
गुंजन पुस्तक की खास विशेषता यह है कि यह दक्षिण भारत के एक शहर कोयंबतूर के एक विद्यालय में पढ़ रहे विद्यार्थियों द्वारा लिखी रचनाओं का संकलन है। हिंदी को एक विषय के रूप में पढ़ रहे इन छात्रों की रचनात्मक प्रतिभा को बढ़ावा देने वाली और कोई नही एक दक्षिण भारतीय हिंदी अध्यापिका ही हैं। जिनका नाम है श्रीमती सी आर राजश्री; जिनकी जितनी प्रशंसा की जाये, कम है। छात्रों की रचनात्मक प्रतिभा को बढ़ावा देने के लिये एवं उनमें संवेदनशीलता को उभारने के लिये उन्होंने कालेज में एक रचनात्मक कार्यशाला आयोजित की और उनके सभी छात्रों ने इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। साथ ही कालेज के प्रिंसिपल, सलाहकार (संस्थापक) एवं विभागाध्यक्ष भी अनुशंसा के पात्र हैं जिन्होंने इस कार्यशाला के आयोजन के लिये न ही केवल राजश्री को प्रोत्साहन ही दिया अपितु सभी सुविधायें भी प्रदान कीं।
इन छात्रों की रचनात्मकता देखते ही बनती है। उनमें कई त्रुटियां होंगी पर उन्हें नज़रअंदाज करके ही हमें देखना होगा। छात्रों की संवेदनशीलता देखते ही बनती है। 66 छात्रों की रचनओं में से लगभग 13 कविताएं माँ पर हैं। माँ एक विषय नही अपितु संसार है जिसमें सभी कुछ समाहित होता है। इससे सिद्ध होता है कि हम भारतीय अपनी संस्कृति के ह्रास को लेकर दिनरात जो रोना रोते हैं वह कितना खोखला है। जब तक भारतीय माँ जिंदा है, हमारी संस्कृति बहुत ही अच्छे तरीके से सहेजी हुई है, सुरक्षित है।
विमोचन कार्यक्रम के उपरांत काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसका सुंदर संचालन विख्यात श्री कुमार जैन ने अपने निराले अंदाज में किया। कवियों ने अपनी मधुर वाणी एवं विचारों से उपस्थित श्रोताओं का मन मोह लिया। उपस्थित प्रमुख कवि एवं विचारक थे - सर्वश्री त्रिलोचन अरोडा, नंदलाल थापर, रवि यादव, कुलदीप दीप, हरि राम चौधरी, सुरेश जैन, जयंतीलाल जैन, जवाहरलाल निर्झर, गिरीश जोशी, भजन गायक हरिश्चंद्र जी, राजेश्वर उनियाल, डा। जमील, लोचन सक्सेना, मुरलीधर पाण्डेय, डा। तारा सिंह, श्रीमती शुभकीर्ति माहेश्वरी, श्रीमती मंजू गुप्ता, श्रीमती नीलिमा पाण्डे, श्रीमती शकुंतला शर्मा, डा। सुषमा सेनगुप्ता।
कार्यक्रम के उपरांत कुलवंत सिंह ने माँ शारदा के साथ साथ सभी अतिथियों, श्रोताओं, संचालक एवं महानुभावों का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया।
--कवि कुलवंत सिंह
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