tag:blogger.com,1999:blog-11495176307940114342024-03-19T09:47:07.580+04:00साहित्य समाचारजाल पत्रिका अभिव्यक्ति को प्रेषित समाचारों का संग्रहपूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.comBlogger325125tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-44406894524962169852013-08-31T19:48:00.001+04:002013-08-31T19:52:51.784+04:00'अभियंता बंधु' के वार्षिक अंक के लिये हिंदी लेख आमंत्रित<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स भारत के अभियंताओं की प्रतिनिधि संस्था है जिसके लगभग १०४ केंद्र भारत में तथा ६ केंद्र भारत के बाहर विदेशों में कार्यरत हैं। हिंदी में तकनीकी लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए इंस्टीट्यूशन प्रतिवर्ष एक पत्रिका 'अभियंता बन्धु' का वार्षिकांक प्रकाशित करता है। अभियांत्रिकी शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने के कारण तकनीकी विषयों में कुशलता से अभियंता कम ही लिख पाते हैं. निर्माण के क्षेत्र में कार्यरत ठेकेदार, सुपरवाइजर, निरीक्षक, मिस्त्री, तकनीशियन, मैकेनिक आदि अंग्रेजी कम और हिंदी अधिक समझते हैं। तकनीकी जानकारियाँ और मानक संहिता आदि हिंदी में सुलभ हों तो यह वर्ग निर्माण कार्यों को अधिक कुशलता से कर सकता है। प्रस्तावित पत्रिका को अभियंताओं की सर्वोच्च संस्था द्वारा अभियंताओं के मार्गदर्शन हेतु प्रकाशित की जाना है, अतः लेखों का तकनीकी जानकारी (मानकों, प्रविधियों, रूपांकन आदि) से समृद्ध होना आवश्यक है।</div>
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<div style="text-align: justify;">
आपसे 'अभियंता बन्धु' हेतु किसी तकनीकी विषय पर हिंदी में आलेख (ए 4 आकार में, कृति देव या यूनीकोड फॉण्ट में ) अपने चित्र व संक्षिप्त परिचय (नाम, शिक्षा, कार्य, प्रकाशित पुस्तकें, उपलब्धियाँ, डाक का पता, ई मेल, ब्लॉग/वेब साईट,दूरभाष / चलभाष ) सहित १५ सितंबर के पूर्व उक्त पते पर भेजने का अनुरोध है। आशा ही नहीं विश्वास है कि आप अपनी व्यस्तता के बाद भी इस सारस्वत अनुष्ठान में समिधा-सहयोग कर सहायक होंगे। एक विषय सूची संलग्न है। आप अपनी विधा तथा पसंद का विषय चुनना चाहें तो तुरंत ३ विषय सूचित करें ताकि एक को विषय को जोड़ लिया जाए। महत्वपूर्ण अभियांत्रिकी परियोजनाओं से जुड़े अभियंता उन पर भी लेख दे सकते हैं। स्काई स्क्रैपर्स, मेट्रो रेल, स्पेस क्राफ्ट, कृषि-यांत्रिकी, बायो इन्जीनियरिन्ग, जेनेटिक इंजीनियरिंग, बायो मेडिकल इंजीनियरिंग आदि विविध क्षेत्रों से लेख आमंत्रित हैं। अन्य देशों के अभियांत्रिकी मानकों / संहिताओं (कोड्स), योजनाओं, शिक्षा ढाँचे आदि पर भी लेख उपयोगी होंगे। भाषा साहित्यिक हिंदी होना आवश्यक नहीं है। बोलचाल की सामान्य हिंदी उपयोगी होगी। तकनीकी शब्दों को यथावत देवनागरी में लिखा जा सकता है।</div>
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विषय निम्न या अपनी सुविधानुसार अन्य ले सकते हैं:<br />
१. परमाणु बिजली उत्पादन की प्रविधि, परियोजनाएं और भावी आवश्यकताएं <br />
२. ऊर्जा के वैकल्पिक स्तोत्र, भावी आवश्यकता और परियोजनाएं <br />
३. स्वर्ण चतुर्भुज परियोजना और राष्ट्रीय यातायात <br />
४. नदी श्रंखला योजना : एक विवेचन <br />
४. गगनचुम्बी भवन, नगर विकास और पर्यावरण <br />
५. भू स्थायीकरण: समस्या और समाधान <br />
६. बाढ़ नियंत्रण नीति : एक समीक्षा <br />
७. बायो मेडिकल इंजीनियरिंग <br />
८. सैन्य अभियांत्रिकी: भावी चुनौतियाँ और तैयारी <br />
९. अन्तरिक्ष अभियांत्रिकी : संभावनाएं <br />
१०. हिंदी की तकनीकी शब्द सामर्थ्य <br />
११. निर्माण सामग्री उपलब्धता, आवश्यकता और अनुसन्धान <br />
१२. विश्व परिदृश्य में भारतीय अभियांत्रिकी प्रौद्योगिकी <br />
१३. अगले दशक में जल समस्या और निदान <br />
१४. प्रबंधन यांत्रिकी शिक्षा और हिंदी <br />
१५. वैश्विक अभियांत्रिकी शिक्षा और हिंदी<br />
१६ . तकनीकी शब्द सामर्थ्य की कसौटी पर हिंदी <br />
१७. अंतरजालीय भाषा के रूप में हिंदी <br />
१८ . संगणक और हिन्दी कुंजीपटल <br />
१९ . विश्व भाषा के रूप में हिंदी का भविष्य <br />
२० . तकनीकी शिक्षा माध्यम के रूप में हिंदी <br />
२१ . हिंदी की तकनीकी शब्दावली <br />
२२ . प्रबंधन कला और हिंदी <br />
२३ . हिंदी की अभिव्यक्ति क्षमता <br />
२४ . वैश्वीकरण के दौर में हिंदी की प्रासंगिकता <br />
२५ . संगणक-भाषा के रूप में हिंदी <br />
२६ . शहरी मल निकासी प्रबंधन <br />
२७ . जल प्रदूषण और शुद्धिकरण <br />
२८ . वर्षा जल प्रबंधन <br />
२९ . हरित भवन तकनीक <br />
३० . बांधों का पर्यावरण पर प्रभाव <br />
३१ . अपारंपरिक निर्माण तकनीक <br />
३२ . बायोमास ऊर्जा <br />
३३ . जीव-चिकित्सकीय कचरे (बायोमेडिकल वेस्ट )का निस्तारण <br />
३४ . हायड्रोपॉवर तकनीक <br />
३५ . भू जल में फ्लोराइड : दुष्प्रभाव और निवारण <br />
३६ . औद्योगिक वेस्ट वाटर का पुनरुपयोग <br />
३७ . रेडी मिक्स कोंक्रीट में वेस्ट वाटर प्रबंधन <br />
३८ . भवन निर्माण संहिता: प्रासंगिकता, प्रभाव और पुनरीक्षण <br />
३९ . अभियांत्रिकी शब्दकोष क्यों और कैसे <br />
४० . विद्युत् संयत्रों में सुरक्षा प्रावधान <br />
४१ . विद्युत् ग्रहों में दुर्घटनाएं और सुरक्षा प्रावधान <br />
४२ . रेल पथ : प्रबंधन और सुरक्षा <br />
४३ . ऊष्मीय विद्युत् संयंत्रों (थर्मल पावर प्लांट्स) में सुरक्षा प्रावधान <br />
४४ . भू स्खलन (लैंड स्लाइड ) : कारण और निवारण <br />
४५ . भू वस्त्रीकरण (जिओटैक्सटाइल्स) से मृदा क्षरण (साइल इरोजन) निषेध <br />
४६ . गुणवत्ता नियंत्रण : पदार्थ परीक्षण यंत्रोपकरण <br />
४७ . स्वर्ण चतुर्भुज योजना <br />
४८ . नदी-श्रंखला योजना <br />
४९ . परमाण्विक बिजली घर : क्यों?, कहाँ?, कैसे?<br />
५० . निर्माण कार्य और फ्लाई ऐश : आवश्यकता, दुष्प्रभाव और निवारण <br />
५१ . स्व उपचारित (सेल्फ हीलिंग) कोंक्रीट<br />
५२ . पूरक जुड़ाई सामग्री तथा अधिमिश्रक(सप्लीमेंट्री सीमेंटिंग मटीरियल एंड एड्मिक्स्चर्स)<br />
५३ . कोंक्रीट संरचनाओं का स्थायित्व <br />
५४ . फाइबर रिएन्फोर्स्ड कोंक्रीट <br />
५५ . कोंक्रीट कार्यों में गुणवत्ता नियंत्रण <br />
५६ . जिओपोलीमर कोंक्रीट <br />
५७ . कोंक्रीट का पुनर्चक्रीकरण (रिसाइकलिंग)<br />
५८ . जिओपोलीमर कोंक्रीट : क्षारीय जल का प्रभाव <br />
५९ . सेल्फ कोम्पैक्टिंग कोंक्रीट: क्यों?, कब और कैसे <br />
६० . मानक कोंक्रीट और सुपर प्लास्टीसाइजर <br />
६१ . चांवल भूसा-भस्म (राइस हस्क ऐश ) मिश्रित कोंक्रीट : स्थायित्व और सुदृढ़ता <br />
६२ . कोंक्रीट : खनिज तथा रासायनिक अधिमिश्रकों (एड्मिक्स्चर्स)का प्रभाव <br />
६३ . कोंक्रीट पर कॉपर स्लैग का प्रभाव<br />
६४ . कोंक्रीट में जलरोधी पदार्थ <br />
६५ . ईंट-रोड़ों से कम वजनी कोंक्रीट <br />
६६ . कोंक्रीट में दरारें: कारण और निवारण <br />
६७ . भूकंपरोधी संरचना : क्यों और कैसे?<br />
६८ . परमाण्विक कचरे का निस्तारण <br />
६९ . परमाण्विक बिजली घर : औचित्य, खतरे और सुरक्षा <br />
७० . भूकंप विज्ञान के तत्व और अपरिहार्यता <br />
७१ . भूकंपीय आवृत्ति और तीव्रता : पूर्वानुमान और बचाव <br />
७२ . भूकंप का कोंक्रीट संरचना पर दुष्प्रभाव <br />
७३ . प्रबलित संरचन का भूकंपीय व्यवहार <br />
७४ , ईंट-जुडाई निर्मित भवनों पर भूकंप का प्रभाव <br />
७५ . विद्युत् उपकरण युक्त संरचनाओं का भूकंपीय रूपांकन <br />
७६ . भूकंपीय हलचल: मानक और मापन <br />
७७ . बाँध संरचना पर भूकंपीय प्रभाव और सुरक्षा <br />
७८ . खदानों पर भूकंपीय प्रभाव और सुरक्षा <br />
७९ . गगनचुम्बी भवनों की भूकंपीय सुरक्षा <br />
८० . प्री कास्ट कोंक्रीट भवनों पर भूकंपीय प्रभाव और सुरक्षा <br />
८१ . भूकम्परोधी नींव <br />
८२ . भवनों का भूकंपीय प्रबलीकरण <br />
८३ . विद्युत् उपकेन्द्र, उपकरणों और खम्बों पर भूकंपीय प्रभाव <br />
८४ . नगरों में आपदा प्रबंधन <br />
८५ . ग्रामों में आपदा प्रबंधन <br />
८६ . मूल्यांकन यांत्रिकी <br />
८७ . श्रमिक उत्पादकता<br />
८८ . सामग्री प्रबंधन <br />
८९ . निर्माण उपकरण और संयंत्र <br />
९० . लागत तथा मूल्यानुमान <br />
९१ . निर्माण आयोजन और प्रबंधन <br />
९२ . अल्प मोली भवन संरचना <br />
९३ . परियोजना प्रबंधन <br />
९४ . विकास नियोजन हेतु सूक्ष्म तथा वृहद् क्षेत्रांकन <br />
९५ . ठोस अपशिष्ट (सॉलिड वेस्ट) प्रबंधन <br />
९६ . पर्यावरणीय विकास <br />
९७ . सडक दुर्घटना कारण और निवारण <br />
९८ . नगरीय यातायात : धूम्र तथा ध्वनि प्रदूषण <br />
९९ . विकासशील शहरों का यातायात विश्लेषण और प्रबंधन <br />
१०० . सार्वजनिक यातायात : पूर्वानुमान, प्रबंधन और नियंत्रण <br />
१०१ . यातायात दुर्घटनाओं पर मादक पदार्थ सेवन का प्रभाव और नियंत्रण <br />
१०२ . सडक यातायात और वाहन हेड लाइट्स <br />
१०३ . सड़क सुरक्षा प्रबंधन और उपाय <br />
१०४ . सडक यातायात और सुदूर नियंत्रण <br />
१०५ . रेल पथ यातायात प्रबंधन <br />
१०६ . रेल पथ और भूकंप <br />
१०७ . भूकंप और सेतु सुरक्षा <br />
१०८ . यातायात प्रबंधन और सूचना तकनीक <br />
१०९ . यातायात और वायु प्रदूषण <br />
११० . यातायात दुर्घटनाएं और चलभाष <br />
१११ . सडक दुर्घटनाएं : मानवीय और यांत्रिक चूकें <br />
११२ . सडक दुर्घटनाओं के मनोवैज्ञानिक कारण <br />
११३ . यातायात प्रबंधन और अनुज्ञप्ति प्रणाली <br />
११४ . मार्ग दुर्घटनाएं और जन व्यवहार <br />
११५ . सडक विकास और सडक सुरक्षा <br />
११६ . महामार्ग और पर्यावरण प्रदूषण <br />
११७ . महामार्ग निर्माण और जूट टेक्सटाइल <br />
११८ . रेलपथ सुरक्षा और जूट टेक्सटाइल <br />
११९ . जिओटेक्सटाइल और भूस्खलन <br />
१२० . भूस्खलन-भूक्षरण और वानिकीकरण <br />
१२१ . मृदा भारवहन क्षमता: पूर्वानुमान और सीमायें <br />
<br />
इस वर्ष प्रकाशन का दायित्व जबलपुर केंद्र को तथा इसके संपादन की जिम्मेदारी इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल' को दी गयी है। सभी लेख भेजने तथा संपर्क करने के लिये इन संपर्कों का उपयोग करें-<br />
ई मेल: <a href="mailto:salil.sanjiv@gmail.com">salil.sanjiv@gmail.com</a>, <br />
चलभाष: 9425183244 <br />
दूरभाष 0761 2411131 <br />
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विज्ञापन देने के इच्छुक लोग संपादक से संपर्क कर सकते हैं।<br />
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संजीव वर्मा, संपादक <br />
बलवंत सिंह बघेल, अध्यक्ष <br />
वीरेन्द्र कुमार साहू, मानद सचिव <br />
इंस्टीटयूशन ऑफ़ इंजीनियर्स (इंडिया) लोकल सेंटर जबलपुर </div>
पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-69526154827022441462013-08-31T19:37:00.002+04:002013-08-31T19:37:51.724+04:00यूरोप में आधुनिक हिन्दी शिविर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOzUt4FmEUG5l8qNSpigbfE3M-vvgSI8iQxc7aFCyiJvc9ZyWShBUZx1nLcLgXEYw1aZTK8I3RH7TtS73QeEWAaQplO_NixZRKZdIAMVeCE-yQH70ZiKMYct7IjV-sN5hdgjpgz6LDKik/s1600/Capture2.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="226" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOzUt4FmEUG5l8qNSpigbfE3M-vvgSI8iQxc7aFCyiJvc9ZyWShBUZx1nLcLgXEYw1aZTK8I3RH7TtS73QeEWAaQplO_NixZRKZdIAMVeCE-yQH70ZiKMYct7IjV-sN5hdgjpgz6LDKik/s320/Capture2.JPG" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
गत वर्षों में आयोजित संस्कृत और ब्रजभाषा शिविरों की तरह रोमेनिया के ऐतिहासिक नगर चीकसैरैदॉ के सपिएंत्सियाँ विश्वविद्यालय में आधुनिक हिन्दी शिविर का आयोजन किया गया है। </div>
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<div style="text-align: justify;">
यह शिविर विश्वविद्यालय के परिसर में १९-३० अगस्त के बीच आयेजित किया जा रहा है। शिविर के अंतरगत सुषम वेदी की कहानी अवसान, उपन्यास हवन और मैंने नाता तोड़ा के अंश, असगर वजाहत के नाटक जिस लाहौर नइ देख्या जो जम्याइ नइ, गीतांजली श्री के उपन्यास खाली जगह के कुछ अंश, कुणाल सिंह की कहानी प्रेमकथा में मोजे की भूमिका और राहुल सांकृत्यायण की कहानी सुदास का विश्लेषण और अनुवाद किया जाएगा। </div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxgm7hRZeTNpHcdxAQhe_411oJ-ZTFKVrpGhKhEOBiD7YBaygnMNSPW87xprzemtxoeFUdiT159rOyjNZWfSdv07-4div4RT-stKwf7gYSOBGJY09VIeizObPNTceQjNyTPqtF822Ab5Q/s1600/Capture3.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="241" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxgm7hRZeTNpHcdxAQhe_411oJ-ZTFKVrpGhKhEOBiD7YBaygnMNSPW87xprzemtxoeFUdiT159rOyjNZWfSdv07-4div4RT-stKwf7gYSOBGJY09VIeizObPNTceQjNyTPqtF822Ab5Q/s320/Capture3.JPG" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
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स्विट्सरलैंड के लोजन विश्वविद्यालय के डॉ निकोला पोजा गीतांजली श्री का अनुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं, इटली के तोरीनों (टचुरिन) विश्वविद्यालय की डॉ आलेस्संद्रा कोनसोलारो कुणाल सिंह की कहानी प्रेमकथा में मोजे की भूमिका पर काम कर रही हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
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हंगेरी के बुदापैशत (ब्युडापेस्ट) विश्वविद्यालय की प्रोफेसर मारिया नेज्यैशि जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ का हंगेरियन अनुवाद कर रही हैं। उन्होंने नाटक की हिन्दी-अँग्रजी शब्दावली बना भेजी है।</div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjwIUPELsDNwNhiXO-IOMU50yQshEY_l46XKl72ndRexwcf3-ZuWDovY25pcZ2xbFvqRnM7JE2yJuVHMEnV9Ys4J3bb8ki2_bT8KkyXAbaix79IWlBwGOHzx0Cr44LHkz0B9RNpjG8ggJ0/s1600/Capture5.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="237" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjwIUPELsDNwNhiXO-IOMU50yQshEY_l46XKl72ndRexwcf3-ZuWDovY25pcZ2xbFvqRnM7JE2yJuVHMEnV9Ys4J3bb8ki2_bT8KkyXAbaix79IWlBwGOHzx0Cr44LHkz0B9RNpjG8ggJ0/s320/Capture5.JPG" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
इस आयोजन में हिन्दी के दो वरिष्ठ लेखक सुषम वेदी और असगर वजाहत अपनी रचनाओं के अनुवाद की प्रक्रिया में सक्रिया रूप में भाग ले रहे हैं। इसके कारण अनुवाद की चुनौतियों और मूल पाठ की बहुस्तरीय व्याख्या को समझने और अनुवाद करने में मदद मिल रही है।</div>
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<div style="text-align: justify;">
इस आयोजन के संयोजक डॉ इमरै बंघॉ के अनुसार शिविर का उद्देश्य हिन्दी के छात्रों और युवा विद्वानों को प्रतिष्ठित लेखकों की रचनाओं को पढ़ने और लेखकों से उनकी चर्चा करने का औपचारिक और अनौपचारिक मौका देना है। कार्यक्रम में रोमेनिया, भारत, इटली, पोलैंड, स्विट्सरलैंड, अमरीका और हंगेरी के दस लोग भाग ले रहे हैं।</div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFPqoS-u0iDv3CVas4BiUAaZ1PLyvih_-pl-EJXeaG2goZj2_MYhOPpb9IQIur1AQAJU335eo3ZVVhEO6oL4_ofYCZHz5lRRyRM5mKpZcO_2toLfPVKqFo3Jo74YqIBoO7RP9RdpXyD4I/s1600/Capture1.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFPqoS-u0iDv3CVas4BiUAaZ1PLyvih_-pl-EJXeaG2goZj2_MYhOPpb9IQIur1AQAJU335eo3ZVVhEO6oL4_ofYCZHz5lRRyRM5mKpZcO_2toLfPVKqFo3Jo74YqIBoO7RP9RdpXyD4I/s320/Capture1.JPG" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
कार्यक्रम की एक विशेषता यह है कि इसके कुछ सत्र कक्षा की सीमाओं से मुक्त भी होते हैं जिनका आयोजन रवींद्रनाथ ठाकुर के शांतिनिकेतन की तरह क्लासरूम से बाहर, प्राकृतिक स्थलों पर किया जाता है। इन स्थलों में करपेश्ज्ञियन पहाड़ों पहाड़ों के अंतरगत शोम्यो पहाड़, हरगितॉ की तरह, सेंट ऐन्न झील आदि सुंदर स्थल आते हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
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<div style="text-align: justify;">
डॉ जोल्तान मको </div>
<div style="text-align: justify;">
डीन</div>
<div style="text-align: justify;">
मानविकीय एवम् अर्थशास्त्र </div>
<div style="text-align: justify;">
सपिएंत्सियॉ हंगेरयन विश्वविद्यालय</div>
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चीकसैरैदॉ, रोमेनिया</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-42891480212025950752013-06-29T01:51:00.000+04:002013-06-29T01:52:13.741+04:00महुआ घटवारिन को १९वां कथा यू.के. सम्मान <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDTfPBuCt_PXX5NtDYdOn05PNiXz7KcNniBa04PqUNxCIqA2M3TRLsydBwgLBBtgX6xEgaLTUK-Vt6iEt5bfUa-YAwD6sXLfSJD3VkU04or99hfTj0jasxnTmWCnBPHDILXD87AESJCLE/s337/ss13_06_29.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="248" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDTfPBuCt_PXX5NtDYdOn05PNiXz7KcNniBa04PqUNxCIqA2M3TRLsydBwgLBBtgX6xEgaLTUK-Vt6iEt5bfUa-YAwD6sXLfSJD3VkU04or99hfTj0jasxnTmWCnBPHDILXD87AESJCLE/s320/ss13_06_29.JPG" width="320" /></a></div>
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कथा (यू के) के अध्यक्ष एवं प्रतिष्ठित मीडिया हस्ती श्री कैलाश बुधवार ने लंदन से सूचित किया है कि वर्ष २०१३ के लिए अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान कथाकार श्री पंकज सुबीर को उनके सामयिक प्रकाशन से २०१२ में प्रकाशित कहानी संग्रह महुआ घटवारिन और अन्य कहानियाँ पर देने का निर्णय लिया गया है। श्री कैलाश बुधवार ने बताया कि इस वर्ष सम्मान के लिए केवल कहानी विधा पर ही ध्यान केन्द्रित किया गया क्योंकि पिछले दो वर्षों में बहुत से स्तरीय कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं। पंकज सुबीर के अतिरिक्त अजय नावरिया, मनीषा कुलश्रेष्ठ, प्रेम भारद्वाज एवं विवेकानन्द के कहानी संग्रह अंतिम पाँच की दौड़ तक पहुंचे। विजेता का चुनाव करने में निर्णायकों को ख़ासी कठिनाई का सामना करना पड़ा। </div>
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इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना संभावनाशील कथा लेखिका एवं कवयित्री इंदु शर्मा की स्मृति में की गयी थी। इंदु शर्मा का कैंसर से लड़ते हुए अल्प आयु में ही निधन हो गया था। अब तक यह प्रतिष्ठित सम्मान चित्रा मुद्गल, संजीव, ज्ञान चतुर्वेदी, एस आर हरनोट, विभूति नारायण राय, प्रमोद कुमार तिवारी, असग़र वजाहत, महुआ माजी, नासिरा शर्मा, भगवान दास मोरवाल, हृषिकेश सुलभ, विकास कुमार झा एवं प्रदीप सौरभ को प्रदान किया जा चुका है।</div>
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<div style="text-align: justify;">
इस सम्मान के अन्तर्गत दिल्ली - लंदन - दिल्ली का आने जाने का हवाई यात्रा का टिकट (एअर इंडिया द्वारा प्रायोजित), एअरपोर्ट टैक्स़, इंगलैंड के लिए वीसा शुल्क, एक शील्ड, शॉल, लंदन में एक सप्ताह तक रहने की सुविधा तथा लंदन के खास खास दर्शनीय स्थलों का भ्रमण आदि शामिल होंगे। यह सम्मान श्री पंकज सुबीर को लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में एक भव्य आयोजन में प्रदान किया जायेगा।</div>
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<div style="text-align: justify;">
पंकज सुबीर का जन्म ११ अक्टूबर १९७५ को मध्यप्रदेश के होशँगाबाद जिले के सीवनी मालवा कस्बे में हुआ । पिता के शासकीय सेवा में चिकित्सक होने के कारण मध्यप्रदेश के विभिन्न शहरों में शिक्षा दीक्षा हुई। बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल के अंतर्गत आने वाले शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय (अब चंद्रशेखर आज़ाद शासकीय स्नातकोत्तर अग्रणी महाविद्यालय) से जीव विज्ञान विषयों में स्नातक उपाधि तथा उसके बाद वहीं से रसायन शास्त्र (अकार्बनिक रसायन शास्त्र) में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की । अब तक सौ से ज्यादा साहित्यिक रचनाएँ जिनमें कहानियाँ, कविताएँ, ग़ज़लें, लेख तथा व्यंग्य लेख शामिल हैं देश भर की शीर्ष साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्मानित कृति के अतिरिक्त पंकज का एक कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी और एक उपन्यास ये वो सहर तो नहीं प्रकाशित हो चुके हैं। ३८ वर्षीय पंकज सुबीर को बहुत से पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं जिनमें उपन्यास ये वो सहर तो नहीं के लिए भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, इंडिपेंडेंट मीडिया सोसायटी (पाखी पत्रिका) द्वारा शब्द साधक जनप्रिय सम्मान, गोरखपुर उत्तर प्रदेश की संस्था नवोन्मेष द्वारा साहित्य का नवोन्मेष सम्मान शामिल हैं। वर्तमान में फ्रीलांस पत्रकारिता के साथ साथ कम्प्यूटर हार्डवेयर, नेटवर्किंग तथा ग्राफिक्स प्रशिक्षक के रूप में कार्यरत हैं । जब से सम्मान को अन्तर्राष्ट्रीय किया गया है तब से अब तक पंकज सुबीर सबसे छोटी आयु के साहित्यकार हैं जिनको सम्मानित किया जा रहा है।</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9USmgIOeVGtpno6gdu4gM1vw334anxC8JEVqoGKtXaRpn0PhwEEfn1aQwo95_P8AG1Gc4OA7M0uwxPKpOUTMDKWMcCnRDnEdVFpOjtdqz94opl9RFq-ORcHCkx45SFylVH0z-VnxcUo0/s322/ss13_06_29b.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="223" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9USmgIOeVGtpno6gdu4gM1vw334anxC8JEVqoGKtXaRpn0PhwEEfn1aQwo95_P8AG1Gc4OA7M0uwxPKpOUTMDKWMcCnRDnEdVFpOjtdqz94opl9RFq-ORcHCkx45SFylVH0z-VnxcUo0/s320/ss13_06_29b.JPG" width="320" /></a></div>
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वर्ष २०१३ के लिए पद्मानन्द साहित्य सम्मान बर्मिंघम के डा. कृष्ण कन्हैया को उनके कविता संग्रह किताब ज़िन्दगी की (२०१२ – वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली) के लिए दिया जा रहा है। डा. कृष्ण कन्हैया का जन्म पटना, बिहार में हुआ था और उन्होंने रांची विश्वविद्यालय से एम.बी.बी.एस. की शिक्षा प्राप्त की जबकि पटना विश्वविद्यालय से सर्जरी में मास्टर्स पूरी की। इसके अतिरिक्त उन्होंने एडिनबरा से मेडिकल की अन्य डिग्रियाँ हासिल की हैं। उनकी प्रकाशित रचनाओं में सूरज की सोलह किरणें, कविता-२००७ (कविता संग्रह),शामिल हैं। उनका एक कविता संग्रह किताब संवेदना की प्रकाशनाधीन है। डॉ. कृष्ण कन्हैया का कहना है कि विदेश आने के बाद अपनी संस्कृति का गर्व, अपने संस्कारों की गरिमा, अपने गांव की शुद्ध सौंधी ख़ुशबू और अपनी मातृभूमि से अनवरत लगाव मेरी अनतरात्मा को ज़्यादा उद्वेलित करता था जिसकी झलक अब मैं अपनी कविताओं में महसूसता हूँ।</div>
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इससे पूर्व इंगलैण्ड के प्रतिष्ठित हिन्दी लेखकों क्रमश: डॉ सत्येन्द श्रीवास्तव, सुश्री दिव्या माथुर, श्री नरेश भारतीय, भारतेन्दु विमल, डा.अचला शर्मा, उषा राजे सक्सेबना, गोविंद शर्मा, डा. गौतम सचदेव, उषा वर्मा, मोहन राणा, महेन्द्र दवेसर, कादम्बरी मेहरा, नीना पॉल एवं सोहन राही को पद्मानन्द साहित्य सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।</div>
कथा यू.के. परिवार विशेष तौर पर श्रीमती चित्रा मुद्गल, श्री भारत भारद्वाज, श्रीमती उर्मिला शिरीष, श्रीमती सुधा ओम ढींगरा, श्री सुशील सिद्धार्थ, श्रीमती साधना अग्रवाल एवं श्री आलोक मेहता का हार्दिक आभार मानते हुए उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करता है जिन्होंने इस वर्ष के पुरस्कार चयन के लिए लेखकों के नाम सुझा कर हमारा मार्गदर्शन किया।<br />
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- तेजेन्द्र शर्मा<br />
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-39207964324250626972013-05-02T16:29:00.000+04:002013-05-02T16:32:12.590+04:00येल विश्वविद्यालय में कथा गोष्ठी का आयोजन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7dh-EDKNQn_4W6U13cNaKxaO1iBYcpntKlonDr3V7Kih1iMJdKk2k4__GufbTEZj_E7bCtQGH0Q81h8CbUT0h390WRcCCvFKM8wCgsby3-eaFDHSHNURfymrqr3AcA1hJ0zaUQc8Nelo/s1600/Kahani+Group+2.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7dh-EDKNQn_4W6U13cNaKxaO1iBYcpntKlonDr3V7Kih1iMJdKk2k4__GufbTEZj_E7bCtQGH0Q81h8CbUT0h390WRcCCvFKM8wCgsby3-eaFDHSHNURfymrqr3AcA1hJ0zaUQc8Nelo/s320/Kahani+Group+2.jpeg" /></a> <br />
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अप्रैल २०१३ में, येल विश्वविद्यालय में वहीं के दक्षिण एशियाई अध्ययन परिषद् और सीमा खुराना जी के सहयोग एवं सुषम जी के निर्देशन में कथा-गोष्ठी (कहानी-वर्कशॉप) का आयोजन किया गया जिसमें कई सम्मानित, स्थापित एवं नए कथाकारों ने भाग लिया। सुषम जी येल विश्वविद्यालय में ‘राइटर इन रेज़िडेंस’ के तौर पर आमंत्रित थीं इसलिए इस बार वहीँ पर कथा गोष्ठी हुई और गोष्ठी का विषय था ‘डायस्पोरा से सम्बंधित कहानियां!’ </div>
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इस कहानी-वर्कशॉप में सभी कथाकारों ने क्रम से अपनी लिखी हुई कहानी पढ़ी और हर कहानी सुनने के बाद श्रोताओं ने उस कहानी विशेष के बारे में अपना विचार व्यक्त किया और सुषम जी ने कहानी के विभिन्न पक्षों को ध्यान में रखते हुए टिपण्णी दी। कथा-गोष्ठी में येल विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में पढ़ाने वालों एवं कई हिंदी प्रेमिओं ने भाग लिया। इनमें सुषम बेदी और सीमा खुराना के साथ-साथ वरिष्ठ लेक्चरर गीतांजलि चंदा, स्वप्ना शर्मा, स्वदेश राणा, आस्था नवल, राधा गुप्ता, चारु अग्रवाल, राहुल बेदी, सुनील खुराना, संगीता जग्गी, विशाखा ठाकर, सविता नायक इत्यादि ने भाग लिया। इसके साथ ही येल विश्वविद्यालय के हिंदी पढ़ने वाले कुछ विद्यार्थियों, अखिल सूद, शौनक बक्शी, शांतनु गंगवार, आनंद खरे, स्मिता शुक्ला ने भी भाग लिया। कुछ कथाकार एवं भाग लेने वाले लोग काफी दूर से या दूसरे राज्यों से भी आये थे। पहले से कुछ अलग और विशेष यह था कि इस बार विद्यार्थिओं ने भी इस वर्कशॉप में हिस्सा लिया, सबकी कहानियां सुनीं और हर कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया दी। </div>
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कथा गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए सुषम जी ने कहानी वर्कशॉप के विषय में कुछ शब्द कहे और फिर एक-एक करके सभी कथाकारों को अपनी कहानी पढ़ने के लिए आमंत्रित किया। <br />
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सर्प्रथम सविता नायक ने अपनी कहानी ‘वीकेंड’ पढ़ी। कहानी पर अपना विचार व्यक्त करते हुए सुषम जी ने कहा कि इस कहानी में यह बात उठाई गई है कि हर किसी में संवेदनशीलता तो रहती है पर कैसे सरोकार बदल जाते हैं। <br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimp88kodPZclWrS_Fghs58ANT6kJuLDGNrtrL-ifaS0cbqEaui58HMV-6C36CdgDDXn-YDrZMBb1B2ub021xHdNCRtAIbkUMj83T-D7cbegdr89HuHedohIrO40pY6GoXN1iR8-BLMNEM/s1600/Reading+kahani.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimp88kodPZclWrS_Fghs58ANT6kJuLDGNrtrL-ifaS0cbqEaui58HMV-6C36CdgDDXn-YDrZMBb1B2ub021xHdNCRtAIbkUMj83T-D7cbegdr89HuHedohIrO40pY6GoXN1iR8-BLMNEM/s320/Reading+kahani.jpeg" /></a> <br />
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तत्पश्चात आस्था नवल ने अपनी कहानी ‘एमी’ पढ़ी जो एक तलाकशुदा लड़की के बारे में है और पूछा कि वह इसको लेख कहें या कहानी कहें, क्या यह कहानी होगी? इस पर स्वदेश राणा जी ने कहा कि इस कहानी में संवेदनशीलता है और साथ में यह भी कहा कि अगर संवेदनशीलता हो तथा कलम उठाने की ताकत हो तो कहानी अपने आप बन जाती है। <br />
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सुषम जी ने कहानी पर अपना विचार अभिव्यक्त करते हुए कहा कि नए प्रवासी कहानीकार ‘ऑन लुकर’ की तरह होते हैं। उनकी भागीदारी जितनी अपनी संस्कृति में होती है उतनी भागीदारी यहाँ की ज़िंदगी में नहीं होती है इसलिए उनको कहानी ‘एमी’ ‘ऑन लुकर’ की दृष्टि से लिखी गई कहानी की तरह लगती है। आगे कहानी विषय पर चर्चा और अपने विचार व्यक्त करते हुए सुषम जी ने कहा कि कहानी पर अपनी ज़िंदगी की बातों का, पृष्ठभूमि का प्रभाव होता है। कोई भी कलाकार हो, उसकी कलाकृति या कहानी में उसकी पृष्ठभूमि रहती है।</div>
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<div style="text-align: justify;">
तत्पश्चात स्वदेश राणा जी ने अपनी कहानी ‘निष्कलंकिनी’ की पृष्ठभूमि बताई। उन्होंने कथा गोष्ठी में अपनी कहानी के मुख्य पात्रों ‘अम्बुजम’, ‘फिलिप’ इत्यादि का परिचय दिया और कहानी के कुछ अंश पढ़े। सुषम जी ने कहा कि स्वदेश जी का ‘अंदाज़े बयान’ काबिले तारीफ़ होता है। अखिल सूद ने ‘निष्कलंकिनी’ कहानी के बारे में कहा कि वह इस कहानी से बहुत आनंदित हुए और जिस तरह से कहानी शुरू हुई, मुख्य पात्रों का परिचय इत्यादि जिस ढंग से बताया गया वह सब कुछ इतना समृद्ध लगा कि इस कहानी के कुछ अंश सुनना निसंदेह सम्मोहित कर देने वाला अनुभव था। सविता नायक ने कहा कि स्वदेश जी की कहानी की भाषा बहुत समृद्ध और विवरण शैली अद्भुत है। एक और प्रश्न के उत्तर में सुषम जी ने कहा कि लेखक ‘क्रिएट(सृजन) करता है। अतः लेखक अपने पात्रों को बनाता है पर वह पात्र स्वयं को खुद ही जीते हैं।’ </div>
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कथा गोष्ठी के दूसरे भाग की शुरुआत में सर्वप्रथम विशाखा ठाकर ने अपनी कथांतर में प्रकाशित कहानी ‘गलीचा’ पढ़ी। सीमा खुराना ने अपनी कहानी ‘बूढ़ा शेर’ पढ़ी। सुषम बेदी ने अपनी कहानी ‘चेरी फूलों वाले दिन’ पढ़ी। विद्यार्थिओं ने तीनों कहानिओं पर एक साथ अपनी प्रतिक्रिया देते हुए ‘गलीचा’ कहानी को रोमांचक, ‘बूढ़ा शेर’ कहानी को ‘संबंधों पर केंद्रित’ तथा ‘चेरी फूलों वाले दिन’ को भावपूर्ण और नाना-नानी एवं दादा-दादी की याद दिला देने वाली कहानी बताया। अखिल सूद ने ‘गलीचा’ कहानी के बारे में कहा कि यह एक सुखद कथा थी जिसकी कि शुरुआत ने ही सुन्दर ढंग से पूरी कहानी को स्वर प्रदान किया और सुनने वालों को सचेत रखा और कहा कि सुषम जी और सीमा जी की कहानियां अच्छी और भावपूर्ण थीं और कथा गोष्ठी में सभी लेखकों को सुनना निश्चय ही अच्छा अनुभव रहा।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMZl8cgjGPC_KjUGlw8u80ZHqkeMyJS1L1019UiAGDmqjsoRTuMJ0OJUYIGlJznllurOjQGEIG7ErPvys8YjByKfuiSAjAchT6B7u62mW4c-FZcp8LE_xfKtv8Hm72EZ2LqP50rL6flYk/s1600/Yale+Students+1.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMZl8cgjGPC_KjUGlw8u80ZHqkeMyJS1L1019UiAGDmqjsoRTuMJ0OJUYIGlJznllurOjQGEIG7ErPvys8YjByKfuiSAjAchT6B7u62mW4c-FZcp8LE_xfKtv8Hm72EZ2LqP50rL6flYk/s320/Yale+Students+1.jpg" /></a>कथा गोष्ठी में कहानी के विभिन्न भागों, लेखन प्रक्रिया इत्यादि पर हो रही चर्चा को सुनकर स्मिता शुक्ला ने कहा कि ‘कभी सोचा नहीं था कि कहानी के किरदारों के लिए इतना सोचना पड़ता है!’ और डायस्पोरा से सम्बंधित कहानिओं को सुनकर उन्होंने यह भी कहा कि ‘डायस्पोरा हमारी कहानी का हिस्सा है और वह कथा गोष्ठी में ऐसी कहानिओं को सुनकर स्वयं को उनसे ‘रीलेट’ (जुड़ा हुआ महसूस) कर पायीं।’ <br />
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डायस्पोरा की बात पर गीतांजलि चंदा ने विद्यार्थिओं से उनका मत जानने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रश्न किया कि उन्होंने कहानी सुनने के बाद किस बात से जाना कि कहानी डायस्पोरा से सम्बंधित थी या नहीं? कुछ और लोगों ने भी ‘डायस्पोरा से जुड़ी कहानी’ को अधिक स्पष्ट भाव से जानना चाहा। इस विषय पर चर्चा हुई और स्पष्ट किया गया कि ‘डायस्पोरा’ वह स्थिति है जिसमें जब किसी एक संस्कृति के लोग दूसरी संस्कृति के लोगों से मिलते हैं तो जिस तरह से उस स्थिति को देखते, समझते और निभाते हैं, उन्हीं को दर्शाती/बताती हुई बातों/कहानिओं को हम ‘डायस्पोरा से सम्बंधित’ कहते हैं।</div>
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सीमा खुराना ने विद्यार्थिओं से उनका मत जानने के लिए प्रश्न किया कि क्या (उनके द्वारा) कहानी को पसंद करने के लिए उस कहानी का डायस्पोरा से सम्बंधित होना ज़रूरी है? इस प्रश्न के उत्तर में सभी छात्रों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की जिसका संक्षेप में निष्कर्ष यह रहा कि उनको प्रवासी जीवन के बारे में पढ़ना अच्छा लगता है मगर उनके द्वारा कहानी को पसंद करने के लिए हर कहानी का प्रवासी जीवन से जुड़ा होना आवश्यक नहीं है। अतः उनको ऐसी कहानी पढ़ना अच्छा लगता है जो रोचक हो और उनकी उत्सुकता को बनाए रखे।<br />
<br />
सुषम जी ने कथा गोष्ठी के विषय में कहा कि कहानी वर्कशॉप शुरू करने का मुख्य उद्देश्य यही था कि लिखने वाले आपस में मिल कर चर्चा कर सकें। उन्होंने कहा कि जब लिखने और सुनने वाले मिलते हैं तो कई बार कहानीकार जो कुछ भी लिख रहा था उससे हटकर कुछ और लिखने का प्रयास भी करने लगता है और कहा कि यह बात उन्होंने स्वयं पर भी लागू होती पाई और इसीलिए इस बार उन्होंने पहले जैसे विषयों पर कहानी लिखने से हटकर एक अलग विषय पर कहानी लिखने की कोशिश की। </div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhHBFMBwlNjUS_NKUvQZ5Yz9SD4Y9-jeeX1cByhYgknTXWhs7YJY-OXI1m_6T81BFUA7zDLfyAgCgzJuXilshNoSA6DZmHVPH6DtMO9glgvIRM-Nmzr1sJ_70rvwh0CBormaqS24Aqi-jE/s1600/Yale+Students+2.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhHBFMBwlNjUS_NKUvQZ5Yz9SD4Y9-jeeX1cByhYgknTXWhs7YJY-OXI1m_6T81BFUA7zDLfyAgCgzJuXilshNoSA6DZmHVPH6DtMO9glgvIRM-Nmzr1sJ_70rvwh0CBormaqS24Aqi-jE/s320/Yale+Students+2.jpg" /></a>हर बार की तरह इस बार भी कथा गोष्ठी बहुत सफल रही। विस्तृत विचार-विमर्श एवं विद्यार्थिओं की सह-भागिता ने इसको अद्वितीय बना दिया। ‘कनेटिकट’ दूर होने की वजह से हिंदी, पंजाबी और उर्दू के कई रचनाकार एवं न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के बहुत से साहित्य प्रेमी इस बार की कथा गोष्ठी में भाग नहीं ले सके और आशा करते हैं कि शीघ्र ही कथा गोष्ठी का आयोजन न्यू यॉर्क या किसी निकट स्थान पर भी होगा। </div>
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- सविता नायक </div>
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-42090511911772888662013-02-19T23:04:00.001+04:002013-02-19T23:06:39.885+04:00कृष्ण बिहारी को सृजनगाथा सम्मान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlhS-uGURX-u-OGwloxw5K54mA3ZsuS3eewuK_14fStTraowmxRUuIGhIGhOzx_cYRPGUEJYiyMUzqgYMhMABqIjj0QfLnULf737xEkHrjseoFDdMyR7Wk3Q3-KAZVJSmMH-ooVF-_3W4/s1600/ss02_23_13.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="213" mea="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlhS-uGURX-u-OGwloxw5K54mA3ZsuS3eewuK_14fStTraowmxRUuIGhIGhOzx_cYRPGUEJYiyMUzqgYMhMABqIjj0QfLnULf737xEkHrjseoFDdMyR7Wk3Q3-KAZVJSmMH-ooVF-_3W4/s320/ss02_23_13.jpg" width="320" /></a></div>
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१४ फरवरी २०१३, दुबई के इंपीरियल होटल स्यूइट्स में आयोजित एक भव्य समारोह में भारतीय दूतावास के डेप्युटी काउंसलर (कामर्स एवं आर टी आई) पी.के. अशोक बाबू के हाथों यूएई निवासी कथाकार श्री कृष्णबिहारी को सम्म्मानित किया गया। यह सम्मान सृजनगाथा द्वारा उनकी लम्बी एवं उत्कृष्ट साहित्य सेवा के लिए प्रदान किया गया। इस अवसर पर १०० से अधिक भारतीय एवं युएई निवासी साहित्यकार, कलाकार एवं विशिष्ट नागरिक उपस्थित थे। <br />
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कृष्ण बिहारी हिन्दी के ऐसे पहले एवं एकमात्र लेखक हैं जिन्होंने अपनी सौ से अधिक कहानियों में संयुक्त अरब इमारात के जीवन को गहनता और विस्तार के साथ चित्रित किया है। अध्यापन एवं पत्रकारिता से जुड़े कृष्ण बिहारी की ख्याति उनकी कहानियों कि लिये हैं लेकिन उन्होंने कहानियों के अतिरिक्त कविता, एकांकी, उपन्यास और संस्मरण भी बखूबी लिखे हैं। वे संयुक्त अरब इमारात से निकलने वाली एक मात्र साहित्यिक पत्रिका 'निकट' के प्रकाशक व संपादक भी हैं। </div>
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-11331253660407890642013-01-13T09:11:00.001+04:002013-01-13T09:12:34.166+04:00राजस्थान पत्रिका का सृजनात्मक साहित्य सम्मान-२०१३ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRdtuC9tsGI3XDQ1oBI5uEN9bSzTl3lU80qGZMVoX9n74ylpGW6qExKYK-FiBxeqnVBiGDvTGfyiCZkmgPhmqQIMPZshOsEiAqVRhNS_I00wPDtTOdmJbpbsen1f5iLyQhKiCre-560U4/s1600/abnish2.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRdtuC9tsGI3XDQ1oBI5uEN9bSzTl3lU80qGZMVoX9n74ylpGW6qExKYK-FiBxeqnVBiGDvTGfyiCZkmgPhmqQIMPZshOsEiAqVRhNS_I00wPDtTOdmJbpbsen1f5iLyQhKiCre-560U4/s320/abnish2.JPG" width="320" /></a></div>
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जयपुर, ७ जनवरी २०१३ को जयपुर के भट्टारकजी की नसियां स्थित इन्द्रलोक सभागार में पं. झाबरमल्ल शर्मा स्मृति व्याख्यान समारोह का भव्य आयोजन किया गया। इस आयोजन में सृजनात्मक साहित्य सम्मान-२०१३ के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। </div>
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पत्रिका समूह के परशिष्टों में प्रकाशित होने वाली कहानियों और कविताओं में प्रथम और द्वितीय का चयन करके दोनों विधा के रचनाकारों को प्रतिवर्ष सम्मानित कर क्रमशः ग्यारह हजार और पाँच हजार रुपए की राशि भी भेंट की जाती है। इस साल कविता में प्रथम पुरस्कार अवनीश सिंह चौहान तथा द्वितीय पुरस्कार प्रीता भार्गव को दिया गया। कहानी में पहला पुरस्कार राहुल प्रकाश को तथा दूसरा पुरस्कार कथाकार मालचंद तिवाड़ी को दिया गया। कविता में पहला पुरस्कार प्राप्त करने वाले अवनीश सिंह चौहान युवा कवियों में अपना अहम स्थान रखते हैं। हमलोग परिशिष्ट में प्रकाशित उनके तीन गीत- 'किसको कौन उबारे', 'क्या कहे सुलेखा' तथा 'चिंताओं का बोझ- ज़िन्दगी' आम आदमी के संघर्ष और रोजी-रोटी के लिए उसके प्रयासों को रेखांकित करते हैं और भी कई अनकही पीड़ाओं को बयां करते हैं। अब अवनीश के ये गीत उनके सद्यः प्रकाशित संग्रह 'टुकड़ा कागज़ का' में संकलित हैं। आयोजन का शुभारम्भ माँ सरस्वती के समक्ष जनरल वी.के. सिंह जी और गुलाब कोठारी जी द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता एवं विशिष्ट अतिथि पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी.के. सिंह रहे जबकि पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। </div>
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<div style="text-align: justify;">
इस साल कहानी और कविता के निर्णायक मंडल में मशहूर व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी, प्रसिद्ध कथाकार हबीब कैफी और प्रफुल्ल प्रभाकर तथा जस्टिस शिवकुमार शर्मा, अजहर हाशमी और प्रोफेसर माधव हाड़ा थे। पत्रिका समूह की ओर से दिए जाने वाले सृजनात्मक साहित्य पुरस्कारों के क्रम में यह सत्रहवें पुरस्कार हैं। ये पुरस्कार १९९६ से शुरू किये गये थे। इस अवसर पर पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले राजस्थान पत्रिका के पत्रकारों को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में शहर के कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। आनंद जोशी, चाँद मोहम्मद, डॉ दुष्यंत, शालिनीजी एवं वर्षाजी का विशेष सहयोग रहा और आभार अभिव्यक्ति सुकुमार वर्मा ने की। </div>
<div style="text-align: justify;">
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अवनीश </div>
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-57116079188491659842013-01-10T12:49:00.000+04:002013-01-10T12:50:49.571+04:00अनुराग सेवा संस्थान लालसोट द्वारा ११ साहित्यकारोँ का सम्मान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTNB_jGJ2RB4xcA5RzSMVCoJC8Pezo3_CXmbvCGJJDOi-pESirUAcTmGoaSkVtt2EnE2KFyA2Pgek9SFSO4KszuXZcoORJGkxjjKfG1FgMwYViQb3zm1gIRU62OBYFnjAvT5axyw6wa7Q/s1600/ss13_01_10c.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="249" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTNB_jGJ2RB4xcA5RzSMVCoJC8Pezo3_CXmbvCGJJDOi-pESirUAcTmGoaSkVtt2EnE2KFyA2Pgek9SFSO4KszuXZcoORJGkxjjKfG1FgMwYViQb3zm1gIRU62OBYFnjAvT5axyw6wa7Q/s320/ss13_01_10c.jpg" width="320" /></a></div>
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लालसोट, रविवार ६ जनवरी, अनुराग सेवा संस्थान लालसोट जिला दौसा राजस्थान द्वारा संस्कृत महाविद्यालय में को आयोजित एक भव्य समारोह में देश के ११ सहित्यकारोँ को उनकी विभिन्न विधाओं की साहित्यिक कृतियों के लिये ‘अनुराग साहित्य सम्मान २०१२ प्रदान किये गए। </div>
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शरद तैलंग को उनके व्यंग्य संग्रह ‘गुस्से में है भैँस, वरिष्ठ साहित्यकार ब्रजेन्द्र कौशिक को काव्य संग्रह ‘किस घाट उतरें , कथाकार अरनी रॉबर्ट्स को कहानी संग्रह ‘रास्ते अपने अपने, भगवती प्रसाद कुलश्रेष्ठ को ‘फिर पलाश दहके, डॉ बानो सरताज को ‘एक अनार सौ बीमार, विजया गोस्वामी को ‘माँ होने का सुख, कमल कपूर को ‘नीम अब भी हरा है, राम दयाल मेहरा को ‘नाविक होता पार नहीं, अशोक यादव को ‘लघु सी कथाएँ, डॉ प्रमोद कोवप्रत को ‘धरती और धड़कन तथा राजीव व्यास को ‘छोटी बात बडी बात’ कृतियों के लिये सम्मानित किया गया। इन्हें सम्मान स्वरूप २१०० रुपये नकद, प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न, शॉल, नारियल एवं कलम भेट की गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध साहित्यकार एवं कला समीक्षक हेमंत शेष तथा समारोह के अध्यक्ष लालसोट नगर पालिका के चेयरमेन दिनेश मिश्रा थे। </div>
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आयोजन समिति के संरक्षक गोपाल प्रसाद मुदगल, अध्यक्ष एवं साहित्यकार तारादत्त निर्विरोध तथा संस्था के सचिव श्याम सुन्दर शर्मा ने अपने प्रतिवेदन में संस्था की विभिन्न क्षेत्रों मे की गई गतिविधियों की जानकारी दी। इस अवसर पर सम्मानित हुए रचनाकारों ने अपनी रचनाओँ का पाठ भी किया। कार्यक्रम में संयोजक सियाराम शर्मा, साहित्यकार प्रकाश परिमल, जया गोस्वामी, अध्यक्ष पुरुषोत्तम जोशी, बस्ती राम बस्ती, राजेन्द्र आज़ाद, राजेन्द्र यादव, अनुराग तथा बड़ी मात्रा में गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। कार्यक्रम का संयोजन विनीत उपाध्याय ने किया।</div>
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प्रस्तुति : शरद तैलंग</div>
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-59493215838334000412013-01-10T12:37:00.002+04:002013-01-10T12:37:38.687+04:00शरद तैलंग का व्यंग्य संग्रह ‘गुस्से में है भैंस’ लोकार्पित<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLw2rsFQ5DRJYvm9WMHqpzJHRLb1-4bI6wGKSG2jnV8-jnu2YgTNDkriST2CBlWu90iEX6RiIii3HjC27xWc3XZawmNP2p-NqZVoek-MKdpfm50dQJPbsea7YuQIhidomrS8i7AGjdv5U/s1600/ss13_01_10b.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="239" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLw2rsFQ5DRJYvm9WMHqpzJHRLb1-4bI6wGKSG2jnV8-jnu2YgTNDkriST2CBlWu90iEX6RiIii3HjC27xWc3XZawmNP2p-NqZVoek-MKdpfm50dQJPbsea7YuQIhidomrS8i7AGjdv5U/s320/ss13_01_10b.jpg" width="320" /></a></div>
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कोटा, ५ जनवरी २०१३, राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर तथा ‘काव्य मधुबन’ संस्था कोटा द्वारा आयोजित दो दिवसीय ‘अखिल भारतीय व्यंग्य समारोह’ में व्यंग्यकार शरद तैलंग के व्यंग्य संग्रह ‘गुस्से मेँ है भैंस’ का लोकार्पण प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरीश नवल तथा प्रदीप पंत द्वारा किया गया ।<br />
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इस संग्रह मेँ तैलंग के २३ व्यंग्य शामिल हैँ । इस अवसर पर आयोजित समारोह में पूरे देश से आए हुए लगभग २५ से अधिक व्यंग्यकार, राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष वेद व्यास, व्यंग्य यात्रा के सम्पादक डॉ प्रेम जन्मेजय, काव्य मधुवन के अध्यक्ष डॉ अतुल चतुर्वेदी तथा कोटा के अनेक साहित्यकार उपस्थित थे । </div>
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-69334625230215682502013-01-10T11:10:00.000+04:002013-01-10T11:10:05.823+04:00सृजन द्वारा ‘डॉ हरिवंश राय बच्चन का रचना संसार ’ संगोष्ठी आयोजित <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-t-TZFX7wRy1y1cd_0uOUwUHjT8V8ff-X01NDh0IxE6XeDH_kOw4__auodBlv5e0l0_o6QmY9a26tZ_ErwonIs_c16LvaAECvYFyYP6ADEBP6ocxjK3AbYXCKL7OTUWMQEJwrVtD4KkM/s1600/ss13_01_10.jpg" imageanchor="1" style="clear:right; float:right; margin-left:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="213" width="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-t-TZFX7wRy1y1cd_0uOUwUHjT8V8ff-X01NDh0IxE6XeDH_kOw4__auodBlv5e0l0_o6QmY9a26tZ_ErwonIs_c16LvaAECvYFyYP6ADEBP6ocxjK3AbYXCKL7OTUWMQEJwrVtD4KkM/s320/ss13_01_10.jpg" /></a></div><div style="text-align: justify;">विशाखापटनम। ७ जनवरी २०१३ साहित्य, संस्कृति एवं रंगकर्म के प्रति प्रतिबद्ध स्थानीय संस्था ‘सृजन’ ने टोयो इंजीनीयरिंग कंपनी लिमिटेड के सौजन्य से द्वारकानगर पब्लिक लाइब्रेरी में ‘‘डॉ हरिवंश राय बच्चन का रचना संसार‘ पर संगोष्ठी का आयोजन किया। स्वागत भाषण करते हुए डॉ. संतोष अलेक्स, संयुक्त सचिव, सृजन ने ‘सृजन’ की गतिविधियों का विवरण देते हुए इस संगोष्ठी. के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा - स्व. बच्चन जी की ग्यारहवीं पुण्य तिथि के अवसर पर यह संगोष्ठीस आयोजित की जा रही है, बच्चन जी के साहित्य पर उतना काम नहीं हुआ जितना होना चाहिए, अभी भी काफी काम किया जाना शेष है। </div> <br />
<div style="text-align: justify;">कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध कवि, अनुवादक एवं सेवानिवृत्त वरिष्ठ हिन्दी आचार्य प्रो. पी आदेश्वर राव ने हिन्दी साहित्य के इतिहास में बच्चन की अमिट और अमर साहित्य की महत्ता को रेखांकित करते हुये उनके साथ अपनी एक मुलाक़ात का विवरण देते हुये उनकी लोकप्रियता से संबंधित बातें बतायीं। उन्होने कहा ‘’मधुशाला’’ जैसी अजर और अमर कृति के सर्जक बच्चान ने अपनी काव्यतमयी प्रतिभा का परिचय बखूबी दिया है साथ ही हिन्दीम साहित्यक का अब तक की श्रेष्ठ आत्म्कथा लिखकर सिद्ध कर दिया हे कि गद्य में भी उनका कोई सानी नहीं है। अपनी कविताओं में, गीतों में, लेखों में और अनुवादों में अपनी विशिष्ट ता का परिचय हरिवंश राय बच्चमन ने दिया है। </div><br />
<div style="text-align: justify;">कार्यक्रम की अध्येक्षता कर रहे सृजन के अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने बच्चन के साहित्य संसार को अद्भुत और अमर धरोहर बताते हुये उनके अनुवादों के विषय में बताया की अंग्रेजी, अरबी और उर्दू से हिन्दी में किया गया अनुवाद मौलिकता का आभास देता है और ऐसे सहज लगते हैं जैसे हम शेक्सपियर और उमर खयाम की मूल रचनाएँ पढ़ रहे हैं। संगोष्ठी का संचालन कर रहे सृजन के सचिव डॉ. टी. महादेव राव ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि बच्चन अपनी सारी रचनाओं में चाहे वह गद्य हो या पद्य हो मानवीयता के प्रति असीम विश्वास रखते थे। उन्होने हालावाद का कभी समर्थन नहीं किया बल्कि वे मधुशाला को प्रतीक के रूप में लेकर मानव जीवन के संघर्ष, नैतिक मूल्य, समसमाज के कल्याण चाहने वाले मानवतावादी रचनाकार रहे। वादों से दूर हटकर उन्होंने साहित्य रचा जो की हर पाठक के हृदय को अब भी छूता है। ऐसे कवि, गद्यकार, अनुवादक जैसे बहुआयामी रचनाकार के प्रति हर हिन्दी प्रेमी नतमस्तक है। </div><br />
<div style="text-align: justify;">संगोष्ठीज में राघवेंद्र प्रताप अस्थाना ( मधुशाला की रुबाइयाँ), श्रीमती सीमा वर्मा (बच्चन-कविता ने जिन्हें लिखा), श्रीमती सीमा शेखर (बच्चन के गीतों में प्रेमाभिव्यक्ति), रामप्रसाद यादव (बच्चन की रचना प्रक्रिया), डॉ. संतोष एलेक्स (छायावादोत्तर काल और बच्चन), नीरव वर्मा (बच्चन के साहित्य पर बचपन की नारियों का प्रभाव), कपिल कुमार शर्मा (बच्चन और प्रकृति का संबंध), जी अप्पाराव “राज” ( मधुशाला पर कविता), देवनाथ सिंह (बच्चन का रचना संसार), डॉ टी महादेव राव (बच्चन की दर्शनिकता का प्रतीक – मधुशाला) ने अपने अपने पत्र प्रस्तुत किए जिनमें डॉ हरिवंश राय बच्चन जी के साहित्य के विविध पहलुओं पर विश्लेषण थे। योगेंद्र सिंह यादव (मॉर्निंग वॉक), डॉ एम सूर्यकुमारी (माँ की तड़प), के विश्वनाथाचारी (खास और कुछ नहीं) ने भी अपनी बात संगोष्ठी में रखी।</div><br />
<div style="text-align: justify;">इस कार्यक्रम में डॉ बी वेंकट राव, राजेश कुमार गुप्ता, बी एस मूर्ति, एन शेखर, सीएच ईश्वार राव सहित अन्यव लोगों ने भी सक्रिय प्रतिभागिता की। प्रतिभागियों को स्मृतिचिह्न प्रो. पी. आदेश्वर राव ने वितरित किए। डॉ संतोष एलेक्स के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। </div><br />
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डॉ. टी. महादेव राव<br />
सचिव – सृजन<br />
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</div>पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-70423241599820106732013-01-10T10:58:00.001+04:002013-01-10T11:00:04.735+04:00निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान, बस्ती का सम्मान समारोह सम्पन्न<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6r6UEJR0BBKU3nfkpJN51ui439frybcKS76qA-uMwwnQQIZHeVe9l4U0wDyKsNgXlcQHoWuD5tOd3PCQt7_dIyjiNuZKaWSbjnFmcxY4RCPsHuURE-tNC0XOW3t03C4KHzflYWg0raXM/s1600/27315_578868678806450_2093821944_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6r6UEJR0BBKU3nfkpJN51ui439frybcKS76qA-uMwwnQQIZHeVe9l4U0wDyKsNgXlcQHoWuD5tOd3PCQt7_dIyjiNuZKaWSbjnFmcxY4RCPsHuURE-tNC0XOW3t03C4KHzflYWg0raXM/s320/27315_578868678806450_2093821944_n.jpg" width="320" /></a>बस्ती (उत्तर प्रदेश), २५ दिसंबर, देश के विभिन्न राज्यों के मनीषी साहित्यकारों को साहित्य के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिये प्रतिष्ठित संस्था निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान, बस्ती द्वारा राष्ट्रीय साहित्य गौरव सम्मान से अलंकृत किया गया। यह संस्था लंबे समय से विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित करती रही है। समारोह के मुख्य अतिथि बस्ती मंडल आयुक्त श्री सुशील कुमार थे जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता मूर्धन्य साहित्यकार एवं पंजाब कला साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. राजेन्द्र परदेसी ने की।लगभग पाँच घंटे तक चले इस कार्यक्रम में हिंदी की विकास यात्रा पर आधारित परिचर्चा और राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया, जिसमें देश के १५ राज्यों से पधारे कवियों ने काव्य पाठ करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान, बस्ती के संयोजक एवं अध्यक्ष डॉ. रामकृष्ण लाल जगमग की पहल पर आयोजित इस भव्य समारोह में पंजाब केसरी के जम्मू-कश्मीर प्रभारी एवं कथाकार बलराम सैनी एवं हरियाणा लोक साहित्य के अध्येता तथा छायाकार ओम प्रकाश कादयान के अलावा मुख्यतः त्रिलोक सिंह ठकुरेला (राजस्थान), नन्देश निर्मल खगड़िया (बिहार), कुँवर प्रेमिल जबलपुर (म.प्र.), कैलाश झा किंकर (बिहार), मोहम्मद मोइउद्दीन अतहर (म.प्र. ), किशनलाल शर्मा आगरा (उ.प्र.), डॉ. सरयू प्रसाद मिश्र बस्ती (उ.प्र.), डॉ. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी दीपक सिद्धार्थ नगर (उ.प्र.) और डॉ रामचंद्र यादव गोंडा (उ.प्र.) आदि को सम्मानित किया गया। </div>
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इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश के कुंवर प्रेमिल, महाराष्ट्र के यशवंतकर संतोष कुमार, सिक्किम के वीरभद्र, पश्चिम बंगाल के गोपाल नेवाल, उत्तराखंड के डा.केएल दीवान, बीएसए मनभरन राम राजभर, उप खंड शिक्षाधिकारी बृजेश त्रिपाठी, डा.सरयू प्रसाद मिश्र, डा.अयोध्या प्रसाद पांडेय, सत्येंद्र नाथ मतवाला, बृजराज शुक्ल, नवल किशोर, संतराम, अब्दुल कादिर, हरिश्चंद्र शुक्ल, राघवेंद्र शरण पांडेय, लालमणि प्रसाद, अफजल हुसैन, अनवार हुसैन पारसा, कैलाशनाथ दुबे, डा.रामचंद्र यादव, डा.ज्ञानेंद्र द्विवेदी, धर्मराज चौधरी को भी विविध क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। बाद में हुयी संगोष्ठी व कवि सम्मेलन में मुख्य रूप से डा.सत्यव्रत, डा.रामदुलारे पाठक, प्रेमशंकर द्विवेदी, कृष्ण कुमार उपाध्याय, सागर गोरखपुरी, अजय श्रीवास्तव, परमात्मा प्रसाद निर्दोष, डा.ओम प्रकाश पांडेय व रहमान अली रहमान ने भी प्रस्तुतियाँ दीं।</div>
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परिचर्चा के समय ओमप्रकाश कादयान, डॉ. सत्यव्रत, कैलाश झा किंकर और डॉ. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी दीपक ने हिंदी की दशा और दिशा पर विस्तार से प्रकाश डाला। मंच का संचालन डॉ. रामकृष्ण लाल जगमग और डॉ. अफजल हुसैन अफजल ने संयुक्त रूप से किया।</div>
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-58258879424052797472013-01-07T20:00:00.000+04:002013-01-07T20:06:34.488+04:00दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय का स्थापना पर्व सम्पन्न<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZmpAMJRCkxK4fnAGNUo72InYXmjwF0CjrPbqyrZ9e4jB7u8U8L0QlGxp4aKpiE9zxpCowef2FwNiocH2iUGe9lVcmH8P91U7IwIYbkCm09AAnXoQ5Wd0Gvi80UIgldAEhIm09LHa0qoI/s1600/423328_489034411135387_2078257505_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZmpAMJRCkxK4fnAGNUo72InYXmjwF0CjrPbqyrZ9e4jB7u8U8L0QlGxp4aKpiE9zxpCowef2FwNiocH2iUGe9lVcmH8P91U7IwIYbkCm09AAnXoQ5Wd0Gvi80UIgldAEhIm09LHa0qoI/s320/423328_489034411135387_2078257505_n.jpg" width="320" /></a>२६ दिसंबर २०१२ भोपाल में दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय का स्थापना पर्व पाँच कलाकारों की कविता पोस्टर प्रदर्शनी ‘शब्दरंग’ के उद्घाटन और पाँच सृजनधर्मियों के अभिनन्दन के साथ आरम्भ हुआ। उत्सव का उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि मध्यप्रदेश के गृहमंत्री श्री उमाशंकर गुप्ता ने किया। समारोह की अध्यक्षता पूर्व मुख्य सचिव एवं संग्रहालय के सरंक्षक डॉ. पुखराज मारू ने की। समारोह के पूर्व गृहमंत्री श्री गुप्ता एवं अन्य अतिथियों ने संग्रहालय का भ्रमण किया। श्री गुप्ता ने संग्रहालय परिषद के प्रयासों की सराहना की। </div>
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श्री गुप्ता ने कहा कि संग्रहालय की धरोहर और गतिविधियों की दृष्टि से यह स्थान अब छोटा पड़ने लगा है, अतः इसके विस्तार के लिए ध्यान देना होगा। समारोह के आरम्भ में संग्रहालय निदेशक राजुरकर राज ने संग्रहालय एवं स्थापना पर्व के बारे में जानकारी दी। संग्रहालय संरक्षक श्री सुशील कुमार अग्रवाल ने स्वागत भाषण में संग्रहालय के प्रयासों का उल्लेख किया और अपेक्षा की कि यथोचित सहयोग मिला तो यह दुनिया में अपनी तरह का संग्रहालय हो सकता है। अपने उद्बोधन में श्री गुप्ता ने कहा कि साहित्यकार समाज को प्रेरणा और ऊर्जा प्रदान करता है। उसकी धरोहर को सहेजना पूरी संस्कृति को सहेजना है। यह अनुकरणीय कार्य दुष्यन्त कुमार संग्रहालय कर रहा है, यह प्रशंसा के योग्य है। हमारा पूरा सहयोग संग्रहालय और उसके पदाधिकारियों को मिलेगा। </div>
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अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. पुखराज मारू ने कहा कि गैरसरकारी होने के बावजूद यह संग्रहालय साहित्य और संस्कृति के संरक्षण का महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। यहाँ हम अपने समृद्ध साहित्यिक अतीत का अवलोकन कर सकते हैं। पाँच दिवसीय समारोह के उद्घाटन अवसर पर राजधानी के वरिष्ठ साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी डॉ. रमाकान्त दुबे, डॉ. महावीर सिंह, श्री राजेन्द्र जोशी, श्री बटुक चतुर्वेदी और श्रीमती कमला सक्सेना का अभिनन्दन किया गया।</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIBINrEnCWjL6F08gHtAYJRtpin-2fpZ28w0njZ_LRFxiEaJDOqORdnHw-JWBEfhr9GwmG1yepC3iaTJNgMsoLssgaUaUX8jXXM1ndSAT90of2odCMfDpP0Km3wAIU7XIHJgDAB63g8fE/s1600/542190_489034041135424_1750298663_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIBINrEnCWjL6F08gHtAYJRtpin-2fpZ28w0njZ_LRFxiEaJDOqORdnHw-JWBEfhr9GwmG1yepC3iaTJNgMsoLssgaUaUX8jXXM1ndSAT90of2odCMfDpP0Km3wAIU7XIHJgDAB63g8fE/s320/542190_489034041135424_1750298663_n.jpg" width="320" /></a></div>
<span style="color: #990000;">कला प्रदर्शनी शब्दरंग</span><br />
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आरम्भ में अतिथियों ने पाँच कलाकारों की पोस्टर प्रदर्शनी ‘शब्दरंग’ का उद्घाटन किया। ‘शब्दरंग’ में दुष्यन्त कुमार, निदा फाज़ली, अशोक निर्मल, दिवाकर वर्मा, डॉ. जगदीश व्योम, प्रो. नईम, डॉ. अजय पाठक आदि की कविताओं पर शारजाह की डॉ. पूर्णिमा वर्मन, रायपुर के श्री के. रवीन्द्र, दिल्ली के श्री विजेन्द्र विज, भोपाल के श्री श्रीकान्त आप्टे एवं छिन्दवाड़ा के श्री रोहित रूसिया के बनाये चित्र प्रदर्शित किये गए। कार्यक्रम के अंत में संग्रहालय की प्रबन्ध परिषद के अध्यक्ष श्री रामराव वामनकर ने कृतज्ञता व्यक्त की। </div>
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<span style="color: #990000;">कवयित्री गोष्ठी</span><br />
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दूसरे दिन कवयित्री गोष्ठी में छाई रही मानवीय संवेदना ‘‘हर गली हर द्वार पर है आज दुःशासन/कहाँ से आयेंगे इतने कृष्ण/आजकल जैसे हर जगह पर है/धृतराष्ट्र का शासन’’-इस भावधारा की अनेक कविताएँ दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय के स्थापना पर्व के दूसरे दिन कवयित्री गोष्ठी में प्रस्तुत की गईं। इस गोष्ठी में अतिथि के रूप में श्रीमती कमला सक्सेना, डॉ. राजश्री रावत राज, कुलतार कौर कक्कड़, आशा शर्मा उपस्थित थीं। कार्यक्रम का संयोजन श्रीमती उषा जायसवाल ने किया। गोष्ठी की कविताओं में मानवीय संवेदना और स्त्री पीड़ा प्रमुख विषय रहा। गोष्ठी में उषा जायसवाल ने मनुष्य की प्रवृत्ति को रेखांकित किया -‘आदमी देवता और भगवान/तीनो एक ही हैं/नहीं हैं ऐसा कोई आदमी/जो हो देवता से दूर/ऐसे ही आदमी/जब भूल जाता है अपने स्वार्थ को/जीना है परमार्थ को/बन जाता है देवता।’’ ‘पापा का चेहरा ढँके, ऐसा नहीं लिहाफ चाहिये/राह में रोड़ा नहीं, बस केवल मुझे इंसाफ चाहिये’-कहकर साधना बलवटे ने अपनी संवेदना को शब्द दिये। स्त्री की महत्वाकांक्षा पर केनिद्रत रचना का पाठ किया करुणा राजुरकर ने-‘काश, जि़न्दगी पंचम से ही षडज पर लौट आती/न जाती तार सप्तक तक/देर तक, बहुत देर तक ठहरने के लिए’। दुष्यन्त संग्रहालय के स्थापना पर्व पर आयोजित कवयित्री गोष्ठी में सुनीता कोमल, अलका रिसवुड, आशा श्रीवास्तव, उषा सक्सेना, मंजू जैन, मालती बसन्त, कुमकुम गुप्ता आदि ने रचनापाठ किया। संचालन अर्चना भारती ने किया एवं आभार श्रीमती प्रतिभा गोटीवाले ने किया। </div>
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<span style="color: #990000;">व्यंग्य गोष्ठी</span><br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYU0WXGB59F84qH7J2aGg84dHiguCkopkSMwuibCWd8T3cOA7nT7FhBMLukFEMrJdRT3NvqXpzMZOCnIK3W1CuMntUFkh6xxRPV-bprCyug83D6RxD_p3R600WUOF37hKydKg5LWtf-Jk/s1600/409497_489035461135282_1193673435_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYU0WXGB59F84qH7J2aGg84dHiguCkopkSMwuibCWd8T3cOA7nT7FhBMLukFEMrJdRT3NvqXpzMZOCnIK3W1CuMntUFkh6xxRPV-bprCyug83D6RxD_p3R600WUOF37hKydKg5LWtf-Jk/s320/409497_489035461135282_1193673435_n.jpg" width="320" /></a></div>
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अफसरी पर आँच आये तो यह बात अफसरी के प्रोटोकाल के विरुद्ध कहलायेगी स्थापना पर्व का तीसरा दिन व्यंग्य गोष्ठी का था। मौजूदा दौर की सरकारी व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया देश के सुविख्यात व्यंग्यकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने। वे दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय द्वारा आयोजित स्थापना पर्व के तीसरे दिन व्यंग्य पाठ में अपनी रचना का पाठ कर रहे थे। समारोह के आरम्भ में निदेशक राजुरकर राज ने स्वागत वक्तव्य के साथ संग्रहालय के स्थापना पर्व पर प्रकाश डाला। संग्रहालय की अभिनव परम्परानुसार पुस्तक और पुष्प से अतिथियों का स्वागत किया गया। संचालन श्री श्रीकान्त आप्टे ने और आभार वक्तव्य श्री रामराव वामनकर ने किया। दिल्ली से आये व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय ने व्यंग्यपाठ किया-‘‘अपने पीने पर आक्रमण होता देख अच्छे अच्छे पतियों की खुमारी टूट जाती है। राधेलाल की भी टूटी। उसने प्रत्याक्रमण की मुद्रा में कहा, और तुम जो चाट वाले स्टाल पर भुक्खड़ की तरह लगी हुई थी, गोलगप्पे, दहीभल्ले, चीला, टिकिया और क्या क्या...’’- इस रचना के माध्यम से उन्होंने पारिवारिक परिवेश का व्यंग्य प्रस्तुत किया। श्री श्रीकान्त आप्टे ने संचालन करने के साथ ही अपनी व्यंग्य रचना ‘फिल्मों में स्नान पर्व’ का पाठ भी किया। दिल्ली के डॉ. लालित्य ललित ने ‘पल में तोला पल में माशा’ शीर्षक से व्यंग्य पढ़ा। देर तक चली इस व्यंग्य गोष्ठी में चारों व्यग्यकारों ने अनेक रचनाओं का पाठ किया। इस अवसर पर सर्वश्री रामराव वामनकर, मुकेश वर्मा, श्रीमती ममता तिवारी, महेन्द्र गोगिया, श्रीमती करुणा राजुरकर, श्री एनलाल जैन स्वदेशी आदि सहित अनेक साहित्यकार बड़ी संख्या में उपस्थित थे। </div>
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<span style="color: #990000;">गजल संध्या</span><br />
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चौथे दिन संग्रहालय में गूँजे दुष्यन्त के बोल ‘कोई हंगामा करो, ऐसे गुज़र होगी नहीं’ ‘पक गई है आदतें बातों से सर होगी नहीं, कोई हंगामा करो, ऐसे गुज़र होगी नहीं’- दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय में स्थापना पर्व के चौथे दिन ये आक्रोश उभरा दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लों में मशहूर ग़ज़लगायक जुल्फीकार अली की आवाज़ के जरिये। जुल्फीकार अली ने दुष्यन्त कुमार की अनेक ग़ज़लों की संगीतमय प्रस्तुति दी। ‘मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ, वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ’/इस रास्ते के नाम लिखो एक शाम और, या इसमें रोशनी का करो इन्तज़ाम और/मरना लगा रहेगा यहाँ जी तो लीजिये, ऐसा भी क्या परहेज़ ज़रा-सी तो लीजिये........आदि ग़ज़लों से संग्रहालय परिसर को दुष्यन्तमय कर दिया। </div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhB3VX6V4bfcBdy_u63qxSSxOPtn_WPcsMe3L6ifNZrsxfMqtMRoYzjNXGMbb2fflfbciZZv3SGOzpow1LmyyB4S5zRxtZE6ABcyOTfvRm9OOChCMrYbKnGYPhCIUvv-77272GElxGJlS8/s1600/565059_489034201135408_1207676219_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhB3VX6V4bfcBdy_u63qxSSxOPtn_WPcsMe3L6ifNZrsxfMqtMRoYzjNXGMbb2fflfbciZZv3SGOzpow1LmyyB4S5zRxtZE6ABcyOTfvRm9OOChCMrYbKnGYPhCIUvv-77272GElxGJlS8/s320/565059_489034201135408_1207676219_n.jpg" width="320" /></a></div>
<span style="color: #990000;">पुरस्कार वितरण</span><br />
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समारोह के प्रारम्भिक चरण में कोरबा की भारत एल्यूमीनियम कम्पनी लिमिटेड के श्री पी.ए. मिश्रा, श्री विजय वाजपेयी एवं श्री दीपक विश्वकर्मा को भाषा भारती पुरस्कार से, समाजसेवा पुरस्कार सार्वजनिक भोजनालय सेवा समिति के श्री रामेश्वर बंसल एवं श्री मोहनलाल अग्रवाल को दिया गया, जबकि इन्दौर के वरिष्ठ रंगकर्मी श्री संजीव मालवीय को उनके उलेखनीय कार्य के लिए सम्मानित किया गया। समारोह में अतिथि के रूप में श्री राजेन्द्र जोशी, श्री केशव जैन एवं श्री महेन्द्र चौधरी उपस्थित थे। स्वागत वक्तव्य श्री एनलाल जैन स्वदेशी ने दिया एवं कृतज्ञता ज्ञापन श्री मधुकर द्विवेदी ने किया। समारोह में दिल्ली में हुए असामाजिक कृत्य की घोर निन्दा की गई और मृत छात्रा के लिए शोक व्यक्त किया गया। इस सत्र का समापत टॉम आल्टर की प्रस्तुति के साथ हुआ- ‘‘जि़न्दगी और जंग, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं शायद...और जि़न्दगी रोज़ लड़ी जा रही जंग का नाम है...और जंग जि़न्दगी की आस में दर-दर भटकती उम्मीद का...कभी दोनों आमने-सामने आ खड़े होते हैं... कोई उम्मीद बर नज़र नहीं आती.....कोई सूरत नज़र नहीं आती...’’-ग़ालिब और मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं पर केन्द्रित थी प्रख्यात रंगकर्मी और सिने अभिनेता टॉम आल्टर की नाट्यप्रस्तुति ‘जुगलबन्दी’। प्रस्तुति में उनके साथ थे वरिष्ठ रंगकर्मी चन्दर खन्ना। भारत भवन में सम्पन्न अलंकरण समारोह में टॉम आल्टर ने अत्यन्त भावुक होकर अपने अतीत और अपने शुभचिन्तकों को याद किया। उन्होंने संग्रहालय के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि दुष्यन्त कुमार संग्रहालय अपने आप में बेमिसाल है। यहाँ साहित्यिक धरोहर का संरक्षण तो है ही, इसकी नियमित गतिविधियाँ इसे जीवन्तता प्रदान करती हैं। प्रारम्भ में संग्रहालय अध्यक्ष श्री रामराव वामनकर ने स्वागत वक्तव्य देते हुए स्थापना पर्व की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। निदेशक राजुरकर राज ने दिल्ली में छात्रा की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए संग्रहालय की ओर से संवेदना व्यक्त की और कार्यक्रम का संचालन किया। अलंकरण समारोह के मुख्य अतिथि श्री मंजूर एहतेशाम ने सम्मानित साहित्यकारों को बधाई देते हुए कि सम्मान एक ओर उत्कृष्ट सृजन की सामाजिक स्वीकृति है, वहीं दायित्व का अहसास भी। विशष्ट अतिथि के रूप में श्री महेन्द्र चैधरी एवं श्री चन्दर खन्ना उपस्थित थे। </div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5GI8gopGTKNS4_HRZjT-_ByE0RKYnxg2qR-VJcpaHyC6yGU5DozyHvlw_MgtzglJjC8vxI-UzFPQQcxO9LFcGQ9CjpA9QpFLCI9J5AtBmKj5wQqKUYPP3EcnGQGQMOfykW9vmONIqaZU/s1600/644205_489036657801829_307351569_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5GI8gopGTKNS4_HRZjT-_ByE0RKYnxg2qR-VJcpaHyC6yGU5DozyHvlw_MgtzglJjC8vxI-UzFPQQcxO9LFcGQ9CjpA9QpFLCI9J5AtBmKj5wQqKUYPP3EcnGQGQMOfykW9vmONIqaZU/s320/644205_489036657801829_307351569_n.jpg" width="320" /></a></div>
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दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय की ओर से पद्मश्री टॉम आल्टर को विशिष्ट सेवा सम्मान एवं मैथिली साहित्यकार डॉ. विभूति आनन्द, (दंरभगा) को आंचलिक रचनाकार सम्मान से अलंकृत किया गया। संग्रहालय द्वारा सक्रिय सर्जनात्मक गतिविधि और राजभाषा में उल्लेखनीय कार्य के लिए पत्र-पत्रिकाओं को भी पुरस्कृत किया गया। इस वर्ष धर्मवीर भारती पुरस्कार दिल्ली की पत्रिका ‘शुक्रवार’ (सम्पादक श्री विष्णु नागर) को, माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार रायपुर की पत्रिका ‘सद्भावना दर्पण (सम्पादक श्री गिरीश पंकज) को, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार आईडीबीआई बैंक मुम्बई की पत्रिका ‘विकासप्रभा’ (सम्पादक डॉ. सुनील कुमार लाहोटी) को, विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार वनमाली सृजनपीठ भोपाल की पत्रिका रंग संवाद (सम्पादक विनय उपाध्याय) को एवं राजभाषा उत्कृष्टता पुरस्कार एनएचडीसी लिमिटेड, भोपाल को प्रदान किया गया। अन्त में आभार संग्रहालय के संरक्षक श्री सुशील अग्रवाल ने व्यक्त किया। </div>
<br />
(संगीता राजुरकर) <br />
सहायक निदेशक, प्रबन्ध</div>
पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-22494692075404281762012-12-20T23:05:00.000+04:002012-12-20T23:09:11.036+04:00श्री हनुमान मंदिर में द्वितीय वार्षिक भव्य कवि सम्मेलन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoCI7940x5SE3l-mBGe1oRPcmr6lgeuPGvGV5Mjk8MpSpmi4GX886H5IojQhrgtN62k22_SgU_-Dc2VnF7nOjlltjTJyPisMJw9WLFAyfwee6sNQ19dCNW64wLmupIVQ-nF2T_cSulwqo/s1600/ss12_20_12.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoCI7940x5SE3l-mBGe1oRPcmr6lgeuPGvGV5Mjk8MpSpmi4GX886H5IojQhrgtN62k22_SgU_-Dc2VnF7nOjlltjTJyPisMJw9WLFAyfwee6sNQ19dCNW64wLmupIVQ-nF2T_cSulwqo/s320/ss12_20_12.jpg" width="320" /></a>ब्रेम्पटन, शनिवार, १५ दिसम्बर, २०१२, पिछले वर्ष के हिन्दी कवि सम्मेलन की स्वर्णिम सफलता से प्रेरित स्वामी मोहन दास सेवा समिति, कनाडा, द्वारा श्री हनुमान मंदिर में पुनः एक भव्य हिन्दी कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। मंच पर डा. बिक्रम लाम्बा (मुख्य अतिथि),श्री नवल बजाज (विशिष्ट अतिथि),श्री राकेश तिवारी(अध्यक्ष), डा. कैलाश भटनागर (विशेष अतिथि) तथा श्री राम लुभाया कालिया (आतिथेय ) विराजमान थे। प्रो. देवेन्द्र मिश्र् ने संचालन भार संभाला। कार्यक्रम मंदिर के पुरोहितों सर्व श्री मुकेश चौबै, मंगल शर्मा और पवन शर्मा द्वारा मंगलाचरण, स्वस्तिवाचन एव्ं कविगणों के अभिनंदन से प्रारंभ हुआ।</div>
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पंडित मुकेश चौबे ने सुमधुर स्वर में सरस्वती तथा गणेश वंदना की तथा सभी उपस्थित लोगों का स्वागत करते हुये कविता की महत्ता पर प्रकाश डाला। हास्य,व्यंग,आध्यात्म,दर्शन, प्रेम, शक्ति एवं भक्ति के विविध पुष्पों से सुसज्जित कविता वाटिका की सुगंध तथा शोभा सराहनीय थी।सुश्री सुधा मिश्रा,राज कश्यप,सरोज भटनागर एवं सर्वश्री राकेश तिवारी, भगवत शरण,सरन घई,सुमन घई,हरजिन्दर सिंह,श्याम त्रिपाठी,भारतेन्दु श्रीवास्तव,गोपाल बघेल,शान्तिस्वरूप सूरी,संदीप त्यागी, कैलाश भट्नागर, हर भगवान शर्मा, देवेन्द्र मिश्र ने सहज, सरल, सुरम्य, भाव भीनी मौलिक रचनाओं की प्रस्तुति द्वारा उपस्थित श्रोताओं को आल्हादित किया। मंच पर सुशोभित विभूतियों ने अपने वक्तव्यों में कवि गणों की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुये ये कामना की कि अगले वर्ष के सम्मेलन में युवा वर्ग का और अधिक प्रतिनिधित्व एक सराहनीय प्रयास होगा।</div>
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कवि सम्मेलन के दूसरे सत्र में श्री मोहन दास सेवा समिति ,कनाडा की प्रबंधक समिति के अध्यक्ष जीत शर्मा, उपाध्यक्षा सुनीता कालिया, सचिव सुभाष शर्मा, आयोजक सुमन कालिया तथा लक्ष्मी नारायण मंदिर के ट्रस्टी प्रेम शर्मा, प्रधान नवल गरोत्रा एवं ग्रे टाईगर्स सीनियर्स क्लब के अध्यक्ष राम गुप्ता ने कवि गणों और मंच पर प्रतिष्ठित अतिथियों को स्नेह सुरभित पुष्पों और पारंपरिक परिधानों की भेंटों से सम्मानित किया। कवि सम्मेलन की अविस्मरणीय संध्या का समापन मुकेश चौबे की ह्र्दयस्पर्शी गज़ल से हुआ। समस्त कार्यक्रम को रोजर्स ,सहारा और एटीन टीवी चैनल्स द्वारा फ़िल्माया गया। अंत मे सभी लोगों ने सुमधुर, सुस्वादु सह्भोज का आनंद उठाते हुये श्री हनुमान मंदिर एवं स्वामी मोहन दास सेवा समिति को मनोहारी सांस्कृतिक संध्या आयोजित करने के लिये सराहा और धन्यवाद ज्ञापन किया।</div>
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रिपोर्ट्र: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र<br />
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-75482036775602408632012-12-20T22:55:00.003+04:002012-12-20T22:55:59.623+04:00अक्षरा द्वारा सम्मान समारोह का आयोजन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFa61wCPn31r5HypQtijvTjl2DCDxXWtIhnoPRtGDOTlxtTFUFclYx0Z4ErwHFAwjifLm2Bp7o7XWqgQ6tgQOwcBzKtlioVIcEsttEk6dx2GHqdLrvf4YjIyRhHTUeqjJhiubZBLF_dgc/s1600/DSC04470a.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="217" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFa61wCPn31r5HypQtijvTjl2DCDxXWtIhnoPRtGDOTlxtTFUFclYx0Z4ErwHFAwjifLm2Bp7o7XWqgQ6tgQOwcBzKtlioVIcEsttEk6dx2GHqdLrvf4YjIyRhHTUeqjJhiubZBLF_dgc/s320/DSC04470a.jpg" width="320" /></a>साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' के तत्वावधान में कम्पनी बाग, मुरादाबाद स्थित प्रेस क्लब सभागार में सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। का शुभारम्भ माँ सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन से हुआ, तथा स्व. श्री देवराज वर्मा की पुण्य स्मृति में उन्हें भावभीनी पुष्पांजलि अर्पित की गयी। इसके पश्चात् आयोजित सम्मान समारोह में झज्जर (हरियाणा) के चर्चित युवा कवि श्री राकेश 'मधुर' को निर्णायक मंडल द्वारा चयनित उनकी काव्यकृति 'चाँद को सब पता है' के लिए "देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान-२०१२" से सम्मानित किया गया। श्री मधुर को सम्मान स्वरूप प्रतीक चिन्ह, अंगवस्त्र, सम्मानपत्र, श्रीफल नारियल एवं रु. ११०० की सम्मान राशि भेंट की गयी।</div>
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इस अवसर पर सम्मान प्रक्रिया के सन्दर्भ में बताते हुए संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा -"सम्मान प्रक्रिया के अंतर्गत लगभग ३५ साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित सम्मान हेतु प्रविष्टि आमंत्रण विषयक विज्ञप्ति के क्रम में देश के ८ राज्यों से कुल २८ काव्य -कृतियाँ प्राप्त हुयीं जिनमें से सर्वोत्कृष्ट काव्यकृति के चयन हेतु गठित निर्णायक मंडल द्वारा झज्जर (हरियाणा) के चर्चित युवा कवि श्री राकेश 'मधुर' की काव्यकृति 'चाँद को सब पता है' का सम्मान हेतु चयन किया गया।" कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार नवगीतकवि श्री माहेश्वर तिवारी ने कहा -"राकेश 'मधुर' की कवितायेँ भाषाई सहजता और बिम्बों की ताजगी की चाशनी में पगी हुयी होती हैं।" मुख्य अतिथि लखनऊ से पधरे वरिष्ठ साहित्यकार श्री मधुकर अष्ठाना ने कहा -"मधुर की रचनाधर्मिता में समाज के सांस्कृतिक संकट की फ़िक्र साफ झलकती है।" विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ गीतकार श्री अनुराग गौतम ने कहा -"मधुर की कवितायेँ संवेदनात्मक अनुभूति जगातीं हैं।" विशिष्ट अतिथि प्रख्यात शायर डॉ. स्वदेश भटनागर ने इस अवसर पर कहा -" काव्यकृति 'चाँद को सब पता है' की कविताएँ आज की युवा कविता की चर्चा को में ला खड़ा हैं।" कार्यक्रम में सम्मानित कवि श्री राकेश 'मधुर' ने काव्यपाठ करते हुए कविता पढ़ी -"धुआँ / चूल्हे से उठकर / आँखों में जाता है / चुभता है सुई-सा /बहुत गुस्सा आता है / फिर दब भी जाता है / गुस्सा भूख से डर जाता है " </div>
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सम्मान समारोह में राम दत्त द्विवेदी, राजेश भारद्वाज, मनोज 'मनु', अशोक विश्नोई, वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, डॉ . मीना नकवी, अंजना वर्मा, रामेश्वरी देवी, डॉ . प्रेमकुमारी कटियार, अतुल कुमार जौहरी, शिशुपाल मधुकर, अवनीश सिंह चौहान, विकास मुरादाबादी, निज़ाम हतिफ,सुप्रीत गोपाल आदि गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सफल सञ्चालन मशहूर शायर डॉ . कृष्ण कुमार 'नाज़' ने किया। आभार अभिव्यक्ति संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने प्रस्तुत की। <br />
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- योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' <br />
संयोजक - 'अक्षरा'<br />
मुरादाबाद (उ.प्र.)<br />
मो . 9412805981<br />
<br />
-- <br />
sakshatkar.blogspot.com<br />
geetpahal.webs.com<br />
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-85256790373034127742012-12-13T10:08:00.000+04:002012-12-13T10:08:40.850+04:00सृजन ने आयोजित की “हिन्दी रचना गोष्ठी”<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyDEgSZ7C27L2-eDWFAJlJGsnoiQVdaJSazCiSyEYxUCTwdfW2afKiUp_9ItG1GifuSiS2jb2IU7q1MIqY4PMzjWYOz3HDtkEbnkBiPR20Qmugxw5EkgXs8SgEbNgtHz-sq48X8n0973k/s1600/IMG_0023.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyDEgSZ7C27L2-eDWFAJlJGsnoiQVdaJSazCiSyEYxUCTwdfW2afKiUp_9ItG1GifuSiS2jb2IU7q1MIqY4PMzjWYOz3HDtkEbnkBiPR20Qmugxw5EkgXs8SgEbNgtHz-sq48X8n0973k/s320/IMG_0023.JPG" width="320" /></a>१० दिसंबर, विशाखापटनम के द्वारकानगर स्थित जन ग्रंथालय के सभागार में हिन्दी साहित्य और रंगमंच के प्रति प्रतिबद्ध संस्था “सृजन” ने हिन्दी रचना गोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सृजन के अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने की जबकि संचालन का दायित्व निर्वाह किया संयुक्त सचिव डॉ संतोष अलेक्स ने । डॉ॰ टी महादेव राव, सचिव, सृजन ने आगंतुकों का स्वागत किया और रचनाओं के सृजन हेतु समकालीन साहित्य के अध्ययन और समकालीन सामाजिक दृष्टिकोण को विकसित करना पर बल देते हुये कहा – हमारे पिछले लेखन और सृजन से आज हम कितना आगे बढ़े हैं, बढ़े भी हैं या नहीं इन कमियों और खूबियों का स्व-विश्लेषण करने पर ही हम रचनाओं में स्तरीयता ला सकते हैं, नया सृजन रचनाओं का कर सकते हैं, वरना रूटीन सा सृजन आपको ज्यादा दिन तक संतोष नहीं दे पाएगा, जैसा कि मैं समझता हूँ। निरंतर समकालीन साहित्य का पठन भी हम रचनाकारों के लिए ज़रूरी है। </div>
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अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में नीरव वर्मा ने कहा कि हमारे आसपास, समाज में और देश में हो रही घटनाओं पर हमारा विशाल और विश्लेषणात्मक अध्ययन होना चाहिए। तब जाकर हम जिन रचनाओं का सृजन करेंगे वह न केवल प्रभावशाली होगा बल्कि पाठक भी उस रचना से आत्मीयता महसूस करेंगे। संयुक्त सचिव डॉ संतोष अलेक्स ने कार्यक्रम के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुये कहा – आज का रचनाकार आम आदमी के आसपास विचरने वाली यथार्थवादी और प्रतीकात्मक रचनाओं का सृजन करता है। इस तरह के रचना गोष्ठी कार्यक्रम आयोजित कर साहित्य के विविध विधाओं, विभिन्न रूपों, प्रवृत्तियों से अवगत कराना ही हमारा उद्देश्य है। </div>
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कार्यक्रम में सबसे पहले बीरेन्द्र राय ने अपना लेख “आधुनिक युग का लेखा जोखा” पढ़ा जिसमें आज के समाज में बदलते मानव-मूल्यों और धूमिल होते मानवीय सम्बन्धों की बात कही गई। कपिल कुमार शर्मा ने “पंछी टोली” और “बेटी” शीर्षक कविताओं में वियोग और विरह के दर्द के समेटे व्यक्ति के मन की स्थिति और बेटी की आज समाज में जरूरत का वर्णन था। डॉ एन डी नरसिंहा राव ने “आधुनिक रसखान की सोच” कविता उसी शैली में सुनाई जिसमें रसखान लिखते थे। डॉ शकुंतला बेहुरा ने अपने मौलिक संस्कारों और भोलेपन से बदलते गांवों की बात कविता “भारत के गाँव” में पेश किया। तोलेटी चन्द्रशेखर ने सामाजिक व्यवस्था की विसंगतियों पर दो व्यंग्य कवितायें – “सोचता रहता हूँ” और “कितना बिल हुआ?” प्रस्तुत किया। रामप्रसाद यादव ने एक गजलनुमा कविता और “है नहीं मंजूर अब” कविता आम आदमी की विवशताओं और स्थितियों पर सुनाया। डॉ एम सूर्यकुमारी ने स्त्री विमर्श की कविता “क्षमया धरित्री” सुनाई। बी एस मूर्ति ने शारीरिक अंगों को प्रतीक के रूप में प्रयोग करते हुये कविता “ पाँव विराम” पढ़ी, जबकि देबनाथ सिंह ने स्मृतियों से घिरे एकाकी मनुष्य पर “यादें” एक आशावादी कविता “ आशा ज़िंदगी है” पेश की। कहानी “मशीन और उम्मीद” में नीरव वर्मा ने एक गरीब दीना की व्यथा गाथा मार्मिकरूप में प्रस्तुत की। जी अप्पा राव “राज” ने कुछ व्यंग्योक्तियाँ सुनाई। मीना गुप्ता ने “क्योंकि मैं लड़की हूँ” कविता में समाज में नारी की महत्ता पर बल दिया। डॉ. टी महादेव राव ने दो गीत “क्यों नहीं ये अश्रु बहते?” और “शीत की सुबह” सुनायी जिसमें वर्तमान समाज के बदलते स्वार्थी तौर तरीके और शीत ऋतु में प्रकृति की सुंदरता में अकेलेपन को अभिव्यक्ति दी गई थी। डॉ संतोष एलेक्स कश्मीरी पंडितों की व्यथा गाथा दर्शाती “इंतज़ार” और खास और आम की बात को लेकर “आम” कवितायें पेश कीं। </div>
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कार्यक्रम में अशोक गुप्ता, डॉ बी वेंकट राव, योगेंद्र सिंह यादव, सीएच ईश्वर राव ने भी सक्रिय भागीदारी की। सभी रचनाओं पर उपस्थिंत कवियों और लेखकों ने अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी। सभी को लगा कि इस तरह के सार्थक हिन्दीप कार्यक्रम अहिन्दीभ क्षेत्र में लगातार करते हुए सृजन संस्थान अच्छाव काम कर रही है। डॉ टी महादेव राव के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। </div>
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डॉ॰ टी महादेव राव</div>
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-33476340137341521012012-12-13T09:56:00.003+04:002012-12-13T10:09:23.634+04:00भवानीप्रसाद मिश्र के व्यक्त्वि पर एकाग्र जन्म शताब्दी समारोह सम्पन्न <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuKtYRt4TenQO_JSth8dzQd16-RL-YZOWRCwRcdyr-EDk9wgdvH8A6vsjAmmkO4hPwHn3J3I1otxjYwmoSQNUoBmU6Rklo4Js6P7ZHIbqsMJoOg9nAaZ-gd-UmFCmUkYPZ_oA98aXol7M/s1600/ss12_12_13.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="179" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuKtYRt4TenQO_JSth8dzQd16-RL-YZOWRCwRcdyr-EDk9wgdvH8A6vsjAmmkO4hPwHn3J3I1otxjYwmoSQNUoBmU6Rklo4Js6P7ZHIbqsMJoOg9nAaZ-gd-UmFCmUkYPZ_oA98aXol7M/s200/ss12_12_13.jpg" width="200" /></a></div>
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रविवार १८ नवम्बर २०१२, इटारसी के पास ग्राम निटाया में ख्यात कवि स्व. श्री भवानी प्रसाद मिश्र जी के जन्म शताब्दी समारोह वर्ष के अंतर्गत विशेष समारोह का आयोजन किया गया। समारोह में उनके परिवार के सदस्य, मित्र, साहित्यकार, लेखक, पत्रकार व गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। इस ग्राम में मिश्र जी अपने बचपन के मित्र स्व. श्री वनवारीलाल जी चौधरी के साथ कई दिनों तक रहा करते थे। कार्यक्रम में मिश्र जी पर एकाग्र आठ खण्ड़ों के संपादक , वरिष्ठ आलोचक, समीक्षक, संपादक व विचारक श्री विजयबहादुर सिंह व वरिष्ठ कवि व प्रोफेसर श्री प्रेमशंकर रघुवंशी विशेष रूप से उपस्थित थे।</div>
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कार्यक्रम के प्रारंभ में उनके परिवार के सदस्यों, मित्रों, साहित्यकारों, लेखकों, पत्रकारों व नागरिकों की उपस्थिति में मिश्र जी को श्रद्धासुमन अर्पित किए गए। डॉ. विजयबहादुर सिंह, श्री प्रेमशंकर रघुवंशी ने इस अवसर पर अपनी भावनाएं भवानी प्रसाद मिश्र व उनके परम मित्र वनवारी लाल जी चौधरी के चित्र पर माल्यार्पण द्वारा व्यक्त की। इसके पश्चात समारोह के आयोजन व कार्यक्रम की रूपरेखा समाज सेवक सुरेश दीवान द्वारा प्रस्तुत की गई। ख्यात आलोचक श्री विजयबहादुर सिंह को समारोह का अध्यक्ष तथा श्री रघुवंशी को मुख्य अतिथि बनाया गया।</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhl4l9agCaVth9TFnKJ2gZ5y3dUiWLZzL6D_YV3nbQWZ2H1L4rlfTFKiYM4qQWrzO_kDVptmOZviCdGhvTbkKqoI6qIOaq7mUtXBnHWCEzgnkuOsHCPSoAss_UM3xEiiMPFJqGg4UYQV10/s1600/ss12_12_13b.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="144" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhl4l9agCaVth9TFnKJ2gZ5y3dUiWLZzL6D_YV3nbQWZ2H1L4rlfTFKiYM4qQWrzO_kDVptmOZviCdGhvTbkKqoI6qIOaq7mUtXBnHWCEzgnkuOsHCPSoAss_UM3xEiiMPFJqGg4UYQV10/s200/ss12_12_13b.jpg" width="200" /></a>श्री विजयबहादुर सिंह तथा प्रेमशंकर रघुवंशी द्वारा डॉ. आरती के संपादन में प्रकाशित साहित्यिक मासिकी ‘‘समय के साखी’’ तथा इटारसी से प्रकाशित प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘नगरकथा’ के भवानी भाई पर एकाग्र अंकों का विमोचन किया। आयोजन के प्रारंभ में कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ लेखक व समीक्षक श्री कश्मीर उप्पल द्वारा मिश्र जी के परिवार के सदस्यों का परिचय आम लोगों तथा से आगंतुकों से कराया गया। श्री उप्पल ने मिश्र जी के जीवन से जुड़ी कुछ बातें आमजन से साझा की। उन्होंने भवानी प्रसाद मिश्र जी के जन्मग्राम टिगरिया (जिला होशंगाबाद म.प्र.) पर आधारित शब्द ‘‘टिगरियाई’’ को स्पष्ठ किया। इस शब्द का शाब्दिक अर्थ तो नहीं किया जा सकता, लेकिन इसका अर्थ खटटी मीठी शैतानी से है। ग्रामीण द्वारकाप्रसाद पटेल के साथ ही राकेश दीवान, अभय मिश्र, सुरेश मिश्र, रघुराज सिंह, सामाजिक कार्यकर्त्ता सुशील जी आदि ने अपने विचार रखे। अशोक मिश्र ने भवानी भाई के बड़े पुत्र अनुपम मिश्र के पत्रों का वाचन किया। प्रोफेसर हंसा व्यास ने मिश्र जी द्वारा २६ सितम्बर १९४४ को लिखा गीत, गाकर सुनाया। ख्यात कवि प्रेमशंकर रघुवंशी ने मिश्र जी की कविता ‘‘शांति के स्वर’’ की रचना प्रक्रिया, संवेदना तथा शिल्प के आधार पर उनके समग्र कवित्व पर विचार किया। उन्होंने स्पष्ट किया की मिश्र जी एक सौम्य गांधीवादी कवि थे।</div>
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अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. विजयबहादुर सिंह ने कहा कि देश को आजाद कराने के लिए राजनीति में जो कार्य गांधी जी कर रहे थे, उस वक्त वही कार्य साहित्य में मिश्र जी कर रहे थे। वे असाधारण, अमूल्य व अद्वितीय कवि थे। उनकी कविता के प्रत्येक शब्द को वाक्य मानकार उसपर विचार किया जाना चाहिए। कल्पना के जो विविध प्रयोग मिश्र जी के यहां मिलते हैं वे अन्यत्र दुर्लभ हैं। हिंदी साहित्यजगत में उनके जैसा प्रतिबद्ध कवि कोई दूसरा नहीं है। इसलिए ‘मिश्र जी को नकार देना आसान नहीं हैं। समारोह में इ-समीक्षक,लेखक व साहित्यकार अखिलेश शुक्ल, कवि श्रीराम निवारिया, सुरेन्द्र चौधरी, नर्मदा प्रसाद सिसोदिया, बृजकिशोर पटैल, दीपाली शर्मा एवं अन्य साहित्यकार, लेखक आदि विशेष रूप</div>
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से उपस्थित थे।</div>
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अखिलेश शुक्ल<br />
(इ-समीक्षक, लेखक व साहित्यकार)<br />
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-6588145393151892532012-11-11T07:14:00.002+04:002012-11-11T07:15:24.843+04:00निदा फ़ाज़ली एवं शोभित देसाई को वातायन कविता सम्मान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfN1zwwjRpYIDN3c3zigRHVHx2s1tC34Tfa0C-XcWoAK_FhQaiRpiz18pHFKCv0L9rdFFyrJva8XueDhz1MKNMRfdl8m9QNBvNVy_FCAisFdep0L4nxQYqh8xil8G8Nj4t09LMEnCU5vU/s1600/Capture1.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfN1zwwjRpYIDN3c3zigRHVHx2s1tC34Tfa0C-XcWoAK_FhQaiRpiz18pHFKCv0L9rdFFyrJva8XueDhz1MKNMRfdl8m9QNBvNVy_FCAisFdep0L4nxQYqh8xil8G8Nj4t09LMEnCU5vU/s320/Capture1.JPG" width="320" /></a>५ नवम्बर लन्दन के हाउस ऑफ़ लार्डस में बैरोनैस फ्लैदर के संरक्षण में वातायन: पोएट्री ऑन साउथ बैंक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में प्रसिद्ध कवि और लेखक श्री निदा फ़ाज़ली को वातायन शिखर पुरस्कार एवं मूलतः गुजराती कवि श्री शोभित देसाई को वातायन पुरस्कार से अलंकृत किया गया। वातायन संस्था २००४ से प्रति वर्ष भारत के एक कवि को उसकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए सम्मानित करती चली आ रही है। पिछले वर्ष, इसी स्थान पर श्री प्रसून जोशी को वातायन सम्मान और जावेद अख्तर साहब को शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया था। </div>
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केम्ब्रिज के पूर्व-प्राध्यापक और जाने-माने लेखक, डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव, की अध्यक्षता में सर्वप्रथम स्वर्गीय डा गौतम सचदेव के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए एक मिनट का मौन रखा गया। साउथ एशियन सिनेमा फ़ौंडेशन के संस्थापक/सम्पादक श्री ललित मोहन जोशी ने इस कार्यक्रम के संचालन की बागडोर संभाली, यू.के. हिन्दी समिति के अध्यक्ष और पुरवाई के सम्पादक, डॉ पद्मेश गुप्त ने स्वागत वक्तव्य और पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन से समारोह का शुभारम्भ किया, स्वतंत्र पत्रकार और लेखिका शिखा वार्ष्णेय ने सम्मान-पत्र का वाचन किया, मेज़बान बैरोनेस श्रीला फ्लैदर ने श्री शोभित देसाई को शॉल ओढ़ाई और डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने श्री देसाई को सम्मान-पत्र एवं पुरस्कार प्रदान किए। इसके बाद, प्रसिद्द गायक राजन शगुन्शे और उदीयमान गायिका उत्तरा सुकन्या जोशी ने निदा फाजिली साहब का मशहूर गीत, 'ये जो दुनिया है ये जादू का खिलौना है' प्रस्तुत किया। एन.आर.आई. वेब-रेडियो एवं हेल्थ एंड हैपीनेस पत्रिका के सम्पादक और हिस्ट्री.कौम के निर्माता विजय राणा के सम्मान पत्र के वाचन के पश्चात बैरोनेस श्रीला फ्लैदर ने निदा फाज़ली को शाल ओढ़ा कर उनका स्वागत किया और डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने उन्हें सम्मान-पत्र और पुरस्कार प्रदान किए। </div>
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दूसरे सत्र के आरम्भ में पाकिस्तानी विद्यार्थी मलाला यूसफज़ाई को याद किया गया और उसके पश्चात यू.के. हिन्दी समिति के उन्नीसवें अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मलेन का शुभारम्भ हुआ, जिसकी बागडोर स्वयं शोभित देसाई ने संभाली। स्थानीय कवि मोहन राणा, तितिक्षा शाह, चमनलाल चमन और सोहन राही ने अपनी दो दो रचनाओं का पाठ और फिर निदा फाज़ली ने मंच संभाला। निदा साहब के क़िस्से, कविताएँ और गज़लें एक से बढ़ कर एक थीं। अपने स्वर्गीय पिता पर लिखी उनकी एक कविता ने श्रोतागणों को झिंझोड़ कर रख दिया, जिसकी अंतिम पंक्तियाँ हैं, 'तुम्हारी क़ब्र में मैं दफ़न हूँ, तुम मुझमें ज़िंदा हो।' अपने अध्यक्षीय-भाषण में डॉ। सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने जवाहरलाल नेहरु से सम्बंधित एक घटना सुनाई कि पिक्केडल्ली से गुज़रते वक्त नेहरु जी एक बार पोएट्री सोसाइटी के दफ्तर के सामने रुक कर बोले कि क्या ही अच्छा हो कि यहाँ भारतीय कवि भी अपना कविता-पाठ कर पाएं। उनका सपना सच हुआ; आज भारतीय कवि हाउस ऑफ लॉर्ड्स में कविता पाठ करने में सक्षम हैं। यह गर्व और हर्ष का विषय है कि वातायन संस्था भारतीय कवियों को वैश्विक मंच दे रही है। अंत में, मेज़बान बेरोनेस फ्लैदर एवं वातायन की संस्थापक और जानी मानी लेखिका दिव्या माथुर ने सभी मेहमानों का ह्रदय से धन्यवाद किया। समारोह में लन्दन की कई सांस्कृतिक संस्थाओं के कार्यकर्ताओं के अलावा साहित्य और पत्रकारिता से जुड़े हुए बहुत से गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। यह शाम अपने आप में एक अविस्मरणीय शाम रही और श्रोताओं की तालियों और वाह वाह से हॉल लगातार गूँजता रहा।</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBaW6q6BBS9NHsczja36Mjn48fJzLnILjAbxfpnBPP-Foq6_jN0VsmlWjX3aJNNUR9Bejr55PQTR8bW44OrRZbsc55XMqJ8u4ypHe-_9ZZHxLyvAGl0FPtZwvgXtPnFB2EgA11Iue4ybA/s1600/Capture2.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="215" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBaW6q6BBS9NHsczja36Mjn48fJzLnILjAbxfpnBPP-Foq6_jN0VsmlWjX3aJNNUR9Bejr55PQTR8bW44OrRZbsc55XMqJ8u4ypHe-_9ZZHxLyvAGl0FPtZwvgXtPnFB2EgA11Iue4ybA/s320/Capture2.JPG" width="320" /></a>जाने-माने पत्रकारों में शामिल थे श्री सी बी पटेल (गुजरात समाचार, एशियन वौइस), रवि शर्मा (सनराइज़ रेडियो), ध्रुव घडावी (ज़ी टी वी), कुलदीप भारद्वाज (एम् ए टी वी), स्काइलार्क के सम्पादक, डा योगेश पटेल, अनवर सेन राय (बीबीसी प्रोड्यूसर-उर्दू), लवीना टंडन (सी वी बी न्यूज़), श्री विभाकर और हिना बक्शी (नवरस रिकॉर्डस), पुष्पिंदर चौधुरी (टंग्स औन फ़ायर), डा हिलाल फ़रीद और मुस्तफा शहाब (अलिगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलुमनाई), अय्यूब औलिया (अल्ला रखा फाउंडेशन), कुसुम पन्त जोशी (साउथ एशियन सिनेमा), रीनी ककाती (असामीज कम्यूनिटी), अख्तर गोल्ड (कृति-यूके), यावर अब्बास (फिल्म निर्माता), अरुणिमा कुमार (मशहूर कुचीपुडी नृत्यांगना), जेरू रॉय (स्त्री विमर्श, कलाकार), इन्दर सियाल (गायक), बज माथुर (वास्तुकार), ग़ुलाम अहमद (वकील) और शारदा, विनीता और आश्विन तवाकली (माथुर एसोसिएशन-यूके) के अलावा हिन्दी के बहुत से लेखक और कवि भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए - प्रो श्याम मनोहर पांडे, इस्माइल चूनारा, उषा राजे सक्सेना, साथी लुधियानवी, जितेन्द्र बिल्लू, डा कविता वाचक्नवी, दीपक मशाल और स्वाति भालोटिया।</div>
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-66072592375968116792012-11-07T08:55:00.000+04:002012-11-07T08:55:31.798+04:00सृजन ने आयोजित किया “हिन्दी व्यंग्य साहित्य” पर चर्चा कार्यक्रम <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4vJDA2YYaXiIhDLlZqUkoVzsalaDTk0esd9gkWs4GK7FWQmW4xjUGQ-QETbt8IGBtk91Llmu5FImm_CxjEIi_0YSgbSMDjcuf6e8YXeWh7elfKPnQZY-6smdnmQtfnKrxrp1zoGZoeBg/s1600/DSC_0048.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4vJDA2YYaXiIhDLlZqUkoVzsalaDTk0esd9gkWs4GK7FWQmW4xjUGQ-QETbt8IGBtk91Llmu5FImm_CxjEIi_0YSgbSMDjcuf6e8YXeWh7elfKPnQZY-6smdnmQtfnKrxrp1zoGZoeBg/s320/DSC_0048.JPG" width="320" /></a>विशाखापटनम, ४ नवंबर । हिन्दी साहित्य, संस्कृति और रंगमंच के प्रति प्रतिबद्ध संस्था “सृजन” ने आज “हिन्दी व्यंग्य साहित्य” पर चर्चा कार्यक्रम का आयोजन विशाखापटनम के द्वारकानगर स्थित जन ग्रंथालय के सभागार में किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री रामप्रसाद ने की जबकि संचालन का दायित्व निर्वाह किया सचिव डॉ. टी महादेव राव ने। </div>
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डॉ. टी. महादेव राव ने हिन्दी व्यंग्य साहित्य पर कार्यक्रम के विषय में चर्चा करते हुये कहा – व्यंग्य लिखने के तरीके, शैलियाँ बदली ज़रूर हैं, पर अब भी व्यंग्य साहित्य मानव जीवन की विद्रूपताओं को अपने ढँग से उजागर करते हुये बेहतर समाज का संदेश देते हैं। निंदक नियरे राखिए की तर्ज़ पर हमारे आसपास रहकर यह व्यंग्य हमारी कमजोरियों से हमें निजात दिलाते हैं। एक स्वस्थ व्यंग्य में बहुत शक्ति होती है सामाजिक परिवर्तन की। जीवन की विभिन्न घटनाओं, परिस्थितियों को रचनाकार की गहन दृष्टि और यथार्थपरक चिंतन के साथ मिलकर व्यंग्य रचना की सृष्टि करती हैं और इस तरह व्यंग्य चाहे वह किसी भी विधा में क्यों न हो मनुष्य के करीब धड़कती, अनंत काल से चली आ रही एक सतत प्रक्रिया है। सृजन का हिन्दी व्यंग्य साहित्य पर चर्चा इसी दिशामें किया जा रहा एक प्रयास है। </div>
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श्री रामप्रसाद ने कहा कि इस तरह के चर्चा कार्यक्रमों द्वारा विशाखापटनम में हिन्दी साहित्य सृजन को पुष्पित पल्लवित करना, नए रचनाकारों को रचनाकर्म के लिए प्रेरित करते हुये पुराने रचनाकारों को प्रोत्साहित करना सृजन का उद्देश्य है। व्यंग्य साहित्य पर कार्यक्रम का उद्देश्य रचनाकारों को व्यंग्य लेखन की ओर प्रेरित करते हुये उन्हें मार्ग-दर्शन देना है। </div>
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कार्यक्रम में सबसे पहले देवनाथ सिंह ने चुनावी वायदे, रथ से, तत्सम शब्दों पर कविता शीर्षक से तीन व्यंग्य रचनाएँ प्रस्तुत कीं, जिनमें आज के राजनीतिज्ञों का कच्चा चिट्ठा खोला गया थाऔर विविध प्रलोभनों से जनता को गुमराह करते नेताओं और आज के प्रेमियों पर व्यंग्य कसा गया था। व्यंग्य कथा “बदल लो अपनी कहानी का शीर्षक” सुनाई जी एस एन मूर्ति नेजिसमें दूसरों पर छींटें कसते खुद को पाक साफ बताते कालोनी के निवासियों पर अच्छा कटाक्ष था। डॉ एम सूर्यकुमारी ने आज के भवन बनाते अनपढ़ मजदूरों के द्वारा केवल भवन निर्माण ही नहीं चरित्र निर्माण किए जाने की बात पूँजीपतियों के संदर्भ में सरल किन्तु प्रभावी शब्दों में अपनी कविता “अँधेरा” में प्रस्तुत किया। डॉ टी महादेवराव ने अपने व्यंग्य लेख “हाय मैं कहाँ फँसा?” में आज के अवसरवादी स्वार्थी कवियों को बिम्ब बनाकार वर्तमान मानव की मानसिकता, परिस्थिति जन्य राजनीति और अवसरवादी मनुष्य पर व्यंग्य कसा। </div>
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कार्यक्रम में श्रीधर, सीएच ईश्वर राव, शंकर राव, एन टाटा राव, एम सिवाराम प्रसाद ने भी सक्रिय भागीदारी की। सभी रचनाओं पर श्रीरामप्रसाद ने विवरणात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया और कहा कि सार्थक और ईमानदार प्रयास सिद्ध करते हैं कि उपस्थि कवियों और लेखकों की रचनाधर्मिता में एक स्तरीय सृजन है। सभी ने अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी। सभी को लगा किइस तरह के सार्थक चर्चा कार्यक्रम लगातार करते हुए सृजन संस्था साहित्य के पुष्पन औरपल्लवन में अच्छाक काम कर रही है।</div>
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डॉ. टीमहादेव राव</div>
पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-45073238711867914402012-11-05T09:07:00.000+04:002012-11-05T09:07:36.057+04:00साहित्यकार सूर्यबाला को साहित्य गौरव सम्मान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBjE5Du22hHfAOofd4sQ0r-h4to_SLiZp2uWGW1B0AijPqCznxk2M8R5pnvKTdunyiZrSEx-DTHdY1Zdy7ppRmC1dUOcStVpuIc8OufMlzrAnBVIPbNzdiTU2OIez7Hv-VHkBQWHVbUCo/s1600/0CA54AM2M.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBjE5Du22hHfAOofd4sQ0r-h4to_SLiZp2uWGW1B0AijPqCznxk2M8R5pnvKTdunyiZrSEx-DTHdY1Zdy7ppRmC1dUOcStVpuIc8OufMlzrAnBVIPbNzdiTU2OIez7Hv-VHkBQWHVbUCo/s1600/0CA54AM2M.jpg" /></a>मुंबई की साहित्यिक संस्था "जीवंती " द्वारा "आयोजित "सूर्यबाला : व्यक्तित्व और कृतित्व " कार्यक्रम में "जीवंती " की अध्यक्षा एवं वरिष्ठ गीतकार माया गोविन्द एवं कार्यक्रम अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव ने सूर्यबाला को साहित्य गौरव सम्मान प्रदान किया। ट्रस्टी श्रीराम गोविन्द जी ने प्रशस्ति पत्र का वाचन किया। </div>
<br />
वरिष्ठ समीक्षक डॉ करुणा शंकर उपाध्याय, कथाकार सुधा अरोड़ा तथा वरिष्ठ व्यंग्यकार यज्ञ शर्मा ने क्रमश: सूर्यबाला के उपन्यासों, कहानियों एवं व्यंग्य रचनाओं पर संक्षिप्त किन्तु अत्यंत सारगर्भित वक्तव्य प्रस्तुत किये। प्रारंभ में श्री अरविन्द राही ने सूर्यबाला जी का परिचय दिया एवं डॉ अनंत श्रीमाली ने कार्यक्रम का संचालन किया।<br />
<br />
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में संजीव निगम ने सूर्यबाला के सशक्त व्यंग्य रचना, "हिंदी चिंतन और चिंता के आयाम" का प्रभावी पाठ प्रस्तुत किया । इस अवसर पर लेखिका की दो अन्य रचनाओ का मंचन भी किया गया जिसमे "यमराज का सामना" की प्रस्तुति मायाजी, टीवी एवं फिल्म कलाकार अनिल सक्सेना एवं राम गोविन्द जी ने किया। दूसरा मंचन "एक पुरस्कार यात्रा" का किया गया जिसके निर्देशक आर्यन राय थे तथा कलाकारों में अभिषेक अहलुवालिया, नेहा, कल्पना, विनय यादव एवं गुजराती के हास्य कलाकार प्रवीन एवं उमेश पांडे थे।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3aKOoNNnLVkS3V1e274XrgtjvhfFgCAckN2tal39fEoET-SADPRE1qQ-HR8feh1AtOzRh-ik4igCjbt5ZPBoSvS4rHihl7kOzNJanbra7g6QdIZaNivzxBBKgaNLLjZyKhrf6TCW8H4k/s1600/0CAIV7BU0.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3aKOoNNnLVkS3V1e274XrgtjvhfFgCAckN2tal39fEoET-SADPRE1qQ-HR8feh1AtOzRh-ik4igCjbt5ZPBoSvS4rHihl7kOzNJanbra7g6QdIZaNivzxBBKgaNLLjZyKhrf6TCW8H4k/s1600/0CAIV7BU0.jpg" /></a>वरिष्ठ पत्रकार कवि कैलाश सेंगर के पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में सूर्यबाला ने कहा कि लेखक तो बना भी जा सकता है लेकिन व्यंग्यकार पैदायशी ही होता है और महिलाएँ तो अपनी तानेकशी में जन्मजात व्यंग्यकार होती हैं। अध्यक्ष श्री विश्वनाथ सचदेव ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि सूर्यबाला की रचनाएँ जीवन के सरोकारों से जुडी हैं। उनका सम्मान, समूची रचना धर्मिता का सम्मान है। अपनी यादों को खंगालते हुए सूर्यबाला जी ने कहा कि अन्य लेखकों की तरह मेरे लेखन की शुरुआत भी कविताओं से ही हुई लेकिन बड़ी होने पर अपनी कहानियों के प्रकाशन के लिए मैं कथाकार कमलेश्वर की ऋणी हूँ जिन्हों ने मात्र मेरी एक प्रतिक्रिया के प्रत्युत्तर में जो प्रोत्साहन भरा पत्र मुझे भेजा उसने जादू की छड़ी का काम किया।</div>
</div>
पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-67010783390483624292012-10-29T14:03:00.002+04:002012-10-29T14:04:19.435+04:00विश्व हिंदी सचिवालय द्वारा अंतरराष्ट्रीय हिंदी कहानी प्रतियोगिता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
विश्व हिंदी सचिवालय द्वारा अंतरराष्ट्रीय हिंदी कहानी प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इसके लिये विश्व के हर कोने से हिंदी कहानी का स्वागत है। प्रतियोगिता के विषय में विस्तृत जानकारी इस प्रकार है-<br />
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प्रथम पुरस्कार : ८०० अमेरिकी डॉलर, एक द्वितीय पुरस्कार : ५०० अमेरिकी डॉलर, एक तृतीय पुरस्कार : ३०० अमेरिकी डॉलर, १० सांत्वना पुरस्कार : १०० अमेरिकी डालर<br />
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नियम व शर्तें :<br />
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<li>कहानी देवनागरी लिपि में साफ़-साफ़ हस्तलिखित अथवा टंकित हो ।</li>
<li>एक प्रतियोगी से केवल एक ही कहानी स्वीकृत की जाएगी ।</li>
<li>प्रत्येक प्रविष्टि अप्रकाशित मौलिक रचना हो एवं कॉपीराइट से स्वतंत्र हो ।</li>
<li>प्रत्येक प्रविष्टि छद्म नाम से हस्ताक्षरित हो ।</li>
<li>प्रतियोगी का नाम, पता, फ़ोन नंबर तथा छद्म नाम एक अलग बंद लिफ़ाफ़े में डालकर उसे मुख्य लिफ़ाफ़े में संलग्न करना चाहिए ।</li>
<li>मुख्य लिफ़ाफ़े पर 'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी कहानी प्रतियोगिता' लिखा होना चाहिए ।</li>
</ul>
<br />
शब्द संख्या : अधिकतम ५,०००।<br />
विजेताओं की कहानियाँ सचिवालय की भावी साहित्यिक पत्रिका व वेबसाइट पर प्रकाशित की जाएँगी । जूरी का निर्णय अंतिम होगा ।<br />
<br />
कहानी १० नवंबर, २०१२ तक निम्नलिखित पते पर पहुँच जानी चाहिए ।<br />
World Hindi Secretariat, <br />
Swift Lane, <br />
Forest Side, Mauritius <br />
<br />
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :<br />
दूरभाष : 00-230-676 1196<br />
फ़ैक्स : 00-230-676 1224<br />
ई-मेल : <a href="mailto:info@vishwahindi.com">info@vishwahindi.com</a></div>
पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-18804708939965706692012-10-29T13:56:00.000+04:002012-10-29T13:56:11.654+04:00बांग्ला फिल्म 'मन मोहनाय' में फिल्म प्रोड्यूसर की भूमिका निभायेंगे अभिज्ञात<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiY97a408NNtwzo3byMzpRk9Lv8TCYMHP_QVrxhe1pM_vs5zhb3WmFZe1bfPRrM_hHeG2YXwuByrIHeSWlXEn76yJfpMrahX1PVI_NWGmSEdu-uhCNVgzzhU2R4eWuhFCdoCC5WDViU-xU/s1600/ABHIYGAT.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="194" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiY97a408NNtwzo3byMzpRk9Lv8TCYMHP_QVrxhe1pM_vs5zhb3WmFZe1bfPRrM_hHeG2YXwuByrIHeSWlXEn76yJfpMrahX1PVI_NWGmSEdu-uhCNVgzzhU2R4eWuhFCdoCC5WDViU-xU/s200/ABHIYGAT.JPG" width="200" /></a>कोलकाताः हिन्दी के सुपरिचित साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ.अभिज्ञात बांग्ला फीचर फिल्म 'मन मोहनाय' में अभिनय करेंगे। इस फिल्म में वे एक फिल्म प्रोड्यूसर की भी भूमिका अदा करेंगे। प्रोडक्शन कंपनीः वारसी फिल्म्स एंड टेली फिल्म्स। मुख्य सलाहकार-सुशांत पाल चौधरी, पटकथा एवं संवाद-शक्तिपद राजगुरु, सिनेमेट्रोग्राफी-देवाशीष बनर्जी, संगीत-नौशाद अली, गायक-रफीक राना, जेनेवा, आर्ट डायरेक्टर-प्रदीप दे सरकार, डांस डायरेक्टर-मौसुमी दास, डी नयन, सम्पादक-कौशिक राय, रूप सज्जा-शक्ति नंदी, कहानी, निर्देशन एवं प्रस्तुति-अरिंदम समाद्दार एवं प्रचार-प्रदीप बोस। अभिनय-सुप्रिया देवी, संगीता सान्याल, अरिंदम चटर्जी, अनामिका साहा, कल्याण चटर्जी, विश्वजीत चक्रवर्ती, सैयद बेदार, उदय कर्मकार, कल्याणी मंडल, सुबीर गांगुली, प्रिया राना, दुलाल लाहिड़ी एवं रितुश्री। फिल्म की शूटिंग शुरू हो चुकी है।</div>
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मालूम हो कि सुप्रिया देवी उत्तम कुमार की फिल्मों में नायिका रह चुकी हैं, जबकि संगीता सान्याल और अरिंदम चटर्जी इसके पहले भी चार-पांच फिल्मों में हिरोइन व हीरों की भूमिकाएँ निभा चुके हैं। उल्लेखनीय है कि अभिज्ञात ने इसके पूर्व बांग्ला धारावाहिक ‘प्रतिमा’ एवं बांग्ला फीचर फिल्म ‘एक्सपोर्टः मिथ्या नोय सत्ती’ में भी अभिनय किया है। उनकी हिन्दी में कविता, कहानी व उपन्यास विधा में दस किताबें प्रकाशित हैं। उन्होंने ‘केदारनाथ सिंह व्यक्तित्व और कृतित्व’ पर कलकत्ता विश्वविद्यालय से पीएचडी की है।</div>
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-79617761404097952322012-10-16T17:21:00.000+04:002012-10-16T17:23:48.856+04:00अखिल भारतीय साहित्य कला मंच का पुरस्कार समारोह सम्पन्न<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkbK9TdN0_TwLu-2wtquFxMhWeaNgX48Kp26xTA3HlkdpvuZgdnR-72_aypr6c3grOnaXPwfD-pMJtvtMqNAllRSt8hCJp7i_KsxUsp2ZeLkg0G240hBU8FW9OaZHFglvsTN3tYu4Ic8Q/s1600/DSC00451.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkbK9TdN0_TwLu-2wtquFxMhWeaNgX48Kp26xTA3HlkdpvuZgdnR-72_aypr6c3grOnaXPwfD-pMJtvtMqNAllRSt8hCJp7i_KsxUsp2ZeLkg0G240hBU8FW9OaZHFglvsTN3tYu4Ic8Q/s320/DSC00451.JPG" width="320" /></a></div>
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मुरादाबाद: १४ अक्टूबर, २०१२; अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, उ.प्र.(भारत) द्वारा आयोजित साहित्य समारोह में मंच द्वारा हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में विविध उपलब्धियों के लिए तीस विभूतियों को सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम का समारम्भ मुख्य अतिथि डॉ. दीनानाथ सिंह (मुंगेर), कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रख्यात हिन्दी सेवी डॉ. राम अवतार शर्मा, (आगरा), विशिष्ट अतिथि डॉ. तंकमणि अम्मा, (केरल); डॉ. निजामुद्दीन (जम्मू व कश्मीर) और डॉ. अंजना संधीर, (अहमदाबाद) द्वारा सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन करने के साथ हुआ। तत्पश्चात सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की।</div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
इस अवसर पर वरिष्ठ गीतकवि एवं आलोचक वीरेंद्र आस्तिक (कानपुर) को अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, मुरादाबाद (उ.प्र.) ने उन्हें 'स्व. मधुरताज स्मृति साहित्य-अलंकार-सम्मान- २०१२' से सम्मानित किया। वीरेंद्र आस्तिक जी पिछले ४० वर्षों से गीत एवं समीक्षा लेखन कर रहे हैं। आपका जन्म कानपुर (उ.प्र.) जनपद के एक गाँव रूरवाहार में १५ जुलाई १९४७ को हुआ। अब तक आपके पांच गीत-नवगीत संग्रह-परछाईं के पाँव, आनंद ! तेरी हार है, तारीख़ों के हस्ताक्षर, आकाश तो जीने नहीं देता, दिन क्या बुरे थे प्रकाशित हो चुके हैं। धार पर हम (एक और दो) आपके द्वारा संपादित कृतियाँ है। मंच का आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा- "आज हिन्दी भाषा एक जरूरत के रूप में पूरे विश्व में बोली तथा लिखी-पढी जा रही है। सिद्धांत को व्यवहार से ही परखा जा सकता है। हिन्दी ने अपने व्यवहार से सिद्धांत को बहुत पीछे छोड़ दिया है। सिद्धांत टूट चूका है किन्तु संवैधानिक स्तर पर हिन्दी भाषा को बार-बार घेरने का प्रयास किया जा रहा है ताकि वह राष्ट्रभाषा न बन सके। दरअसल हिन्दी भाषा के मामले में आज हम वहीं खड़े हैं जहां से चले थे। ऐसी स्थिति में हमारे पास अब एक ही विकल्प बचता है। राष्ट्रभाषा के समर्थन में जिस दिन हिन्दी जाति की करोड़ों-करोड़ों जनता आन्दोलन पर उतर आयेगी, संसद के सामने धरना देगी और आमरण अनशन पर बैठेगी, उसी दिन सच मानिए हिन्दी राष्ट्रभाषा घोषित हो जायेगी।"</div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
समारोह में अनेक प्रान्तों के साहित्यकार मौजूद थे। प्रो. रामप्रकाश गोयल (बरेली); डॉ. परमेश्वर गोयल (पूर्णिया); डॉ. प्रभा कपूर, डॉ. पी. के.शुक्ल, डॉ. विनोद कुमार पाण्डेय (मुरादाबाद); डॉ शमा परवीन; डॉ. मनीषा मित्तल; डॉ. अरूण रानी (चाँदपुर); रवीन्द्र मोहन ‘अनगढ़’; रामप्रकाश ‘ओज’, डॉ. मीना कौल (मुरादाबाद); डॉ. दिनेश चमोला (देहरादून), डॉ. ऋजु पंवार (मेरठ); रमेश सोबती (फगवाड़ा);डॉ. विनोद कुमार ‘प्रसून’ (नोयडा); डॉ. सुनील अग्रवाल (चन्दौसी); डॉ. रघुवीरशरण शर्मा (रामपुर); अनिल शर्मा ‘अनिल’ (धामपुर); सत्यपाल सत्यम, समीर मण्डल, डॉ. सुधाकर ‘आशावादी’, सुमनेश ‘सुमन’, कौशल कुमार, श्री अनिल सिसौदिया, (मेरठ); डॉ. आर.सी.शुक्ला, डॉ. दीपक बुदकी, डॉ. गंगेश गुंजन, अशोक ज्योति (नई दिल्ली), डॉ. नीरू कपूर, डॉ. राजीव शर्मा, डॉ. चन्द्रभान सिंह यादव, डॉ.मुकेश कुमार गुप्ता, पुष्पेन्द्र वर्णवाल, माहेश्वर तिवारी, ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग’, डॉ. मयंक पंवार, डॉ. अभय कुमार, डॉ. स्वाति पंवार, डॉ. अनुराधा पंवार, महेश पाल सिंह राघव, योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई, रामलाल ‘अन्जाना’, वीरेन्द्र ‘बृजवासी’, अशोक विश्नोई, मीना नकवी, राजीव सक्सेना, ओंकार सिंह ओंकार, आनन्द गौरव, कृष्ण कुमार नाज़, चन्द्रशेखर ‘मयूर’, योगेन्द्र ‘व्योम’, जिया जमीर, ओमराज, श्री अतुल जौहरी, शिवशंकर यजुर्वेदी, फक्कड़ मुरादाबादी, विवेक ‘निर्मल’, जितेन्द्र जौली, अवनीश सिंह चैहान आदि साहित्यकार उपस्थित थे। कार्यक्रम के द्वितीय चरण में स्थानीय और बाहर से आये साहित्यकारों की कविगोष्ठी भी आयोजित की गयी। कार्यक्रम का संचालन डॉ अम्बरीष कुमार गर्ग एवं विवेक निर्मल ने संयुक्त रूप में किया।</div>
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-78775738458562769192012-10-16T14:39:00.003+04:002012-10-16T14:40:10.084+04:00'कुंडलिया छंद के सात हस्ताक्षर' का विमोचन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhUYYsnt6w79EuP7x-V0jqnVyFlQ6iG2684PJoWLki-IT85LF0HhNnknmM7tuuDn58mZ0T-Zc2MWxlA-PODx1eXhVnSa6jqsZQVMhK_1gWzmQ3uZoAz5rvyMiBYSTnFtNK69ageGQ2LU64/s1600/318936_540988285927823_1829432529_n.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhUYYsnt6w79EuP7x-V0jqnVyFlQ6iG2684PJoWLki-IT85LF0HhNnknmM7tuuDn58mZ0T-Zc2MWxlA-PODx1eXhVnSa6jqsZQVMhK_1gWzmQ3uZoAz5rvyMiBYSTnFtNK69ageGQ2LU64/s320/318936_540988285927823_1829432529_n.jpg" width="320" /></a></div>
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५ अक्टूबर, आगरा, के 'समानान्तर' संस्था के तत्वाधान मे 'यूथ हास्टल सभागार' मे त्रिलोक सिंह ठकुरेला द्वारा सम्पादित 'कुंडलिया छंद के सात हस्ताक्षर' का विमोचन यशस्वी कवि श्री सोम ठाकुर, 'बाबूजी का भारतमित्र' के सम्पादक श्री रघुविंद्र यादव, डा.राजेंद्र मिलन और 'समानान्तर' संस्था की अध्यक्षा डा. शशि गोयल द्वारा किया गया। </div>
<div dir="ltr" style="text-align: justify;" trbidi="on">
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मुख्य अतिथि कवि सोम ठाकुर जी ने कहा कि कुंडलिया एक लोकप्रिय विधा रही है। आज इसके संरक्षण की आवश्यकता है। सुपरिचित रचनाकार श्री रघुविंद्र यादव ने पुस्तक की प्रशंशा करते हुए सम्पादक और इसके सभी रचनाकारों को बधाई दी। इस अवसर पर समानांतर संस्था की ओर से त्रिलोक सिंह ठकुरेला एवम रघुविंद्र यादव को श्री सोम ठाकुर द्वारा सम्मनित किया गया। कार्यक्रम मे डा.रामसनेही लालशर्मा 'यायावर' गाफिल स्वामी,राजेश प्रभाकर,शेशपाल सिंह शेष, ड्रा.एम.पी.विमल, अजीत फौजदार, सुरेंद्र सिंह वर्मा सहित अनेक साहित्यकार व गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। समारोह का अंत मे कवि सम्मेलन से हुआ। कार्यक्रम का संचालन अशोक अश्रु तथा संयोजन श्री शिव कुमार दीपक द्वारा किया गया।</div>
</div>
पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-85439427880531205232012-09-29T22:36:00.000+04:002012-09-29T22:36:04.399+04:00ब्रजेन्द्र त्रिपाठी को नार्वे में संस्कृति पुरस्कार <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDz0EjgMlU7uHbLWmNQPITw3lP9TuhOQOO6YkCvi47fgrJUVBTsuvbnG5bTgUrhyphenhyphensGGsq5Ol46rn_ByhNbpsomYI8844OxLcOFbHeN7y0xN12pueY843_1SeWmMNFdGE5a8hpM63BmpRE/s1600/120920-Norway-se.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="202" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDz0EjgMlU7uHbLWmNQPITw3lP9TuhOQOO6YkCvi47fgrJUVBTsuvbnG5bTgUrhyphenhyphensGGsq5Ol46rn_ByhNbpsomYI8844OxLcOFbHeN7y0xN12pueY843_1SeWmMNFdGE5a8hpM63BmpRE/s320/120920-Norway-se.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #990000;">चित्र में: बाएँ से सुरेशचन्द्र शुक्ल, सिगमुन्द ल्योवोसेन, सीलेश कुमार, ब्रजेन्द्र कुमार त्रिपाठी, कार्सतेन अलनेस और फ्रोइदिस अलवेर</span></div>
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<br /></div>
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१६ सितम्बर को भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम की ओर से आयोजित वार्षिक 'भारत -नार्वे लेखक सेमिनार' में भारतीय लेखक ब्रजेन्द्र कुमार त्रिपाठी और नार्वेजीय लेखक कार्सतेन अलनेस को संस्कृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।</div>
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<br /></div>
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कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलन से हुआ। कार्यक्रम के शुभारम्भ में रोमाओं की प्रसिद्ध संगीत पार्टी ने संगीत प्रस्तुत किया। लेखक सेमिनार में अनेक लेखकों ने अपने वक्तव्य दिए इनमें नार्वेजीय लेखक यूनियन के अध्यक्ष सिगमुन्द ल्योवोसेन, नार्वेजीय लेखक सेंटर की फ्रोइदिस अलवेर, कार्सतेन अलनेस, ब्रजेन्द्र कुमार त्रिपाठी और सुरेशचन्द्र शुक्ल थे। इस सेमिनार में भारतीय दूतावास नार्वे के प्रतिनिधि शैलेश कुमार ने शुभकामनाएँ दी और अपनी एक कविता पढ़ी। भारत-नार्वे लेखक सेमिनार में दोनों देशों के साहित्यिक आदान-प्रदान, प्रकाशन और संभावनाओं पर विचार किया गया। </div>
<div dir="ltr" style="text-align: justify;" trbidi="on">
</div>
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अन्त में काव्य गोष्ठी संपन्न हुई जिसमें नार्वेजीय और हिन्दी में कविता पाठ किया गया। काव्य गोष्टी में भाग लेने वालों में राय भट्टी, इन्दर खोसला, इन्दरजीत पाल, इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन, उमेश कुमार मिश्र, सिगरीद मारिये रेफ्सुम, लीव एवेन्सेन, नोशीन, ऊला बूग और सुरेशचन्द्र शुक्ल थे। कार्यक्रम का सफल संचालन संगीता शुक्ल सीमोंसें और रूचि माथुर ने किया। </div>
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<br /></div>
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सुरेशचन्द्र शुक्ल, ओस्लो, नार्वे </div>
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-23975637747243210652012-09-18T22:14:00.000+04:002012-09-19T12:50:29.099+04:00'महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी' का पुरस्कार समारोह संपन्न<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgICM6n5egmrBezexctuYltB0OyPaNe1aR4qjA6lCnvt8bU9Y4O_w_BLhUzpGejwY5xwdgBai2-odbQAHyG8GPWdlY-S8f1kHlhbC9xi9e110GXKXNgDJcrtjbM2-U1N-YnK_-wxvzG-Lg/s1600/suryabala.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="229" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgICM6n5egmrBezexctuYltB0OyPaNe1aR4qjA6lCnvt8bU9Y4O_w_BLhUzpGejwY5xwdgBai2-odbQAHyG8GPWdlY-S8f1kHlhbC9xi9e110GXKXNgDJcrtjbM2-U1N-YnK_-wxvzG-Lg/s320/suryabala.jpg" width="320" /></a></div>
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हिंदी दिवस के अवसर पर मुंबई 'महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी' द्वारा पुरस्कार समारोह का आयोजन किया गया।<br />
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इस अवसर पर जगदंबा दीक्षित को 'अखिल भारतीय हिंदी सेवा पुरस्कार' और धर्माधिकारी को 'डॉ राममनोहर त्रिपाठी हिंदी सेवा पुरस्कार' प्रदान किया गया है । उन्हें एक-एक लाख रुपये, प्रतीक चिह्न व सम्मानपत्र प्रदान किया गया। <br />
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'महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी' ५१ हजार रुपये के आठ राज्यस्तरीय पुरस्कार डॉ. सूर्यबाला (मुंबई), प्रा.सु.मो. शाह (पुणे), डॉ. विजय कुमार (नवी मुंबई), श्रीमती लीना मेंहदले ( पुणे), डॉ. निशिकांत ठकार (सोलापूर), श्रीमती सुधा अरोडा (मुंबई), रमेश राजहंस (मुंबई) तथा अचला नागर (मुंबई) को प्रदान किये गए । <br />
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विधा पुरस्कार पानेवाले १२ साहित्यकार हैं- काव्य- चंद्रकात पाटील (औरंगाबाद), कुमार शैलेन्द्र (अंधेरी) व सुरेश कुसूंबीवाल (जलगांव); उपन्यास- डॉ. कृष्णा श्रीवास्तव (नागपुर ); कहानी- डॉ. आशा पांडेय (अमरावती); निबंध- ओमप्रकाश शिव (नागपुर) व नारायण कदम (पनवेल); समीक्षा- डॉ. विजया (नवी मुंबई) व डॉ. हणमंतराव पाटील (औरंगाबाद); अनुवाद- डॉ. सुनील देवधर (पुणे); वैज्ञानिक तकनीकी लेखन- डॉ. रमाकांत शर्मा (मुंबई); हिंदी भाषा- डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय (मुंबई) । <br />
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सुप्रतिष्ठित कथाकार एवं व्यंग्यकार सूर्यबाला को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादेमी के राज्यस्तरीय छत्रपति शिवाजी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर, शाल, श्रीफल , स्मृतिचिन्ह तथा पुरस्कार स्वरुप इक्यावन हज़ार रुपए की राशि उन्हें महाराष्ट्र के सांस्कृतिक कार्य मंत्री श्री संजय देवतले तथा राज्य मंत्री श्रीमती फौजिया खान के हाथों प्रदान की गयी। </div>
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समारोह के प्रारंभ में सदस्य सचिव श्री अनुराग चतुर्वेदी तथा कार्याध्यक्ष डॉ दामोदर खडसे ने महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी के कार्यकलापों तथा भावी योजनाओं का परिचय दिया। समारोह का सञ्चालन अनुया दलवी एवं मधुलता व्यास ने किया तथा आभार प्रदर्शन मीनल जोगलेकर ने किया। उक्त अवसर पर सांस्कृतिक मुख्य सचिव श्री आनंद कुलकर्णी, गुजराती एवं उर्दू अकादमियों के कर्वाध्यक्ष तथा भारी संख्या में हिंदी एवं मराठी के साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।</div>
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1149517630794011434.post-62987539410187750982012-09-18T22:05:00.000+04:002012-09-18T22:06:42.057+04:00स्पंदन द्वारा पंकज सुबीर के उपन्यास ‘ये वो सहर तो नहीं’ पर विचार संगोष्ठी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhyPozv0n5M1mq0m_omXzU75rAHn3fVLHDEdQUOXJYiVwNFez2oXdIVoQ1QA_d7AiNLPxFJMn0ZPSIq4H7R9QfTv5jtgPujgZbkGuXpGJPD-fc-6ghf-5evwGOCMj-ubhYT-iLGdcSQrZc/s1600/PANKAJ+SUBEER+KAHANI+SANGRAH+LOKARPAN+(1).jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhyPozv0n5M1mq0m_omXzU75rAHn3fVLHDEdQUOXJYiVwNFez2oXdIVoQ1QA_d7AiNLPxFJMn0ZPSIq4H7R9QfTv5jtgPujgZbkGuXpGJPD-fc-6ghf-5evwGOCMj-ubhYT-iLGdcSQrZc/s320/PANKAJ+SUBEER+KAHANI+SANGRAH+LOKARPAN+(1).jpg" width="320" /></a></div>
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भोपाल । स्पंदन द्वारा हिन्दी भवन के महादेवी वर्मा कक्ष में चर्चित युवा कथाकार पंकज सुबीर के ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार प्राप्त उपन्यास ‘ये वो सहर तो नहीं’ पर विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया । इस अवसर पर पंकज सुबीर के नये कहानी संग्रह 'महुआ घटवारिन' का लोकार्पण भी किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री संतोष चौबे ने की जबकि उपन्यास पर कथाकार मुकेश वर्मा तथा कथाकारा डॉ स्वाति तिवारी ने वक्तव्य दिये । ललित कलाओं के लिये समर्पित संस्था स्पंदन द्वारा आयोजित पंकज सुबीर के उपन्यास पर केन्द्रित कार्यक्रम के प्रारंभ में कार्यक्रम का संचालन करते हुए संस्था की संयोजक तथा वरिष्ठक कहानीकार डॉ उर्मिला शिरीष ने उपन्यास के बारे में उपस्थित श्रोताओं को जानकारी दी । उन्होंने पंकज सुबीर का परिचय देते हुए उनके साहित्य के बारे में विस्तार से चर्चा की । तत्पश्चात अतिथियों ने सामयिक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पंकज सुबीर के नये कहानी संग्रह 'महुआ घटवारिन' का लोकार्पण किया । इस कहानी संग्रह में लेखक की 10 विविध रंगी कहानियों का समावेश किया गया है । </div>
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विचार संगोष्ठी की शुरूआत करते हुए उपन्यास पर अपने वक्तव्य में श्री मुकेश वर्मा ने कहा कि पंकज सुबीर ने अपनी विशिष्ट शैली के चलते अपना अलग स्थान बना लिया है तथा यह उपन्यास उसका एक उदाहरण है । उन्होंने कहा कि उपन्यास में व्यंग्य का जिस प्रकार उपयोग किया गया है वो पाठक को गुदगुदाता भी है और सोचने पर मजबूर भी करता है । 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी को आज तक लेकर आने का लेखक का प्रयोग सफल रहा है । कहानीकार डॉ स्वाति तिवारी ने उपन्यास पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि उपन्यास का इतिहास खंड पढ़ने पर ज्ञात होता है कि लेखक ने इतिहास को लेकर काफी शोध किया है तथा भोपाल रियासत के इतिहास का खूब अध्ययन किया है । इतिहास की कहानी को लेखक ने अपनी भाषा शैली के चलते कहीं भी उबाऊ नहीं होने दिया है । बहुत ही खूबी के साथ उस कालखंड की कथा को लेखक ने न केवल कहा है बल्कि उसे आज के साथ भी रोचकता के साथ संतुलित किया है ।</div>
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पंकज सुबीर ने उपन्यास के उन विशिष्ट अंशों का पाठ किया जो 1857 के संग्राम के दौरान भोपाल रियासत की स्थिति के बारे में हैं । चर्चा को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्री ब्रजेश राजपूत ने उपन्यास की भाषा तथा शिल्प पर विशेष रूप से बात की । उन्होंने कहा कि यह उपन्यास अपने अनोखे शिल्प के चलते पाठकों को बांधे रखने में सफल रहता है । दो समानांतर रूप से चल रही कहानियों को लेखक ने एक साथ बांधने की जो कोशिश की है वह रोचक है । दोनों कहानियों के बीच में 150 वर्षों का अंतर पाठक को महसूस नहीं होता । साथ ही श्री सुबीर ने उपन्यास के उन अंशों का भी पाठ किया जो 150 साल के अंतर को पाटते हुए मध्य प्रदेश की वर्तमान प्रशासनिक स्थिति पर केन्द्रित हैं । अपना अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री संतोष चौबे ने कहा कि पंकज सुबीर का यह पहला ही उपन्यास है किन्तु इसको पढ़ते समय इस बात का कतई एहसास नहीं होता है कि ये लेखक का पहला उपन्यास है । जिस कौशल के साथ लेखक ने दो कथाओं के बीच संतुलन साधा है वह बहुत प्रभावशाली है । लेखक ने उपन्यास में व्यंग्य की भाषा के साथ साथ कुशलता से कहावतों, मुहावरों तथा जनश्रुतियों का उपयोग किया है । लेखक ने 1857 के बारे एक ऐसी नई कहानी से पाठकों को परिचित करवाया है जिससे पाठक अभी तक अपरिचित था । साथ ही इतिहासकार भी इसके बारे में कम जानते हैं । उस कहानी को उठाकर उसे वर्तमान की कहानी के साथ तुलनात्मक रूप से प्रस्तु त करना और वो भी पहले ही उपन्यास में, इसके लिये लेखक बधाई के पात्र हैं । अंत में आभार स्पंतदन के अध्यकक्ष डॉ शिरीष शर्मा ने व्यक्त किया । </div>
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डॉ शिरीष शर्मा अध्यक्ष (स्पंनदन)<br />
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पूर्णिमा वर्मनhttp://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.com0