सोमवार, 4 जुलाई 2011

नार्वे में टैगोर का १५०वाँ जन्मदिवस - देवी नागरानी सम्मानित

'भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के मंच पर शनिवार ७ मई, भारतीय- नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, (स्थान) वाइतवेत कल्चर सेंटर ओस्लो में नार्वे का स्वतन्त्रता दिवस (८ मई ), और गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के १५० वे जन्मदिन पर को मनाया गया और साथ ही एक सफ़ल लेखक गोष्ठी से उस कार्यक्रम को संपन्न किया, जिसमें मुख्य अतिथि रहे स्थानीय मेयर थूर स्ताइन विंगेर और भारतीय दूतावास के सचिव बी के श्रीराम जी ने अध्यक्षता की। विशिष्ट अतिथि रही जानी-मानी यू एस ए की कवियित्री श्रीमती देवी नागरानी जिन्हें हिंदी साहित्य सेवा के लिए सम्मानित किया गया।

दीप प्रज्वलन के पश्चात निकिता और अलक्सन्देर शुक्ल सीमोनसेन, अरविन्द सीवेर्टसेन और कुनाल भरत ने राष्ट्रीय गान प्रस्तुत किया था। इस संस्था के अध्यक्ष सुरेशचंद्र चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' जी ने हिंदी व नॉर्वेजियन भाषा में मिले- जुले संचालन का भार सँभालते हुए मुख्य अतिथियों का फूलों से स्वागत किया, स्थानीय मेयर थूर स्ताइन विंगेर और भारतीय दूतावास के सचिव बी के श्रीराम ने देवी नागरानी को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया।

मुख्य अतिथि स्थानीय मेयर थूरस्ताइन विंगेर ने नार्वे की आजादी के बारे में बहुत ही रोचक हकीकतों से वाकिफ़ कराया और रौशनी डालते हुए अपनी पाई हुई आज़ादी के लिए सभी को शुभकामनयें दी। स्टाकहोम से आई पम्मी जेसवानी जी ने देवी जी की लिखे काव्य संकलन ' द जर्नी' से कुछ अंश पढ़े और साथ में उनकी एक रचना का पाठ भी किया। उन्होंने बंकिम चटर्जी का लिखा 'वन्दे मातरम ' गाया जिसमें उनके साथ रही ओस्लो की हिंदी सेवी रूचि माथुर। एक तरह से सभा में शामिल सभी भारतवासी भाव विभोर होकर उस गायन में शामिल हुए। सुनकर लगा भारत अब भी उनके दिलों में धड़कता है, चाहे वह वतन से दूर हैं। यह भी देखने को मिलता है कि देश से दूर उन्हें अपनी भाषा , साहित्य और संस्कृति के लिए लगाव ज़ियादा हो जाता है जिसकी नींव भारतीय प्रवासी माता -पिता अपने बच्चों में बोने के लिए अनूठे प्रयास कर रहे हैं।

देवी नागरानी ने अपनी आवाज़ में चंद ग़ज़लें पढ़ीं जिसमें एक भारतीय शहीदों की याद में रही 'पहचानता है यारो हमको जहाँ ये सारा, हिन्दोस्तां के हम हैं हिन्दोस्तां हमारा।' इस भारतीय- नार्वेजीय सांस्कृतिक फोरम पर एक रस होकर भाव विभोरता के साथ इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन ने नार्वेजियन भाषा में अपनी ३ रचनाओं का पाठ किया। लीव एवेनसेन ने बच्चों की कहानी को भाव और आवाज़ के माध्यम से बेहद रुचिकर बनाकर पेश किया। सिगरीद मारिये रेफ्सुम ने गिटार वादन से और साथ साथ कविताओं को गाकर प्रस्तुत किया। राय भट्टी जी ने एक सुंदर ग़ज़ल से श्रोताओं का मन मोह लिया, जबकि श्रीमती सुखबीर कौर भट्टी ने वहां की भाषा में बच्चों के सामने एक अनोखी भाव भरी कहानी पेश की और बच्चे गौर से सुनते रहे। बच्चों को नाटकीय ढंग से कहानी पेश करने का यह सिलसिला यकीनन भाषाई हदें तोड़ने में सफ़ल रहेगा। राज कुमार भट्टी जी ने अपनी आवाज़ में ' श्रोताओं के जज्बातों को झंझोड़ते हुए ' चिट्ठी आई है' पंकज उदास द्वारा गाई ग़ज़ल को दोहराया, नीलम लखनपाल जी ने एक पंजाबी गीत गाया 'इक दिन मिट्टी में मिल जाना है'। श्री सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने कार्यक्रम को अंत की ओर ले जाते हुए नॉर्वेजियन भाषा में और हिंदी में नमस्ते कैसे करते हैं इस पर शब्दों और इशारों द्वारा पेश करने की बखूबी चेष्टा की। उनकी दूसरी रचना के शब्द रहे ' ओ कमल नयन पुलकित नमन, पूनम का चाँद लजाती हो ।' था। और अंतिम चरण में पंडित, पादरी और मौलवी के शीर्षक वाली बाल कहानी सुनाई।

संगीता शुक्ल सीमोनसेन जी इस दिशा में हर शनिवार दुपहर हिन्दुस्तानी व् नॉर्वेजियन बच्चों की हिंदी सिखाने के साथ-साथ जब भी तीज त्यौहार के अवसर आते हैं भारतीय संस्कृति की दिशा में, क्षमता के साथ सभी बच्चों को उन पगडंडियों पर ले जाती है। भारतीय दूतावास के सचिव बी के श्रीराम जी ने अपनी अध्यक्षता को अंजाम की ओर ले जाते हुए कहा कि विदेश में इन छोटे छोटे भाषाई प्रयासों से जल रही यह लौ सराहनीय है। उनका कहना है कि यही रौशनी हमारी सभ्यता की प्रतीक रहेंगी, साथ में अपनी शुभकामनाएँ पेश की कार्यक्रम का आरंभ और अंत चाय नाश्ते के साथ चलता रहा।

गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर को पिछली सदी का सबसे बड़े महाकवि का दर्जा देते हुए सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने कहा कि रवींद्र नाथ टैगोर विश्व के एकमात्र कवि हैं जिन्हें तीन देशों के राष्ट्रगान लिखने का सौभाग्य प्राप्त है: भारत, बांग्लादेश और श्री लंका। उन्होंने अपनी कविता भी गुरुदेव रवींद्र पर अपनी कविता प्रस्तुत की।

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