पारामारिबो ३ से ५ जून २०१२, तक सूरीनाम के विभिन्न शहरों में आप्रवासी दिवस मनाया गया। देश में मई माह का अंत और जून माह का आरंभ होता है हिन्दुस्तानी आप्रवासी दिवस की तैयारियों और उल्लास के साथ। १३९ वर्ष पहले २६ फरवरी १८७३ को भारत से सूरीनाम के लिए रवाना हुआ पहला जहाज लालारुख ४ जून को आकर सूरीनाम की धरती से लगा और अगले दिन ५ जून को हिंदुस्तनियों को सूरीनाम की धरती पर उतारा गया। एक कष्टकारी यात्रा का अंत हुआ सपनों के ध्वंस होने पर तो वहीं से शुरू हुआ एक दूसरा कष्टकर अध्याय – जंगल कातने, बागानों पर काम करने और एक बिलकुल नए स्थान पर अपनी दुनिया बसाने का। किंतु किसी ने कहा ही है – दर्द का हद से बढ़ना है दवा हो जाना। कड़ी मेहनत रंग लाई, वक्त के साथ समीकरण बदले और इस धरती पर दर्द को दवा में परिणत हुए बहुत से वर्ष बीते।
कुल ६४ जहाजों से जो ३४३०४ भारतीय श्रमिक सूरीनाम आए थे, जिनकी कड़ी मेहनत से इस देश का निर्माण हुआ, आज उनकी तीसरी व चौथी पीढ़ी की सन्तानें ४ – ५ जून को आप्रवासी दिवस के रूप में मनाती हैं और अपने पुरखों की प्रतीक बाबा-माई की प्रतिमाओं पर माला व पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करती हैं। देश भर में उत्सव का माहौल होता है। हर शहर हर गाँव, हर मंदिर और कुछ मस्जिदों में भी आप्रवासी दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। कुछ संस्थाएं साथ मिलकर कार्यक्रम आयोजित करती हैं तो कुछ अपने स्तर पर।
सूरीनाम के जिला कोमवेना में स्थित है न्यू एम्स्टर्डैम संग्रहालय (यह संग्रहालय उस स्थान पर बनाया गया है जहां सूरीनाम पहुँचने पर ४ जून को लालारुख जहाज का लंगर पहली बार डाला गया था) ३ जून को इस स्थान पर हिंदुस्तानी संस्कृति से संबन्धित प्रदर्शनी लगाई गयी और अन्य कईं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए।
राष्ट्रीय हिंदुस्तानी आप्रवासी संघ (NSHI) ने २ जून को संगीत की रात कार्यक्रम का आयोजन किया और ५ जून को उदघाटन हुआ लालारुख भवन के जीर्णोद्धृत स्कंध का। इस स्कंध में अगले वर्ष तक लालारुख संग्रहालय स्थापित करने का प्रस्ताव है। सभापति श्री फरीद केटवारु ने अपनी सफलता यात्रा को बयान किया।
५ जून २०१२ को सूरीनाम सांस्कृतिक संघ के पुस्तकालय को सूरीनाम में हिंदुस्तानी नामक पुस्तक भी प्रदान की गयी। पुस्तक को देख कर सांस्कृतिक संघ की अध्यक्ष श्रीमती नादिया बैकर ने उत्साहपूर्वक अपने कार्यालय में टंगा हिंदुस्तानी जनजीवन का चित्र दिखाया और कहा कि यह पुस्तकालय के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।
ध्यातव्य है कि हिन्दुस्तानी संस्कृति यहाँ सिर्फ हिंदुस्तानी वंशजों तक सीमित नहीं है अपितु अन्य जातियों जैसे क्रिओल, जावानीज़ आदि में भी मिश्रित हो चुकी है और यही तत्व मिलकर सूरीनाम को उसका सौन्दर्य प्रदान करते हैं।
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