पारामारिबो स्थित भारत के राजदूतावास और सूरीनाम हिन्दी परिषद ने प्रख्यात हिन्दी कवियित्री, एक स्वतंत्रता सेनानी, महिला कार्यकर्ता और शिक्षाविद महादेवी वर्मा जयंती पर एक विशेष शाम का आयोजन किया. कार्यक्रम का आरंभ वानिका क्षेत्र की परमानन्द हिन्दी पाठशाला के छात्रों द्वारा गाए गए भजनों से हुआ। स्थानीय हिन्दी शिक्षक श्रीमती कृष्णा भिखारी ने उत्साहपूर्वक महादेवी के जीवन पर और श्री धीरज कंधई ने उनकी साहित्यिक कृतियों पर वक्तव्य दिया श्रीमती सुषमा खेदू, श्रीमती कारमेन सोमाइ और श्रीमती भजन धनवंती ने महादेवी की कविताओं का पाठ किया जिसे प्रबुद्ध श्रोताओं ने खूब सराहा।
माननीय राजदूत श्री कंवलजीत सिंह सोढ़ी जी ने दर्शकों को संबोधित करते हुए महादेवी वर्मा के साहित्यिक गुणों की सराहना की। इस अवसर पर सूरीनाम हिन्दी परिषद के पुस्तकालय के लिए 30 पुस्तकें भी प्रदान की गयी और 15 हिन्दी शिक्षकों को 1500 अमरीकी डालर और 15 हिन्दी स्कूलों और संगठनों को 500 अमरीकी डालर और एक प्रशस्ति-पत्र से सम्मानित किया, उन्होने कहा कि यह अनुदान सूरीनाम के हिन्दी शिक्षकों की नि:स्वार्थ सेवाओं को सम्मानित करने का प्रयास है. सूरीनाम हिन्दी परिषद के अध्यक्ष श्री भोलानाथ नारायण ने महादेवी जी के कथन कि "हर भाषा का सम्मान करना चाहिए लेकिन किसी अन्य भाषा को मातृभाषा के समान दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए। सूरीनाम हिन्दी परिषद के पूर्व-अध्यक्ष श्री जानकी प्रसाद सिंह ने तीसरे विश्व हिंदी सम्मेलन में महादेवी वर्मा जी के साथ हुई भेंट की अपनी यादें साझा की।
श्रीमती भावना सक्सेना, अताशे (हिंदी एवं संस्कृति) ने सभा का संचालन करते हुए उल्लेख किया कि इस तरह के आयोजनों का उद्देश्य हिन्दी के प्रतिष्ठित कवियों और लेखकों को जानने और उनके साहित्य को पहचानने के अतिरिक्त लोगों को उनकी अपनी रचनात्मकता का एहसास दिलाना भी है।
भारत के राजदूतावास और सूरीनाम हिन्दी परिषद ने 14 मार्च 2011 को कथा-कहानी शृंखला में दूसरी कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें लगभग पचास प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस कार्यशाला में स्थानीय हिन्दी अध्यापकों और छात्रों ने काफी उत्साह के साथ भाग लिया। हिन्दी और सांस्कृतिक अधिकारी श्रीमती सक्सेना कहानी लेखन की बुनियादी विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि एक श्रेष्ठ लघुकथा में कुछ आवश्यक तत्वों की आवश्यकता होती है जैसे वह आकार में बड़ी न हो, कम पात्र हों, समय के एक ही कालखंड को समाहित किए हो, अनावश्यक डिटेल्स न हों, शीर्षक रचना को पुष्ट और पुख्ता करता हो, उसकी गति अपने प्रारंभ-बिन्दु से अन्तिम बिन्दु(चरम बिन्दु) की ओर हो, विषय को लेकर किसी प्रकार का उलझाव न हों, और अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच कर अपनी मारक और असरदार शक्ति का प्रदर्शन करे।उपस्थित प्रतिभागियों को चार चित्रों को दिए गए थे और तीस मिनट के जो कुछ बहुत ही उपयोगी परिणाम सामने आए थे।
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