शनिवार, 25 अप्रैल 2009

तेजेन्द्र शर्माः वक़्त के आइने में - लोकार्पित

फोटो में बाएँ से- हरि भटनागर, कृष्णा सोबती, डा. नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, तेजेन्द्र शर्मा
“तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों से गुज़रते हुए हम यह शिद्दत से महसूस करते हैं कि लेखक अपने वजूद का टेक्स्ट होता है। तेजेन्द्र के पात्र ज़िन्दगी की मुश्किलों से गुज़रते हैं और अपने लिये नया रास्ता तलाशते हैं। वह नया रास्ता जहां उम्मीद है। तेजेन्द्र की कहानियों के ज़रिये हिन्दी के मुख्यधारा के साहित्य को प्रवासी साहित्य से साझेपन का रिश्ता विकसित करना चाहिये। हम उनकी जटिलताएं, उनके नज़िरये और उनके माहौल के हिसाब से समझें।” ये बातें मूर्धन्य उपन्यासकार एवं कथाकार कृष्णा सोबती ने आज चर्चित कथाकार तेजेन्द्र शर्मा के लेखन और जीवन पर केन्द्रित पुस्तक ‘तेजेन्द्र शर्माः वक़्त के आइने में’ के राजेन्द्र भवन सभागार में आयोजित लोकार्पण समारोह में कहीं।

इस अवसर पर प्रख्यात आलोचक प्रो. नामवर सिंह ने कहा कि “मुर्दाफ़रोश लोग हर जमात में होते हैं। और पूँजीवाद में तो ऐसे शख़्सों की इंतेहा है। वे मज़हब बेच सकते हैं, रस्मो-रिवाज़ बेच सकते हैं। तेजेन्द्र शर्मा ने अपनी लाजवाब कहानी ‘क़ब्र का मुनाफ़ा’ में वैश्विक परिदृश्य में पूंजीवाद की इस प्रवृत्ति को यादगार कलात्मक अभिव्यक्ति दी है।” उन्होंने इस आयोजन के आत्मीय रुझान की चर्चा भी की। इससे पूर्व नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव और कृष्णा सोबती ने इस पुस्तक का लोकार्पण किया। राजेन्द्र यादव ने तेजेन्द्र शर्मा की कथावाचन शैली की सराहना करते हुए कहा कि तेजेन्द्र को आर्ट ऑफ़ नैरेशन की गहरी समझ है। हरि भटनागर ने पुस्तक में लिखी अपनी भूमिका का पाठ करते हुए बताया कि तेजेन्द्र की कहानियां दो संस्कृतियों के संगम की कहानियां हैं। वरिष्ठ कथाकार नूर ज़हीर ने पुस्तक में शामिल अमरीका की सुधा ओम ढींगरा का एक ख़त पढ़ते हुए कहा कि तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों का असर एक प्रबुद्ध पाठक पर कैसा हो सकता है, इस ख़त से साफ़ पता चलता है। इससे पूर्व बीज वक्तव्य देते हुए अजय नावरिया ने कहा कि यह पुस्तक अभिनंदन ग्रन्थ नहीं है क्योंकि यहाँ अन्धी प्रशंसा की जगह तार्किकता है। मोहाविष्ट स्थिति की जगह मूल्यांकन है। अजय ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों के बहाने हिन्दी कथा साहित्य पर चर्चा करते हुए कहा कि इन कहानियों के मूल्यांकन के लिये हमे नई आलोचना प्रविधि की दरकार है।”

कार्यक्रम का संचालन अजित राय ने किया। समारोह में राजेन्द्र प्रसाद अकादमी के निदेशक बिमल प्रसाद, मैथिली भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष अनिल मिश्र, असग़र वजाहत, कन्हैया लाल नन्दन, गंगा प्रसाद विमल, लीलाधर मण्डलोई, प्रेम जनमेजय, प्रताप सहगल, मुंबई से सूरज प्रकाश, सुधीर मिश्रा, राकेश तिवारी, रूप सिंह चन्देल, सुभाष नीरव, अविनाश वाचस्पति, अजन्ता शर्मा, अनिल जोशी, अल्का सिन्हा, मरिया नगेशी (हंगरी), चंचल जैन (यू.के.), रंगकर्मी अनूप लाथर (कुरुक्षेत्र), शंभु गुप्त (अलवर), विजय शर्मा (जमशेदपुर), तेजेन्द्र शर्मा के परिवार के सदस्यों सहित भारी संख्या में साहित्य-रसिक श्रोता मौजूद थे।

शब्द संगत का विशेष अंक रचनाकार राजेन्द्र राव पर एकाग्र


'शब्द संगत' का यह अंक रचनाकार राजेन्द्र राव पर केन्द्रित है। रचनाकार राजेन्द्र राव सातवें दशक के महत्त्वपूर्ण कथाकार हैं। कल-कारखानों के श्रमिकों और तलघर में जी रहे जीवन पर जिन रचनाकारों का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, उनमें आप महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अमरकांत, शेखर जोशी, कामतानाथ और इसराइल की तरह नहीं बल्कि उनके समानांतर राजेन्द्र राव ने फैक्ट्री में दिन-रात खट रहे मजदूर और निम्न-मध्यमवर्गीय जीवन की काली छाया को उद्घाटित किया। अभावग्रस्तता से उपजी हताशा और टूटन के बाद भी आपके पात्र परास्त नहीं होते, जीवन से निराश नहीं होते, वरन् उससे रू-ब-रू होते हुए अपने संघर्ष का शोकगीत गाते हैं। राजेन्द्र राव ने बहुत ही खूबसूरती से इस जीवन को अभिव्यक्ति दी है। कह सकते हैं कि नेहरू युग के क्रूर सच को यदि देखना है तो राजेन्द्र राव की कहानिया इसका सर्वश्रेष्ठ नमूना हैं। सिर्फ कहानियों के मार्फ़त ही नहीं, वरन् रेखाचित्रों, कॉलम लेखन, स्तंभों में भी आपने अपनी रचनात्मकता को नए आयाम दिए और जीवन-द्भष्मा को बरक़रार रखा। साप्ताहिक हिन्दुस्तान में 'हाटे-बाज़ारे` शीर्षक से प्रकाशित धारावाहिक वेश्या-जीवन की त्रासदी के बहाने आपने समकालीन व्यवस्था को बेनकाब किया जिसमें इंसान नारकीय जीवन जीने को बाध्य है। अपनी रचनात्मकता को
जीवित रखते हुए राजेन्द्र राव आज भी रचनारत और समादृत हैं। 'शब्द संगत` का यह अंक उनके रचनात्मक श्रम के सौन्दर्य को समर्पित है। इस अंक की पीडीएफ फाइल को यहाँ क्लिक कर के अपने कंप्यूटर पर सहेजा जा सकता है।
--हरि भटनागर

चिट्ठा-लेखन तथा अंतर्जाल पत्रकारिता कार्यशाला संपन्न


जबलपुर, १९ अप्रैल २००९. ''चिटठा लेखन वैयक्तिक अनुभूतियों की सार्वजानिक अभिव्यक्ति का माध्यम मात्र नहीं है, यह निजता के पिंजरे में क़ैद सत्य को व्यष्टि से समष्टि तक पहुँचने का उपक्रम भी है। एक से अनेक तक वही जाने योग्य है जो 'सत्य-शिव-सुन्दर' हो, जिसे पाकर 'सत-चित-आनंद' की प्रतीति हो। हमारी दैनन्दिनी अंतर्मन की व्यथा के प्रगटीकरण के लिए उपयुक्त थी चूंकि उसमें अभिव्यक्त कथ्य और तथ्य तब तक गुप्त रहते थे जब तक लेखक चाहे किन्तु चिटठा में लिखा गया हर कथ्य तत्काल सार्वजानिक हो जाता है, इसलिए यहाँ तथ्य, भाषा, शैली तथा उससे उत्पन्न प्रभावों के प्रति सचेत रहना अनिवार्य है। अंतर्जाल ने वस्तुतः सकल विश्व को विश्वैक नीडं तथा वसुधैव कुटुम्बकम की वैदिक अवधारणा के अनुरूप 'ग्लोबल विलेज' बना दिया है। इन माध्यमों से लगी चिंगारी क्षण मात्र में महाज्वाला बन सकती है, यह विदित हो तो इनसे जुड़ने के अस्त ही एक उत्तरदायित्व का बोध होगा। जन-मन-रंजन करने के समर्थ माध्यम होने पर भी इन्हें केवल मनोविनोद तक सीमित मत मानिये। ये दोनों माध्यम जन जागरण, चेतना विस्तार, जन समर्थन, जन आन्दोलन, समस्या निवारण, वैचारिक क्रांति तथा पुनर्निर्माण के सशक्त माध्यम तथा वाहक भी हैं.''

उक्त विचार स्वामी विवेकानंद आदर्श महाविद्यालय, मदन महल, जबलपुर में आयोजित द्विदिवसीय कार्यशाला के द्वितीय दिवस प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा ने व्यक्त किये। विशेष वक्ता श्री विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र' ने अपने ५ वर्षों के चिटठा-लेखन के अनुभव सुनाते हुए प्रशिक्षुओं को इस विधा के विविध पहलुओं की जानकारी दी। संगणक पर ई मेल आई डी बनाने, चिटठा खोलने, प्रविष्टि करने, चित्र तथा ध्वनि आदि जोड़ने के सम्बन्ध में दिव्य नर्मदा के तकनीकी प्रबंधक श्री मंवंतर वर्मा 'मनु' ने प्रायोगिक जानकारी दी। चिटठा लेखन संबंधित विविध पहलुओं पर प्रशिक्षुओं ने प्रश्न किया जिनके सम्यक समाधान विद्वान वक्ताओं ने प्रस्तुत किये। संस्थान के संचालक श्री प्रशांत कौरव ने अतिथियों का परिचय करने के साथ-साथ कार्यशाला के उद्देश्यों तथा लक्ष्यों की चर्चा करते हुए चिटठा लेखन के मनोवैज्ञानिक पहलू का उल्लेख करते हुए इसे व्यक्तित्व विकास का माध्यम निरूपित किया। सुश्री वीणा रजक ने कार्य शाला की व्यवस्थाओं में विशेष सहयोग दिया तथा चिटठा लेखन में महिलाओं के योगदान की सम्भावना पर विचार व्यक्त करते हुए इसे वरदान निरुपित किया। द्विदिवसीय कार्यशाला का समापन डॉ. मदन पटेल द्वारा आभार तथा धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। इस द्विदिवसीय कार्यशाला में शताधिक प्रशिक्षुओं तथा आम जनों ने चिटठा-लेखन के प्रति रूचि प्रर्दशित करते हुए मार्गदर्शन प्राप्त किया।

डॉ. मारिया नेज्यैशी की 'साहित्यकारों से गुफ्तगू' संपन्न


हैदराबाद, २७ मार्च २००९, "हंगरी की जनता को अपनी भाषा से अत्यधिक लगाव है। वह अपनी भाषा को सम्मान का प्रतीक मानती है इसीलिए उसने उसे बचा कर रखा है तथा सभी स्तरों पर सारे काम काज वहां हङ्गेरियन भाषा में ही किये जाते हैं। हंगरी के लोगों को हिंदी सीखने में अधिक कठिनाई नहीं होती और वे जल्दी ही अधिकार पूर्वक हिंदी में वार्तालाप करना सीख जाते हैं मैं भारत की अपनी यात्राओं में सर्वत्र हिंदी में ही बोलती हूँ। और मेरी राय है कि हिंदी के सम्बन्ध में असुरक्षा भाव नहीं रखना चाहिए।" ये विचार यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सम्मलेन कक्ष में आयोजित विशेष कार्यक्रम 'साहित्यकारों से गुफ्तगू' में नगरद्वय के विविध भाषाभाषी लेखकों से बात करते हुए तथा उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए डॉ.मारिया नेज्यैशी ने व्यक्त किए। डॉ. मारिया नेज्यैशी हंगरी के युटोस लोरांड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रीडर हैंतथा इन दिनों भारत प्रवास पर हैं. उनके नगरागमन पर आयोजित इस कार्यक्रम में हैदराबाद के हिंदी सेवियों और रचनाकारों की ओर से पुस्तकें समर्पित कर उनका सम्मान किया गया। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के सचिव के।विजयन ने सभा-चिह्न से अलंकृत शाल पहनाकर डॉ. मारिया नेज्यैशी का अभिनन्दन किया।

आयोजन की अध्यक्षता करते हुए 'स्वतंत्र वार्ता' के सम्पादक डॉ.राधे श्याम शुक्ल ने की मुख्य अतिथि डॉ. मारिया नेज्यैशी ने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार, शिक्षण, प्रशिक्षण और शोध के सम्बन्ध में कई प्रकार की जिज्ञासाएँ प्रकट कीं जिनका समाधान करते हुए उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने हिंदी भाषा आन्दोलन के इतिहास, लक्ष्य, स्वरूप और संभावनाओं पर प्रकाश डाला। डॉ. मारिया नेज्यैशी ने हिंदी प्रचार में महिलाओं की भूमिका तथा द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी की पाठ्य पुस्तकों के निर्माण की प्रक्रिया में विशेष रुचि प्रकट की। 'गुफ्तगू' के दौरान डॉ.कविता वाचक्नवी, डॉ. रोहिताश्व, डॉ. राजकुमारी सिंह, डॉ. धर्म पाल पीहल और डॉ. पी माणिक्याम्बा ने मुख्य अतिथि से हंगरी भाषा, वहां के जनजीवन, रीति रिवाज़, साहित्य की प्रवृतियों, साहित्यकारों के सम्मान तथा हिंदी सीखने की सुविधा और बाधा जैसे विविध विषयों पर सवाल किए। बातचीत में डॉ.तेजस्वी कट्टीमनी, डॉ. बी बालाजी, डॉ.रोहिताश्व, डॉ.कविता वाचकनवी, डॉ.रेखा शर्मा, डॉ. बलविंदर कौर, डॉ.मृत्युंजय सिंह, डॉ.कांता बौद्ध, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल,, पवित्रा अग्रवाल, डॉ. अहिल्या मिश्र, संपत देवी मुरारका, डॉ. करण सिंह ऊटवाल , सीमा मेंडोस, श्रीनिवास सोमानी, आशादेवी सोमानी, पुष्पलता शर्मा, सविता सोनी, उमा देवी सोनी, डॉ.सुरेश दत्त अवस्थी, डॉ.आनंद राज वर्मा, डॉ.भास्कर राज सक्सेना, डॉ.विजय कुमार जाधव, के.नागेश्वर राव, रामकृष्णा तथा भगवान दास जोपट आदि ने हिस्सा लिया.खुर्शीदा बेगम ने गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के संयोजक तथा उर्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाधाक्ष्य प्रो. तेजस्वी कट्टीमनी के धन्यवाद प्रस्ताव के उपरांत ''साहित्यकारों से गुफ्तगू'' का यह विशेष आयोजन युगादि की शुभकामनाओं के आदान प्रदान के साथ संपन्न हुआ।
- ऋषभ देव शर्मा

आदित्य प्रकाश को "भाषा-सेवा" सम्मान


डलास शहर में *अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति द्वारा आयोजित हास्य कवि सम्मलेन के अवसर पर आदित्य प्रकाश को "भाषा-सेवा" के लिए सम्मानित किया गया। इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति के डॉ.नन्दलाल सिंह ने कहा कि वर्षों से डल्लास वासी विशुद्ध हिन्दी सुन नहीं पा रहे थे, लेकिन आज इस कार्यक्रम ने हमें हिन्दी की मिठास और रस से सारोबार कर दिया है। कवितांजलि ने विश्व भर के हिन्दी प्रेमियों को जोड़ रखा है और हिंदी समिति की भाषा सेवा की बड़ी उपलब्धि है। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के श्री संजीव अग्रवाल ने आदित्य प्रकाश को सम्मानित किया। इस कार्यक्रम में 400 से ज्यादा लोग मौजूद थे, जो अपने व्यस्त कार्यक्रम और नौकरी से समय निकालकर इसमें शामिल हुए। श्री आदित्य प्रकाश इस कार्यक्रम को विगत दो वर्षों से प्रस्तुत करते आ रहे हैं और पिछले वर्ष भारत की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था सृजन सम्मान, विदेश में हिन्दी सेवा के लिए इन्हें "प्रवासी-सम्मान" से अलंकृत कर चुकी है। आदित्य प्रकाश ने छान्द-बध्द कविताओं को विशेष स्थान देकर अपने कार्यक्रम से छायावाद के प्रसाद, पन्त, निराला को पुन: मन के आकाश में पुनर्जीवित किया है। भारत के कई वेब पत्रिकाओं ने इस कार्यक्रम की पूर्ण प्रशंसा की है। इस अवसर पर आयोजित हास्य कवि सम्मलेन में भारत से आये, सरदार मंजीत सिंह एवँ डॉ,सुरेन्द्र दुबे ने श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया। गीतकार श्री राजेंद्र राजन ने ह्रदय को छू लेनेवाली गीत विधा में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की। श्रोताओं का स्वागत अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की श्रीमती निशि भाटिया ने किया।

अमेरिका के डल्लास से भारतीयों के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले रेडियो सलाम नमस्ते 104.9 FM से प्रसारित हिंदी कविता का विशेष कार्यक्रम "कवितांजलि" देश -विदेश के हिन्दी प्रेमियों के साथ अपने दो वर्ष पूरे कर अब तीसरे वर्ष में हिंदी का राग निरंतर जगा रहा है। यह कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमेरिका की अनुपम प्रस्तुति है और हर रविवार रात्रि 9-10 बजे www.RSN1049.com डल्लास से प्रस्तुत किया जाता है

नॉर्थ केरोलिना विश्वविद्यालय, यू.एस.ए. द्वारा संस्कृत और जैन धर्म की शिक्षा इन्टर्नेट पर


डा. पंकज जैन अगस्त २००९ से हिंदी, संस्कृत और जैन धर्म के नये कोर्स नॉर्थ केरोलिना विश्वविद्यालय, यू।एस।ए। में पढाएँगे जहाँ वे अगस्त २००८ से विदेशी भाषा तथा साहित्य के विभाग में कार्यरत हैं। ये विषय इन्टर्नेट पर भी उपलब्ध होंगे ताकि विश्व में कहीं से भी इन्हें पढा जा सके। इससे पूर्व वे न्यू जर्सी में भी हिंदी, संस्कृत तथा अन्य भारतीय विषय पढा चुके हैं, जब वे अपनी पी.एच.डी. पूरी कर रहे थे। अमेरिका में कम्प्यूटर इन्जीनियर की तरह आए डॉ. जैन ने अपना कार्यक्षेत्र बदलकर पहले कोलम्बिया विश्वविद्यालय से भारतीय धर्म व संस्कृत में स्नातकोत्तर, फिर आयोवा से २००८ में पी.एच.डी. प्राप्त की। वर्तमान में, वे नॉर्थ केरोलिना विश्वविद्यालय में प्राथमिक हिंदी, हिंदी फ़िल्में, हिन्दू धर्म तथा हिंदी-उर्दू साहित्य पढ़ा रहे हैं। डा. पंकज जैन के अनुसार, “भारत और चीन के प्रति आजकल बहुत रुचि बढ रही है। भारत की आर्थिक तथा तकनीकी प्रगति, योग, तथा हिंदी फ़िल्मों के कारण भारतीय विषयों में विद्यार्थियों की संख्या पहले से कहीं ज़्यादा है।”

उनके जैन धर्म के पाठ्यक्रम का नाम है: “महावीर से महात्मा गांधी तक: भारत की अहिंसक जैन परम्पराएँ”। इसमें जैन इतिहास, पूजा पद्धतियाँ, जैन दर्शन तथा कर्म सिद्धान्त, जैन समाज, गांधीजी, डा. मार्टिन लूथर किंग तथा अहिंसा का समसामयिक महत्त्व आदि पढाया जायेगा। संस्कृत के कोर्स में वर्णमाला से लेकर संज्ञा, धातु, लकार, प्रत्यय, उपसर्ग, सन्धि, समास तथा व्याकरण के अन्य सिद्धान्त पढाये जायेंगे। रामायण की कथा भी सम्मिलित की जायेगी। डा. जैन के अनुसार, “संस्कृत, ग्रीक, तथा लैटिन प्राचीनतम इंडो-यूरोपीय भाषाएँ कही जाती है, तीनों में अनेक समानताएँ है तथा उनका तुलनात्मक अध्ययन विशेषकर लाभप्रद होगा।” पंकज का जन्म राजस्थान में हुआ था तथा वे कर्नाटक, मुम्बई तथा हैदराबाद में भी रह चुके हैं। उनकी पत्नी सोनिया एक चित्रकार हैं तथा भारतीय कला प्रदर्शनी तथा दीर्घा चलाती हैं। उनके दो पुत्र हैं। हिंदी, संस्कृत और जैन धर्म के नये कोर्स उनकी वेब साइट पर उपलब्ध हैं: www.IndicUniversity.org

चंडीगढ़ में सर्जनात्मक लेखन और चित्रांकन की कार्यशाला


बाल साहित्य केन्द्र (नेशनल बुक ट्रस्ट) नई दिल्ली एवं पंजाब सर्व शिक्षा अभियान मिशन के तत्वाधान में 10-11 अप्रैल 2009 को सर्व शिक्षा अभियान अथॉरिटी एसपीओ, 104-106 सेक्टर 34-ए चण्डीगढ़ में आयोजित की गई। इस कार्यशाला में पंजाब के विभिन्न सरकारी स्कूलों से 50 बच्चों ने प्रतिभागिता की। कार्यशाला का उद्घाटन डॉ दविन्दर सिंह बोहा सहायक प्रायोजना निदेशक ( मीडिया) एवं सम्पादक ‘आळे –भोळे’ ने किया। इस अवसर पर पंजाब के विभिन्न स्कूलों के शिक्षक और प्राचार्य भी मौजूद थे डॉ बोहा ने इस कार्यशाला की आवश्यकता और महत्ता पर प्रकाश डाला। श्री द्विजेन्द्र कुमार सहायक सम्पादक (पाठक मंच बुलेटिन) ने सर्जनात्मक कार्यशाला की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की साथ ही पाठक मंच एवं पाठक मंच की गतिविधियों की जानकारी भी दी।

इस अवसर पर कुछ बच्चों को सर्जनात्मक लेखन करना था और कुछ को रचनाओं के अनुरूप चित्रांकन करना था। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रतिनियुक्त संसाधक श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ ने सर्जनात्मक लेखन के विभिन्न विषयों पर तथा श्री आर एम सिंह ने चित्रांकन के लिए बच्चों को दिशा–निर्देश एवं सुझाव दिए। बच्चों को सहजभाव से रचनात्मक कार्य करने के लिए दो समूहों में विभाजित कर दिया गया। बच्चों का जोश देखते ही बनता था। बच्चों ने यह लेखन पंजाबी भाषा में किया। सबने अपनी-अपनी रचनाएँ सुनाईं। रचनाओं के अनुरूप चित्र बनाने की होड़ लगी हुई थी। अपने को अभिव्यक्त करने की खुशी बच्चों के चेहरे पर पढ़ी जा सकती थी। रचनाओं पर चर्चा के साथ-साथ कार्यशाला में अनुवाद का कार्य शुरू हुआ। हिन्दी अनुवाद का कार्य डॉ कुलदीप सिंह ‘दीप’ प्राचार्य,सरकारी सेकेण्डरी स्कूल, रियोन्द कलां, जिला –मानसा तथा हिन्दी-पंजाबी के साहित्यकार श्री श्याम सुन्दर अग्रवाल, सम्पादक ‘मिन्नी त्रैमासिक’ (कोटकपूरा) ने किया। पर्यावरण, जल संरक्षण, जन-चेतना आदि विषयों को भी बच्चों ने अपनी रचनाओं का आधार बनाया। कविता, कहानी, एकांकी, लोककथा आदि के माध्यम से पंजाब की खुशबू को उभारने का प्रयास किया। इस शिविर में गाँव, कस्बे और शहरी क्षेत्र के बच्चों का यह अद्भुत समागम नई चेतना की दस्तक दे रहा था। इस आयोजन को सफल बनाने और हर प्रकार की सुविधा जुटाने में पंजाब सर्व शिक्षा अभियान मिशन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। सहायक प्रायोजना निदेशक डॉ बोहा ने सर्जनात्मक लेखन के इस अभियान को पंजाब में जिले स्तर पर चलाकर अधिकतम बच्चों की भागीदारी करने का निश्चय किया।

प्रस्तुति-द्विजेन्द्र कुमार