सोमवार, 4 जुलाई 2011

वातायन : कविता सम्मान – २०११

नेहरु सेंटर और यू के हिंदी समिति के तत्वाधान एवं बैरोनैस फ्लैदर के संरक्षण में ३० जून के दिन लन्दन के हाउस ऑफ़ लोर्डस के एक एतिहासिक कमरे में वातायन : पोएट्री ऑन साउथ बैंक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। समारोह में प्रसिद्ध कवि और लेखक श्री प्रसून जोशी एवं श्री जावेद अख्तर को वातायन अवार्ड से सम्मानित किया गया। मुख्य अथिति के रूप में प्रसिद्ध अभिनेत्री शबाना आज़मी, लोर्ड देसी एवं डा मधुप मोहता ने इस समारोह की शोभा बढाई।

लेखक , संगीत कार, और फिल्मकार डॉ संगीता दत्ता ने संचालन की बागडोर सुविज्ञतापूर्वक संभाली। रीना भारद्वाज (गायिका ‘यह रिश्ता’) द्वारा सरस्वती वंदना से समारोह का आगाज़ हुआ। लेखक, फिल्मकार नसरीन मुन्नी कबीर ने प्रसून जोशी के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डाला। प्रसून जोशी के गीत ‘तारे जमीं पर’ का अंग्रेज़ी अनुवाद और प्रस्तुति की कवयित्री, लेखक और फिल्मकार रुथ पडेल ने तो प्रसून जोशी के एक दूसरे गीत ‘मेरी मां’ की प्रशंसनीय प्रस्तुति की कवयित्री और लेखक इंडिया रस्सल ने समारोह की अध्यक्षता कैम्ब्रिज विश्विद्यालय के प्राध्यापक एवं लेखक डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने की तथा प्रस्तावना यू के हिंदी समिति के अध्यक्ष और पुरवाई के संपादक डॉ पद्मेश गुप्त की रही। वातायन की संस्थापक अध्यक्ष दिव्या माथुर ने सभी मेहमानों का धन्यवाद किया।

सम्मान समारोह के दौरान प्रसून जोशी ने ‘धूप के सिक्कों’ के साथ अपनी कई अन्य कविताएँ अपनी दिलकश आवाज में सुनाईं शब्दों की जादूगरी के साथ साथ प्रसून के मधुर कंठ के भी मालिक हैं, अपने कुछ गीतों को स्वर में गाकर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया। जावेद साहब एक पूर्ण शख्सियत के मालिक हैं; गहरी आवाज़ और मोहक अंदाज में उन्होंने अपनी ‘वक़्त’ और ‘शतरंज’ जैसी कई कविताओं से सबका मन मोह लिया। समारोह के पश्चात एक भव्य भोज के साथ इस सितारों भरी खूबसूरत शाम का समापन हुआ।

शिखा वार्ष्णेय

बाजारवाद और साहित्य पर संगोष्ठी

श्रीडूंगरगढ़। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के स्वर्ण जयंती वर्ष के अंतर्गत आयोजन श्रृंखला में 'बाजारवाद और समकालीन साहित्य' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। राजस्थान साहित्य अकादमी के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता युवा आलोचक और बनास के सम्पादक पल्लव ने विषय पर दो व्याख्यान दिए। दिल्ली के हिन्दू कालेज में अध्यापन कर रहे पल्लव ने अपने पहले व्याख्यान में बाज़ार, बाजारवाद, भूमंडलीकरण और पूंजीवाद की विस्तार से चर्चा करते हुए इनके अंतर्संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि साहित्य अपने स्वभाव से ही व्यवस्था का विरोधी होता है और आधुनिक हिन्दी साहित्य का विकास उपनिवेशवाद और पूंजीवाद से लड़ते हुए हुआ है। प्रेमचंद के प्रसिद्द लेख 'महाजनी सभ्यता' का उल्लेख करते हुए उन्होंने समकालीन कथा साहित्य में बाजारवाद से प्रतिरोध के उदाहरण दिए। रघुनन्दन त्रिवेदी की कहानी 'गुड्डू बाबू की सेल', महेश कटारे की 'इकाई, दहाई...', अरुण कुमार असफल की 'पांच का सिक्का', उमाशंकर चौधरी की 'अयोध्या बाबू सनक गए हैं' तथा गीत चतुर्वेदी की 'सावंत आंटी की लड़कियाँ' की विशेष चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य जरूरत और लालसा के अंतर की बारीकियां समझाकर पाठक को विवेकवान बनाता है। पल्लव ने कहा कि एकल ध्रुवीय विश्व व्यस्था और संचार क्रान्ति ने बाजारवाद को बहुत बढ़ावा दिया है,जिससे मनुष्यता के लिए नए संकट उपस्थित हो गए हैं।

अपने दूसरे व्याख्यान में पल्लव ने उपन्यासों के सन्दर्भ में बाजारवाद की चर्चा में कहा कि उपन्यास एक बड़ी रचनाशीलता है जो प्रतिसंसार की रचना करने में समर्थ है। हिदी के लिए यह विधा अपेक्षाकृत नयी होने पर भी बाजारवाद के प्रसंग में इसने कुछ बेहद शक्तिशाली रचनाएं दी हैं। उन्होंने काशीनाथ सिंह के चर्चित उपन्यास 'काशी का अस्सी' को इस सम्बन्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण कृति बताया। उन्होंने कहा कि यह उपन्यास भारतीय संस्कृति पर बाजारवाद के हमले और इससे प्रतिरोध कर रहे सामान्य लोगों के जीवन का सुन्दर चित्रण करता है। उपन्यास के एक रोचक प्रसंग का पाठ कर उन्होंने बताया कि साम्प्रदायिकता किस तरह बाजारवादी व्यवस्था की सहयोगी हो जाती है और जातिवाद, राजनीति उसकी अनुचर,यह उपन्यास सब बताता है। वस्तु मोह के कारण संबंधों में हो रहे विचलन को दर्शाने के लिए कथाकार स्वयंप्रकाश के उपन्यास 'ईंधन' को यादगार बताते हुए कहा कि इस कृति में लेखक ने भारत में उदारीकरण की प्रक्रिया के साथ साथ अपने पात्रों का जीवन चित्रित किया है,जो ना केवल इसे विश्वसनीयता देता है अपितु उदारीकरण के कारण आ रहे नकारात्मक मूल्यों की पड़ताल भी करता है। ममता कालिया के 'दौड़' और प्रदीप सौरभ के 'मुन्नी मोबाइल' को भी पल्लव ने इस प्रसंग में उल्लेखनीय बताया।

इससे पहले कवि-आलोचक चेतन स्वामी ने विषय प्रवर्तन किया तथा मुख्य अथिति चुरू से आये साहित्यकार डॉ। भंवर सिंह सामोर ने लोक के सन्दर्भ में उक्त विषय की चर्चा की। अध्यक्षता कर रहे सुविख्यात कथाकार मालचंद तिवाड़ी ने कहा कि बाजारवाद ने जीवन में भय की ऐसी नयी उद्भावना की है जिसके कारण कोई भी निश्चिन्त नहीं है। तिवाड़ी ने कहा कि समकालीन रचनाशीलता ने प्रतिगामी विचारों से सदैव संघर्ष किया है जिसका उदाहरण कहानियों व कविताओं में बहुधा मिलता है। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अध्यक्ष श्याम महर्षि ने समिति के स्वर्ण जयंती वर्ष के आयोजनों की जानकारी दी। संयोजन कर रहे कवि सत्यदीप ने आभार व्यक्त किया। आयोजन में नगर के साहित्य प्रेमियों व युवा विद्यार्थियों ने भागीदारी की।

श्याम महर्षि
अध्यक्ष, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़

कवि उद्भ्रांत की एक साथ तीन नयी काव्य-कृतियों का लोकार्पण


नयी दिल्ली। ‘‘कवि उद्भ्रांत की एक साथ तीन नयी काव्य-कृतियों का लोकार्पण अद्भुत ही नहीं ऐतिहासिक भी है। उद्भ्रांत जैसी और जिस परिमाण में कविताएँ लिख रहे हैं वह उनकी प्रतिभा का बड़ा रचनात्मक विस्फोट है। रवीन्द्रनाथ में भी ऐसा ही विस्फोट हुआ था। इतनी कविताओं का लिखना उनकी प्रतिभा का विस्फोट तो है ही, साथ ही इनकी सर्जनात्मक ऊर्जा की भी दाद देनी होगी।’’ ये बातें मूर्द्धन्य आलोचक डॉ. नामवर सिंह ने उद्भ्रांत की तीन काव्य-कृतियों ‘अस्ति’ (कविता संग्रह), ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) एवं ‘राधामाधव’ (प्रबंध काव्य) के लोकार्पण के अवसर पर शुक्रवार दिनांक १७ जून, २०११ को हिन्दी भवन, दिल्ली में आयोजित ‘समय, समाज, मिथक: उद्भ्रांत का कवि-कर्म’ विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहीं।

मुख्य वक्ता वरिष्ठ आलोचक डॉ. शिवकुमार मिश्र ने ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) का लोर्कापण करते हुए कहा कि इसमें कवि ने महाभारत का एक तरह से पुनर्पाठ आधुनिक संदर्भ में बेहद गंभीरता के साथ किया है। युधिष्ठिर को केन्द्र में रखकर जिस तरह से उनको और उनके माध्यम से महाभारत के दूसरे महत्त्वपूर्ण चरित्रों को वे प्रश्नों के घेरे में लाये हैं, वह अद्भुत है और इससे युधिष्ठिर और अन्य मिथकीय चरित्रों के दूसरे पहलुओं के बारे में जानने का भी हमें मौक़ा मिलता है। ‘अभिनव पांडव’ को कवि ने महाकाव्य कहा है और अपनी भूमिका ‘बीजाक्षर’ में इस सम्बंध में बहस की है और अपने तर्क दिये हैं, लेकिन मैं इसे विचार काव्य कहूँगा जो महत् काव्य भी है और मेरा विश्वास है कि आने वाले समय में हिन्दी के बौद्धिक समाज में यह व्यापक विचारोत्तेजना पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि ‘राधामाधव’ काव्य बहुत ही मनोयोग से लिखा गया काव्य है, जिस पर बिना गहराई के साथ अध्ययन किए जल्दबाजी में टिप्पणी नहीं की जा सकती। इनकी रचनाएँ समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं। अपनी पचास वर्ष से अधिक समय की रचना-यात्रा में उनके द्वारा पचास-साठ से अधिक पुस्तकें लिखना सुखद आश्चर्य का विषय है।

वरिष्ठ आलोचक डॉ. नित्यानंद तिवारी ने ‘राधामाधव’ का लोकार्पण करते और कवि की अनेक रचनाओं के उदाहरण देते हुए कहा कि उनके पास कहने को बहुत कुछ है और लिखने की शैली भी अलग है। मिथकों को लेकर उन्होंने कई रचनाएँ की हैं जो अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं। उनका रचनात्मक आवेग बहुत तीव्र है और उनके पास अक्षय भंडार है। पूतना के माध्यम से आदिवासी स्त्री जीवन का चरित्रा-चित्राण अनोखा है। कवि ने अपने सम्पूर्ण काव्य- सृजन को समकालीन बनाने की हर संभव कोशिश की है जिसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। सत्यप्रकाश मिश्र, राममूर्ति त्रिपाठी और रमाकांत रथ जैसे अनेक भारतीय विद्वानों ने उनकी इस विशिष्टता को रेखांकित भी किया है। कवि लीलाधर मंडलोई ने कहा कि बिना राधा के आख्यान को रचे राधाभाव को रचना ‘राधामाधव’ का महत्त्वपूर्ण तत्व है। इसमें स्त्री विमर्श भी है जिससे कवि की अलग पहचान बनती है। इनके समूचे साहित्य में मूल पूँजी आख्यान है और आख्यान को साधना बहुत बड़ी बात है। इसके अतिरिक्त आलोचक डॉ. संजीव कुमार तथा साहित्यकार धीरंजन मालवे ने भी उनके संग्रहों के विषय में अपने विचार प्रकट किये।

संगोष्ठी का बीज-वक्तव्य देते हुए जनवादी लेखक संघ की दिल्ली इकाई के सचिव प्रखर आलोचक डॉ. बली सिंह ने कहा कि आज के दौर में इतने तरह के काव्यरूपों में काव्य रचना बेहद मुश्किल है, लेकिन उद्भ्रांत जी इसे संभव कर रहे हैं। उनकी कविताएँ विचारों से परिपूर्ण हैं। यहाँ सांस्कृतिक मसले बहुत आये हैं और पहले की अपेक्षा उनकी कविताओं में स्मृतियों की भूमिका बढ़ी है। ‘राधामाधव’ स्मृतियों का विलक्षण काव्य है। ‘अभिनव पांडव’ में स्त्रिायों के प्रति बराबरी के दर्जे के लिये कई सवाल उठाये गये हैं जो आज के दौर में अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने इस उत्तर आधुनिक समय में आई उद्भ्रांत की मिथकाधारित और विचारपूर्ण समकालीन कविताओं को बहुत महत्त्वपूर्ण बताया।

कुछ वक्ताओं का कहना था कि हिन्दी और भारतीय भाषाओं में ही नहीं, मगर संभवतः यह विश्व की किसी भी भाषा में आया इतना बड़ा पहला वृहद्काय काव्य संग्रह होगा। प्रारम्भ में कवि उद्भ्रांत ने तीनों लोकार्पित कृतियों की चुनिंदा कविताओं और काव्यांशों का प्रभावशाली पाठ करने के पूर्व ‘अस्ति’ (कविता संग्रह), जिसे उन्होंने ‘कविता और जीवन के प्रति आस्थावान अपने सुधी और परम विश्वसनीय पाठक-मित्रा के निमित्त’ समर्पित किया है, की प्रथम प्रति बड़ी संख्या में उपास्थित सुधी श्रोताओं में एक वरिष्ठ कवि श्री शिवमंगल सिद्धांतकर को तथा ‘राधामाधव’ (काव्य), जिसे उन्होंने पत्नी और तीनों बेटियों के नाम समर्पित किया है, की प्रथम प्रति श्रीमति ऊषा उद्भ्रांत को भेंट की।

कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए दूरदर्शन महानिदेशालय के सहायक केन्द्र निदेशक श्री पी.एन. सिंह द्वारा कवि के सम्बंध में दी गई इन दो महत्त्वपूर्ण सूचनाओं ने सभागार में मंच पर उपस्थित विद्वानों और सुधी श्रोताओं को हर्षित कर दिया कि वर्ष २००८ में ‘पूर्वग्रह’ (त्रौमासिक) में प्रकाशित उनकी जिस महत्त्वूपर्ण लम्बी कविता ‘अनाद्यसूक्त’ के पुस्तकाकार संस्करण को लोकार्पित करते हुए नामवर जी ने उसे उस समय तक की उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति घोषित किया था, को वर्ष २००८ के ‘अखिल भारतीय भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार’ से सम्मानित करने की घोषणा हुई है। इसके अलावा उडीसा से पद्मश्री श्रीनिवास उद्गाता जी, जिन्होंने रमाकांत रथ के ‘सरस्वती सम्मान’ से अलंकृत काव्य ‘श्रीराधा’ का उड़िया से हिन्दी में तथा धर्मवीर भारती की ‘कनुप्रिया’ का हिन्दी से उड़िया में काव्यानुवाद किया था, ने कवि को सूचित किया है कि वे आज लोकार्पित ‘राधामाधव’ का भी हिन्दी से उड़िया में काव्यानुवाद कर रहे हैं जो बहुत जल्द उड़िया पाठक-समुदाय के समक्ष आयेगा। न्यवाद-ज्ञापन हिन्दी भवन के प्रबंधक श्री सपन भट्टाचार्य ने किया।

समारोह में दूरदर्शन, आकाशवाणी और प्रमुख समाचार एजेंसियों के प्रतिनिधियों के साथ ‘समयांतर’ के संपादक पंकज बिष्ट, कथाकार प्रदीप पंत, डॉ. धीरेन्द्र सक्सेना, अशोक गुप्ता, हीरालाल नागर, रेखा व्यास सहित बड़ी संख्या में राजधानी के साहित्य-प्रेमियों की उपस्थिति रही।


प्रस्तुतकर्ता
तेजभान, नई दिल्ली

डॉ. मेहता व्यक्तित्व एवं कृतित्व का लोकार्पण


उदयपुर 28 जून, पद्मविभूषण डॉ. मोहन सिंह मेहता की 26वीं पुण्यतिथी के अवसर पर पश्चिमी क्षैत्र सांस्कृति केन्द्र के निदेशक शैलेन्द्र दशोरा, सेवामन्दिर के वरिष्ठ प्रन्यासी मोहन सिंह कोठारी तथा डॉ. मेहता की पौत्री विजया खान ने डॉ. मेहता व्यक्तित्व एवं कृतित्व पुस्तक का विमोचन एवं लोकापर्ण किया। ‘‘व्यक्तित्व एवं कृतित्व’’ पुस्तक का प्रकाशन डॉ. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा स्व. राजेन्द्र चौधरी की स्मृति में किया गया।

बहुप्रतिभाओं के धनी डॉ. मोहन सिंह मेहता ने मेवाड़ में स्वैच्छिकता, समाज सेवा एवं शिक्षा के आन्दोलनों को कैसे गति दी तथा इन आन्दोलनों में उनकी भूमिकाओं का चित्रण शिक्षाविद डॉ. मांगीलाल नागदा, डॉ. वि.वि. सिंह, जी.एल. मेनारिया स्वतन्त्रता सेनानी जगन्नाथ प्रसाद चौबे, गांधीवादी ईश्वरलाल वैश्य, स्काऊट मुवमेन्ट के राधेश्याम मेहता, सामाजिक कार्यकर्ता सुशिल दशोरा तथा महिला नेत्री रजिया तहसीन आदि ने जैसा डॉ. मेहता के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को दर्शाया है। यह पुस्तक मेवाड़ के सपूत डॉ. मेहता के कृतित्व से फैली खुशबु आने वाली पीढ़ियों का मार्ग प्रशस्त करेगी।

इस अवसर पर पश्चिमी क्षैत्र सांस्कृति केन्द्र के निदेशक शैलेन्द्र दशोरा ने कहा कि डॉ. मेहता व्यक्तित्व एंव मुल्य आधारित चरित्र, निर्माण के पुरोधा थे । उघोगपति हंसराज चौधरी ने डॉ. मेहता को सस्था शिल्पी बताया। सेवामन्दिर के वरिष्ठ प्रन्यासी मोहन सिंह कोठारी ने डॉ. मेहता को नागरिकता का बेमिसाल व्यक्तित्व बतलाया । कार्यक्रम मे ट्रस्ट अध्यक्ष विजय एस. मेहता, सेवामन्दिर की मुख्य सचालिका प्रियंका सिंह, अनिल मेहता, हंेमराज भाटी, जी एस झाला सहित शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता अजय एस. मेहता ने की। सचालन नन्द किशोर शर्मा एवं मो , याकुब ने किया। इस अवसर पर राम आठले ने भजन प्रस्तुति दी।

नन्द किशोर शर्मा
सचिव

विजय तिवारी किसलय जबलपुर रत्न से सम्मानित

शनिवार, ११ जून की शाम संस्कारधानी के तरंग प्रेक्षागृह में जबलपुर रत्न का आयोजन हुआ। इससे पहले शुक्रवार को निर्णायक मंडल जनता के वोटों की रोशनी में रत्नों और जबलपुर रत्न के नाम की घोषणी की, जिसे ११ जून को जबलपुर संस्कारधानी के तरंग प्रेक्षा गृह के सजे-धजे मंच पर विधिवत उजागर किया गया।

गरिमामय कार्यक्रम में सभी रत्नों को प्रशस्ति पत्र व ट्रॉफी प्रदानकर उनका मान ब़ढ़ाया गया। उनके व्यक्तित्व-कृतित्व का कीर्तिगान, संक्षिप्त जीवन वृत्त व उनकी उल्लेखनीय सेवाओं का भी जिक्र किया गया। शहर की ये वे अभिनंदित विभूतियाँ हैं जिन्होंने अपने विशिष्ट कार्यक्षेत्र में जोश, जज्बे और जुनून द्वारा एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। पाठकों के मतदान व निर्णायक मंडल की कसौटी पर श्रेष्ठ साबित होने वाले जाने माने लोगों को विभिन्न श्रेणी के रत्नों से विभूषित किया गया। कार्यक्रम में गीत-संगीत की यादगार प्रस्तुतियों ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। विभिन्न श्रेणियों के नामांकितों में से विजेताओं के नामों की घोषणा के दौरान जब जिज्ञासा का सैलाब उमड़ रहा था तभी साहित्य रत्न के रूप में विजय तिवारी 'किसलय' के नाम की प्रथम घोषणा होते ही पूरा तरंग प्रेक्षागृह हर्षोल्लास और तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। मंचासीन मध्य प्रदेश के विधानसभाध्यक्ष श्री ईश्वर दास रोहाणी, आई जी मधु कुमार जी, महापौर प्रभात साहू, विधायक हरेन्द्र जीत सिंह बब्बू, शिक्षाविद डेविस जार्ज, वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्श मुनि त्रिवेदी सहित नई दुनिया के वरिष्ठ संपादकों द्वारा विजय तिवारी 'किसलय' को नई दुनिया ट्राफी एवं प्रशस्ति पत्र भेंट कर " साहित्य रत्न-२०११ " से सम्मानित किया गया।

२८ लाख की आबादी वाले शहर जबलपुर में श्री किसलय को साहित्य रत्न से अलंकृत किया जाना ब्लॉग जगत के लिए अत्यंत गौरव की बात है।

नार्वे में टैगोर का १५०वाँ जन्मदिवस - देवी नागरानी सम्मानित

'भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के मंच पर शनिवार ७ मई, भारतीय- नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, (स्थान) वाइतवेत कल्चर सेंटर ओस्लो में नार्वे का स्वतन्त्रता दिवस (८ मई ), और गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के १५० वे जन्मदिन पर को मनाया गया और साथ ही एक सफ़ल लेखक गोष्ठी से उस कार्यक्रम को संपन्न किया, जिसमें मुख्य अतिथि रहे स्थानीय मेयर थूर स्ताइन विंगेर और भारतीय दूतावास के सचिव बी के श्रीराम जी ने अध्यक्षता की। विशिष्ट अतिथि रही जानी-मानी यू एस ए की कवियित्री श्रीमती देवी नागरानी जिन्हें हिंदी साहित्य सेवा के लिए सम्मानित किया गया।

दीप प्रज्वलन के पश्चात निकिता और अलक्सन्देर शुक्ल सीमोनसेन, अरविन्द सीवेर्टसेन और कुनाल भरत ने राष्ट्रीय गान प्रस्तुत किया था। इस संस्था के अध्यक्ष सुरेशचंद्र चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' जी ने हिंदी व नॉर्वेजियन भाषा में मिले- जुले संचालन का भार सँभालते हुए मुख्य अतिथियों का फूलों से स्वागत किया, स्थानीय मेयर थूर स्ताइन विंगेर और भारतीय दूतावास के सचिव बी के श्रीराम ने देवी नागरानी को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया।

मुख्य अतिथि स्थानीय मेयर थूरस्ताइन विंगेर ने नार्वे की आजादी के बारे में बहुत ही रोचक हकीकतों से वाकिफ़ कराया और रौशनी डालते हुए अपनी पाई हुई आज़ादी के लिए सभी को शुभकामनयें दी। स्टाकहोम से आई पम्मी जेसवानी जी ने देवी जी की लिखे काव्य संकलन ' द जर्नी' से कुछ अंश पढ़े और साथ में उनकी एक रचना का पाठ भी किया। उन्होंने बंकिम चटर्जी का लिखा 'वन्दे मातरम ' गाया जिसमें उनके साथ रही ओस्लो की हिंदी सेवी रूचि माथुर। एक तरह से सभा में शामिल सभी भारतवासी भाव विभोर होकर उस गायन में शामिल हुए। सुनकर लगा भारत अब भी उनके दिलों में धड़कता है, चाहे वह वतन से दूर हैं। यह भी देखने को मिलता है कि देश से दूर उन्हें अपनी भाषा , साहित्य और संस्कृति के लिए लगाव ज़ियादा हो जाता है जिसकी नींव भारतीय प्रवासी माता -पिता अपने बच्चों में बोने के लिए अनूठे प्रयास कर रहे हैं।

देवी नागरानी ने अपनी आवाज़ में चंद ग़ज़लें पढ़ीं जिसमें एक भारतीय शहीदों की याद में रही 'पहचानता है यारो हमको जहाँ ये सारा, हिन्दोस्तां के हम हैं हिन्दोस्तां हमारा।' इस भारतीय- नार्वेजीय सांस्कृतिक फोरम पर एक रस होकर भाव विभोरता के साथ इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन ने नार्वेजियन भाषा में अपनी ३ रचनाओं का पाठ किया। लीव एवेनसेन ने बच्चों की कहानी को भाव और आवाज़ के माध्यम से बेहद रुचिकर बनाकर पेश किया। सिगरीद मारिये रेफ्सुम ने गिटार वादन से और साथ साथ कविताओं को गाकर प्रस्तुत किया। राय भट्टी जी ने एक सुंदर ग़ज़ल से श्रोताओं का मन मोह लिया, जबकि श्रीमती सुखबीर कौर भट्टी ने वहां की भाषा में बच्चों के सामने एक अनोखी भाव भरी कहानी पेश की और बच्चे गौर से सुनते रहे। बच्चों को नाटकीय ढंग से कहानी पेश करने का यह सिलसिला यकीनन भाषाई हदें तोड़ने में सफ़ल रहेगा। राज कुमार भट्टी जी ने अपनी आवाज़ में ' श्रोताओं के जज्बातों को झंझोड़ते हुए ' चिट्ठी आई है' पंकज उदास द्वारा गाई ग़ज़ल को दोहराया, नीलम लखनपाल जी ने एक पंजाबी गीत गाया 'इक दिन मिट्टी में मिल जाना है'। श्री सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने कार्यक्रम को अंत की ओर ले जाते हुए नॉर्वेजियन भाषा में और हिंदी में नमस्ते कैसे करते हैं इस पर शब्दों और इशारों द्वारा पेश करने की बखूबी चेष्टा की। उनकी दूसरी रचना के शब्द रहे ' ओ कमल नयन पुलकित नमन, पूनम का चाँद लजाती हो ।' था। और अंतिम चरण में पंडित, पादरी और मौलवी के शीर्षक वाली बाल कहानी सुनाई।

संगीता शुक्ल सीमोनसेन जी इस दिशा में हर शनिवार दुपहर हिन्दुस्तानी व् नॉर्वेजियन बच्चों की हिंदी सिखाने के साथ-साथ जब भी तीज त्यौहार के अवसर आते हैं भारतीय संस्कृति की दिशा में, क्षमता के साथ सभी बच्चों को उन पगडंडियों पर ले जाती है। भारतीय दूतावास के सचिव बी के श्रीराम जी ने अपनी अध्यक्षता को अंजाम की ओर ले जाते हुए कहा कि विदेश में इन छोटे छोटे भाषाई प्रयासों से जल रही यह लौ सराहनीय है। उनका कहना है कि यही रौशनी हमारी सभ्यता की प्रतीक रहेंगी, साथ में अपनी शुभकामनाएँ पेश की कार्यक्रम का आरंभ और अंत चाय नाश्ते के साथ चलता रहा।

गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर को पिछली सदी का सबसे बड़े महाकवि का दर्जा देते हुए सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने कहा कि रवींद्र नाथ टैगोर विश्व के एकमात्र कवि हैं जिन्हें तीन देशों के राष्ट्रगान लिखने का सौभाग्य प्राप्त है: भारत, बांग्लादेश और श्री लंका। उन्होंने अपनी कविता भी गुरुदेव रवींद्र पर अपनी कविता प्रस्तुत की।
बेंगलोर की कलायन नाट्य संस्था के बहुचर्चित नाटक 'स्वयंवर 2010 का मंचन 14 मई को दुबई (संयुक्त अरब अमीरात) में सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। इससे पहले 'सुबह का भूला' का एक सफल मंचन जनवरी 2011 में हो चुका है। इस नाटक को दुबई लाने का श्रेय मधुमिता प्रवीन को जाता है। दुबई के किलाचंद हॉल में 14 मई को नाटक के दो शो मंचित किए गये। दोनों हाउसफुल रहे। दर्शकगण नाटक की कथावस्तु से बहुत प्रभावित रहे और नाटक ने अधिकांश दर्शकों को कहीं न कहीं छुआ। दोनों प्रदर्शनों में, नाटक की समाप्ति के बाद भी दर्शक बहुत देर तक प्रांगण में नाटक के बारे में बातें करते देखे गये।

नाटक का विषय समसामयिक था। बिना मध्यांतर वाले इस नाटक अवधि 100 मिनट थी। स्वयंवर 2010 संबंधों में उलझे पाँच व्यक्तियों की कहानी है। आज वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति अत्यंत तीव्र गति से अग्रसर है* ऐसे युग में जहाँ परंपराओं और संबंधों की व्याख्याएँ बदल रही है, यह नाटक स्त्री् - पुरुष संबंधों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में रेखांकित करता है।

चित्रा का पति शेखर चित्रा की अपेक्षाओं में खरा नहीं उतरता है। उसे अपने भाग्ये से शिकायत है। उसे अपने ऑफिस का सहकर्मी जगदीश बहुत आकर्षक लगता है और वह उसके साथ अपने संबंध बढ़ाती है। शेखर का मित्र संदीप सोनम से प्याभर करता है तथा शादी करना चाहता है पर जब वह शेखर और चित्रा को देखता है तो अपना इरादा बदल देता है। शादी के चक्रव्यूह में नहीं फँसना चाहता। वह पाता है कि संबंधों का समीकरण उलझ के रह जाता है।

नाटक की नायिका चित्रा की भूमिका में संगीता पंडा, पति शेखर की भूमिका में सुदर्शन राजगोपाल, ऑफिस के सहकर्मी जगदीश की भूमिका में दीपक अजमानी, सोनम की भूमिका में मुक्ता दरेरा और संदीप की भूमिका में अंकुर सरदाना का अभिनय बहुत ही सराहनीय रहा। प्रकाश व्यवस्था में गिरीश महाजन तथा संगीत और ध्वनि संयोजन में मालविका कलौनी का प्रयास प्रशंसनीय रहा। नाटक के लेखक व निर्देशक थे मथुरा कलौनी।

भारतीय उच्चायोग,लन्दन द्वारा घोषित हिंदी सेवा सम्मान

ब्रिटेन में २१ मार्च को विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में भारतीय उच्चायोग, भारत भवन,ऑल्डविच लन्दन में एक समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में भारतीय उच्चायोग,लन्दन द्वारा घोषित हिंदी सेवा सम्मान योजना के अंतर्गत भारतीय उच्चायुक्त महामहिम नलिन सूरी ने वर्ष २०१० के सम्मानों से रचनाकारों को सम्मानित किया।

इस कार्यक्रम में साहित्यकार उषाराजे सक्सेना को डॉ हरिवंशराय बच्चन सम्मान, स्वर्गीय पत्रकार महावीर शर्मा को डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान (पत्रकारिता- मरणोपरांत), कैम्ब्रिज के शिक्षक श्री एश्वर्य कुमार को डॉ जॉन गिलक्रिस्ट सम्मान (अध्यापक), संस्था कथा यू के को फ्रेड्रिक पिन्कॉट सम्मान, प्रदान किये गए। सभी गुणीजनों को शॉल, प्लाक, स्मृति चिह्न, प्रशस्तिपत्र एवं २५१ पौंड की धनराशि प्रादान करके सम्मानित किया गया। शिखा वार्ष्णेय को उनके संस्मरण के लिए डॉ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी हिंदी साहित्य प्रकाशन योजना के अंतर्गत २५० पौंड की राशि का अनुदान दिया गया।

आयोजन में लन्दन में भारतीय उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी सहित उप-उच्चायुक्त श्री प्रसाद, संस्कृति मंत्री श्रीमती मोनिका मोहता और लंदन में हिंदी साहित्य के सभी गणमान्य व्यक्ति एवं मीडिया कर्मी उपस्थित थे। उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने पुरस्कार वितरण किये और अपने बहुमूल्य शब्दों से संबोधित किया। आयोजन का संचालन उच्चायोग के हिंदी अताशे श्री आनंद कुमार ने किया, तदुपरांत श्रीमती पद्मजा जी ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ समारोह का समापन किया।

शिखा वार्ष्णेय