इत्वोस लोरांद विश्वविद्यालय (हंगरी) ने भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद एवं भारतीय दूतावास के सहयोग से भारत विद्या अध्ययन विभाग में 'समकालीन भारतविद्या अध्ययन में अभिलेखीय अध्ययन का महत्त्व' विषय पर ३ फरवरी से ६ फरवरी २०१० तक 'लेटिंग द टेक्स्ट स्पीक' नामक त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। इस अवसर पर भारत के केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री श्री आनंद शर्मा, हंगरी में भारत के राजदूत श्री रंजीत राय, भारतीय सांस्कृतिक संबध परिषद की सुश्री संगीता बहादुर, पद्मभूषण श्री लोकेश चंद्रा जैसे गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। एल्ते विश्वविद्यालय के डीन डॉ. देजो तमाश, विभागाध्यक्षा एवं हिंदी की प्रसिद्ध विदुषी डॉ. मारिया नज्यैशी एवं हिंदी के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा के साथ बुदापेश्ट में रहने वाले न केवल भारतीय अपितु हंगरी के भारत-प्रेमी भी इस अवसर पर बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
अपने उद्घाटन भाषण में श्री आनंद शर्मा ने भारत एवं हंगरी के प्रगाढ़ एवं पुराने संबंधों पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध हंगरी भारत-विदों चोमा द कोरोश एवं ऑरेल स्टाइन के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होने हंगरी की जनता के भारतीय संस्कृति और साहित्य-विषयक प्रेम की चर्चा करते हुए बालाटन नामक स्थान पर स्थित गुरुदेव रवींद्रनाथ की प्रतिमा एवं उनके स्मृति भवन को भारत-हंगरी साहित्यिक सांस्कृतिक एकता का प्रतीक चिह्न माना। एल्ते विश्वविद्यालय के डीन डॉ. तमाश ने संगोष्ठी के आयोजन पर हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त करते हुए विश्वविद्यालय एवं भारतीय अध्ययन विभाग का परिचय दिया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि भविष्य में भी इसी प्रकार के आयोजन होते रहेंगे। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की उप-महानिदेशक सुश्री मान ने भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की गतिविधियों एवं नीतियों की जानकारी दी। विभिन्न यूरोपीय देशों में खोले जा रहे हिंदी एवं भारतीय भाषा-पीठों के बारे में बताते हुए उन्होंने भिन्न-भिन्न यूरोपीय देशों में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के आयोजन के माध्यम से साहित्य एवं सांस्कृतिक संबंधों की प्रगाढ़ता पर जोर दिया। डॉ. मारिया नज्यैशी ने उदघाटन समारोह के अंत में सबका धन्यवाद ज्ञापन करते हुए आशा व्यक्त की कि भविष्य में भी विभाग को इसी प्रकार भारत सरकार का सहयोग मिलता रहेगा और ऐसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित होते रहेंगे।
सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख विद्वानों में प्रोफेसर लोकेश चंद्रा के अतिरिक्त प्रो. माइकेल हॉन(मारबुर्ग), डॉ. जीन तुक शेविलाई(पेरिस), डॉ. इम्रै बंगा( ऑक्सफोर्ड एवं बुदापैश्ट), डॉ. जोविता क्रामर(म्यूनिख) प्रो. आर. के. मिश्रा (जम्मू), डॉ. गैरगै हिदास(बुदापैश्ट), डॉ. इवा दि क्लार्क(घेंट), डॉ. चाबा देस्जो(बुदापैश्ट एवं ऑक्सफोर्ड), डॉ. नीलिमा चितगोपेकर(दिल्ली), डॉ. हंस बॉकर(ग्रानिनजेन), श्री डेनियल बलोग(बुदापैश्ट), प्रो. निर्मला शर्मा(दिल्ली), श्री चाबा किस(बुदापैश्ट), डॉ. एस. ए. एस सरमा(पॉडिचेरी) एवं डॉ.पीटर बिश्कॉप (एडिनबर्ग) प्रमुख थे। सेमीनार में पढ़े जा रहे पर्चों में बौद्ध धर्म एवं दर्शन, भारतीय स्थापत्य कला, मूर्तिकला से लेकर कबीर आदि से संबंधित हस्तलिखित पुस्तकों, पुरालेखों, शिलालेखों एवं ताम्रपत्रों से संबंधित जानकारियों का शोधात्मक विवेचन-विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। पूरे विश्व में भारतीय साहित्य, संस्कृति एवं दर्शन के क्षेत्र में हो रहे अत्यंत महत्वपूर्ण शोध-कार्यों की यह झलक बहुत अधिक ज्ञानवर्धक तथा उत्साह-वर्धक थी। तीसरे दिन समापन समारोह में महामहिम श्री रंजीत राय ने एल्ते विश्वविद्यालय एवं प्रतिभागी विद्वानों का धन्यवाद देते हुए इस प्रकार के सम्मेलनों के निरंतर आयोजन पर बल दिया। अंततः हंगरी के प्रसिद्ध भारतविद प्रो. गेजा के धन्यवाद भाषण के साथ समारोह समाप्त हुआ।
अपने उद्घाटन भाषण में श्री आनंद शर्मा ने भारत एवं हंगरी के प्रगाढ़ एवं पुराने संबंधों पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध हंगरी भारत-विदों चोमा द कोरोश एवं ऑरेल स्टाइन के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होने हंगरी की जनता के भारतीय संस्कृति और साहित्य-विषयक प्रेम की चर्चा करते हुए बालाटन नामक स्थान पर स्थित गुरुदेव रवींद्रनाथ की प्रतिमा एवं उनके स्मृति भवन को भारत-हंगरी साहित्यिक सांस्कृतिक एकता का प्रतीक चिह्न माना। एल्ते विश्वविद्यालय के डीन डॉ. तमाश ने संगोष्ठी के आयोजन पर हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त करते हुए विश्वविद्यालय एवं भारतीय अध्ययन विभाग का परिचय दिया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि भविष्य में भी इसी प्रकार के आयोजन होते रहेंगे। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की उप-महानिदेशक सुश्री मान ने भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की गतिविधियों एवं नीतियों की जानकारी दी। विभिन्न यूरोपीय देशों में खोले जा रहे हिंदी एवं भारतीय भाषा-पीठों के बारे में बताते हुए उन्होंने भिन्न-भिन्न यूरोपीय देशों में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के आयोजन के माध्यम से साहित्य एवं सांस्कृतिक संबंधों की प्रगाढ़ता पर जोर दिया। डॉ. मारिया नज्यैशी ने उदघाटन समारोह के अंत में सबका धन्यवाद ज्ञापन करते हुए आशा व्यक्त की कि भविष्य में भी विभाग को इसी प्रकार भारत सरकार का सहयोग मिलता रहेगा और ऐसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित होते रहेंगे।
सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख विद्वानों में प्रोफेसर लोकेश चंद्रा के अतिरिक्त प्रो. माइकेल हॉन(मारबुर्ग), डॉ. जीन तुक शेविलाई(पेरिस), डॉ. इम्रै बंगा( ऑक्सफोर्ड एवं बुदापैश्ट), डॉ. जोविता क्रामर(म्यूनिख) प्रो. आर. के. मिश्रा (जम्मू), डॉ. गैरगै हिदास(बुदापैश्ट), डॉ. इवा दि क्लार्क(घेंट), डॉ. चाबा देस्जो(बुदापैश्ट एवं ऑक्सफोर्ड), डॉ. नीलिमा चितगोपेकर(दिल्ली), डॉ. हंस बॉकर(ग्रानिनजेन), श्री डेनियल बलोग(बुदापैश्ट), प्रो. निर्मला शर्मा(दिल्ली), श्री चाबा किस(बुदापैश्ट), डॉ. एस. ए. एस सरमा(पॉडिचेरी) एवं डॉ.पीटर बिश्कॉप (एडिनबर्ग) प्रमुख थे। सेमीनार में पढ़े जा रहे पर्चों में बौद्ध धर्म एवं दर्शन, भारतीय स्थापत्य कला, मूर्तिकला से लेकर कबीर आदि से संबंधित हस्तलिखित पुस्तकों, पुरालेखों, शिलालेखों एवं ताम्रपत्रों से संबंधित जानकारियों का शोधात्मक विवेचन-विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। पूरे विश्व में भारतीय साहित्य, संस्कृति एवं दर्शन के क्षेत्र में हो रहे अत्यंत महत्वपूर्ण शोध-कार्यों की यह झलक बहुत अधिक ज्ञानवर्धक तथा उत्साह-वर्धक थी। तीसरे दिन समापन समारोह में महामहिम श्री रंजीत राय ने एल्ते विश्वविद्यालय एवं प्रतिभागी विद्वानों का धन्यवाद देते हुए इस प्रकार के सम्मेलनों के निरंतर आयोजन पर बल दिया। अंततः हंगरी के प्रसिद्ध भारतविद प्रो. गेजा के धन्यवाद भाषण के साथ समारोह समाप्त हुआ।
-- डॉ. गीता शर्मा
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