रायपुर, १० एवं ११ जुलाई २००९ को आयोजित दो दिवसीय आलोचना संगोष्ठी एवं प्रथम प्रमोद वर्मा आलोचना सम्मान समारोह धूमधाम से किया गया। संस्थान की ओर से प्रत्येक वर्ष प्रमोद वर्मा की स्मृति में दिए जाने वाले राष्ट्रीय आलोचना सम्मान का शुभारंभ करते हुए वर्ष २००९ के लिए भागलपुर के आलोचक श्री भगवान सिंह तथा वाराणसी के श्री कृष्ण मोहन को सम्मानित किया गया। उक्त सम्मान में पुरस्कृत आलोचक द्वय को क्रमशः २१ हज़ार एवं ११ हज़ार रुपये देने के साथ ही प्रमोद वर्मा समग्र, प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिह्न, शॉल एवं श्रीफल भेंट कर अलंकृत किया गया। सम्मान के निर्णायकों में थे श्री केदारनाथ सिंह, डॉ. धनंजय वर्मा, डॉ. विजय बहादुर सिंह, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, श्री विश्वरंजन एवं संयोजक जयप्रकाश मानस।
सम्मानित आलोचक श्री भगवान सिंह ने कहा कि उन्होंने कभी पुरस्कार प्राप्त करने के लिए नहीं लिखा था और न ही वे पुरस्कारों में विश्वास रखते हैं, लेकिन वे छत्तीसगढ़ के आभारी हैं कि यहाँ पर उनके द्वारा जिस विचार को लेकर लिखा जा रहा है उसे पुरस्कार दिया गया। पुरस्कार की विश्वसनीयता एक बार फिर स्थापित हुई। दो दिवसीय आलोचना संगोष्ठी का उद्घाटन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह ने किया। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि सुप्रसिद्ध कवि, नाट्य लेखक, शिक्षाविद और साहित्य समीक्षक स्वर्गीय डॉ. प्रमोद वर्मा की महत्वपूर्ण रचनाओं के संकलन प्रमोद वर्मा साहित्य समग्र जो राजकमल प्रकाशन से चार खण्डों में प्रकाशित हुआ है के विमोचन एवं तीन सत्रों में आलोचना पर विचार-विमर्श करने के साथ ही छत्तीसगढ़ का नाम एक बार पुन: साहित्य के आकाश पर छा गया है। उन्होंने इस अवसर पर प्रमोद वर्मा की महत्वपूर्ण रचनाओं के संकलन साहित्य समग्र तथा समारोह की स्मारिका का विमोचन करते हुए उनकी साहित्यिक जीवन यात्रा और रचनाओं पर केन्द्रित व संस्थान के कार्यकारी निदेशक श्री जयप्रकाश मानस द्वारा निर्मित (www.pramodverma.com) नामक पोर्टल का उद्घाटन भी किया। उन्होंने कहा कि प्रमोद वर्मा जैसे वरिष्ठ दिवंगत साहित्यकार को श्रद्धांजलि देने का इससे अच्छा माध्यम और कुछ नहीं हो सकता। कार्यक्रम में पर्यटन और संस्कृति मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल, आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास मंत्री श्री केदार कश्यप और पूर्व मंत्री श्री सत्यनारायण शर्मा के सहित छत्तीसगढ़ और देश के विभिन्न राज्यों के अनेक साहित्यकार और स्थानीय प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित थे। समारोह तीन सत्रों में विभाजित था। प्रथम सत्र 'समकालीन आलोचना का हाव भाव' में अध्यक्षीय दीर्घा से बोलते हुए श्री नदंकिशोर आचार्य ने कहा कि रचना को समग्रता में देखना आलोचना है। दूसरा सत्र आलोचना का प्रजातंत्र विषय पर केन्द्रित था जिसमें अध्यक्षीय आसंदी से बोलते हुए श्री खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आलोचना को यथार्थ की धरती पर खड़ा किया। डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिशय ने कहा कि प्रजातंत्र का अर्थ वरण की स्वतंत्रता से है। आलोचक को विषय चुनने तथा उस पर दृष्टिकोण रखने की आशावादी होनी चाहिए। वरिष्ठ कवि श्री चंद्रकांत देवताले ने बहुत ही विचारोत्तेजक वक्तव्य देते हुए कहा कि रचनाकारों को ज़्यादा आलोचकों की चिंता नहीं करनी चाहिए। मुक्तिबोध को याद करते हुए उन्होंने कहा कि आज आलोचक और रचनाकार को अपनी राजनैतिक दृष्टि साफ़ करनी चाहिए। हमें अपनी जातीय, देशज संस्कृति की रक्षा करते हुए वैश्विक होना है। उक्त सत्र में संवाद में भाग लेते हुए श्री एकांत श्रीवास्तव, सुश्री रंजना अरगड़े, सुश्री मुक्ता सिंह, श्री कृष्ण मोहन, श्री अरुण शीतांश और श्री बसंत त्रिपाठी ने भी अपने विचार रखे।
तृतीय सत्र 'आलोचना के परिसर में प्रमोद वर्मा' पर केन्द्रित था। सत्र अध्यक्ष श्री अशोक वाजपेयी ने कहा कि एक आलोचक अपने दूसरे मित्र रचनाकारों के निर्माण में सहचर की भूमिका निबाह सकता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण प्रमोद वर्मा थे। वर्मा ने अपनी आलोचनाओं से गजानंद माधव मुक्तिबोध तथा हरिशंकर परसाई के लेखन को प्रोत्साहित किया है और उनके विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। अध्यक्ष मंडल की आसंदी से श्री कमला प्रसाद ने बोलते हुए कहा कि आलोचना के क्षेत्र में श्री प्रमोद वर्मा का अपना स्थान है। संवाद सत्र में श्री प्रभात त्रिपाठी, डॉ.बलदेव, श्री रवि श्रीवास्तव, श्री विनोद साव, श्री नंद किशोर तिवारी, डॉ. बृजबाला सिंह, आदि ने भी अपने विचार रखे। अलंकरण समारोह में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्री ई.एस.एल. नरसिम्हन ने कहा कि कलम की ताक़त असीमित होती है। कलाकारों, साहित्यकारों को अपनी इस ताक़त का इस्तेमाल सकारात्मक कार्यों में करना चाहिए। उन्होंने कहा कि साहित्य की ताक़त से समाज व उसका परिवेश बदला जा सकता है। उन्होंने आलोचक द्वय को प्रथम प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान से अलंकृत भी किया। अशोक बाजपेयी ने कहा उन्हें छत्तीसगढ़ी होने का गर्व है और यह अच्छी बात है कि छत्तीसगढ़ ने हिन्दी साहित्य आलोचना के सम्मान का मान रखा है। वर्तमान पीढ़ी को साहित्य के प्राप्त अपने उत्तराधिकार के लिए सजग करने का दायित्व साहित्यकारों का है। संस्था के अध्यक्ष श्री विश्वरंजन ने संस्थान की आगामी कार्य योजनाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए कहा कि संस्थान द्वारा भविष्य में महिला, आदिवासी, और दलित समाज के लेखकों के लिए विशेष तौर पर राष्ट्रीय लेखन शिविरों का आयोजन सहित राजधानी में हिन्दी भवन निर्माण का कार्य भी किया जाएगा। कार्यक्रम के पहले दिन श्री प्रमोद वर्मा की कविताओं पर आधारित कविताओं का नाट्य मंचन श्री कुंज बिहारी शर्मा के निर्देशन में प्रसिद्ध नाट्य संस्था 'रूपक' द्वारा किया गया। इस अवसर पर काव्य गोष्ठी का आयोजन भी किया गया, जिसमें देश के नामी-गिरामी कवियों यथा-श्री नंदकिशोर आचार्य,श्री चंद्रकांत देवताले, श्री विनोद कुमार शुक्ल, श्री प्रभात त्रिपाठी, श्री एकांत श्रीवास्तव, श्री विश्वरंजन, डॉ. वंदना केंगरानी, श्री अशोक सिंघई, श्री शरद कोकास, श्री कमलेश्वर साहू, श्री अरुण शीतांश, डॉ. बलदेव एवं श्रीमती पुष्पा तिवारी ने अपनी कविताओं का काव्य पाठ किया। काव्य पाठ का संचालन श्री रवि श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम में राजकमल प्रकाशन दिल्ली के प्रमुख अशोक माहेश्वरी, डॉ. गंगा प्रसाद बरसैंया, डॉ. कल्याणी वर्मा, बसंत त्रिपाठी, राजेन्द्र मिश्र, कनक तिवारी, डॉ. बलदेव, राजुरकर राज, कैलाश आदमी, रमेश नैयर, डॉ. प्रेम दुबे, विनोद शंकर शुक्ल, सुभाष मिश्र, संतोष रंजन, श्री राम पटवा, अशोक सिंघई, मुमताज, एस. अहमद, बी.एल पॉल, तपेश जैन एवं राज्य भर के प्रबुद्ध साहित्य रसिक गण उपस्थित थे।
- जयप्रकाश मानस, संपादक- सृजनगाथा, www.srijangatha.com
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