सोमवार, 26 जुलाई 2010

ऐल्ते विश्वविद्यालय में भारतीय सांस्कृतिक व्याख्यानमाला का समापन समारोह

बुदापैश्त,१० जून २०१० को बुदापैश्त स्थित भारतीय राजदूतावास के प्रांगण में दूतावास द्वारा आयोजित सांध्यकालीन कक्षाओं व भारतीय सांस्कृतिक व्याख्यानमाला के इस अकादमिक सत्र के समापन समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर महामहिम गौरीशंकर गुप्ता ने छात्रों को प्रमाणपत्र प्रदान किए। हिंदी कक्षाओं का आयोजन ओत्वोश लोरांद विश्विद्यालय में भारोपीय विद्या अध्ययन विभाग की अध्यक्षा डॉ. मारिया नेज्यैशी के सहयोग से आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर महामहिम गौरीशंकर गुप्ता ने उपस्थित हंगारी व भारतीय जन समूह को संबोधित करते हुए भारत हंगारी संबंधों की चोमा द कोरोश से प्रारंभ लंबी परंपरा की चर्चा करते हुए विभागाध्यक्ष मारिया नेज्यैशी और डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा के कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की।


महामहिम ने हंगरी लोगों में बढ़ते हिंदी और भारतीय संस्कृति प्रेम की चर्चा करने के बाद हंगरी में व्यापक होते हिंदी के दायरे को सराहा और हंगरी में हिंदी के विस्तार के लिए हर संभव सहायता देने का आश्वासन दिया। उन्होंने घोषणा की कि अगले सत्र से दूतावास संचालित कक्षाओं का आयोजन नव निर्मित सांस्कृतिक केंद्र में किया जाएगा। इसके बाद छात्रों ने पुष्प गुच्छों से महामहिम जी, दूतावास के कार्यक्रम से संबद्ध कर्मचारियों आदि का स्वागत किया। विभाग के अतिथि प्राचार्य ने भित्ति-पत्रिका प्रयास के छठे अंक की प्रतिलिपि महामहिम जी को भेंट की।

इस कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण था हंगरी के प्रसिद्ध उपन्यासकार फैरैन्त्स मोलनार के लोकप्रिय हंगेरियन किशोर उपन्यास ‘पॉल स्ट्रीट फिऊक’ के एक अंश ‘पुटी क्लब’ का हिंदी में मंचन। इसका अनुवाद एवं नाट्य-रूपांतरण अतिथि प्राचार्य ने किया था। नाटक के पात्रों वैईस, कोल्नई, प्रो. रात्स द्वारा हिंदी में बोले गए संवादों ने दर्शकों के साथ-साथ महामहिम जी का भी मन मोह लिया।

कार्यक्रम का संचालन मारिया नेज्यैशी ने हंगेरियन भाषा में किया और आशु अनुवाद दानियल बलोग ने। कार्यक्रम के बाद भारतीय जलपान की व्यवस्था की गई थी। हंगेरियन लोग भारतीय व्यंजनों के दीवाने हैं।



--डॉ. प्रमोद शर्मा

ऐल्ते विश्वविद्यालय के भारोपीय विभाग की कक्षाओं का समापन समारोह संपन्न


बुदापैश्त- दिनांक १ जुलाई २०१० को ऐल्ते विश्वविद्यालय के भारोपीय विभाग की कक्षाओं के समापन समारोह का आयोजन किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि हंगरी में भारत के राजदूत महामहिम गौरीशंकर गुप्ता थे। विभागाध्यक्ष मारिया नैज्येशी ने महामहिम जी का स्वागत करके विभाग के अध्यापकों व छात्रों से परस्पर परिचय करवाया। महामहिम गौरीशंकर गुप्ता ने अपने संक्षिप्त भाषण में भारत के प्राचीन इतिहास से लेकर अद्यतन गतिविधियों की संक्षिप्त चर्चा की। जिसमें वेदों से लेकर चंद्रयान तक का उल्लेख किया गया। विभाग के प्राध्यापक दैजो चाबा ने स्व संपादित पुस्तक महामहिम को भेंट की। इस पुस्तक में विभाग के लगभग सभी स्नातकों के लेखों का संग्रह किया गया है।

इस अवसर पर मानद प्राध्यापिका डॉ. गीता शर्मा को भावभीनी विदाई भी दी गई। इस समारोह में लेटिन भाषा और साहित्य के विभागाध्यक्ष देरि बालाज के अतिरिक्त हिदैश गैर्गैय (टैगोर फेलो), दानियल बलोग (अंशकालिक प्रवक्ता), विभाग में कार्यरत अतिथि प्राचार्य प्रमोद कुमार शर्मा, हंगरी की सुप्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना पन्नि शोमि और तुर्की विभाग के प्राध्यापक बैनैदैक पेरि भी इस अवसर पर उपस्थित थे। कार्यक्रम के उपरांत महामहिम गौरीशंकर गुप्ता ने विभाग का संदर्शन किया, इसकी समस्याओं को समझा और इनका निराकरण करने का आश्वासन दिया।
महामहिम जी ने विभाग में उपलब्ध पुस्तकों की प्रशंसा की तथा विभाग व राजदूतावास के पुस्तकालयों के लिए साझा व्यवस्था करने की संभावना पर भी विचार किया।


--डॉ. प्रमोद शर्मा

उच्चायुक्त नलिन सूरी द्वारा हिंदी लेखकों को कथा यूके सम्मान

लंदन – 10 जुलाई 2010 ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त नलिन सूरी ने ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में हिन्दी लेखक हृषिकेश सुलभ को उनके कथा संकलन ‘वसन्त के हत्यारे’ के लिये ‘सोलहवां अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान’ प्रदान किया। इस अवसर पर उन्होंने ब्रिटेन में बसे हिन्दी लेखक महेन्द्र दवेसर और कादम्बरी मेहरा को ग्यारहवां पद्मानंद साहित्य सम्मान भी प्रदान किया। ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सांसद बैरी गार्डिनर और वीरेन्द्र शर्मा ने सम्मान समारोह की मेज़बानी की।

ब्रिटिश सांसद बैरी गार्डिनर ने अपने भाषण की शुरूआत हिन्दी में की। उन्होंने कहा कि जिन सवालों का जवाब राजनीति नहीं दे पाती, उनका जवाब साहित्य में खोजा जा सकता है। साउथहॉल के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने कहा कि कथा यूके यहां सभी भारतीय भाषाओं के बीच संवाद बनाने का जो काम कर रही है उससे हिन्दी को उसका उचित सम्मान दिलाने में बहुत मदद मिलेगी। हमें इसका राजनीतिक समर्थन करना चाहिये। उन्होंने कहा कि भारत को ठीक से समझने के लिये भारतीय भाषाएं जानना ज़रूरी है। श्री नलिन सूरी ने कहा कि कथा यूके का यह आयोजन यहां विभिन्न भाषाई समुदायों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने आश्वासन दिया कि ब्रिटेन के दूर-दराज़ इलाकों में हिन्दी किताबों को पाठकों तक पहुंचाने के लिये भारतीय उच्चायोग हर संभव सहयोग प्रदान करेगा। यहां के हिन्दी लेखक किसी भी मामले में दूसरे देशों के लेखकों से कमतर नहीं हैं।


सोलहवें अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान से अलंकृत कथाकार हृषिकेश सुलभ ने कहा कि उनके लिए लिखना जीने की शर्त है। बिहार की जिस ज़मीन से वे आते हैं वहां एक एक सांस के लिये संघर्ष करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि हमारी साझा संस्कृति को राजनीति की नज़र लग गई है। हम लेखक उसे बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। न्याय का सपना अभी भी अधूरा है और वंचित के पक्ष में खड़ा होना लेखक की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है. ग्यारहवें पद्मानंद सम्मान से अलंकृत महेन्द्र दीपक दवेसर और कादम्बरी मेहरा ने कहा कि इस सम्मान के बाद उनके साहित्य में पाठकों की नई दिलचस्पी पैदा होगी।

कथा यूके के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा ने कहा कि यह समारोह ब्रिटेन में बसे एशियाई लेखकों के बीच संवाद का माध्यम बन रहा है। हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, बांग्ला, पंजाबी सहित कई भाषाओं के लेखक हमसे जुड़ रहे हैं। कथा यू.के. द्वारा प्रकाशित इन लेखकों की प्रतिनिधि रचनाओं से ब्रिटेन में साहित्य संस्कृति की नई एशियाई छवि उभरी है। उन्होंने पिछले वर्ष के दौरान दुनियां भर में हुई कथा यूके कि गतिविधियों की जानकारी देते हुए कहा कि हम विभिन्न समुदायों के बीच संवाद की नई पहल कर रहे हैं। यह इस आयोजन के इतिहास में यह महत्वपूर्ण अवसर है जब ब्रिटेन के दो सांसद – बैरी गार्डिनर, वीरेन्द्र शर्मा – हाउस ऑफ़ कॉमन्स में इसकी मेज़बानी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में कथा यूके साहित्य, संस्कृति से जुड़े गंभीर विचार विमर्श आयोजित करेगा।

ब्रिटने में लेबर पार्टी की काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी ने कहा कि हिन्दी उर्दू की साझा संस्कृति को बचाने के लिये ब्रिटेन में बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। इससे हम साहित्य को उस नई पीढ़ी तक ले जा सकेंगे जो अपनी जड़ों से कट रही है। महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने हृषिकेश सुलभ की कहानियों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि सुलभ हिन्दी के उन गिने चुने कथाकारों में हैं जिनकी कहानियों में आजका मुस्लिम परिवेश जीवन्त है। उनकी कहानियों में गज़ब की पठनीयता है जो पाठकों को देर तक बांधे रखती है।

बीबीसी हिन्दी सेवा की पूर्व प्रमुख अचला शर्मा ने पद्मानंद साहित्य सम्मान से अलंकृत महेन्द्र दवेसर और कादम्बरी मेहरा की कहानियों की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि दोनों का कथा संसार एक दूसरे से अलग है पर कई मौक़ों पर एक दूसरे के समानांतर भी चलता है क्योंकि परिवेश साझा है। दीप्ति शर्मा ने सम्मानित कथाकार हृषिकेश सुलभ की कहानी वसन्त के हत्यारे के अंशों का नाटकीय पाठ किया। कथाकार सूरज प्रकाश ने हृषिकेश सुलभ, पत्रकार अजित राय ने महेन्द्र दवेसर और जय वर्मा ने कादम्बरी मेहरा के मानपत्र पढ़े। समारोह की शुरूआत में लेखक-फ़िल्मकार निखिल कौशिक ने वन्दना प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन सनराईज़ रेडियो और टीवी की सरिता सभरवाल ने किया।

समारोह में ब्रिटिश सांसद लॉर्ड तरसेम किंग, मोनिका मोहता (निदेशक नेहरू सेन्टर), सुश्री राकेश शर्मा (उपसचिव – विदेश मंत्रालय), आनन्द कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी), मोहन कांत गौतम (नीदरलैण्ड), काउंसलर सुनील चोपड़ा, काउंसलर जगदीश गुप्त, प्रो. मुग़ल अमीन, डा. नज़रुल बोस, बीबीसी हिन्दी के पूर्व अध्यक्ष कैलाश बुधवार, विजय राणा, मोहन राणा, दिव्या माथुर, उषा राजे सक्सेना, केबीएल सक्सेना, शमील चौहान, असमा सूत्तरवाला, सहित इस अवसर पर साहित्य, राजनीति, मीडिया, व्यवसाय, समाज सेवा एवं अन्य क्षेत्रों से जुड़े अनेक विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे।

उर्मिल सत्यभूषण के कहानी संग्रह ‘सृजन समग्र – खंड 1’ पर समीक्षा गोष्ठी का आयोजन

23 जुलाई 2010 को नई दिल्ली के फेरोज़शाह रोड स्थित ‘रशियन कल्चर सेण्टर’ में ‘परिचय साहित्य परिषद’ की स्थाई अध्यक्ष व सुपरिचित साहित्यकार उर्मिल सत्यभूषण के सद्य:प्रकाशित कहानी संग्रह ‘सृजन समग्र – खंड 1’ पर एक समीक्षा गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार बालस्वरूप राही थे व श्री राजेंद्र गौतम, श्री महेश दर्पण, श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेई व श्री प्रेमचंद सहजवाला गोष्ठी के विशिष्ट वक्ता रहे। श्री सहजवाला ने उर्मिल सत्यभूषण के कहानी संग्रह पर एक समीक्षा पत्र पढ़ते हुए कहा कि उर्मिल सत्यभूषण के पास बेहद विस्तृत अनुभव संसार है तथा उन के इस संग्रह की 27 में से अधिकाँश कहानियों में नारी जीवन की बेहद यथार्थ झलकियाँ हैं। उर्मिल सत्यभूषण के पास एक सिद्धहस्त कलम है जिस के माध्यम से वे नारी के सामाजिक जीवन की सशक्त तस्वीर प्रस्तुत करती हैं। नारी किन किन परिवेशगत दबावों में जीती है तथा किन किन मोर्चों पर वह इस पुरुष प्रधान समाज में हारती है, इस का बेहद सशक्त लेखा-जोखा उर्मिल जी के कथा संसार में मिलता है। कुछ कहानियों की विशेष प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि इन कहानियों की विशिष्टता यह है कि इन में अन्याय अनाचार के विरुद्ध नारी की विद्रोही तेवरों से साक्षात्कार होते हैं, जैसे कहानी ‘अब और नहीं’, ‘आखिर कब तक’ वगैरह। श्री राजेंद्र गौतम ने कहा कि उर्मिल सत्यभूषण की कहानियों में नारी-पुरुष प्रेम को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया गया है। पर कहानी ‘रौशनी की जीत’ जो कि सन् 84 की निर्मम सिख हत्याओं पर आधारित है, की उन्होंने विशेष प्रशंसा करते हुए कहा कि जैसे ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ मानव सभ्यता की एक अविस्मरणीय त्रासदी है जिस पर निरंतर आज भी बहुत से उपन्यास लिखे जा रहे हैं, वैसे ही हमारे देश में सन् 84 का कलंक कभी नहीं मिटेगा और उस पर लगातार साहित्य लिखा जाता रहेगा। श्री लक्ष्मीशंकर बाजपेयी ने कहा कि ‘शाबास कुडिये’ जैसी व इस संग्रह की अन्य कई कहानियों जैसी नारी पात्र हमारे पूरे समाज में लगभग घर घर में हैं, जो अपनी स्वतंत्रता के लिए छटपटाती न जाने किन किन पारिवारिक सामजिक दबावों में जीती हैं।


इस सब को रेखांकित करने में पूर्ण सफलता पर उन्होंने उर्मिल सत्यभूषण को हार्दिक बधाई दी। श्री महेश दर्पण ने कहा कि लेखिका के सरोकार बेहद ‘जेनुइन’ रहे और इस संग्रह को पढ़ कर किसी शिल्पगत गठन या अन्य तत्वों की ओर ध्यान न जा कर सीधे उन नारी पात्रों के जीवन पर जाता है, जिन्हें लेखिका ने अपने करीब पाया है। श्रोतागण में से लेखिकाओं तूलिका व शोभना समर्थ आदि ने भी संग्रह की कुछ कहानियों की विशेष प्रशंसा की। अंत में मुख्य अतिथि बाल स्वरुप राही ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि जो लेखन अपने अनुभव को पाठक की अनुभूति में बदल सकता है, वही लेखन सही लेखन है और उर्मिल सत्यभूषण इस कसौटी पर पूर्णतः खरी उतरी हैं। उन्होंने संग्रह में नारी के विस्तृत रूपों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि भारत में पहली नारी शतरूपा थी और उर्मिल के कथा संसार में भी नारी के अनेकों रूपों से साक्षात्कार होता है। गोष्ठी का संचालन भी प्रेमचंद सहजवाला ने किया।

चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय, में राजभाषा समर्थन समिति के आयोजन

७ जुलाई, २०१०, चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ का बृहस्पति भवन राजभाषा समर्थन समिति के आयोजन की गर्मी से सराबोर रहा। वक्ताओं में पक्ष-विपक्ष में राष्ट्र मण्डल खेलों में हिन्दी प्रयोग को लेकर विचार रहे और अन्ततः प्रस्ताव पारित हुआ कि राष्ट्र मण्डल खेलों में अनिवार्यतः हिन्दी प्रयोग कराने के लिए सरकार और आयोजन संस्थाओं को कहा जाएगा। इसके लिए प्रधानमंत्री सहित राजभाषा विभाग तथा राष्ट्रपति से भी मिला जाएगा, संसद में सवाल उठेगे और दिल्ली में यहाँ के आन्दोलन की दमक पूरी शिद्दत के साथ पहुँचाई जाएगी।

मेरठ के सांसद तथा संसदीय राजभाषा समिति के सदस्य राजेन्द्र अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि वे पहले से ही राजभाषा समिति के समक्ष इस प्रश्न को ला चुके हैं और सरकार को इस पर कार्यवाही के लिए निर्देश भी जारी हुए हैं किन्तु प्रश्न केवल राष्ट्रमण्डल खेलों में हिन्दी तक नहीं है अपितु इससे आगे है। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो0 एस0 के0 काक, माननीय कुलपति ने कहा कि अगर आप अपनी भाषा का सम्मान करेंगे, गर्व करेंगे तो दूसरे भी करेंगे। हिन्दी को हमें इस प्रकार विकसित करना होगा कि हम इसे अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करें। हमें इसे अर्न्तराष्ट्रीय भाषा बनाने के लिए, विस्तृत दृष्टिकोण अपनाना पड़ेगा। श्री एस0 पी0 त्यागी जी, सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने कहा कि मैं इस समिति के साथ जुड़कर इसलिए गर्व का अनुभव कर रहा हूँ क्योंकि यह अपने देश की भाषा को स्थापित करने के लिए दृढ़ संकल्पित है और मैं इसके लिए पूरी तरह साथ हूँ। इस अवसर पर रासना कॉलेज के प्राचार्य डॉ0 नन्द कुमार, डॉ0 आर0सी0 लाल, शिक्षाविद् डॉ0 शिवेन्द्र सोती, पत्रकार हरि शंकर जोशी, एडवोकेट मुनीष त्यागी, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो0 आई0 आर0 एस0 सिंधु, प्रभात राय और डॉ0 असलम जमशेदपुरी आदि विशिष्ट व्यक्तियों ने अपने विचार प्रकट किये।

कार्यक्रम की सहयोगी संस्थाओं के रूप में दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, दैनिक अमर उजाला, फैज-ए-आम डिग्री कॉलेज, मेरठ, मानस सेवा संस्थान, सांस्कृतिक परिषद्, वरिष्ठ नागरिक मंच सहित कई संस्थाओं ने राजभाषा समर्थन समिति की इस पहल का समर्थन किया। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग के शोध छात्र रविन्द्र राणा एवं डॉ0 विपिन कुमार शर्मा ने किया। अतिथियों का आभार कार्यक्रम के संयोजक डॉ0 नवीन चन्द्र लोहनी ने किया। इस अवसर पर सुमनेश सुमन ने हिन्दी के समर्थन में कविता भी सुनाई। कार्यक्रम में डॉ0 रवीन्द्र कुमार, डॉ0 गजेन्द्र सिंह, सीमा शर्मा, नेहा पालनी, डॉ0 आशुतोष मिश्र, अंजू, अमित कुमार, ललित सारस्वत, विवेक, सहित हिन्दी विभाग के छात्र-छात्राओं तथा शहर के वरिष्ठ नागरिकों पत्रकारों, वकीलों, शिक्षकों तथा विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने भाग लिया।

--डॉ0 गजेन्द्र सिंह/विवेक सिंह/अमित कुमार
राजभाषा समर्थन समिति

प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान मधुरेश और ज्योतिष जोशी को

रायपुर । द्वितीय प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान से प्रतिष्ठित कथाआलोचक मधुरेश और युवा आलोचक ज्योतिष जोशी को सम्मानित किया जायेगा । यह सम्मान उन्हें ३१ जुलाई, प्रेमचंद जयंती के दिन रायपुर, छत्तीसगढ़ में आयोजित द्वितीय अखिल भारतीय प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह में प्रदान किया जायेगा । उक्त अवसर पर शताब्दी पुरुष द्वय अज्ञेय और शमशेर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया है । यह सम्मान हिन्दी आलोचना की परंपरा में मौलिक और प्रभावशाली आलोचना दृष्टि को प्रोत्साहित करने के लिए २ आलोचकों को दिया जाता है। संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर देश के दो आलोचकों को सम्मान स्वरूप क्रमश- २१ एवं ११ हज़ार रुपये नगद, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह एवं प्रमोद वर्मा के समग्र प्रदान कर सम्मानित किया जाता है । इसमें एक सम्मान युवा आलोचक के लिए निर्धारित है ।

चयन समिति के संयोजक जयप्रकाश मानस ने अपनी विज्ञप्ति में बताया है कि इस उच्च स्तरीय निर्णायक मंडल के श्री केदार नाथ सिंह, डॉ. धनंजय वर्मा, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, विजय बहादुर सिंह और विश्वरंजन ने एकमत से वर्ष २०१० के लिए दोनों आलोचकों का चयन किया है । ज्ञातव्य हो कि मुक्तिबोध, हरिशंकर परसाई और श्रीकांत वर्मा के समकालीन आलोचक, कवि, नाटककार और शिक्षाविद् प्रमोद वर्मा की स्मृति में गठित संस्थान द्वारा स्थापित प्रथम आलोचना सम्मान से गत वर्ष श्रीभगवान सिंह और कृष्ण मोहन को सम्मानित किया गया था ।

बरेली निवासी मधुरेश वरिष्ठ और पूर्णकालिक कथाआलोचक हैं जिन्होंने पिछले ३५ वर्षों से हिन्दी कहानी और उपन्यासों पर उल्लेखनीय कार्य किया है । उनकी प्रमुख चर्चित-प्रशंसित कृतियाँ है - आज की कहानी : विचार और प्रतिक्रिया, सिलसिला : समकालीन कहानी की पहचान', हिन्दी आलोचना का विकास, हिन्दी कहानी का विकास, हिन्दी उपन्यास का विकास, मैला आँचल का महत्व, नयी कहानी : पुनर्विचार, नयी कहानी : पुनर्विचार में आंदोलन और पृष्ठभूमि, कहानीकार जैनेन्द्र कुमार : पुनर्विचार, उपन्यास का विकास और हिन्दी उपन्यास : सार्थक की पहचान, देवकीनंदन खत्री (मोनोग्राफ), रांगेय राघव (मोनोग्राफ), यशपाल (मोनोग्राफ), यशपाल : रचनात्मक पुनर्वास की एक कोशिश , अश्क के पत्र, फणीश्वरनाथ रेणु और मार्क्सवादी आलोचना आदि ।

डॉ. ज्योतिष जोषी युवा पीढ़ी में पिछले डेढ़ दशक से अपनी मौलिक साहित्य, कला और संस्कृति आलोचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करते हुए अपनी प्रखर उपस्थिति से सबका ध्यान आकृष्ट किया है । मूलतः गोपालगंज बिहार निवासी श्री जोशी की प्रमुख कृतियाँ हैं – आलोचना की छवियाँ, विमर्श और विवेचना, जैनेन्द्र और नैतिकता, साहित्यिक पत्रकारिता, पुरखों का पक्ष, उपन्यास की समकालीनता, नैमिचंद जैन, कृति आकृति, रूपंकर, भारतीय कला के हस्ताक्षर, सोनबरसा, संस्कृति विचार, सम्यक, जैनेन्द्र संचयिता, विधा की उपलब्धिःत्यागपत्र व भारतीय कला चिंतन (संपादन)

रविवार, 4 जुलाई 2010

‘सृजन’ के तत्वावधान में ‘अभी भी समय है’ काव्य संकलन का लोकार्पण

चि‍त्र में - बायें से संतोष अलेक्स, नीरव कुमार वर्मा, डॉ चागंटि‍ तुलसी,डॉ शंकर लाल पुरोहि‍त, डॉ शकुंतला बेहुरा और डॉ टी महादेव राव।

वि‍शाखपटनम की हि‍न्दी‍ साहि‍त्य, संस्कृति‍ और रंगमंच के प्रति‍ प्रति‍बद्ध संस्था सृजन ने 24 मई 2010 को स्थानीय पाम बीच होटल में कवि‍यत्री डॉ शकुंतला बेहुरा का काव्यस संकलन ‘अभी भी समय है’ का लोकार्पण एवं कवि‍ सम्मेलन का आयोजन कि‍या। मुख्य अति‍थि‍ के रूप में उड़ीसा हि‍न्दी अकादमी के अध्यक्ष एवं प्रसि‍द्ध साहि‍त्यकार और अनुवादक डॉ शंकर लाल पुरोहि‍त उपस्थि‍त थे जबकि‍ कार्यक्रम की अध्यक्षता नीरव कुमार वर्मा, अध्यक्ष, सृजन ने की और वि‍शेष अति‍थि‍ थीं प्रसि‍द्ध अनुवादक एवं साहि‍त्यज्ञ डॉ चागंटि‍ तुलसी।

कार्यक्रम का प्रारंभ सृजन के सचि‍व डॉ टी महादेव राव के स्वागत भाषण एवं वि‍शेष आहूतों के परि‍चय के साथ हुआ। उन्होंने कहा कि‍ पि‍छले आठ वर्षों से सक्रि‍य स्वैच्छिक हि‍न्दी‍ सेवी संस्था सृजन ने न केवल नये लेखकों को प्रोत्साहि‍त कि‍या बल्कि‍‍ पुराने नामी लेखकों और वरि‍ष्ठ रचनाकारों कों भी मंच देकर वि‍शाखपटनम में हि‍न्दी साहि‍त्य को प्रचार प्रसार देने के साथ था हि‍न्दी के अच्छे लेखन को भी प्रेरि‍त कि‍या। अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने वर्तमान समाज में कवि‍, कवि‍ता और पुस्तकों की महत्ता को रेखांकि‍त करते हुए कहा कि‍ समाज को दि‍शा देने में कवि‍ अपनी भूमि‍का बखूबी अदा करता है। साहि‍त्य को समाज का दर्पण कहने के पीछे यही भूमि‍का है। मुख्य अति‍थि‍ डॉ शंकर लाल पुरोहि‍त ने अपनी शि‍ष्या डॉ शकंतला बेहुरा के कवि‍ता संग्रह को लोकार्पण करने के बाद अपने उदबोधन में कहा कि‍ कवि‍ता जो काफी पुरानी वि‍धा है अपने कालांतर में जीवन के बेहद करीब आ गई है और आज आम आदमी के साथ कांधे से कांधा मि‍लाकर चल रही है। कवि‍ता का जीवन में महत्त्व अधि‍क है और गंभीर अध्यियन, व्याकपक जीवन दृष्टित, स्वनि‍रपेक्ष आत्माभि‍व्यक्ति ‍ से परि‍पूर्ण कवि‍ताओं के लि‍ये मैं शकुंतला बेहुरा को ‍बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि‍ उनकी लेखनी असरी तरह प्रभावशाली साहि‍त्य का सृजन करती रहेगी।

पुस्तक समीक्षक संतोष अलेक्स ने इस काव्य संग्रह - अभी भी समय है - को स्मृ्ति‍यों और आत्मवि‍श्वास की कवि‍ताएँ कहते हुए अपने लेख में कहा कि‍ प्रकृति‍, स्मृ‍ति‍, आत्मवि‍श्वा‍स, पीडा पर आशावादी स्वतर को रेखांकि‍त करती सकारात्माक कवि‍ताएँ हैं। अपने भाषण में डॉ चागंटि‍ तुलसी ने कहा कि‍ जडों से जुडी, आत्मवि‍श्वा‍स से भरी और स्त्री की सहज प्राकृति‍ की आशावादी कवि‍ताएँ इस संग्रह में है। एक नारी समाज के बारे में कि‍स तरह सोचती है और उसे कि‍स तरह के समाज की अपेक्षा है इसे हम इन कवि‍ताओं में बेहतर रूप में पाते हैं। इसके बाद कवि‍ सम्मेलन का दौर चला जि‍सका सफल संचालन संतोष अलेक्स ने कि‍या। टी चंद्रशेखर ने चौपहि‍या और पडोसी कवि‍ताओं के साथ एक गजल पढी जो ‍मि‍त्रता और रि‍श्तों पर थी। राजेन्द्र साहू ने अपनी कवि‍ता में देवी देवताओं को बिंब बनाकर आधुनि‍क समस्याओं का जि‍क्र कि‍या। डॉ टी महादेव राव ने आशावादी स्वर को रेखांकि‍त करती दो रुबाइयाँ प्रस्तुरत की और उसके बाद गजल सुनाई -आओ जीने का कोई नया बहाना ढूँढें, जि‍समें आज के समय में एकाकी होते मनुष्यल की व्यथा थी। सुनीता पटनायक ने मानवीय संबंधों पर गजल कौन कहता है पढी जबकि‍ सीमा शेखर ने प्रकृति‍ और औरत शीर्षकों से दो कवि‍ताएँ पढीं जो कि‍ प्रकृति‍ में मौसम और परि‍सरों और स्त्री की मन:स्थिवति्‍ पर थीं। टी के मोहंती ने संस्कृंति‍, सभ्यता और आपसी मेल मि‍लाप की भाषा हि‍न्दी पर एक कवि‍ता हि‍न्दी‍ की व्यापकता पढी। अभी भी समय है शीर्षक कवि‍ता में डॉ रामलक्ष्मी ने आशावादी मानवीय मूल्यों की बात कही। अंत में संतोष अलेक्स ने जीवन और अनुभूति‍यों पर गजल सुनाई। कार्यक्रम का समापन रमेश कुमार स्वाईं के धन्यवांद ज्ञापन से हुआ। देर रात तक चले इस कार्यक्रम में वि‍शाखपटनम के हि‍न्दीव प्रेमी, हि‍न्दीस लेखक और कवि‍ बडी संख्याआ में उपस्थित थे।

– डॉ टी महादेव राव

स्नेह ठाकुर की 'संजीवनी' और 'उपनिषद दर्शन' का लोकार्पण


अक्षरम के आठवें 'अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव' दिल्ली में श्रीमती स्नेह ठाकुर की दो पुस्तकें, 'संजीवनी' (रोग निदान व स्वास्थ्य संबंधी परिस्थितियों की जानकारी) एवं 'उपनिषद दर्शन' का लोकार्पण डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। दूसरी बार इन पुस्तकों का लोकार्पण चित्रकूट की पावन पुनीत धरती पर तुलसीपीठाधीश्वर जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य, जीवन-पर्यन्त कुलाधिपति 'जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्व-विद्यालय' चित्रकूट, के कर-कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। गुरु जी ने लोकार्पण के अवसर पर तत्काल बनाये अपने संस्कृत श्लोकों से आशीर्वाद दिया। आदरणीया माँ मातेश्वरी देवी जो कर्नाटक की अम्माँ के नाम से भी जानी जाती हैं, ने भी दोनों पुस्तकों को अपना आशीर्वाद देते हुए 'राम मंदिर' का प्रतिरूप स्मृति-चिन्ह प्रदान किया।

श्रीमती स्नेह ठाकुर 'वसुधा' हिन्दी साहित्यिक पत्रिका की संपादक-प्रकाशक एवं 'सद्भावना हिन्दी साहित्यिक संस्था' कैनेडा की अध्यक्ष हैं, तथा जिनकी १३ पुस्तकें साहित्य की विभिन्न विधाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं और जिन्होंने ४ पुस्तकों का संकलन व संपादन किया है। अपने भारत प्रवास के दौरान उन्होंने 'अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव' दिल्ली में 'प्रवासी साहित्य में अस्मिता का प्रश्न', के सत्र में अपने विचार व्यक्त किये तथा दूसरे दिन अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कविता पाठ किया। उन्हें साहित्य अकादमी, दिल्ली, भारत द्वारा भी प्रवासी मंच के अन्तर्गत कहानी पाठ के लिए आमंत्रित किया गया जिसमें उन्होंने 'जागृति' शीर्षक कहानी का पाठ किया।

शायर हसन कमाल को जीवंती गौरव सम्मान


शनिवार 5 जून को एस.पी.जैन सभागार में जीवंती फाउंडेशन, मुम्बई ने भवंस कल्चरल सेंटर, अंधेरी के सहयोग से शायर हसन कमाल को ‘जीवंती गौरव सम्मान’ से सम्मानित किया। सम्मानस्वरूप वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल ने उन्हें प्रशस्तिपत्र और स्मृतिचिन्ह भेंट किया। समारोह संचालक आलोक भट्टाचार्य ने शायर हसन कमाल का ऐसा आला तवारूफ़ कराया कि उसे सुनकर सामईन परेशान और शायर पशेमान हो गया। जवाबी कार्रवाई हुए शायर हसन कमाल ने कहा- एक पल को मुझे लगा कि कहीं मैं अल्लाह को प्यारा तो नहीं हो गया…क्योंकि ज़िंदा आदमी की इतनी तारीफ़ तो कोई नहीं करता। बहरहाल इतना बता दें कि साप्ताहिक उर्दू ब्लिट्ज़ के पूर्व सम्पादक होने के साथ ही शायर हसन कमाल इन दिनों उर्दू दैनिक ‘सहाफत’ के सम्पादक हैं। ग़ालिब अवार्ड से सम्मानित लखनऊ के मूल निवासी इस शायर ने कई फ़िल्मों के गीत भी लिखे जिनमें ‘निकाह’, ‘तवायफ़’, ‘आज की आवाज़’ आदि फ़िल्मों के गीत काफ़ी लोकप्रिय हुए। बी.आर.चोपड़ा के कई धारावाहिकों की पटकथा में भी उनका अच्छा योगदान रहा।

संस्था अध्यक्ष श्रीमती माया गोविंद के स्वागत वक्तव्य के बाद वरिष्ठ शायर नक़्श लायलपुरी की सदारत में मुशायरा का आयोजन हुआ। मुशायरे का आग़ाज़ करने आए शायर सईद राही ने असरदार तरन्नुम में ग़ज़ल सुनाकर रंग जमाया। अपने सूफ़ियाना अलबम ‘रूबरू’ से चर्चित हुए युवा शायर हैदर नजमी ने भी तरन्नुम में ग़ज़ल पढ़कर दाद वसूल की। शायर देवमणि पांडेय ने अपने ख़ास अंदाज़ में ग़ज़ल सुनाई जो श्रोताओं को काफ़ी को पसंद आई। मुशायरे के नाज़िम अब्दुल अहद साज़ ने रोमांटिक ग़ज़ल सुनाकर मोहब्बत की ख़ुशबू बिखेरी। कई फ़िल्मों और धारावाहिकों के पटकथा-संवाद लेखन से जुड़े वरिष्ठ फ़िल्म लेखक राम गोविंद यहाँ शायर राम अतहर के रूप में सामने आए और कामयाब हुए। मुहावरे की भाषा में कहें तो वरिष्ठ शायर ज़फ़र गोरखपुरी ने अपनी बेहतरीन शायरी से मुशायरा लूट लिया। श्रीमती माया गोविंद ने तरन्नुम में वो ग़ज़ल पढ़ी जो उन्होंने सोलह साल की उम्र में लाल क़िले पर सुनाई थी। श्रोताओं की फ़रमाइश पर ब्रजभाषा के कुछ रसीले छंद सुनाकर उन्होंने अपना असली रंग जमा दिया। शायर हसन कमाल ने अपनी एक चर्चित नज़्म सुनाई। इसके अतिरिक्त नक़्श लायलपुरी ने भी अपनी रचनाएँ पढ़ीं।

इस मुशायरे में भी वरिष्ठ फ़िल्म एवं नाट्य लेखक जावेद सिद्दीक़ी, वरिष्ठ रंगकर्मी ललित शाह, शास्त्रीय गायिका सोमा घोष, ग़ज़ल गायिका सीमा सहगल, संगीतज्ञ ललित वर्मा, अभिनेता राजेंद्र गुप्ता, अभिनेता विष्णु शर्मा, कवि डॉ.बोधिसत्व, कवि कुमार शैलेंद्र, शायर हस्तीमल हस्ती, शायर खन्ना मुजफ़्फ़रपुरी, शायरा देवी नागरानी, कथाकार संतोष श्रीवास्तव, प्रमिला वर्मा, सम्पादक राजम नटराजन पिल्लै, सम्पादक अनंत कुमार साहू, हिंदी सेवी डॉ.रत्ना झा और सरोजिनी जैन आदि मौजूद थे। अंत में व्यंग्यकार अनंत श्रीमाली ने आभार व्यक्त किया।

बनास का लोकार्पण समारोह


उदयपुर। साहित्य संस्कृति के संचयन 'बनास' के विशेषांक ''गल्पेतर गल्प का ठाठ'' का लोकार्पण फतहसागर झील के किनारे स्थित बोगेनवेलिया आर्ट गेलेरी परिसर में एक गरिमामय आयोजन में हुआ। काशीनाथ सिंह के उपन्यास 'काशी का अस्सी' पर केन्द्रित इस अंक का लोकार्पण सुविख्यात चित्रकार पी एन चोयल, चर्चित चित्रकार अब्बास बाटलीवाला, वरिष्ठ कवि नन्द चतुर्वेदी और वरिष्ठ समालोचक नवल किशोर ने किया। पी एन चोयल ने इस अवसर पर कहा कि जब बाहर के दृश्य भीतर बदल जाते हों और सीधी भाषा हमारे अन्दर हलचल पैदा करने में असफल हो रही हो तब व्यंग्य और प्रतीकों से बनी कोई कृति आवश्यक हो जाती है। चोयल ने कहा कि बनास द्वारा पूरा अंक एक उपन्यास पर केन्द्रित करना बताता है कि काशी का अस्सी हमारे समय और समाज को देखने वाली बड़ी कृति है।

नन्द चतुर्वेदी ने हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता के समक्ष आ रही चुनौतियों की चर्चा करते हुए कहा की इसे साहित्य की भूमिका को पहचानने और ठीक से चिन्हित करने का काम करना होगा। उन्होंने कहा कि साहित्यिक पत्रकारिता को अब अंतरानुशासनिक भी होना पड़ेगा क्योंकि इसके बिना अपने समय और समाज को समझना मुश्किल है। नन्द बाबू ने इस अवसर अपने द्वारा संपादित पत्रिका 'बिंदु' के अनेक संस्मरण सुनाकर ६० और ७० के दशक की यादें ताज़ा कर दीं। इससे पहले सुखाड़िया विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के अध्यक्ष प्रो। शरद श्रीवास्तव ने काशी का अस्सी से एक महत्वपूर्ण अंश 'नरभक्षी राजा की कथा' का पाठ किया, इस अंश के अंत में उपन्यासकार की टिप्पणी है 'मनुष्यभक्षी राजा चाहे जितना भयानक और बलशाली हो ,दुर्वध्य नहीं है। उसका वध संभव है।' आयोजन में हुई चर्चा में इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय,दिल्ली के प्रो। आशुतोष मोहन ने कहा कि हमारे जीवन से हंसी के हिज्जे बदल दिए गए हैं,काशी का अस्सी इसी हंसी के गायब होने की दास्तान की महागाथा है। सिरोही महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ। माधव हाड़ा ने रेणु के बाद हिंदी में पहली बार बहुत निकट रहकर निस्संग भाव से भारतीय समाज को देखने के लिए काशी का अस्सी को असाधारण रचना बताया। वरिष्ठ समालोचक प्रो। नवलकिशोर ने लघु पत्रिका की अवधारणा का उल्लेख कर लघु पत्रिकाओं के लिए नएपन की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि मीडिया की नयी तकनीकों के सामने लघु पत्रिकाओं को नया पाठक वर्ग बनाने की चुनौती है।

आयोजन में प्रसिद्द स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र नंदवाना, चित्रकार शैल चोयल, हेमंत द्विवेदी ,शाहिद परवेज़, साहित्यकार मूलचंद्र पाठक, एस।एन।जोशी, लक्ष्मण व्यास, हिमांशु पंड्या, सुखाड़िया विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के अध्यक्ष डॉ। रईस अहमद, मीरा गर्ल्स कालेज की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ।मंजू चतुर्वेदी, आकाशवाणी के सहायक केंद्र निदेशक डॉ।इन्द्रप्रकाश श्रीमाली, महिला अध्ययन केंद्र की प्रभारी डॉ।प्रज्ञा जोशी, डॉ।चंद्रदेव ओला, डॉ।लालाराम जाट, डॉ।नीलेश भट्ट सहित युवा पाठक विद्यार्थी उपस्थित थे। स्वागत कर रही बोगेनवेलिया आर्ट गेलेरी की निदेशक तनुजा कावड़िया ने कहा की सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए साझा काम करने होंगे।अंत में बनास के संपादक पल्लव ने आभार माना।

(गजेन्द्र मीणा)
सहयोगी संपादक

व्यंग्य लेख प्रतियोगिता में मनोहर पुरी को प्रथम पुरस्कार


लखनऊ : राष्ट्रधर्म मासिक द्वारा आयोजित अखिल भारतीय व्यंग्य लेख प्रतियोगिता में प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री मनोहर पुरी को प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया है। पंडित दीन दयाल उपाध्याय द्वारा ४७ वर्ष पूर्व प्रारम्भ की गई इस पत्रिका के प्रथम सम्पादक श्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। यह पत्रिका डॉ सुशील चंद त्रिवेदी के सौजन्य से प्रतिवर्श व्यंग्य लेख प्रतियोगिता का आयोजन करती है। इस वर्ष श्री मनोहर पुरी के व्यंग्य 'गरीबों की संसद` को प्रथम पुरस्कार हेतु चुना गया है। निर्णायक मंडल ने द्वितीय पुरस्कार उज्जैन,मध्य प्रदेश के व्यंग्यकार श्री सन्तोश सुपेकर की रचना ' धरतीवासियो ! यमदूतों पर दया करो ` तथा तृतीय पुरस्कार अमरावती के श्री श्री भगवान वैद्य के व्यंग्य लेख तुम मुझे दाल दो, मैं तुम्हें... को प्रदान किया गया। तीन प्रोत्साहन पुरस्कार अमरावती की श्रीमती ममता मेहता, भोपाल मध्य प्रदेश के श्री घन याम मैथिल 'अमृत` और पूर्णिया बिहार की श्रीमती निरुपमा राय की रचनाओं को दिए गए। राषट्रधर्म के सम्पादक श्री आनन्द मिश्र अभय ने बताया कि पुरस्कार वितरण कार्यक्रम अक्टूबर मास के अंत में अथवा नवम्बर मास के प्रारम्भ में लखनऊ में किया जायेगा।

ख़लिश (तेरी आवाज़ मेरे अलफ़ाज़ ) का लोकार्पण


शनिवार, ५ जून २०१० को युवा कवि दीपक शर्मा की सहयोग प्रकाशन ( शारदा प्रकाशन समूह ) द्वारा प्रकाशित तृतीय काव्यकृति लोकार्पण त्रिवेणी कला संगम, तानसेन मार्ग, मंडी हाउस, नई दिल्ली के सभागार में भव्यता के साथ संपन्न हुआ। खलिश ( तेरी आवाज़ मेरे अल्फाज़) कवि दीपक शर्मा का विभिन्न सामाजिक विषयों पर लिखी गई नज्मों का मौलिक संग्रह है जो कवि दीपक शर्मा की अपनी ही शैली को दर्शाता है। अपनी अपनी विधा में सितारे कहे जाने वाले देश के चुनिन्दा दस साहित्यकारों को एक साथ, एक ही मंच पर पहली बार देखना किसी सुखद और आश्चर्य जनक अनुभूति और रोमांच के सिवाय कुछ भी ना था और अवसर था लोकप्रिय कवि दीपक शर्मा के काव्य संग्रह का लोकार्पण।

पुस्तक का लोकार्पण मुख्य अतिथि महामहिम श्री त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी ( पूर्व राज्यपाल कर्नाटक एवं प्रधान संपादक - साहित्य अमृत ) , कार्यक्रम अध्यक्ष श्री रवीन्द्र कालिया ( निदेशक - भारतीय ज्ञानपीठ), विश्व विख्यात साहित्यकार श्रीमती चित्रा मुदगल ,सुप्रसिद्ध कवि एवं दूरदर्शन निदेशक डॉ। अमरनाथ " अमर " आकाशवाणी नई दिल्ली के निदेशक श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, प्रख्यात साहित्यकार एवं साहित्य अकादमी के उप सचिव श्री बिजेंद्र त्रिपाठी, नई धारा साहित्यिक पत्रिका के संपादक और प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ। शिवनारायण सिंह, प्रसिद्ध राजनेता तथा चर्चित समाज सेवी श्री हिमांशु कवि, श्रीमती श्वेता शर्मा तथा प्रसिद्ध व्यंग्य कवि एवं साहित्यकार डॉ। विवेक गौतम के कर कमलों द्वारा हुआ। मुख्य अतिथि श्री त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी जी ने कवि दीपक शर्मा की भूरि - भूरि प्रशंसा की और कवि दीपक को आशावादी नज़रिए वाला शायर बताया और उनकी अनेक नज्मो को सराहा जिनमे "फकीर की चादर", "बेटी की हत्या" आदि प्रमुख हैं और " ज़िन्दगी चलते रहने का नाम है" नज़्म का पाठ भी किया। विश्व विख्यात साहित्यकार श्रीमती चित्रा मुदगल जी के शब्दानुसार कवि दीपक शर्मा कालजयी शायर साहिर लुधियानवी के बहुत आगे की कड़ी हैं और दीपक शर्मा की नज्मो में एक अलग तासीर है, सोच है शैली है। चित्रा जी ने “फकीर की चादर ,मजबूरी से ज्यादा मजबूरी , रिक्शेवाला ,जिंदगी की हंसी आदि नज्मो की प्रमुख रूप से प्रशंसा की और अपने मानस पुत्र कवि दीपक शर्मा को स्नेहिल आशीष दिया।

डॉ. अमरनाथ ’अमर ’ ने कवि दीपक शर्मा के बहुआयामी नज़रिए को अंतर्मन से सराहा और नज़्म संग्रह के बिषयों पर बहुत ही भावुक होकर बोले तथा कई नज्मो के अंश भी सुनकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।”मैं पूजा की थाली में जलता हुआ दीपक हूँ “ और ज़िन्दगी इतनी हंसी इतनी हंसी बताऊँ क्या … आदि नाम का अपने स्वर में पाठ भी किया। अन्य मंचसीन विशिष्ठ अतिथिओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कवि दीपक को इस अद्भुत संग्रह के लिये शुभकामनाएँ और साधुवाद दिया। मंच संचालन डॉ। विवेक गौतम ने किया और कवि दीपक शर्मा की नज़्म “यार कुछ लम्हा मुझे छोड़ दे तन्हा ” का पाठ किया। कवि दीपक शर्मा ने अपने संग्रह से कुछ रचनाओं को अपनी शैली में सुनाकर सभागार में उपस्तिथ श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया और अपने विचारों से सोचने पर मजबूर कर दिया। अध्यक्ष श्री रविन्द्र कालिया जी ने कवि दीपक शर्मा को इस संग्रह पर शुभकामनाये दी और समाज के विभिन्न पहलुओं पर उनकी लिखी सशक्त रचनाओ को समाज का आइना बताया। कवि दीपक शर्मा को साहित्य का परोकर बताया और करतल ध्वनि के मध्य इस भव्य कार्यक्रम का समापन किया। श्रोताओं से खचाखच भरे समागार में देश ने नामी साहित्यकार, उद्यमी, समाज सेवी, प्रशंसक, पत्रकार उपस्थित थे। इस भव्य, सफल ,उत्कर्ष आयोजन पर और खलिश (तेरी आवाज़ मेरे अलफ़ाज़ ) के सफल लोकार्पण पर कवि दीपक शर्मा को बधाई।

काव्यधारा टीम

कथाकार शेखर जोशी को मानिक दफ्तरी ज्ञानविभा ट्रस्ट का प्रथम चंद्रयान पुरस्कार


कोलकाता, हिंदी के लब्ध प्रतिष्ठित कथाकार शेखर जोशी को मानिक दफ्तरी ज्ञानविभा ट्रस्ट के प्रथम चंद्रयान पुरस्कार-२०१० से नवाजा जायेगा। ट्रस्ट की और से जारी विज्ञप्ति में प्रबंध न्यासी धनराज दफ्तरी ने यह जानकारी देते हुए बताया की नयी कहानी में सामाजिक सरोकारों का प्रतिबद्ध स्वर जोड़ने वाले श्री शेखर जोशी को पुरस्कार स्वरुप ३१,००० रुपये की राशि भेंट की जाएगी। पुरस्कार समोराह कोलकाता के भारतीय भाषा परिषद् में रविवार १८ जुलाई को आयोजित होगा। समारोह की अध्यक्षता भारतीय भाषा परिषद् के निदेशक डाक्टर विजय बहादुर सिंह करेंगे जबकि प्रसिद्द विद्वान डाक्टर शिवकुमार मिश्र, अहमदाबाद मुख्य वक्ता बतौर उपस्थित रहेंगे। कार्यक्रम का सञ्चालन पूर्व सांसद सरला महेश्वरी करेंगी। इस अवसर पर शेखर जोशी की प्रचलित कहानी दाज्यू का पाठ पत्रकार प्रकाश चंडालिया करेंगे। कार्यक्रम की सफलता हेतु विमल वर्मा, श्रीहर्ष, अरुण महेश्वरी, विश्वनाथ चंडक, प्रीतम दफ्तरी सहित साहित्य जगत के कई गणमान्य जन सक्रिय हैं।

सितम्बर १९३२ में अल्मोड़ा जनपद के ओजिया गाँव में जन्मे श्री शेखर जोशी की प्रारंभिक शिक्षा अजमेर और देहरादून में हुयी। कथा लेखन को दायित्वपूर्ण कर्म मानने वाले जोशी हिंदी के सुपरिचित कथाकार हैं। उन्हें उ.प्र. हिंदी संस्थान द्वारा महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार-१९८७, साहित्य भूषण-१९९५ पहल सम्मान-१९९७ से सम्मानित किया जा चुका है। आपकी कहानियों का विभिन्न भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, चेक, रूसी, पोलिश और जापानी भाषाओँ में अनुवाद किया जा चुका है। कुछ कहानियों का मंचन और दाज्यू नमक कहानी पर बाल फिल्म सोसायटी द्वारा फिल्म का निर्माण किया गया है। आपकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं- कोशी का घटवार, साथ के लोग, हलवाहा, नौरंगी बीमार है, मेरा पहाड़, प्रतिनिधि कहानियां और एक पेड़ की याद। दाज्यू, कोशी का घटवार, बदबू, मेंटल जैसी कहानियों ने न सिर्फ शेखर जोशी के प्रशाशंकों की लम्बी जमात खडी की बल्कि नयी कहानी की पहचान को भी अपने तरीके से प्रभावित किया है। पहाड़ी इलाकों की गरीबी, कठिन जीवन संघर्ष, उत्पीडन, यातना, प्रतिरोध, उम्मीद और नाउम्मीद्दी से भरे औद्योगिक मजदूरों के हालात, शहरी-कस्बाई और निम्नवर्ग के सामाजिक-नैतिक संकट, धर्म और जाती में जुडी घटक रूढ़ियाँ- ये सभी उनकी कहानियों का विषय रहे हैं।