रविवार, 30 अक्तूबर 2011

पूर्वोतर नागरी लिपि राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

ईटानगर, २४-२५ सितम्बर, पूर्वोत्तर नागरी लिपि राष्ट्रीय संगोष्ठी तथा ३४वाँ अखिल भारतीय नागरी लिपि सम्मेलन अरूणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में संपन्न हुआ। स्थानीय देरानातुंग शासकीय महाविद्यालय के जुबली हाल में द्विदिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में उच्च शिक्षा निदेशक डा. जोरांग बाईंगी, राजीव गांधी विश्वविद्यालय के उपकुलपति डा. मिदान, नागरी लिपि परिषद, दिल्ली के अध्यक्ष श्री सी.वी.चारी तथा महासचिव डा. परमानंद पांचाल ने देवनागरी को विश्व की सर्वश्रेष्ठ एवं वैज्ञानिक लिपि बताते हुए सभी से अपनी लिपि के साथ-साथ एक अतिरिक्त लिपि के रूप में देवनागरी अपनाने की जरूरत पर बल दिया।

डा. पांचाल ने आचार्य विनोबा भावे द्वारा स्थापित नागरी लिपि परिषद के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए लिपि रहित बोलियों के लिए देवनागरी को श्रेष्ठ विकल्प बताया। हिन्दी में बोलते हुए डा. जोरांग बाईंगी ने जहाँ अनेक सुझाव दिये वहीं देवनागरी को राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि अरूणाचल प्रदेश में अनेक बोलिया हैं किन्तु वहां की संपर्क भाषा हिन्दी है। इससे पहले देरानातुंग कालेज के प्रधानाचार्य ने दिल्ली तथा देश के विभिन्न भागों से आये विद्वानों का स्वागत करते हुए अरूणाचल की समस्त हिन्दी प्रेमी जनता की ओर से शुभकामनाएं व्यक्त की। इसी सत्र में 2011 का प्रतिष्ठित विनोबा नागरी सम्मान निशी जनजाति की विदुषी एवं सहायक आचार्य डा. जोरम आनिया ताना को प्रदान किया गया। पुरस्कार में पुण्पगुच्छ, स्मृतिचिन्ह, प्रशस्तिपत्र, शाल तथा आठ हजार की नकद राशि संस्था के अध्यक्ष श्री सी.वी.चारी के कर कमलों से डा. ताना को जनजाति साहित्य के देवनागरीकरण के लिए भेंट की गई। कार्यक्रम संचालन डा. तुम्बम रिबा जोमो ने किया। इस सम्मेलन के पाँच सत्रों में पूर्वोत्तर की बोलियों के लिए देवनागरी का प्रयोग, भारतीय भाषाओं के लिए सम्पर्क लिपि देवनागरी, अरूणाचल प्रदेश की बोलियां और नागरीलिपि, सूचना प्रौद्योगिकी और नागरी लिपि तथा पूर्वात्तर भारत के साहित्य का नागरी लिपि में प्रकाशन (नेशनल बुक ट्रस्ट के सौजन्य से) पर विस्तृत चर्चा के दौरान अनेक भाषाविदों ने विभिन्न पक्षों को प्रस्तुत कर देवनागरी के अधिकाधिक प्रयोग पर बल दिया। चर्चा में भाग लेने वाले जहां पूर्वोत्तर के नागरी प्रेमी विद्वानों ने कुछ ध्वनियों के लिए अतिरिक्त चिन्हों की जरूरत बताई वहीं अनेक छात्रों ने अपने शोधपत्र और आलेख प्रस्तुत कर संगोष्ठी की अभूतपूर्व सफलता और सार्थक संवाद को प्रमाणिकता प्रदान की।

विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता साहित्य अकादमी दिल्ली के उपसचिव डा. बिजेन्द्र त्रिपाठी, नेशनल बुक ट्रस्ट के डा. ललित मंडोरा, दिल्ली से प्रकाशित होने वाले राष्ट्रकिंकर के संपादक डा. विनोद बब्बर, भारत सरकार में निदेशक रहे प्रो. सोमदत्त दीक्षित, हिन्दी संस्थान के डा. उमाकांत खुबालकर ने की वहीं डा. श्री भगवान शर्मा, श्री नाहर सिंह वर्मा, डा. तारो सिन्दिक, डा. वीरेन्द्र परमार, डा.राजेन्द्र नाथ महरोत्रा, डा. विनोद मिश्र, डा. अशोक पाण्डेय ने चर्चा में हस्तक्षेप कर संगोष्ठी के विषय स्पष्ट करने तथा चर्चा को आयाम प्रदान करने में उल्लेखनीय योगदान किया। प्रथम दिवस देर रात तक चले कवि सम्मेलन में ३२ कवियों ने अपनी श्रेष्ठ रचनाएँ प्रस्तुत की। डा. बृजपाल सिंह ‘संत’ द्वारा संचालित कवि-गोष्ठी ने आधे से अधिक स्थानीय कवियों की सहभागिता और उनका उत्साह देखते ही बनता था। इस कवि गोष्ठी को टीवी चैनलों ने प्रसारित कर संदेश जन-जन तक पहुँचाया। समापन सत्र में कालेज की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत जन जातीय नृत्य ने समा बाँध दिया। अंत में संस्था के महामंत्री डा. परमानंद पांचाल ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए नागरी लिपि परिषद की ओर से ऐसे और आयोजनों की जानकारी भी दी। उन्होंने अरूणाचल प्रदेश के लोगों की सदभावना तथा उनके आथित्य की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए ईटानगर में अपनी स्थायी शाखा खोलने की घोषणा भी की।

दिल्ली से संगोष्ठी में भाग लेने वालों में पंचवटी लोकसेवा समिति, दिल्ली के सरंक्षक डा. अम्बरीश कुमार, यथासंभव के दीपक गोयल, आचार्य ओमप्रकाश, श्री राजकुमार .पाराशर, रमेश कुमार भी शामिल थे। सम्मेलन संचालिका डॉ. डा. जोरम आनिया ताना व सहसंचालिका डा. तुम्बम रिबा जोमो के नेतृत्व में स्थानीय छात्रों, कवियों तथा चीन की सीमा के निकट से आये शायर अन्नु बशार, उपन्यासकार जोरंग सीराम ने समारोह को सफल बनाने व अन्य व्यवस्थाओं की सफलता के लिए दिन रात कार्य किया।

- विनोद बब्बर

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