दिनांक ३ जनवरी २०१२, हिंदी विभाग, चौधरी चरण सिंह विष्वविद्यालय, मेरठ में राष्ट्रीय संगोष्ठी 'शमशेर बहादुर सिंह व्यक्तित्व एवं उनकी रचनाधर्मिता' का आयोजन सफलता पूर्वक किया गया। उदघाटन सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व विभागाध्यक्ष एवं जानी-मानी आलोचक प्रो. निर्मला जैन ने कहा कि यह गौरव की बात है कि इतना बड़ा कवि स्थानीय स्तर पर हुआ। शमशेर की स्थिति दो मेडों पर खड़े हुए कवि की स्थिति है। उन्होंने वामपन्थी और प्रेम दोनों ही तरह की कविताएँ लिखी। उन्हें रूप का कवि, एन्द्रियता का कवि तथा बिम्बों का कवि कहा गया। शमशेर उनमें से एक हैं जिन्होंने ऊँचाई ग्रहण की।
इस अवसर पर माननीय कुलपति डॉ. विपिन गर्ग ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम विभाग में लगातार आयोजित हो ऐसी मेरी अपेक्षा है। दिल्ली से आए डॉ. रामेश्वर राय ने व्यक्त करते हुए कहा कि शमशेर की कविता विशेष तैयारी की माँग करती है। विजय देव नारायण साही ने कहा है कि शमशेर बुनियादी रूप से दुरूहता के कवि हैं। प्रो. राय ने मलयज की पंक्तियां व्यक्त करते हुए कहा कि शमशेर की कविता की कुछ निजी माँगें हैं। डीन कलासंकाय प्रो. आर.एस. अग्रवाल ने कहा कि शमशेर हमारे विश्वविद्यालय परिक्षेत्र के अंग रहे है, हमारे विश्वविद्यालय क्षेत्र के ऐसे व्यक्ति के विविध आयामों की चर्चा हिंदी विभाग ने की, ये गौरव का विषय है। उद्घाटन सत्र का संचालन ललित कुमार सारस्वत, परियोजना अध्येता, उत्कृष्ट अध्ययन केन्द्र, हिन्दी विभाग ने किया।
संगोष्ठी के दूसरे सत्र ’’शमशेर की कविता के विविध आयाम’’ सत्र की अध्यक्षता करते हुए कवि पद्मश्री लीलाधर जगूडी ने कहा कि शमशेर को समझने के लिए खास तैयारी की जरूरत है। शमशेर से टक्कर लेनी चाहिए वे शब्दों को गायब कर देते है, जैसे - ’एक नीला आइना बेठोस।’ - इससे वह केवल आकाश कहना चाहते है और आकाश जिस दिन ठोस हो जाएगा तो मैं हाथ पैर भी नहीं हिला पाऊँगा। ऐसा बिम्ब पूरे साहित्य में नहीं मिलता। उन्हें समझने के लिए उनकी भाषा को, बिम्बों को जानना होगा। इस सत्र में डॉ. जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि एक नये कवि के रूप में जब मैं उन्हें देखता हूँ, कविता की कला सीखने के लिए मैं जिन लोगों के पास जाता हूँ उनमें पहला नाम शमशेर का है। उनकी कविता अपने आप को पहचाने का सलीका सीखाती है, आप सीखते जायेंगे कि एक अच्छी कविता के क्या-क्या गुण हों ? प्रो. दुर्गाप्रसाद गुप्त ने कहा कि शमशेर की पूरी कविता पर पश्चिमी आंदोलनों का प्रभाव है। उस पर प्रतीकवाद, प्रभाववाद, रूपवाद, दादावाद, व्यंजनावाद का प्रभाव है। इसलिए पश्चिमी आंदोलनों के संदर्भ में शमशेर की कविताओं को देखा जाए। द्वितीय सत्र का संचालन एस. डी. कालिज, मुजफरनगर के प्रवक्त डॉ. विश्वम्भर पाण्डेय ने किया।
तृतीय सत्र ‘शमशेर का गद्य और अन्य पक्ष’ विषय पर केन्द्रित रहा। सत्र में मुख्य अतिथि प्रो. प्रेमचन्द पातंजलि, दिल्ली ने कहा कि जब व्यक्ति जीवित रहता है तो उसे कोई याद नहीं करता, यही विडम्बना शमशेर के साथ भी रही। ईर्ष्या जन्य पीढ़ी ने शमशेर को पनपने नहीं दिया। साहित्य के मठाधीशों ने उन्हें दूर रखा। वे किसी मठ से बंधने वाले कवि नहीं थे शमशेर निराला का कौरवी एडीसन है। मेरी इच्छा है कि उनके नाम पर पुस्तकालय अथवा स्मारक बनना चाहिए। डॉ. गजेन्द्र सिंह ने कहा कि शमशेर आधुनिक संदर्भों में ऐसे साहित्यकार है जिन्हें पढ़ा जाना जरूरी है। शमशेर को साहित्यिक गुटबदियों के कारण उस तरह से नहीं पढ़ा गया जैसे पढ़ा जाना चाहिए। परिवेश से व्यक्ति अपने गद्य का निर्माण करता है। हर व्यक्ति संघर्ष से आगे बढ़ता है। तृतीय सत्र का संचालन शोध छात्र मोनू सिंह ने किया। संगोष्ठी में हिन्दी विभाग अध्यक्ष प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी ने आभार व्यक्त किया।
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