लखनऊ 28 अगस्त 2009, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी व कवि उमेश चौहान के काव्य संग्रह जिन्हें डर नहीं लगता है का लोकार्पण प्रसिद्ध आलोचक और महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विवि, वर्धा के कुलाधिपति डॉ. नामवर सिंह ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आज समाज से डर लगता है।...और तो और उन्हें अब ज़्यादा बोलने में भी डर लगने लगा है। माध्यम साहित्यिक संस्था द्वारा इस समारोह का आयोजन हिंदी संस्थान के यशपाल सभागार में किया गया। समारोह की अध्यक्षता भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष गोपाल चतुर्वेदी ने की। समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना, वरिष्ठ कथाकार अखिलेश व हिंदी संस्थान के निदेशक डॉ. सुधाकर अदीब उपस्थित रहे। बतौर मुख्य अतिथि काव्य संग्रह का लोकार्पण के पश्चात नामवर सिंह ने वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य और सामाजिक विषमताओं की ओर इंगित करते हुए कहा कि आज का समाज ऐसा बन चुका है कि डर लगता है। डर किसी दूसरे से नहीं अपने ही आदमी से है। स्त्री सुरक्षा के मुद्दों को भी उन्होंने इस मौके पर उठाया। लोकार्पित पुस्तक के विषय में उन्होंने कहा कि इसमें मानवीय संवेदनाओं की कविताओं को शामिल किया गया है। लोकार्पण के मौके पर खचाखच भरे यशपाल सभागार को देखकर उन्होंने कहा कि लखनऊ में अभी भी वह समाज है जो नाटक, कहानी, और कविता को ज़िंदा रख सकता है।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष और व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि आज के परिवेश में हम विषमताओं और प्रशासन की कुटिलता कै आदी हो चुके हैं। इसके बाद भी हमें खुद पर रोना नहीं आता है। आज का समज काफ़ी भयावह है। उन्होंने कहा कि जिन्हें डर लगता है उन्हें रमेश चौहान का काव्य संग्रह पढ़ना चाहिए। इससे पूर्व हिंदी संस्थान के निदेशक डॉ. सुधाकर अदीब ने कहा कि कविता में कहानी कहना और कहानी कहना और कहानी में कविता कहने का अपना अलग रोमांच है। आज ऐसी कविताएँ प्रचलित हैं जो समझ से परे होती है। उन्हें श्री चौहान की कविताओं का उल्लेख भी किया। वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि ढेर सारी पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन होने के बाद भी आज की कविताएँ प्रचलित हैं जो समझ से परे होती है। उन्हें श्री चौहान की कविताओं का उल्लेख भी किया। वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि ढेर सारी पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन होने के बाद भी आज की कविताएँ पढ़ी नहीं जा रही है। दरअसल हम कविताओं का अंदाज़-ए-बयाँ भूल गए हैं। शिल्पायन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस काव्य संग्रह में उमेश चौहान ने एसएमएस द्वारा अपनी भेजी जाने वाली कविताओं को संग्रहित किया है। श्री चौहान ने यहाँ कविता नई नस्ल के कबूतर, कूड़ेदान और करमजीते चक दे का पाठ भी किया। लखनऊ (डीएनएन)। प्रसिद्ध आलोचक डॉ. नामवर सिंह आज हिंदी संस्थान के यशपाल सभागार में जुटे साहित्यप्रेमियों की भारी संख्या को देखकर गदगद हो उठे। उन्होंने कहा कि इस सभागार को बनते हुए तो देखा है लेकिन भरते हुए पहली बार देख रहा हूँ। वहीं शहर के एक चर्चित हास्य व्यंग्य रचनाकार ने कहा कि ऐसी भीड़ किसी प्रशासनिक अधिकारी द्वारा सृजित पुस्तक के लोकार्पण समारोह में ही हो सकती है।
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