ताशकंद। सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़ और प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में (सृजनगाथा डॉट कॉम, निराला शिक्षण समिति, नागपुर और ओनजीसी के सहयोग से) पाँचवाँ अन्तरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन २४ जून से १ जुलाई तक सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। मुख्य आयोजन उज़्बेकिस्तान की राजधानी ऐतिहासिक शहर ताशकंद के होटल पार्क तूरियान के भव्य सभागार में २६ जून, २०१२ के दिन हुआ। यह उद्घाटन सत्र बुद्धिनाथ मिश्र, देहरादून के मुख्य आतिथ्य एवं प्रवासी साहित्यकार डॉ. रेशमी रामधोनी, मारीशस की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर श्री हरिसुमन बिष्ट, सचिव, हिंदी अकादमी,दिल्ली, डॉ. शभु बादल, सदस्य, साहित्य अकादमी, डॉ. पीयुष गुलेरी, पूर्व सदस्य, साहित्य अकादमी, कादम्बिनी से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार-सम्पादक डॉ. धनंजय सिंह, वागर्थ के सम्पादक व प्रतिभाशाली युवा कवि श्री एकांत श्रीवास्तव एवं निराला शिक्षण समिति, नागपुर के निदेशक डॉ. सूर्यकान्त ठाकुर, आयोजन के प्रमुख समन्यवयक डॉ. जयप्रकाश मानस विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचस्थ थे।
मुख्य अतिथि की आसंदी से वरिष्ठ गीतकार व राजभाषा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने वाले डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि संस्कृति की आवश्यकता की प्रतिपूर्ति करने वाली हिंदी भाषा का विस्तार विश्व व मानव कल्याण के लिये एक अमोघ अस्त्र बन रहा है। अध्यक्षीय उद्बोधन में मॉरीशस में महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट, भारतीय अध्ययन शाला की प्रमुख डॉ. रेशमी रामधोनी ने कहा कि तकनीकी युग में उसी भाषा का अस्तित्व बना रहेगा जो मनुष्य की जरूरतों को पूरा करती हुई तकनीकी के साथ भी सह-अस्तित्व में रहेगी। हिंदी में अन्यान्य भाषाओं और बोलियों का महासागर बनने की असंदिग्ध क्षमता है, इसे समय भी सिद्ध करता आ रहा है।
३ रचनाकारों का सम्मान
सम्मेलन में नागपुर के युवा आलोचक और नागपुर विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के अध्यापक डॉ. प्रमोद शर्मा, को प्रथम निराला काव्य सम्मान प्रदान किया गया। पुरस्कार स्वरूप उन्हें २१॰००० रुपये, प्रतीक चिन्ह आदि से अलंकृत किया गया। इसके अतिरिक्त संतोष श्रीवास्तव, मुम्बई को कथालेखन एवं अहफ़ाज़ रशीद, रायपुर को इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिये सृजनगाथा सम्मान-२०१२ से अलंकृत किया गया।
२८ साहित्यिक कृतियों का विमोचन
इस अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में एक साथ २८ साहित्यिक कृतियों का विमोचन हुआ। ये कृतियाँ हैं - श्रीमती सुमन सारस्वत, मुंबई,कथा संग्रह–मादा, डॉ. देवमणि पांडेय, मुंबई, ग़ज़ल संग्रह-अपना तो मिले कई, श्री दिनेश पांचाल, उदयपुर-कथा संग्रह–बहुरूपिये लोग, सुमन अग्रवाल, चैन्नई–ग़ज़ल संग्रह–मुझको महसूस करके देख, रेखा अग्रवाल, चैन्नई–ग़ज़ल–यादों का सफ़र, श्री हेमचन्दर सकलानी,आगरा, यात्रा संस्मरण–विरासत की खोज, डॉ. जे. आर. सोनी, रायपुर, कविता–बस्तर की कविताएं, डॉ. सरोज गुप्ता, गुडगाँव,बाल कविता संग्रह-बाल बगिया, श्री देवकिशन राजपुरोहित, जयपुर–जीवनी–मीरा बाई और मेड़ता, श्री देवकिशन राजपुरोहित, जयपुर- राजस्थानी व्यंग्य–निवान, श्रीमती उमा बंसल,दिल्ली,कविता-कुछ सच कुछ सपने, डॉ. मुनीन्द्र सकलानी, देहरादून–निबंध संग्रह–अभिव्यक्ति, श्री सुनील जाधव,नांदेड,कहानी- मैं भी इंसान हूँ, श्री सुनील जाधव, नांदेड, कविता संग्रह–मैं बंजारा,श्री सुनील जाधव, नांदेड, नाटक–सच का एक टूकड़ा, श्री मिर्जा हासम बेग, नांदेड-दक्षिनी साहित्यकार मुल्ला वजही , श्री मिर्जा हासम बेग, नांदेड,शोध धारा, डॉ. दामोदर मोरे, पुणे, कविता संग्रह– पद्य-रश्मि व सदियों के बहते जख्म, डॉ. सुजाता चौधऱी, भागलपुर–बापू और स्त्री/महात्मा का अध्यात्म/गांधी की नैतिकता, डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी, कानपुर,काव्य – ओमाय तथा उपमन्यु परीक्षा, श्री भगवान सिंह भास्कर, सिवान, विविध-कसौटी, आईना बोल उठा, वृक्ष कोटर से, श्री शिव प्रकाश जैन, उदयपुर, जीवनी–युगपुरुष महाराणा प्रताप।
आलोचना और उत्तर औपनिवेशक समय पर विमर्श
सम्मेलन का दूसरा सत्र 'आलोचना और उत्तर औपनिवेशक समय' पर केन्द्रित रहा। सत्र में हिन्दी आलोचना और वर्तमान समय पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने हिन्दी आलोचना के कई महत्वपूर्ण आयामों को स्पर्श किया। सत्र की अध्यक्षता साहित्य अकादमी के सदस्य, प्रसंग के संपादक व वरिष्ठ साहित्यकार शंभु बादल जी ने की। सत्र के प्रारम्भ में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए आलोचक प्रो; प्रमोद शर्मा ने कहा कि आज की आलोचना को रचनाओं के साथ आज के उत्तर औपनिवेशक समय को भी समझना होगा। विशिष्ट अतिथि डॉ मुनीन्द्र सकलानी ने इस विषय पर बोलते हुए कहा कि आलोचना सिर्फ रचना को स्थापित करने या निरस्त करने के लिए नहीं होनी चाहिए बल्कि इसे पूरी ईमानदारी से साहित्य को एक दिशा देने का काम भी करना चाहिए। डॉ. प्रमोदनी हंसदा ने कहा कि आज आलोचना को उन रचनाकारों की रचनाओं पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जो केन्द्र से दूर, किसी मठ के समर्थन के बिना साहित्यिक रचनाएँ दे रहे हैं। सत्र के विशिष्ट अतिथि डॉ.धनंजय सिंह ने कहा कि आज जब लेखक और पाठक के बीच जो एक खाई बनती जा रही है। उसे अच्छी आलोचना के द्वारा ही पाटा जा सकता है। किसी भी दौर में उस समय की आलोचना को दरनिनार करके साहित्य को नहीं बचाया जा सकता। सत्राध्यक्ष शंभू बादल ने कहा कि साहित्य की दुनिया विचार की दुनिया है। इसमें सहमति-असहमति स्वाभाविक है, पर इससे वैचारिक प्रवाह बना रहता है और इसे किसी भी समय में रुकना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि आलोचना का काम है जो हमारी परम्परा में श्रेष्ठ है उसे बचना और आगे की पीढ़ी के लिए उसे सहेजना। आलोचना सत्र का संचालन कहानीकार विवेक मिश्र ने किया। उन्होंने अपनी टिपण्णियों में हिन्दी आलोचना के इतिहास और उसके उत्तर औपनिवेशक समय तक के सफर को श्रोताओं के समक्ष रखा। सत्र में सम्मेलन के सभी सहभागियों के साथ। वरिष्ठ साहित्यकार बुद्धिनाथ मिश्र, वागर्थ के संपादक एकांत श्रीवास्तव, सृजनगाथा के संपादक जय प्रकाश मानस तथा हिन्दी अकादमी के सचिव हरिसुमन बिष्ट जी आदि सभागार में उपस्थित थे।
भाषा और संस्कृति एक दूसरे के रचयिता
भाषा खुद संस्कृति की इकाई है और संस्कृति का रचाव और विस्तार्य भाषा में ही होता है। भाषा का संरक्षण अपने मूल में संस्कृति का ही संरक्षण है। भाषा की समाप्ति का एक अर्थ संस्कृति की समाप्ति भी है। लुप्त प्रायः भाषाओं को बचाना एक विशिष्ट संस्कृति को बचाना है। इसी तथ्यों को केंद्र में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में विमर्श का खास सत्र रखा गया था - भाषा की संस्कृति और संस्कृति की भाषा। इस सत्र के वक्ता के रूप में भारत के विभिन्न राज्यों के विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग प्रमुखों का चयन किया गया था। सत्र की अध्यक्षता की हिंदी के डॉ. महेश दिवाकर ने और विशिष्ट अतिथि थे – रेशमी रामधोनी, दिवाकर भट्ट, डॉ. केसरीलाल वर्मा। सत्र के वक्ताओं में प्रमुख थे - डॉ, ओमप्रकाश सिंह, डॉ. कामराज सिंधू, डॉ. चंदा डिसूजा, डॉ. सुधीर शर्मा, डॉ. जंगबहादुर पांडेय डॉ. खिरोधर यादव, डॉ. गीता सिंह, प्रभाकुमारी, डॉ. महासिंह पुनिया, डॉ. मीना कौल, डॉ. मिर्जा हासम बेग, डॉ. सुनीति आचार्य, राजेश्वर आनदेव आदि ने अपने-अपने आलेखों का पाठ किया। सत्र का संचालन किया डॉ. नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक और युवा कवि लालित्य ललित ने।
ताशकन्द में अंतरराष्ट्रीय कथा पाठ
कहानी सत्र में भारत के विभिन्न प्रान्तों से आए कथाकारों की बारह कहानियों का वाचन हुआ। कार्यक्रम ११ बजे आरंभ हुआ। अध्यक्ष हरिसुमन बिष्ट, डॉ. मुक्ता तथा मेजर रतन जांगिड़ थे। अतिथियों के स्वागत के पश्चात कहानी सत्र आरंभ हुआ। सर्व प्रथम उत्तराखंड के जन जीवन पर आधारित हरिसुमन बिष्ट ने अपनी कहानी ‘कौसानी में जैली फिश’ सुनाई। इस बेहद मार्मिक कहानी के बाद मीठेश निर्मोही ने दिल को छू लेने वाली कहानी ‘बंधन’ सुनाई, दिनेश पांचाल ने ‘मारकणिया’, सुमन सारस्वत ने ‘तिलचट्टा’, डॉ सुजाता चौधरी ने ‘चुन्नू’, डॉ. मुक्ता ने ‘आईने के पार’, विवेक मिश्र ने ‘गुब्बारा’, डॉ मृदुला झा ने ‘जन्मदिन’, प्रत्यूष गुलेरी ने ‘भेड़’, मेजर रतन जांगिड़ ने ‘भूख’, रमेश खत्री ने चोरी तथा हेमचंद सकलानी ने ‘हल्कू’ सुनाकर श्रोताओ के दिल पर गहरा असर छोडा। तीन घंटे तक चले इस सत्र का संचालन अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन की महाराष्ट्र राज्य की उपाध्यक्षा व कथाकार संतोष श्रीवास्तव ने किया।
५० से अधिक कवियों ने किया कविता पाठ
पांचवे अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का मुख्य आकर्षण था उसका अंतिम सत्र जिसकी अध्यक्षता की वरिष्ठ कवि डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने और विशिष्ट अथिति थे – वागर्थ के संपादक एकांत श्रीवास्तव तथा प्रगतिशील लेखक संघ राजस्थान के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ कवि मीठेश निर्मोही। इस सत्र में शंभु बादल, डॉ. पीयूष गुलेरी, डॉ. ओमप्रकाश सिंह, लालित्य ललित, सुमन अग्रवाल, डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी, रंजन मल्होत्रा, उमा बंसल, मनोज कुमार मनोज, तिलकराज मलिक, वंदना दुबे, डॉ. अर्जुन सिसौदिया, मीना कौल, शरद जायसवाल, डॉ. सविता मोहन, संजीव ठाकुर, सुनील जाधव, अरविंद मिश्रा, राजश्री झा, देवी प्रसाद चौरसिया, रामकुमार वर्मा, रवीन्द्र उपाध्याय, डॉ. प्रियंका सोनी, डॉ. जे. आर. सोनी, रेखा अग्रवाल, तुलसी दास चोपड़ा, श्रीमती चोपड़ा, सरोज गुप्ता, रामकुमार वर्मा, सुषमा शुक्ला, डॉ. अमरेन्द्र नाथ चौधरी, प्रवीण गोधेजा, सेवाशंकर अग्रवाल, विमला भाटिया, आदि ने भिन्न शिल्प, छंद और सरोकारों की कवितायें सुनायीं। कई घंटो तक चले इस सत्र का संयुक्त संचालन किया शायर मुमताज और डॉ. देवमणि पांडेय ने। उक्त अवसर पर भारत के 137 साहित्यकार, लेखक, शिक्षक, पत्रकार, ब्लागर्स सहित ताशकंद शहर से बड़ी संख्या में साहित्यिक श्रोता उपस्थित थे।
२४ जून से १ जुलाई, २०१२ तक इस ७ दिवसीय आयोजन में अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के समन्वयक डॉ. मानस, विकास मल्होत्रा, श्री एच.एस. ठाकुर, शनि चावला, मुमताज, अशोक सिंघई, रामशरण टंडन, कुमेश जैन, आदि की विशिष्ट भूमिका रही। सम्मेलन में सभी भारतीय दल के सदस्यों ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री स्कवायर जाकर सामूहिक रूप से उन्हें श्रद्धांजलि दी और समरकंद सहित उज्बेकिस्तान के महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक स्मरकों का अध्ययन-पर्यटन किया।
एच. एस. ठाकुर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें