कोटा : साहित्य समिति कोटा जंक्शन. के तत्वाधान में शूर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जयंती के अवसर पर आयोजित समारोह में साहित्यकारों ने उन्हें विविधवर्णी काव्यांजलि अपनी रचनाओं और उनसे जुडे अनेक रोचक प्रसँगों के माध्यम से अर्पित की। डॉ. इन्द्र बिहारी सक्सेना ने अपने श्रद्धा सुमन इन पंक्तियों से प्रस्तुत किये।
“जीवन यापन किया घास की रोटी पर जिन वीरों ने,
महलों के वैभव ठुकराये जिन सपूत रणधीरों ने,
हमें उन्हीँ के पद – चिन्हों पर बढना है अविराम,
देश हित है आराम हराम।
विशिष्ठ अतिथि अतिरिक्त मुख़्य न्यायिक द्ण्डाधिकारी बीना दीप ने अपनी विचारोक्तक रचना में वैचारिक प्रदूषण को ही सारी समस्याओं की जड बताया। प्रताप के चरित्र के आलोक मेँ उनकी हुंकार थी
“ अभी करनी है तैयारी,
एक और क्रांति की,
बोने हैँ बीज चरित्र के,
उगानी हैँ फसलेँ नैतिकता की”।
कवि ब्रजेन्द्र पुखराज ने अपनी ओजस्वी रचना मेँ प्रताप की वीरता का सुन्दर चित्रण किया। कवि शिव नारायण वर्मा तथा डॉ गीता सक्सेना ने, कन्हैया लाल सेठिया की प्रसिद्ध रचना ‘पीथल और पाथल“ का सस्वर पाठ कर सब को उनके स्वर मेँ स्वर मिलाने पर विवश कर दिया। समारोह की अध्यक्षता कर रही डॉ. प्रेम जैन ने अपनी रचना अश्वारोही प्रताप का वाचन कर के उनका जीवंत रूप सबके सामने प्रस्तुत किया। “ जो न गलता था न जलता था वरन दुश्मनोँ की छाती पर मूँग दलता था”।
मुख्य अतिथि पद से समारोह को सम्बोधित करते हुए साहित्यकार भगवती प्रसाद गौतम ने तेजपुंज प्रताप के वर्तमान मेँ उपलब्ध चित्र की पृष्ठ्भूमि का उल्लेख करते हुए कहा कि यह काल्पनिक कलाकृति जो उनके वास्तविक स्वरूप के दर्शन हम सब को करवाती है उसका चित्रण बडी खोज तथा पूरे मेवाड़ मेँ प्राप्त तथ्यों के आधार पर बहुत तपस्या और साधना के बाद त्रावणकोर केरल के जग प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा ने किया था। गौतम ने उस ऐतिहासिक घटना का आकर्षक वर्णन प्रस्तुत किया। कवि वीरेन्द्र विद्यार्थी ने भी पीथल और पाथल शीर्षक से ही अपनी ओजपूर्ण रचना का पाठ किया। इस आयोजन के संचालक आर.सी.शर्मा ‘आरसी’ ने आज के परजीवी मौकापरस्त परजीवियोँ के मुखौटों तथा धर्म की आड मेँ समाज हित से खिलवाड करने वाले ढोंगियों के चाल चलन पर प्रहार करते हुए कहा “ झूठ के ताने बाने से चादर बुनी,
लाख समझाया मन की मगर कब सुनी,
अंत मेँ राह बस छल कपट की चुनी,
मन सदा जिसका मैला था मैला रहा “।
ग़ज़लकार शरद तैलंग ने अपनी ग़ज़लों से माहौल को खुशनुमा कर दिया
“यह ताक़त की बात नहीँ थी हिम्मत थी,
दुर्बल ने क़ातिल से ख़जर छीन लिया”।
समारोह मेँ वरिष्ठ कवि निर्मल पाण्डेय, भगवत सिँह ‘मयंक’, रघुराज सिंह ‘कर्मयोगी’, राम करण सनेही, आदि अपनी ओजस्वी कविताओं की सशक्त प्रस्तुतियों से प्रताप की जीवंतता और जीवटता को साकार तो किया ही, हर बुराई से दो दो हाथ करने का जज़्बा भी पैदा कर दिया।
समारोह मेँ डॉ. वीणा अग्रवाल, राम बिलास भायला, अशोक वशिष्ठ, सुरेन्द्र सिंह गौड, के.आर निर्मल, ने महाराणा की सुपुत्री के बलिदान के संदर्भ मेँ आज की बहू बेटियोँ की दुर्दशा का हृदय विदारक चित्र प्रस्तुत किया। महेन्द्र कुमार शर्मा ने इस विषय पर अपना काव्य धर्म निभाते हुए इन पंक्तियोँ से बेटी को शिक्षा प्रदान करते हुए कहा -
”जैसे इस घर को महकाया, उसको भी महकाती रहना,
पलकें भीग भले ही जायें लेकिन तुम मुस्काती रहना,
इस घर मेँ तू जन्मी लेकिन वहाँ तुम्हारा पुनर्जन्म है,
रिश्तों की इस परिपाटी को दोनों जगह निभाती रहना”।
अंत मेँ वीरेन्द्र विद्यार्थी ने सबका आभार प्रकट किया तथा शूरवीर महाराणा प्रताप को समर्पित यह काव्य कालिन्दी समापन सागर में समा गई।
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