रविवार, 29 जनवरी 2012

कलानाथ मिश्र के कथा संग्रह ;दो कमरे का मन; का लोकार्पण

पटना,१५ नवम्बर, साहित्यिक पत्रिका नयीधरा द्वारा आयोजित एक भव्य समारोह में कथाकार कलानाथ मिश्र के कथा संग्रह ;दो कमरे का मन; का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में व्याख्यान कर रहे जाने माने साहित्यकार एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राचार्य डॉ0 हरीश नवल ने कहा कि विश्व बाजार की उत्तर आधुनिक संस्कृति ने भारतीय समाज एवं रिश्तों की बुनियाद को गहरे प्रभावित किया है, जिसे कलानाथ मिश्र की कहानियों में देखा जा सकता है। समारोह की अध्यक्षता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र ने की, जबकि संचालन प्रसिद्ध कवि समालोचक एवं नई धरा के संपादक डॉ. शिवनारायण ने किया।

डॉ. नवल ने कहा कि कलानाथ मिश्र की कहानियों में वर्तमान जीवन के सामाजिक रिश्तों का यथार्थ दर्शन चित्रित है। आरम्भ में अतिथियों का स्वागत करते हुए ए. एन. कॉलेज के प्रधनाचार्य डॉ. हरिद्वार सिंह ने कहा कि कलानाथ मिश्र हिन्दी के चर्चित कहानीकार हैं उनकी कहानियाँ मन को छूती हैं और जीवन के यथार्थ से परिचित कराती है। मुख्य वक्ता के रूप में दिल्ली से आए प्रसिद्ध लेखक एवं व्यंग्य यात्रा के संपादक डॉ. प्रेम जनमेजय ने कहा कि ‘दो कमरे का मन’ समकालीन जीवन की आधुनिकता का दर्पण है। टूटते, बदलते रिश्तों के कारक तत्वों की सूक्ष्मता से कलानाथ मिश्र की कहानियाँ परिचित कराती हैं। आरम्भ में पुस्तक परिचय देते हुए कवि पत्राकार निविड़ शिवपुत्रा ने कहा कि कलानाथ की कहानियाँ उत्तर आधुनिक जीवन-संस्कृति की मार्मिक व्याख्या करती है।

वरिष्ठ पत्राकार गिरीश पंकज;रायपुर. छत्तीसगढ़ ने कहा कि कलानाथ मिश्र ने अपनी कहानियों में बाजारवाद के कारण जन्मी समकालीन जीवन परिस्थितियों को बारीकी से उठाया है। उन्होंने कहा कि आज प्रगतिशीलता और बाजारवाद के नाम पर कहानी के साथ अत्याचार किया जा रहा है, जिससे साहित्यकारों को बचना चाहिए। नईधरा के संपादक शिवनारायण ने कहा कि कलानाथ मिश्र की कथा संवेदना भावोत्थान का दर्शन है। दो कमरे का मन, आम का पेड़, डॉलर पुत्रा, मोक्ष जैसी इनकी कहानियाँ सहज संबंधें की छिजती संवेदना का करूण आख्यान है। आज की हिन्दी कहानी कला, संवेदना और वस्तु चेतना के स्तर पर आम आदमी के जीवन की व्याख्या करती है, जिसे कलानाथ जी की कहानियों के द्वारा देखा जा सकता है। इस अवसर पर लालित्य ललित, दिल्लीद्ध, अनूप श्रीवास्तव, लखनऊ, सुभाष चंदर, दिल्ली, फजल इमाम मल्लिक, दिल्ली, महेन्द्र ठाकुर, रायपुर, फारूख अफ्रीदी, जयपुरद्ध, रामरतन यादव, फतुहा आदि जाने माने लेखकों ने ‘दो कमरे का मन’ की कहानियों की प्रशंसा करते हुए कलानाथ मिश्र को अपने समय की संवेदना का रचनाकरा बताया। अपने लेखकीय उद्गार व्यक्त करते हुए कथाकार कलानाथ मिश्र ने कहा कि अपनी कहानियों के लिए मुझे अपने परिवेश समाज से ही पात्रा मिल जाते हैं। मेरे भीतर की आवेष्टनमूलक संवेदना. परिवेशगत संवेदनशीलता ने ही मेरे भीतर के कथाकार को उजागर किया, जिसे नई धरा पत्रिका ने पाठकों के बीच प्रतिष्ठित किया।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र ने कहा कि आज देश-समाज और जीवन में वैश्कि बाजारवाद इतने तनाव भर दिए हैं कि कलानाथ मिश्र जैसे साहित्यकार और प्रासंगिक हो जाते हैं तथा उनकी कहानियाँ उस तनाव से मुक्ति का जरिया बन सकती हैं। उन्होंने कहा कि कलानाथ अपनी लेखनी से साहित्य की सेवा कर रहे हैं जो राष्ट्र की सेवा करने के बराबर है। आज दुनिया में संवेदनशीलता और मानवीयता का अभाव हो गया है। परम्पराएँ और संस्कार नष्ट होते जा रहे हैं। अपनी कहानियों में माध्यम से लेखक ने विश्व में उत्पन्न इसी संकट की ओर इशारा करते हुए उनके पुनर्स्थापन की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि साहित्यकारों को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करना चाहिए।

इस सारस्वत समारोह का आरम्भ डॉ. प्रतिभा सहाय द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ तथा समापन साहित्यकार डॉ. रामशोभित प्रसाद सिंह के ध्न्यवाद ज्ञापन से हुआ। देश के विभिन्न भाग से आए जाने माने साहित्यकारों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि कलानाथ की कहानियाँ आज के जीवन दर्शन की कथा कहती हैं तथा मानवीय रिश्तों को बारीकी से व्याख्यायित करती हैं। इस अवसर पर प्रसिद्ध कलाकार ए.पी. बादल, गणनाथ मिश्र, ध्रुव कुमार, डॉ. संजय सिंह, भवनाथ मिश्र, शिववंश पांडेय, भावना शेखर, राजकिशोर राजन, विजय नाथ मिश्र, डॉ. धीरज कुमार, जवाहर पांडे, राजकुमारी मिश्र, सुभाष प्र. सिंह, राजकिशोर राजन, विशुद्धानन्द, लघु कथा आन्दोलन के सतीशराज पुष्करना, सहित समारोह में पटना के साहित्यिक समाज के अनेक गणमान्य सदस्यों ने भाग लिया।

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