दिनकर जी का गद्य और पद्य पर समान रूप से अधिकार था। यही कारण है कि उनकी गद्य रचना 'संस्कृति के चार अध्याय' पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ तो उनकी चर्चित पद्य कृति 'उर्वशी' हेतु भारतीय साहित्य का सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। डॉ. जे. एस. चैहार ने राष्ट्रकवि दिनकर जी की रचनाओं में सहजता को व्याख्यायित करते हुए उन्हें क्रान्ति का उद्घोषक कवि कहा, जो बाद में गांधीवाद के दर्शन से प्रभावित हुए। मेधाश्रम संस्था के सचिव श्री अनुराग ने संगोष्ठी का समापन करते हुए कहा कि दिनकर जी को हिन्दी के तथाकथित आधुनिक आलोचकों की मार भी झेलनी पड़ी, पर पाठकों और हिन्दी के शुभेच्छुओं के बीच उन्हें बेहद सम्मान और गौरव प्राप्त है। इसी कारण उन्हें इतिहास बदलने वाला कवि भी कहा जाता है। इस अवसर पर अपनी क्रान्तिकारी कविताओं से लोकप्रियता हासिल करने वाले राष्ट्रकवि दिनकर के तैल चित्र का संसद के केन्द्रीय कक्ष में अनावरण होने पर प्रसन्नता जाहिर की गई।

कार्यक्रम का आरंभ मुख्य अतिथि श्री कृष्ण कुमार यादव व मुख्य वक्ता डॉ. बद्री नारायण तिवारी द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ। संगोष्ठी का संचालन मेधाश्रम के सचिव श्री अनुराग ने और धन्यवाद ज्ञापन श्री विजय नारायण तिवारी 'मुकुल' ने किया। इस अवसर पर सत्यकाम पहारिया, डॉ. विवेक सिंह, अंजू जैन, एम. एस. यादव, डॉ. विद्याभास्कर बाजपेयी सहित तमाम साहित्यकार, पत्रकार व बुद्धिजीवी उपस्थित थे।

(विवरण- अनुराग)
सचिव- ‘‘मेधाश्रम‘‘ संस्था
१३/१५२ डी (५) परमट, कानपुर (उ.प्र.)

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