कोलकाता के भारतीय भाषा परिषद की ओर से २८ दिसम्बर को आयोजित रचना गोष्ठी में दो सशक्त युवा कथाकारों अभिज्ञात और शर्मिला बोहरा जालान ने अपने कहानी पाठ से खचाखच भरे सभाकक्ष में उपस्थित प्रबुद्ध श्रोताओं को खासा उद्वेलित किया और पढ़ी गई कहानियों पर जम कर तर्क वितर्क हुआ। यह कार्यक्रम शनिवार की देर शाम सम्पन्न हुआ। अभिज्ञात ने अपनी नयी कहानी 'क्रेजी फैंटेंसी की दुनिया' का पाठ किया, जो कछुए पर अनुसंधान करने वैज्ञानिक के जीवन पर आधारित है, जो बेटी को कहानियाँ सुनाते-सुनाते एक विख्यात लेखक जाता है। कोहराम तब मचता है जब उसकी रचना का प्रमुख पात्र क्रैजी फैंटेसी कहानियों से बाहर निकल आता है और सौ से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। यह कहानी देश में दिनोंदिन शक्तिशाली होते जाते तंत्र की कारगुज़ारियों का तो पर्दाफाश करती ही है वह विकसित देश की अविकसित देशों के साथ की गई कूटनीतिक चतुराइयों पर भी तीखी टिप्पणियाँ करती है।
शर्मिला बोहरा जालान ने आज की मॉल संस्कृति से जुड़ी दो कहानियों 'कॉर्नसूप' और 'मॉलमून' का पाठ किया। घटनाक्रम अलग-अलग होते हुए भी दोनों कहानियाँ उस समाज पर तीखा कटाक्ष करती हैं जिसमें मॉल लोकप्रिय हो रहा है। खरीदने के लिए खरीदना, दिखावे के लिए खरीदना, कर्ज़ लेकर भी खरीदना, कहीं घूमने फिरने के बदले माल में जाने का बढ़ते चलन पर यह कहानियों चिन्ता वक्त करने में सक्षम हैं।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे भारतीय भाषा परिषद के निदेशक और प्रख्यात आलोचक डॉ.विजय बहादुर सिंह ने कहा कि इस कक्ष में पढ़ी गई कहानियों की अनुगूंज पूरे देश में सुनाई देगी। इस तरह की गोष्ठियों में विवाद होते हैं लेकिन उससे परिष्कार भी होता है। सभा में उपस्थित प्रबुद्ध जनों की प्रतिक्रिया पर अपना पक्ष रखने का विरोध किए जाने पर डॉ.सिंह ने कहा कि प्रतिक्रिया में लेखक से यह माँग नहीं की जानी चाहिए कि वह क्या दे। लेखक ने क्या दिया है वह ही प्रतिक्रिया के केन्द्र में रहे तो बेहतर होगा। प्रेमचंद और अज्ञेय ने भी अपनी रचनाओं पर अपना पक्ष रखा था। कार्यक्रम की अध्यक्षता सातवें दशक के चर्तित कथाकार आलोक शर्मा ने किया।
कहानियों पर डॉ.सत्या उपाध्याय, रमेश मोहन झा, राज्यवर्द्धन, शेराजखान बातिश, आशुतोष, अश्विनी झा, शुभ्रा उपाध्याय, रावेल पुष्प, जितेन्द्र जीतांशु ने अपनी प्रतिक्रियाएँ दीं। अभिज्ञात की कहानी के बारे में कहा गया कि उनकी कहानी उदय प्रकाश और हैरी पाटर के कथानक और फैंटेसी की याद दिलाते हैं। कहानी की संचरना जटिल है और स्वरूप ग्लोबल। शर्मिला बोहरा जालान की कहानी पर लोगों का मंतव्य था कि यह एक नयी संस्कृति के खोखलेपन को उजागर करने में सफल हैं। उत्तर आधुनिक का स्मृतिलोप और इतिहास से कटने की चिन्ता इनमें है। कहानियों पर आपत्तियों भी दर्ज़ करायी गईं जिनका लेखकों ने जम कर जवाब दिया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें