रविवार, 30 अक्टूबर 2011

रामायण की पाँच कथाओं के हिंदी और डच संस्करण का लोकार्पण

सूरीनाम की विदुषी महिला श्रीमती कार्मेन मरहई ने रामायण पर केंद्रित एक ऐसा अनूठा प्रयास किया है जो एक तरफ तो गैर भारतीयों को रामकथा से जोड़ेगा और दूसरी तरफ सूरीनाम में बसे प्रवासी भारतीयों को अपनी मातृभाषा हिन्दी से। श्रीमती मरमई द्वारा हिन्दी और डच में अनुवादित रामायण की पाँच कथाओं की पुस्तक का लोकार्पण पारामारिबो में हुआ।

अति प्राचीन होते हुए भी रामायण सर्वथा नवीन है। विश्व के लेखक और साहित्यकार पिछली कई सदियों से रामायण से प्रेरणा लेकर अपनी सृजन प्रक्रिया को नया आयाम दे रहे है। लेखकों ने रामायण के आधार पर अनेक कृतियों की रचना की, कई तरह से इसकी व्याख्या हुई है और ये सिलसिला अभी भी जारी है। सूरीनाम की विदुषी महिला श्रीमती कार्मेन मरहई ने ऐसा ही एक प्रयास किया।

दीपावली से पहले उन्होंने सूरीनाम के हिन्दी और डच भाषियों को रामायण से जुडी एक अनूठी सौगात दी। पारामारिबो की सांस्कृतिक संस्था माता गौरी में हुए एक गरिमामय कार्यक्रम में उनकी इस पुस्तक का लोकार्पण हुआ। इस अवसर पर पारामारिबो के कई विशिष्टजन उपस्थित थे। कार्यकर्म को संबोधित करते हुए राजदूतावास की हिंदी व संस्कृति अधिकारी श्रीमती भावना सक्सैना ने रामायण कि प्रासंगिकता की चर्चा की। उन्होंने कहा कि ये सूरीनाम में हिंदी टंकण कार्यशाला की सफलता का प्रतीक भी है। उन्होंने इस अद्भुत प्रयास के लिए मरहई परिवार व सूरीनाम के हिंदी प्रेमियों को बधाई दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन युवा हिंदी छात्रा कुमारी मोती रंगीला ने किया। इस अवसर पर रामायण समाज ने सुमधुर रामायण वाचन भी किया।

उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में बालकांड से प्रयाग महिमा, अयोध्याकांड से लक्ष्मण व निशादराज संवाद , अरण्यकांड से पंचवटी का राम लक्ष्मण संवाद और शबरी माता की नवधा भक्ति तथा उत्तरकांड से पुरजन उपदेश की व्याख्या बहुत सरल ढंग से डच और हिंदी में की गई है। डच भाषा में लिखे आमुख में संक्षेप में रामायण का परिचय दिया गया है। इसके हिन्दी भाग की टाइपिंग श्रीमती मरहई की सुपुत्री श्रीमती रमोना औसान ने की और खास बात ये है कि सिर्फ इस पुस्तक के लिए उन्होंने हिन्दी की टाइपिंग सीखी।

श्रीमती मरहई सूरीनाम में रामायण की सक्रिय प्रचारक हैं। वे पारामारिबो की सांस्कृतिक संस्था माता गौरी में रामायण कक्षाएं भी लेती है जिसमें सब मिलकर रामायण पाठ करते हैं व श्रीमती मरहई उसकी व्याख्या करती हैं। सरल हृदया कार्मेन जी कर्म को प्रधान मानती हैं और यही कारण है कि आज के इस युग में जब प्रत्येक पुस्तक पर लेखक का चित्र व परिचय होना अवश्यंभावी हो गया है, इस पुस्तक में कार्मेन जी ने अपना चित्र व परिचय कुछ नहीं दिया है। वह कहती हैं "मेरा उद्देश्य सिर्फ रामायण प्रचार प्रसार है और वही आवश्यक है, मैं नहीं"।

-भावना सक्सेना

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