विशाखापटनम, ४ नवंबर । हिन्दी साहित्य, संस्कृति और रंगमंच के प्रति प्रतिबद्ध संस्था “सृजन” ने आज “हिन्दी व्यंग्य साहित्य” पर चर्चा कार्यक्रम का आयोजन विशाखापटनम के द्वारकानगर स्थित जन ग्रंथालय के सभागार में किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री रामप्रसाद ने की जबकि संचालन का दायित्व निर्वाह किया सचिव डॉ. टी महादेव राव ने।
डॉ. टी. महादेव राव ने हिन्दी व्यंग्य साहित्य पर कार्यक्रम के विषय में चर्चा करते हुये कहा – व्यंग्य लिखने के तरीके, शैलियाँ बदली ज़रूर हैं, पर अब भी व्यंग्य साहित्य मानव जीवन की विद्रूपताओं को अपने ढँग से उजागर करते हुये बेहतर समाज का संदेश देते हैं। निंदक नियरे राखिए की तर्ज़ पर हमारे आसपास रहकर यह व्यंग्य हमारी कमजोरियों से हमें निजात दिलाते हैं। एक स्वस्थ व्यंग्य में बहुत शक्ति होती है सामाजिक परिवर्तन की। जीवन की विभिन्न घटनाओं, परिस्थितियों को रचनाकार की गहन दृष्टि और यथार्थपरक चिंतन के साथ मिलकर व्यंग्य रचना की सृष्टि करती हैं और इस तरह व्यंग्य चाहे वह किसी भी विधा में क्यों न हो मनुष्य के करीब धड़कती, अनंत काल से चली आ रही एक सतत प्रक्रिया है। सृजन का हिन्दी व्यंग्य साहित्य पर चर्चा इसी दिशामें किया जा रहा एक प्रयास है।
श्री रामप्रसाद ने कहा कि इस तरह के चर्चा कार्यक्रमों द्वारा विशाखापटनम में हिन्दी साहित्य सृजन को पुष्पित पल्लवित करना, नए रचनाकारों को रचनाकर्म के लिए प्रेरित करते हुये पुराने रचनाकारों को प्रोत्साहित करना सृजन का उद्देश्य है। व्यंग्य साहित्य पर कार्यक्रम का उद्देश्य रचनाकारों को व्यंग्य लेखन की ओर प्रेरित करते हुये उन्हें मार्ग-दर्शन देना है।
कार्यक्रम में सबसे पहले देवनाथ सिंह ने चुनावी वायदे, रथ से, तत्सम शब्दों पर कविता शीर्षक से तीन व्यंग्य रचनाएँ प्रस्तुत कीं, जिनमें आज के राजनीतिज्ञों का कच्चा चिट्ठा खोला गया थाऔर विविध प्रलोभनों से जनता को गुमराह करते नेताओं और आज के प्रेमियों पर व्यंग्य कसा गया था। व्यंग्य कथा “बदल लो अपनी कहानी का शीर्षक” सुनाई जी एस एन मूर्ति नेजिसमें दूसरों पर छींटें कसते खुद को पाक साफ बताते कालोनी के निवासियों पर अच्छा कटाक्ष था। डॉ एम सूर्यकुमारी ने आज के भवन बनाते अनपढ़ मजदूरों के द्वारा केवल भवन निर्माण ही नहीं चरित्र निर्माण किए जाने की बात पूँजीपतियों के संदर्भ में सरल किन्तु प्रभावी शब्दों में अपनी कविता “अँधेरा” में प्रस्तुत किया। डॉ टी महादेवराव ने अपने व्यंग्य लेख “हाय मैं कहाँ फँसा?” में आज के अवसरवादी स्वार्थी कवियों को बिम्ब बनाकार वर्तमान मानव की मानसिकता, परिस्थिति जन्य राजनीति और अवसरवादी मनुष्य पर व्यंग्य कसा।
कार्यक्रम में श्रीधर, सीएच ईश्वर राव, शंकर राव, एन टाटा राव, एम सिवाराम प्रसाद ने भी सक्रिय भागीदारी की। सभी रचनाओं पर श्रीरामप्रसाद ने विवरणात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया और कहा कि सार्थक और ईमानदार प्रयास सिद्ध करते हैं कि उपस्थि कवियों और लेखकों की रचनाधर्मिता में एक स्तरीय सृजन है। सभी ने अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी। सभी को लगा किइस तरह के सार्थक चर्चा कार्यक्रम लगातार करते हुए सृजन संस्था साहित्य के पुष्पन औरपल्लवन में अच्छाक काम कर रही है।
डॉ. टीमहादेव राव
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