केम्ब्रिज के पूर्व-प्राध्यापक और जाने-माने लेखक, डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव, की अध्यक्षता में सर्वप्रथम स्वर्गीय डा गौतम सचदेव के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए एक मिनट का मौन रखा गया। साउथ एशियन सिनेमा फ़ौंडेशन के संस्थापक/सम्पादक श्री ललित मोहन जोशी ने इस कार्यक्रम के संचालन की बागडोर संभाली, यू.के. हिन्दी समिति के अध्यक्ष और पुरवाई के सम्पादक, डॉ पद्मेश गुप्त ने स्वागत वक्तव्य और पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन से समारोह का शुभारम्भ किया, स्वतंत्र पत्रकार और लेखिका शिखा वार्ष्णेय ने सम्मान-पत्र का वाचन किया, मेज़बान बैरोनेस श्रीला फ्लैदर ने श्री शोभित देसाई को शॉल ओढ़ाई और डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने श्री देसाई को सम्मान-पत्र एवं पुरस्कार प्रदान किए। इसके बाद, प्रसिद्द गायक राजन शगुन्शे और उदीयमान गायिका उत्तरा सुकन्या जोशी ने निदा फाजिली साहब का मशहूर गीत, 'ये जो दुनिया है ये जादू का खिलौना है' प्रस्तुत किया। एन.आर.आई. वेब-रेडियो एवं हेल्थ एंड हैपीनेस पत्रिका के सम्पादक और हिस्ट्री.कौम के निर्माता विजय राणा के सम्मान पत्र के वाचन के पश्चात बैरोनेस श्रीला फ्लैदर ने निदा फाज़ली को शाल ओढ़ा कर उनका स्वागत किया और डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने उन्हें सम्मान-पत्र और पुरस्कार प्रदान किए।
दूसरे सत्र के आरम्भ में पाकिस्तानी विद्यार्थी मलाला यूसफज़ाई को याद किया गया और उसके पश्चात यू.के. हिन्दी समिति के उन्नीसवें अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मलेन का शुभारम्भ हुआ, जिसकी बागडोर स्वयं शोभित देसाई ने संभाली। स्थानीय कवि मोहन राणा, तितिक्षा शाह, चमनलाल चमन और सोहन राही ने अपनी दो दो रचनाओं का पाठ और फिर निदा फाज़ली ने मंच संभाला। निदा साहब के क़िस्से, कविताएँ और गज़लें एक से बढ़ कर एक थीं। अपने स्वर्गीय पिता पर लिखी उनकी एक कविता ने श्रोतागणों को झिंझोड़ कर रख दिया, जिसकी अंतिम पंक्तियाँ हैं, 'तुम्हारी क़ब्र में मैं दफ़न हूँ, तुम मुझमें ज़िंदा हो।' अपने अध्यक्षीय-भाषण में डॉ। सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने जवाहरलाल नेहरु से सम्बंधित एक घटना सुनाई कि पिक्केडल्ली से गुज़रते वक्त नेहरु जी एक बार पोएट्री सोसाइटी के दफ्तर के सामने रुक कर बोले कि क्या ही अच्छा हो कि यहाँ भारतीय कवि भी अपना कविता-पाठ कर पाएं। उनका सपना सच हुआ; आज भारतीय कवि हाउस ऑफ लॉर्ड्स में कविता पाठ करने में सक्षम हैं। यह गर्व और हर्ष का विषय है कि वातायन संस्था भारतीय कवियों को वैश्विक मंच दे रही है। अंत में, मेज़बान बेरोनेस फ्लैदर एवं वातायन की संस्थापक और जानी मानी लेखिका दिव्या माथुर ने सभी मेहमानों का ह्रदय से धन्यवाद किया। समारोह में लन्दन की कई सांस्कृतिक संस्थाओं के कार्यकर्ताओं के अलावा साहित्य और पत्रकारिता से जुड़े हुए बहुत से गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। यह शाम अपने आप में एक अविस्मरणीय शाम रही और श्रोताओं की तालियों और वाह वाह से हॉल लगातार गूँजता रहा।
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