सोमवार, 28 नवंबर 2011

स्वयं प्रकाश को कथाक्रम सम्मान

लखनऊ, सुप्रसिद्ध कहानीकार-उपन्यासकार स्वयं प्रकाश को १९वें आनंद सागर स्मृति कथाक्रम सम्मान से अलंकृत किया गया। उन्हें यह सम्मान आलोचक मुद्राराक्षस और उपन्यासकार गिरिराज किशोर ने दिया। सम्मान के तहत १५ हजार रुपये का चेक, स्मृति चिह्न, अंग वस्त्र और सम्मान पत्र दिया गया। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के यशपाल सभागार में हुए सम्मान समारोह के अध्यक्ष मुद्राराक्षस थे। आयोजन के संयोजक शैलेंद्र सागर ने स्व. श्रीलाल शुक्ल को याद करते हुए कहा कि वो हम सब के लिए कितना मायने रखते थे इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।  बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजकुमार ने सम्मानित कथाकार स्वयं प्रकाश के लेखन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सांप्रदायिकता के विषय पर लिखी गई उनकी कहानियाँ काफी चर्चित रही हैं। उनकी अधिकतर कहानियों का जन्म वास्तविक परिवेश में हुआ है। स्वयं प्रकाश की कहानियों की विशेषता है कि उनकी शुरुआत चरित्रों से नहीं, उनकी आंतरिक भावनाओं से होती है। वह प्रेमचंद की परम्परा के असल वाहक हैं, जो यथार्थ को दिशा देता है।
पुरस्कार ग्रहण करने के बाद कथाकार स्वयं प्रकाश ने हाल ही में ज्ञानपीठ से सम्मानित वरिष्ठ उपन्यासकार श्रीलाल शुक्ल को नमन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार अमरकांत को भी ज्ञानपीठ सम्मान से समादृत करने के लिए ज्ञानपीठ परिवार को बधाई दी। उन्होंने कहा कि पहली बार कहानीकारों का दिल ज्ञानपीठ वालों ने जीता। वैश्वीकरण और बाजारवाद पर प्रहार करते हुए स्वयं प्रकाश ने कहा कि बाजार हमारे छोटे भाइयों यानी नयी पीढ़ी में घुस चुका है। वह हमारे मूल्यों को नष्ट कर रहा है। इस कारण हमें सोचना होगा कि हमें किस प्रकार का समाज बनाना होगा।
सम्मान सत्र के तत्काल बाद 'वर्तमान समय के प्रश्न और रचनाकारों की भूमिका' विषय पर संगोष्ठी प्रारम्भ हुई जो अगले दिन भी जारी रही। इस चर्चा का प्रारंभ कथाकार  राकेश कुमार सिंह के पत्र वाचन से हुआ जिन्होंने कहा कि भूमण्डलीकरण का नकाब मौजूदा समय में भी पूरी तरह से उतरना बाकी है। संगोष्ठी में समाजशास्त्री अभय कुमार दुबे,  साहित्यकार प्रभाकर श्रोत्रिय, उद्भावना के सम्पादक अजेय कुमार, उपन्यासकार रवीन्द्र वर्मा, कहानीकार शशांक, उपन्यासकार मैत्रेयी पुष्पा, उपन्यासकार शिवमूर्ति, आलोचक वीरेन्द्र यादव, वसुधा के सम्पादक राजेन्द्र शर्मा, वरिष्ठ रंगकर्मी राकेश, युवा कथाकार राकेश बिहारी, प्रो. रमेश दीक्षित, प्रो. सत्यदेव त्रिपाठी, पुनर्नवा के सम्पादक राजेन्द्र राव, कथाकार  कविता, सारा राय, डा. रंजना जायसवाल, अमरीक सिंह दीप, हरीचरन प्रकाश , मूलचंद गौतम  व प्रो. वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी आदि की सक्रिय भागीदारी रही।
गोष्ठी में जब तब विवाद-संवाद की स्थितियां बनीं। पहले दिन गिरिराज किशोर ने प्रलेस पर आरोप लगाया कि अपने समारोह में प्रकाशित स्मारिका में यशपाल जैसे लेखक का चित्र न छापकर बड़ी गलती की है। वहीं अंतिम क्षणों में स्थानीय पत्रकार के। विक्रम राव के अध्यक्षीय उद्बोधन के बाद भी बोलने पर आपत्ति की जाने से थोड़ी अप्रिय स्थिति हो गई,जिसे बाद में ठीक कर लिया गया। दो दिन चले इस आयोजन में बड़ी संख्या में लेखकों-पाठकों का जुटना सचमुच साहित्य के प्रति आकर्षण का ही प्रमाण है।

प्रस्तुति- विशेष संवाददाता

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