रविवार, 30 अक्तूबर 2011

स्मृति मंजूषा और भीगे पंख का विमोचन

’ज्ञान प्रसार संस्थान’ के तत्वावधान में नीरजा द्विवेदी के संस्मरण ’स्मृति मंजूषा’ एवं महेश चन्द्र द्विवेदी के उपन्यास ’भीगे पंख’ का लोकार्पण २५ सितम्बर, २०११ को सिटी मांटेसरी स्कूल, गोमतीनगर, लखनऊ के भव्य सभागार में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर लेखिका नीरजा द्विवेदी ने सस्वर भावभीनी सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।

’स्मृति मंजूषा’ के विषय में लेखिका ने कहा कि इसके लेख उनके अमेरिका एवं इंग्लैंड के प्रवास के दौरान घटित ऐसी घटनाओं के संस्मरण हैं, जो एक सामान्य भारतीय के लिये अनोखी अथवा शिक्षाप्रद हैं। समीक्षक डा. मधु चतुर्वेदी ने बताया कि इसमें वर्णित घटनायें पाश्चात्य जीवन-प्रणाली, सभ्यता एवं संस्कृति के अतिरिक्त वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य एवं भौतिक प्रगति को बडे रुचिकर ढंग से चित्रित करतीं हैं। इनमें अनेक बातें यथा समता का भाव, कार्य के प्रति निष्ठा, नियमों का पालन, किसी कार्य को छोटा न समझने की मान्यता, दिन-प्रतिदिन के कार्यों में बरती जाने वाली ईमानदारी एवं जीवन के प्रति उत्साहपूर्ण दृष्टिकोण हमारे लिये अनुकरणीय है।

'भीगे पंख’ उपन्यास का परिचय देते हुए महेश चंद्र द्विवेदी ने कहा कि इस उपन्यास का विचार थामस ए. हैरिस की प्रसिद्ध पुस्तक ’आई. एम. ओ. के. : यू. आर. ओ. के.’ पढकर आया था। तीनों मुख्य पात्र मोहित, सतिया और रज़िया क्रमशः ’आई. एम. नौट ओ. के.: यू आर ओ. के.’, ’आई एम. ओ. के.: यू आर नौट ओ. के.’ एवं ’आई एम. नौट ओ. के.: यू आर नौट ओ. के.’ की असामान्य मनःस्थिति के हैं। इस कारण उनके पंख भीगे हुए हैं और वे पूरी उडान भरने में असमर्थ हैं। समीक्षक श्री संजीव जायसवाल ने उपन्यास में ग्रामीण परिवेश के एवं विशेषतः निम्न वर्ग की सामाजिक स्थिति के वर्णन को अद्भुत बताया और कहा कि इसे पढकर अमृत लाल नागर की ’नाच्यो बहुत गोपाल’ की याद ताज़ा हो जाती है।

श्री के. विक्रम राव ने अध्यक्षीय भाषण में दोनो पुस्तकों को अपने अपने क्षेत्र की विशेष उपलब्धि बताते हुए उन्हें पठनीय एवं संग्रहणीय बताया।

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