१० दिसंबर, विशाखापटनम के द्वारकानगर स्थित जन ग्रंथालय के सभागार में हिन्दी साहित्य और रंगमंच के प्रति प्रतिबद्ध संस्था “सृजन” ने हिन्दी रचना गोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सृजन के अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने की जबकि संचालन का दायित्व निर्वाह किया संयुक्त सचिव डॉ संतोष अलेक्स ने । डॉ॰ टी महादेव राव, सचिव, सृजन ने आगंतुकों का स्वागत किया और रचनाओं के सृजन हेतु समकालीन साहित्य के अध्ययन और समकालीन सामाजिक दृष्टिकोण को विकसित करना पर बल देते हुये कहा – हमारे पिछले लेखन और सृजन से आज हम कितना आगे बढ़े हैं, बढ़े भी हैं या नहीं इन कमियों और खूबियों का स्व-विश्लेषण करने पर ही हम रचनाओं में स्तरीयता ला सकते हैं, नया सृजन रचनाओं का कर सकते हैं, वरना रूटीन सा सृजन आपको ज्यादा दिन तक संतोष नहीं दे पाएगा, जैसा कि मैं समझता हूँ। निरंतर समकालीन साहित्य का पठन भी हम रचनाकारों के लिए ज़रूरी है।
अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में नीरव वर्मा ने कहा कि हमारे आसपास, समाज में और देश में हो रही घटनाओं पर हमारा विशाल और विश्लेषणात्मक अध्ययन होना चाहिए। तब जाकर हम जिन रचनाओं का सृजन करेंगे वह न केवल प्रभावशाली होगा बल्कि पाठक भी उस रचना से आत्मीयता महसूस करेंगे। संयुक्त सचिव डॉ संतोष अलेक्स ने कार्यक्रम के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुये कहा – आज का रचनाकार आम आदमी के आसपास विचरने वाली यथार्थवादी और प्रतीकात्मक रचनाओं का सृजन करता है। इस तरह के रचना गोष्ठी कार्यक्रम आयोजित कर साहित्य के विविध विधाओं, विभिन्न रूपों, प्रवृत्तियों से अवगत कराना ही हमारा उद्देश्य है।
कार्यक्रम में सबसे पहले बीरेन्द्र राय ने अपना लेख “आधुनिक युग का लेखा जोखा” पढ़ा जिसमें आज के समाज में बदलते मानव-मूल्यों और धूमिल होते मानवीय सम्बन्धों की बात कही गई। कपिल कुमार शर्मा ने “पंछी टोली” और “बेटी” शीर्षक कविताओं में वियोग और विरह के दर्द के समेटे व्यक्ति के मन की स्थिति और बेटी की आज समाज में जरूरत का वर्णन था। डॉ एन डी नरसिंहा राव ने “आधुनिक रसखान की सोच” कविता उसी शैली में सुनाई जिसमें रसखान लिखते थे। डॉ शकुंतला बेहुरा ने अपने मौलिक संस्कारों और भोलेपन से बदलते गांवों की बात कविता “भारत के गाँव” में पेश किया। तोलेटी चन्द्रशेखर ने सामाजिक व्यवस्था की विसंगतियों पर दो व्यंग्य कवितायें – “सोचता रहता हूँ” और “कितना बिल हुआ?” प्रस्तुत किया। रामप्रसाद यादव ने एक गजलनुमा कविता और “है नहीं मंजूर अब” कविता आम आदमी की विवशताओं और स्थितियों पर सुनाया। डॉ एम सूर्यकुमारी ने स्त्री विमर्श की कविता “क्षमया धरित्री” सुनाई। बी एस मूर्ति ने शारीरिक अंगों को प्रतीक के रूप में प्रयोग करते हुये कविता “ पाँव विराम” पढ़ी, जबकि देबनाथ सिंह ने स्मृतियों से घिरे एकाकी मनुष्य पर “यादें” एक आशावादी कविता “ आशा ज़िंदगी है” पेश की। कहानी “मशीन और उम्मीद” में नीरव वर्मा ने एक गरीब दीना की व्यथा गाथा मार्मिकरूप में प्रस्तुत की। जी अप्पा राव “राज” ने कुछ व्यंग्योक्तियाँ सुनाई। मीना गुप्ता ने “क्योंकि मैं लड़की हूँ” कविता में समाज में नारी की महत्ता पर बल दिया। डॉ. टी महादेव राव ने दो गीत “क्यों नहीं ये अश्रु बहते?” और “शीत की सुबह” सुनायी जिसमें वर्तमान समाज के बदलते स्वार्थी तौर तरीके और शीत ऋतु में प्रकृति की सुंदरता में अकेलेपन को अभिव्यक्ति दी गई थी। डॉ संतोष एलेक्स कश्मीरी पंडितों की व्यथा गाथा दर्शाती “इंतज़ार” और खास और आम की बात को लेकर “आम” कवितायें पेश कीं।
कार्यक्रम में अशोक गुप्ता, डॉ बी वेंकट राव, योगेंद्र सिंह यादव, सीएच ईश्वर राव ने भी सक्रिय भागीदारी की। सभी रचनाओं पर उपस्थिंत कवियों और लेखकों ने अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी। सभी को लगा कि इस तरह के सार्थक हिन्दीप कार्यक्रम अहिन्दीभ क्षेत्र में लगातार करते हुए सृजन संस्थान अच्छाव काम कर रही है। डॉ टी महादेव राव के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
डॉ॰ टी महादेव राव
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