मंगलवार, 18 सितंबर 2012

स्पंदन द्वारा पंकज सुबीर के उपन्यास ‘ये वो सहर तो नहीं’ पर विचार संगोष्ठी

भोपाल । स्पंदन द्वारा हिन्दी भवन के महादेवी वर्मा कक्ष में चर्चित युवा कथाकार पंकज सुबीर के ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार प्राप्त उपन्यास ‘ये वो सहर तो नहीं’ पर विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया । इस अवसर पर पंकज सुबीर के नये कहानी संग्रह 'महुआ घटवारिन' का लोकार्पण भी किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री संतोष चौबे ने की जबकि उपन्यास पर कथाकार मुकेश वर्मा तथा कथाकारा डॉ स्वा‍ति तिवारी ने वक्तव्य दिये । ललित कलाओं के लिये समर्पित संस्था स्पंदन द्वारा आयोजित पंकज सुबीर के उपन्यास पर केन्द्रित कार्यक्रम के प्रारंभ में कार्यक्रम का संचालन करते हुए संस्था की संयोजक तथा वरिष्ठक कहानीकार डॉ उर्मिला शिरीष ने उपन्‍यास के बारे में उपस्थित श्रोताओं को जानकारी दी । उन्होंने पंकज सुबीर का परिचय देते हुए उनके साहित्य के बारे में विस्तार से चर्चा की । तत्प‍श्चात अतिथियों ने सामयिक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पंकज सुबीर के नये कहानी संग्रह 'महुआ घटवारिन' का लोकार्पण किया । इस कहानी संग्रह में लेखक की 10 विविध रंगी कहानियों का समावेश किया गया है ।

विचार संगोष्ठी की शुरूआत करते हुए उपन्यास पर अपने वक्तव्य में श्री मुकेश वर्मा ने कहा कि पंकज सुबीर ने अपनी विशिष्ट शैली के चलते अपना अलग स्थान बना लिया है तथा यह उपन्यास उसका एक उदाहरण है । उन्होंने कहा कि उपन्यास में व्यं‍ग्य का जिस प्रकार उपयोग किया गया है वो पाठक को गुदगुदाता भी है और सोचने पर मजबूर भी करता है । 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी को आज तक लेकर आने का लेखक का प्रयोग सफल रहा है । कहानीकार डॉ स्वाति तिवारी ने उपन्यास पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि उपन्यास का इतिहास खंड पढ़ने पर ज्ञात होता है कि लेखक ने इतिहास को लेकर काफी शोध किया है तथा भोपाल रियासत के इतिहास का खूब अध्ययन किया है । इतिहास की कहानी को लेखक ने अपनी भाषा शैली के चलते कहीं भी उबाऊ नहीं होने दिया है । बहुत ही खूबी के साथ उस कालखंड की कथा को लेखक ने न केवल कहा है बल्कि उसे आज के साथ भी रोचकता के साथ संतुलित किया है ।

पंकज सुबीर ने उपन्यास के उन विशिष्ट अंशों का पाठ किया जो 1857 के संग्राम के दौरान भोपाल रियासत की स्थिति के बारे में हैं । चर्चा को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्री ब्रजेश राजपूत ने उपन्यास की भाषा तथा शिल्प पर विशेष रूप से बात की । उन्होंने कहा कि यह उपन्यास अपने अनोखे शिल्प के चलते पाठकों को बांधे रखने में सफल रहता है । दो समानांतर रूप से चल रही कहानियों को लेखक ने एक साथ बांधने की जो कोशिश की है वह रोचक है । दोनों कहानियों के बीच में 150 वर्षों का अंतर पाठक को महसूस नहीं होता । साथ ही श्री सुबीर ने उपन्यास के उन अंशों का भी पाठ किया जो 150 साल के अंतर को पाटते हुए मध्य प्रदेश की वर्तमान प्रशासनिक स्थिति पर केन्द्रित हैं । अपना अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री संतोष चौबे ने कहा कि पंकज सुबीर का यह पहला ही उपन्यास है किन्तु इसको पढ़ते समय इस बात का कतई एहसास नहीं होता है कि ये लेखक का पहला उपन्यास है । जिस कौशल के साथ लेखक ने दो कथाओं के बीच संतुलन साधा है वह बहुत प्रभावशाली है । लेखक ने उपन्यास में व्यंग्य की भाषा के साथ साथ कुशलता से कहावतों, मुहावरों तथा जनश्रुतियों का उपयोग किया है । लेखक ने 1857 के बारे एक ऐसी नई कहानी से पाठकों को परिचित करवाया है जिससे पाठक अभी तक अपरिचित था । साथ ही इतिहासकार भी इसके बारे में कम जानते हैं । उस कहानी को उठाकर उसे वर्तमान की कहानी के साथ तुलनात्मक रूप से प्रस्तु त करना और वो भी पहले ही उपन्यास में, इसके लिये लेखक बधाई के पात्र हैं । अंत में आभार स्पंतदन के अध्यकक्ष डॉ शिरीष शर्मा ने व्यक्त किया ।

डॉ शिरीष शर्मा अध्यक्ष (स्पंनदन)

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