रविवार १८ नवम्बर २०१२, इटारसी के पास ग्राम निटाया में ख्यात कवि स्व. श्री भवानी प्रसाद मिश्र जी के जन्म शताब्दी समारोह वर्ष के अंतर्गत विशेष समारोह का आयोजन किया गया। समारोह में उनके परिवार के सदस्य, मित्र, साहित्यकार, लेखक, पत्रकार व गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। इस ग्राम में मिश्र जी अपने बचपन के मित्र स्व. श्री वनवारीलाल जी चौधरी के साथ कई दिनों तक रहा करते थे। कार्यक्रम में मिश्र जी पर एकाग्र आठ खण्ड़ों के संपादक , वरिष्ठ आलोचक, समीक्षक, संपादक व विचारक श्री विजयबहादुर सिंह व वरिष्ठ कवि व प्रोफेसर श्री प्रेमशंकर रघुवंशी विशेष रूप से उपस्थित थे।
कार्यक्रम के प्रारंभ में उनके परिवार के सदस्यों, मित्रों, साहित्यकारों, लेखकों, पत्रकारों व नागरिकों की उपस्थिति में मिश्र जी को श्रद्धासुमन अर्पित किए गए। डॉ. विजयबहादुर सिंह, श्री प्रेमशंकर रघुवंशी ने इस अवसर पर अपनी भावनाएं भवानी प्रसाद मिश्र व उनके परम मित्र वनवारी लाल जी चौधरी के चित्र पर माल्यार्पण द्वारा व्यक्त की। इसके पश्चात समारोह के आयोजन व कार्यक्रम की रूपरेखा समाज सेवक सुरेश दीवान द्वारा प्रस्तुत की गई। ख्यात आलोचक श्री विजयबहादुर सिंह को समारोह का अध्यक्ष तथा श्री रघुवंशी को मुख्य अतिथि बनाया गया।
श्री विजयबहादुर सिंह तथा प्रेमशंकर रघुवंशी द्वारा डॉ. आरती के संपादन में प्रकाशित साहित्यिक मासिकी ‘‘समय के साखी’’ तथा इटारसी से प्रकाशित प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘नगरकथा’ के भवानी भाई पर एकाग्र अंकों का विमोचन किया। आयोजन के प्रारंभ में कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ लेखक व समीक्षक श्री कश्मीर उप्पल द्वारा मिश्र जी के परिवार के सदस्यों का परिचय आम लोगों तथा से आगंतुकों से कराया गया। श्री उप्पल ने मिश्र जी के जीवन से जुड़ी कुछ बातें आमजन से साझा की। उन्होंने भवानी प्रसाद मिश्र जी के जन्मग्राम टिगरिया (जिला होशंगाबाद म.प्र.) पर आधारित शब्द ‘‘टिगरियाई’’ को स्पष्ठ किया। इस शब्द का शाब्दिक अर्थ तो नहीं किया जा सकता, लेकिन इसका अर्थ खटटी मीठी शैतानी से है। ग्रामीण द्वारकाप्रसाद पटेल के साथ ही राकेश दीवान, अभय मिश्र, सुरेश मिश्र, रघुराज सिंह, सामाजिक कार्यकर्त्ता सुशील जी आदि ने अपने विचार रखे। अशोक मिश्र ने भवानी भाई के बड़े पुत्र अनुपम मिश्र के पत्रों का वाचन किया। प्रोफेसर हंसा व्यास ने मिश्र जी द्वारा २६ सितम्बर १९४४ को लिखा गीत, गाकर सुनाया। ख्यात कवि प्रेमशंकर रघुवंशी ने मिश्र जी की कविता ‘‘शांति के स्वर’’ की रचना प्रक्रिया, संवेदना तथा शिल्प के आधार पर उनके समग्र कवित्व पर विचार किया। उन्होंने स्पष्ट किया की मिश्र जी एक सौम्य गांधीवादी कवि थे।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. विजयबहादुर सिंह ने कहा कि देश को आजाद कराने के लिए राजनीति में जो कार्य गांधी जी कर रहे थे, उस वक्त वही कार्य साहित्य में मिश्र जी कर रहे थे। वे असाधारण, अमूल्य व अद्वितीय कवि थे। उनकी कविता के प्रत्येक शब्द को वाक्य मानकार उसपर विचार किया जाना चाहिए। कल्पना के जो विविध प्रयोग मिश्र जी के यहां मिलते हैं वे अन्यत्र दुर्लभ हैं। हिंदी साहित्यजगत में उनके जैसा प्रतिबद्ध कवि कोई दूसरा नहीं है। इसलिए ‘मिश्र जी को नकार देना आसान नहीं हैं। समारोह में इ-समीक्षक,लेखक व साहित्यकार अखिलेश शुक्ल, कवि श्रीराम निवारिया, सुरेन्द्र चौधरी, नर्मदा प्रसाद सिसोदिया, बृजकिशोर पटैल, दीपाली शर्मा एवं अन्य साहित्यकार, लेखक आदि विशेष रूप
से उपस्थित थे।
अखिलेश शुक्ल
(इ-समीक्षक, लेखक व साहित्यकार)
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