बुधवार, 9 मई 2012

कोलंबिया विश्वविद्यालय में कथा गोष्ठी का आयोजन

शुक्रवार ४ मई, २०१२ को कोलंबिया विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर, सुप्रसिद्ध उपन्यासकार और रंगमंच, आकाशवाणी एवं अभिनय क्षेत्र में अपने कौशल का अमिट प्रभाव रखने वाली सुषम बेदी जी के नेतृत्व में “हिंदी, उर्दू और पंजाबी कहानी गोष्ठी” का आयोजन किया गया। इस कहानी गोष्ठी में बहुत से अनुभवी एवं स्थापित कहानीकारों ने भाग लिया। इसके साथ ही उभरते हुए कहानीकारों एवं साहित्य में रूचि रखने वाले बहुत से लोगों ने भी भाग लिया। गोष्ठी का शुभारंभ भाग लेने वाले लोगों के परिचय से हुआ। उपस्थित स्थापित गल्प लेखकों और उभरते हुए प्रतिभावान लेखकों ने क्रमशः अपनी-अपनी रचनाओं को पढ़ा। इनमें सर्वप्रथम न्यू यार्क विश्वविद्यालय की हिंदी विभाग की प्रोफ़ेसर, हास्य-व्यंग्य की प्रसिद्ध कवियित्री एवं रचनाकार बिंदेश्वरी अग्रवाल जी ने “चली आ सुनंदा” नाम की कहानी पढ़ी। यह समीर, सुनंदा और मारिया की कहानी है। इस कहानी में प्रवासी जीवन की विषमताओं को दर्शाया गया है। 

तत्पश्चात येल विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर, लेखिका एवं साहित्यिक रूचि रखने वाली सीमा खुराना जी ने कहानी “बूढ़ा शेर” पढ़ी। इस कहानी में सार्थकता, प्रभाविकता और कहानी के अन्य तत्वों का समावेश बहुत संतुलित रूप में हुआ है। इस कहानी की सभी ने सराहना की। रवि जी ने कहा कि ‘कहानी “बूढ़ा शेर” बहुत कुछ प्रवासी लोगों के अनुभव की तरह है जिसमें पुराने तरीकों को छोड़कर नए तरीकों को अपनाया जाता है परन्तु शायद पुरानी मान्यताओं का ही परिणाम है कि कहीं न कहीं यह एक-दूसरे से ऐसे गुंधे हैं कि यह ‘पुराना और नया’ अविभाज्य हो जाते हैं।

सुषम जी ने अपनी नई लिखी कहानी “पड़ोस” पढ़ी। यह कहानी एमा और अरविन की कहानी है। एमा यहूदी है और महायुद्ध के समय की विषमताओं से पीड़ित है, इसीलिए दुखी रहती है। इस बात का ज्ञान पाठक को लगभग कहानी के अंत में होता है और एमा की पीड़ा जानकार मन दुःख और सहानुभूति से भर उठता है। आफताब जी ने कहा कि उपरोक्त तीनों कहानीकारों की कहानी की सार्थकता संभवतः लेखक के द्वारा उस पल को जीने में निहित है। रवि जी ने “पड़ोस” कहानी के विषय में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह कहानी विदेशों में रह रहे प्रवासिओं के अनुभव की मर्मस्पर्शी कथा है जिसमें कहानी के प्रारंभ में पाठक के मन में बहुत से प्रश्न आते हैं पर लेखिका अंत में बखूबी उनका उत्तर दे देती हैं। इस गोष्ठी के अवसर पर अनिलप्रभा जी की लघु-कथाओं पर आधारित प्रथम प्रकाशित पुस्तक “बहता पानी” का विमोचन हुआ और उस पर विशेष रूप से चर्चा हुई। कहानी गोष्ठी की आयोजक सुषम बेदी जी ने अनिलप्रभा जी की पुस्तक की प्रस्तावना में कहा कि अनिलप्रभा जी की कहानियों में सार्थकता और पाठक के मन को छू लेने की प्रभाविकता है। सुषम जी ने बताया कि कैसे अनिलप्रभा जी की सर्जनात्मकता शक्ति को देखते हुए वे अक्सर उनको लिखना प्रारम्भ करने को कहती रहीं लेकिन अनिलप्रभा जी ने हमेशा अपने परिवार को प्राथमिकता दी लेकिन अब जब उनको अपने उत्तरदायित्वों से कुछ अवकाश मिला तो उन्होंने ये कहानी संग्रह लिखा। उन्होंने अनिलप्रभा जी के संकलन में से कुछ कहानियों के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अनिलप्रभा जी की कहानी “उसका इंतज़ार” प्रवासी भारतीयों के जीवन, उनकी समस्याओं और मूल्यों के टकराव के बारे में है। सुषम जी ने बताया कि “बहता पानी” कहानी उनको विशेष रूप से अच्छी लगी और ज़िक्र किया कि “मैं रमा नहीं हूँ” कहानी में औरतों को तुलनात्मक दृष्टि से देखा गया है। 

इसके पश्चात प्रोफ़ेसर सीमा खुराना जी ने, अनिलप्रभा जी की पुस्तक “बहता पानी” के बारे में लिखी गई ‘रूपसिंह चंदेल जी’ की समीक्षा पढ़ी। चंदेल जी द्वारा लिखी गयी समीक्षा न केवल रचनाकार बल्कि पाठकों के लिए भी बहुत उपयोगी और प्रेरित करने वाली है। चंदेल जी के शब्दों में “अनिलप्रभा कुमार का कथाकार रचना की अंतर्वस्तु की मांग को बहुत बखूबी जानता पहचानता है और उसे अपने सुगठित शिल्प और सारगर्भित भाषा में पाठकों से परिचित करवाता है।” अशोक व्यास जी ने अनिलप्रभा जी की कहानी “बहता पानी” के विषय में कहा कि उनकी कहानी पढ़कर ऐसा लगता है जैसे कोई संवेदना की सोई हुई नदी को जगा देता है और कहानी “उसका इंतज़ार” को सयंत और भावनात्मक बताया।

कोलंबिया विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग के प्रोफ़ेसर और उभरते हुए कहानीकार संदीप जी ने “फुलकारी” नाम की पंजाबी कहानी पढ़ी। अपनी कहानी की प्रस्तावना में उन्होंने बताया कि यह कहानी स्त्री की उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है जो दिन-ब-दिन हमारे समाज से लुप्त होती जा रही हैं। इस कहानी में ‘फुलकारी/ओढ़नी’ दहेज की एक वस्तु मात्र न होकर स्त्री के अरमानों की एक ऐसी पुष्पमय लता है जिसके ऊपर कढ़ाई किए गए रंग-बिरंगे बेल-बूटों को स्त्री अपने जीवन में सर्वदा खिला हुआ देखना चाहती है। इसके साथ ही यह कहानी हमारे सभ्याचार में पड़ रही दरार को भी दर्शाती है और उन प्रवासी भारतीयों की विचारधारा पर भी कटाक्ष करती है जो विवाह तो पंजाब में करना चाहते हैं किन्तु पंजाबी नैतिक मूल्यों को घटिया समझ कर धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं। आगे संदीप जी कहते हैं कि यही कारण है कि “फुलकारी” कहानी में लड़की मन ही मन सोचती है कि उसका पति इतना पढ़-लिख कर भी केवल काले अक्षरों को ही पहचान पाया है, उसकी भावनाओं की कद्र करना नहीं जान पाया इसलिए वो शिक्षित होकर भी अशिक्षित के समान है। संदीप जी ‘गागर में सागर’ की तरह कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कहने की क्षमता रखते हैं।

अशोक व्यास जी ने बहुत वर्षों तक आकाशवाणी में भी कार्य किया है और दूरदर्शन एवं साहित्य जगत में भी खूब जाने जाते है। इन्होंने “बस दो कदम” शीर्षक वाली ‘काव्यगत एवं नाटकीय’ कहानी पढ़ी। कहानी में एक स्त्री का डॉक्टर से वार्तालाप है जिसमें वो अपने बीमार पति को लेकर बात कर रही है। क़ुतुब मीनार को कहानी का सन्देश देने का माध्यम बनाया गया है। कहानी में रोचकता और रसमयता को बनाए रखने में यह शैली सफल रही है। इस रचना के द्वारा कुछ पृथक ढंग से यह सन्देश देने की कोशिश की गई है कि कैसे हम अपने स्वार्थ में डूबकर छोटे हो रहे हैं, बौने हो रहे हैं और हम में ‘ऊँचाई’ यानि महानता कम होती जा रही है। गोष्ठी में विद्यमान लोगों ने इस रचना की अनूठी शैली की सराहना की और रवि जी ने कहा कि “बस दो कदम” सर्जनात्मक है और ‘जादुई यथार्थवाद’ की शैली में है। 

कहानी गोष्ठी में, हर कहानी के पश्चात उस कहानी पर प्रश्न-उत्तर, चर्चा और आलोचना अपेक्षित है। अतः इस गोष्ठी में भी हर कहानी सुनने के पश्चात गोष्ठी में विद्यमान साहित्य प्रेमी अपनी प्रतिक्रिया प्रगट करते और प्रश्न-उत्तर और प्रतिक्रियाओं का सिलसिला चलता; जैसे “इस कहानी की प्रेरणा कहाँ से मिली?” “कहानी में लेखक का हस्तक्षेप अधिक है” “कहानी में यथार्थता है” “कहानी का शिल्प अति सुंदर है” “इस कहानी का अंत ऐसा क्यों किया गया?” इत्यादि। इसके साथ ही कोलंबिया यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर राकेश रंजन जी ने भारतीय साहित्य के इतिहास के महत्वपूर्ण तथ्यों इत्यादि पर विस्तृत जानकारी दी जोकि उनके साहित्यिक अनुभव एवं रूचि को दर्शाती है। वे कितनी ही महत्पूरण बातें कितने कम समय और कम शब्दों में झट से बता देने की क्षमता रखते हैं और उनसे हमेशा कुछ न कुछ उपयोगी साहित्यिक जानकारी मिलती है।
 
कहानी विधा पर अपने शोधपूर्ण विचार प्रगट करते हुए कोलंबिया विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर दलपत जी ने कहा कि दुनिया की हर सभ्यता में कहानी एक प्रमुख माध्यम रहा है जिसके द्वारा नीति, धर्म, लोक विश्वास, लोक व्यवहार, परंपरिक और सांस्कृतिक ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी संचरित होता रहा है। कहानी कहना मनुष्य की सहज कलात्मक वृत्ति है इसलिए इसकी रक्षा करना अपने आप में एक सांस्कृतिक दायित्व को निभाना है। फिर दलपत जी ने नामवर सिंह जी की कहानी संबंधी आलोचना पर बात करते हुए ये भी कहा कि ‘उन्होंने कहानी का सौंदार्यशास्त्र निर्मित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनके द्वारा दिया गया पारिभाषिक शब्द ‘सार्थकता’ कहानी को प्रभावशाली विधा के रूप में स्थापित करता है क्योंकि वे कहते हैं “कहानी जीवन की छोटी से छोटी घटना में भी अर्थ ढूँढ लेती है या उसे अर्थ प्रदान करती है।”

कोलंबिया विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के प्रोफ़ेसर आफताब जी ने कहानी में रूचि रखने वाले एक पाठक की दृष्टि से अपने अनुभव एवं विचार बताते हुए कहा कि समय के साथ-साथ कुछ कहानियों को पसंद करने के विषय में उनकी विचारधारा में परिवर्तन आया है किन्तु कुछ कहानियाँ आज भी पहले की तरह अच्छी लगती हैं। हमेशा अच्छी लगने वाली कहानियों में कौन सी बात एक जैसी थी? इसके बारे में विचार करने पर उनको ये अनुभव हुआ कि कहानी में ‘कहानीपन’ होना कहानी को ‘पठनीय’ बनाता है और कहानी का शिल्प सशक्त होना आवश्यक है यानि अगर कहानी में ऐसे तत्व हों जो पाठक के विचारों और भावनाओं के जगत में कुछ हलचल मचाते हैं, उसके अंतर्मन में कुछ भूला बिसरा जगा देते हैं, तो ऐसी कहानी अच्छी होगी। अच्छी कहानी की समाप्ति पर पाठक को लगता है कि उसके अंदर कुछ नया जुड़ गया है, वह मानव जीवन और समाज के कुछ पहलुओं के बारे में ज़्यादा सजग और संवेदनशील हो गया है, उसके कुछ पूर्वाग्रह टूटे हैं, उसकी दृष्टि में कुछ नयापन और गहराई आ गई है, और उसका हृदय कुछ और कोमल हो गया है।
  
इस गोष्ठी की चर्चा में, हिंदी यू एस ए और युवा हिंदी संस्थान की कार्यकर्ता और सिटी कॉलेज की प्राध्यापक सविता नायक, तथा अंकिता ननचहल जोकि भारत से कुछ ही समय के लिए अमेरिका आई हैं और न्यू योर्क विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं, उन्होंने भी भाग लिया। इस गोष्ठी में मीना जी ने प्रथम बार भाग लिया। मीना जी वास्तुकार हैं और पिछले ४३ वर्षों से मनहट्टन, न्यू योर्क में रह रही हैं। उन्होंने गोष्ठी के बारे में अपना अनुभव बताते हुए हार्दिक प्रसन्नता दर्शायी और कहा कि संभवतः वास्तुकला जैसे रचनात्मक क्षेत्र में होने के फलस्वरूप ही वे साहित्य के क्षेत्र में भी रूचि रखती हैं क्योंकि यह भी तो रचनात्मक क्षेत्र है! उनके साथ ही गोहली मदान जी ने भी गोष्ठी में भाग लेने को अद्भुत अनुभव बताया और कहा कि वह अगले वर्ष की गोष्ठी में भी अवश्य आना चाहेंगी! गोष्ठी में विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले एवं विभिन्न आयु वर्ग के लोगों के साथ मनोवैज्ञानिक विश्लेषणात्मक सामाजिक कार्य करने का अनुभव एवं साहित्य में रूचि रखने वाले मनोचिकित्सक रवि भसीन जी ने भी भाग लिया। वह पिछले ३० वर्षों से न्यू योर्क में रह रहे हैं। उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनको इस सांस्कृतिक और साहित्यिक तौर पर समृद्ध, लाभप्रद और संतोषप्रद अधिवेशन में आकर बहुत ख़ुशी हुई और कहा कि इस गोष्ठी में कई रचनाकारों की रचनाएं, पुस्तक और ‘काव्यगत एवं नाटकीय कहानी’ शामिल थे। इसके साथ ही उन्होंने मिल-जुलकर गोष्ठी के रूप में इस प्रवासी शिक्षाप्रद प्रक्रिया को जारी रखने की बात कही।  

अंत में यही कहना चाहूंगी कि कोलंबिया विश्वविद्यालय में ज्ञानवान और स्थापित लेखकों की छत्रछाया और साहित्य प्रेमी एवं विचारकों के मध्य मिल-जुलकर होने वाली इस गोष्ठी की चर्चा से नए उभरते, प्रतिभावान रचनाकारों को लेखन के लिए सुझाव और मन को उत्साह मिला। इस गोष्ठी में प्रथम बार भाग लेने वाले लोगों को भी इस गोष्ठी में सुनी रचनाओं और उन रचनाओं पर हुई चर्चा से लाभ हुआ है। आशा है कि भविष्य में भी ऐसी चर्चाएँ होती रहेंगी, और रचनाकार अपनी काल्पनिक और सर्जनात्मक शक्ति का प्रयोग करते हुए ऐसी रचनाओं को लिखते रहेंगे जो पढ़ने-सुनने वालों के मन में अपने देश की मिट्टी, भाषा, संस्कृति और साहित्य के प्रति स्नेह और सम्मान पैदा करें।

-- सविता नायक

1 टिप्पणी:

Divik Ramesh ने कहा…

एक बहुत ही सार्थक आयोजन के बारे में विस्तार से जानकर बहुत प्रसन्नता हुई हॆ । आप सब देश से इतनी दूर रहकर भी हिन्दी ऒर हिन्दी साहित्य के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य में भी तल्लीनता के साथ काम कर रहे हॆं यह भारत में रह रहे हम जॆसे रचनाकारों के लिए गर्व ऒर प्रेरणा की बात हॆ । बधाई ऒर शुभकामनाएं ।--दिविक रमेश