चित्र में - बायें से संतोष अलेक्स, नीरव कुमार वर्मा, डॉ चागंटि तुलसी,डॉ शंकर लाल पुरोहित, डॉ शकुंतला बेहुरा और डॉ टी महादेव राव।
विशाखपटनम की हिन्दी साहित्य, संस्कृति और रंगमंच के प्रति प्रतिबद्ध संस्था सृजन ने 24 मई 2010 को स्थानीय पाम बीच होटल में कवियत्री डॉ शकुंतला बेहुरा का काव्यस संकलन ‘अभी भी समय है’ का लोकार्पण एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया। मुख्य अतिथि के रूप में उड़ीसा हिन्दी अकादमी के अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध साहित्यकार और अनुवादक डॉ शंकर लाल पुरोहित उपस्थित थे जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता नीरव कुमार वर्मा, अध्यक्ष, सृजन ने की और विशेष अतिथि थीं प्रसिद्ध अनुवादक एवं साहित्यज्ञ डॉ चागंटि तुलसी।
कार्यक्रम का प्रारंभ सृजन के सचिव डॉ टी महादेव राव के स्वागत भाषण एवं विशेष आहूतों के परिचय के साथ हुआ। उन्होंने कहा कि पिछले आठ वर्षों से सक्रिय स्वैच्छिक हिन्दी सेवी संस्था सृजन ने न केवल नये लेखकों को प्रोत्साहित किया बल्कि पुराने नामी लेखकों और वरिष्ठ रचनाकारों कों भी मंच देकर विशाखपटनम में हिन्दी साहित्य को प्रचार प्रसार देने के साथ था हिन्दी के अच्छे लेखन को भी प्रेरित किया। अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने वर्तमान समाज में कवि, कविता और पुस्तकों की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि समाज को दिशा देने में कवि अपनी भूमिका बखूबी अदा करता है। साहित्य को समाज का दर्पण कहने के पीछे यही भूमिका है। मुख्य अतिथि डॉ शंकर लाल पुरोहित ने अपनी शिष्या डॉ शकंतला बेहुरा के कविता संग्रह को लोकार्पण करने के बाद अपने उदबोधन में कहा कि कविता जो काफी पुरानी विधा है अपने कालांतर में जीवन के बेहद करीब आ गई है और आज आम आदमी के साथ कांधे से कांधा मिलाकर चल रही है। कविता का जीवन में महत्त्व अधिक है और गंभीर अध्यियन, व्याकपक जीवन दृष्टित, स्वनिरपेक्ष आत्माभिव्यक्ति से परिपूर्ण कविताओं के लिये मैं शकुंतला बेहुरा को बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि उनकी लेखनी असरी तरह प्रभावशाली साहित्य का सृजन करती रहेगी।
पुस्तक समीक्षक संतोष अलेक्स ने इस काव्य संग्रह - अभी भी समय है - को स्मृ्तियों और आत्मविश्वास की कविताएँ कहते हुए अपने लेख में कहा कि प्रकृति, स्मृति, आत्मविश्वास, पीडा पर आशावादी स्वतर को रेखांकित करती सकारात्माक कविताएँ हैं। अपने भाषण में डॉ चागंटि तुलसी ने कहा कि जडों से जुडी, आत्मविश्वास से भरी और स्त्री की सहज प्राकृति की आशावादी कविताएँ इस संग्रह में है। एक नारी समाज के बारे में किस तरह सोचती है और उसे किस तरह के समाज की अपेक्षा है इसे हम इन कविताओं में बेहतर रूप में पाते हैं। इसके बाद कवि सम्मेलन का दौर चला जिसका सफल संचालन संतोष अलेक्स ने किया। टी चंद्रशेखर ने चौपहिया और पडोसी कविताओं के साथ एक गजल पढी जो मित्रता और रिश्तों पर थी। राजेन्द्र साहू ने अपनी कविता में देवी देवताओं को बिंब बनाकर आधुनिक समस्याओं का जिक्र किया। डॉ टी महादेव राव ने आशावादी स्वर को रेखांकित करती दो रुबाइयाँ प्रस्तुरत की और उसके बाद गजल सुनाई -आओ जीने का कोई नया बहाना ढूँढें, जिसमें आज के समय में एकाकी होते मनुष्यल की व्यथा थी। सुनीता पटनायक ने मानवीय संबंधों पर गजल कौन कहता है पढी जबकि सीमा शेखर ने प्रकृति और औरत शीर्षकों से दो कविताएँ पढीं जो कि प्रकृति में मौसम और परिसरों और स्त्री की मन:स्थिवति् पर थीं। टी के मोहंती ने संस्कृंति, सभ्यता और आपसी मेल मिलाप की भाषा हिन्दी पर एक कविता हिन्दी की व्यापकता पढी। अभी भी समय है शीर्षक कविता में डॉ रामलक्ष्मी ने आशावादी मानवीय मूल्यों की बात कही। अंत में संतोष अलेक्स ने जीवन और अनुभूतियों पर गजल सुनाई। कार्यक्रम का समापन रमेश कुमार स्वाईं के धन्यवांद ज्ञापन से हुआ। देर रात तक चले इस कार्यक्रम में विशाखपटनम के हिन्दीव प्रेमी, हिन्दीस लेखक और कवि बडी संख्याआ में उपस्थित थे।
– डॉ टी महादेव राव
विशाखपटनम की हिन्दी साहित्य, संस्कृति और रंगमंच के प्रति प्रतिबद्ध संस्था सृजन ने 24 मई 2010 को स्थानीय पाम बीच होटल में कवियत्री डॉ शकुंतला बेहुरा का काव्यस संकलन ‘अभी भी समय है’ का लोकार्पण एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया। मुख्य अतिथि के रूप में उड़ीसा हिन्दी अकादमी के अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध साहित्यकार और अनुवादक डॉ शंकर लाल पुरोहित उपस्थित थे जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता नीरव कुमार वर्मा, अध्यक्ष, सृजन ने की और विशेष अतिथि थीं प्रसिद्ध अनुवादक एवं साहित्यज्ञ डॉ चागंटि तुलसी।
कार्यक्रम का प्रारंभ सृजन के सचिव डॉ टी महादेव राव के स्वागत भाषण एवं विशेष आहूतों के परिचय के साथ हुआ। उन्होंने कहा कि पिछले आठ वर्षों से सक्रिय स्वैच्छिक हिन्दी सेवी संस्था सृजन ने न केवल नये लेखकों को प्रोत्साहित किया बल्कि पुराने नामी लेखकों और वरिष्ठ रचनाकारों कों भी मंच देकर विशाखपटनम में हिन्दी साहित्य को प्रचार प्रसार देने के साथ था हिन्दी के अच्छे लेखन को भी प्रेरित किया। अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने वर्तमान समाज में कवि, कविता और पुस्तकों की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि समाज को दिशा देने में कवि अपनी भूमिका बखूबी अदा करता है। साहित्य को समाज का दर्पण कहने के पीछे यही भूमिका है। मुख्य अतिथि डॉ शंकर लाल पुरोहित ने अपनी शिष्या डॉ शकंतला बेहुरा के कविता संग्रह को लोकार्पण करने के बाद अपने उदबोधन में कहा कि कविता जो काफी पुरानी विधा है अपने कालांतर में जीवन के बेहद करीब आ गई है और आज आम आदमी के साथ कांधे से कांधा मिलाकर चल रही है। कविता का जीवन में महत्त्व अधिक है और गंभीर अध्यियन, व्याकपक जीवन दृष्टित, स्वनिरपेक्ष आत्माभिव्यक्ति से परिपूर्ण कविताओं के लिये मैं शकुंतला बेहुरा को बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि उनकी लेखनी असरी तरह प्रभावशाली साहित्य का सृजन करती रहेगी।
पुस्तक समीक्षक संतोष अलेक्स ने इस काव्य संग्रह - अभी भी समय है - को स्मृ्तियों और आत्मविश्वास की कविताएँ कहते हुए अपने लेख में कहा कि प्रकृति, स्मृति, आत्मविश्वास, पीडा पर आशावादी स्वतर को रेखांकित करती सकारात्माक कविताएँ हैं। अपने भाषण में डॉ चागंटि तुलसी ने कहा कि जडों से जुडी, आत्मविश्वास से भरी और स्त्री की सहज प्राकृति की आशावादी कविताएँ इस संग्रह में है। एक नारी समाज के बारे में किस तरह सोचती है और उसे किस तरह के समाज की अपेक्षा है इसे हम इन कविताओं में बेहतर रूप में पाते हैं। इसके बाद कवि सम्मेलन का दौर चला जिसका सफल संचालन संतोष अलेक्स ने किया। टी चंद्रशेखर ने चौपहिया और पडोसी कविताओं के साथ एक गजल पढी जो मित्रता और रिश्तों पर थी। राजेन्द्र साहू ने अपनी कविता में देवी देवताओं को बिंब बनाकर आधुनिक समस्याओं का जिक्र किया। डॉ टी महादेव राव ने आशावादी स्वर को रेखांकित करती दो रुबाइयाँ प्रस्तुरत की और उसके बाद गजल सुनाई -आओ जीने का कोई नया बहाना ढूँढें, जिसमें आज के समय में एकाकी होते मनुष्यल की व्यथा थी। सुनीता पटनायक ने मानवीय संबंधों पर गजल कौन कहता है पढी जबकि सीमा शेखर ने प्रकृति और औरत शीर्षकों से दो कविताएँ पढीं जो कि प्रकृति में मौसम और परिसरों और स्त्री की मन:स्थिवति् पर थीं। टी के मोहंती ने संस्कृंति, सभ्यता और आपसी मेल मिलाप की भाषा हिन्दी पर एक कविता हिन्दी की व्यापकता पढी। अभी भी समय है शीर्षक कविता में डॉ रामलक्ष्मी ने आशावादी मानवीय मूल्यों की बात कही। अंत में संतोष अलेक्स ने जीवन और अनुभूतियों पर गजल सुनाई। कार्यक्रम का समापन रमेश कुमार स्वाईं के धन्यवांद ज्ञापन से हुआ। देर रात तक चले इस कार्यक्रम में विशाखपटनम के हिन्दीव प्रेमी, हिन्दीस लेखक और कवि बडी संख्याआ में उपस्थित थे।
– डॉ टी महादेव राव
1 टिप्पणी:
अतिसुन्दर।
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